पुस्तक समीक्षा मातृसत्ताक समाज और ‘वोल्गा से गंगा’– सारदा बनर्जी January 2, 2013 | Leave a Comment राहुल सांकृत्यायन की कृति ‘वोल्गा से गंगा’ मातृसत्ताक समाज में स्त्री वर्चस्व और स्त्री सम्मान को व्यक्त करने वाली बेजोड़ रचना है। इस रचना में यदि स्त्रियों के ओवरऑल पर्फ़र्मेंस और प्रकृति पर नज़र दौराया जाए तो पता चलता है कि मातृसत्ताक समाज में स्त्री कितनी उन्मुक्त, आत्मनिर्भर और स्वच्छंद थीं। स्त्री किसी की संपत्ति […] Read more »
महिला-जगत स्त्री-भाषा – सारदा बनर्जी December 26, 2012 | 3 Comments on स्त्री-भाषा – सारदा बनर्जी स्त्री की भाषा पुरुष की भाषा से स्वभावत: भिन्न होती है। स्त्री भाषा के मानदंड पुरुष भाषा के मानदंड से बिल्कुल अलग होते हैं। चाहे ‘पाठ’ के आधार पर कहें या बोलचाल की भाषा के आधार पर। स्त्री पाठ का यदि ठीक-ठीक विश्लेषण किया जाए तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि इसकी प्रकृति पुरुष पाठ […] Read more »
महिला-जगत पुसंवाद को कितना डिस्टर्ब करता है स्त्रीवादी सोच – सारदा बनर्जी December 17, 2012 | 9 Comments on पुसंवाद को कितना डिस्टर्ब करता है स्त्रीवादी सोच – सारदा बनर्जी क्या वजह है कि कोई स्त्री लेखिका जब पितृसत्ताक समाज के पुंसवादी रवैये की आलोचना करती हैं तो उन्हें पुरुषों की कटुक्ति का सामना करना पड़ता है? हमारा समाज अपने रवैये में बेहद पुंसवादी है और इस पुंसवाद के प्रभाव को स्त्रियां हर पल झेल रहीं हैं। लेकिन जब कोई स्त्री इन विषयों पर रौशनी […] Read more » स्त्री विमर्श
विविधा मेरी दृष्टि में ‘शांतिनिकेतन’ – सारदा बनर्जी December 17, 2012 / December 17, 2012 | Leave a Comment यदि रवीन्द्रनाथ को जानना, समझना और अनुभव करना हो तो ‘शांतिनिकेतन’ सबसे उत्तम स्थान है। रवीन्द्रनाथ जिस विश्व-शांति का उद्घोष शांतिनिकेतन की प्रतिष्ठा द्वारा करना चाहते थे, उस ‘शांति’ को शांतिनिकेतन या बीरभुम की भूमि में, वहां के रम्य वातावरण में सहज ही अनुभव किया जा सकता है। कोलाहल-मुक्त प्रकृति का आस्वाद अभी भी इस […] Read more » शांति निकेतन
महिला-जगत तेजाब-पीड़िता सोनाली मुखर्जी और स्त्री-हिंसा – सारदा बनर्जी December 11, 2012 | 3 Comments on तेजाब-पीड़िता सोनाली मुखर्जी और स्त्री-हिंसा – सारदा बनर्जी ऐसी वारदातें जो स्त्री के देह से होकर उसके मन तक को नारकीय यंत्रणा का नृशंस शिकार बना दे, देश के लिए शर्म हैं और ऐसे लोग जो इस तरह की गुनाहों के गुनहगार होते हैं , वे देश और समाज से बहिष्कृत किए जाने के योग्य हैं। इस संदर्भ में उल्लेखनीय है तेजाब हमले […] Read more »
महिला-जगत एकल परिवार और स्त्री – सारदा बनर्जी December 4, 2012 | 4 Comments on एकल परिवार और स्त्री – सारदा बनर्जी आज के ज़माने में स्त्रियों के लिए एकल परिवार एक अनिवार्य शर्त बन गया है। स्त्री की आत्मनिर्भरता और सामाजिक गतिशीलता के विकास के लिए एकल परिवार बेहद ज़रुरी है। संयुक्त परिवार में स्त्रियों के पास अपने लिए समय नहीं होता। अपने आप को समझने और अपनी प्रतिभाओं के विकास का उन्हें बिल्कुल ही मौका […] Read more » एकल परिवार
महिला-जगत पितृसत्ताक समाज में पुंसवादी पर्वों के चंगुल में फँसीं स्त्रियां – सारदा बनर्जी November 29, 2012 | 3 Comments on पितृसत्ताक समाज में पुंसवादी पर्वों के चंगुल में फँसीं स्त्रियां – सारदा बनर्जी भारत का पितृसत्ताक ढांचे में बना समाज अपने उत्सवों में भी बेहद पुंसवादी है। देखा जाए तो त्योहारों का अपना एक आनंद होता है। लेकिन आनंद के उद्देश्य से जितने भी त्योहारों या व्रतों की सृष्टि की गई है वे सारे आयोजन कायदे से पितृसत्ताक मानसिकता का ज़बरदस्त परिचय देता है। यह एक आम बात […] Read more »
महिला-जगत स्त्री-आधुनिकता विचारों में है या ‘जीन्स’ में – सारदा बनर्जी November 29, 2012 | 1 Comment on स्त्री-आधुनिकता विचारों में है या ‘जीन्स’ में – सारदा बनर्जी आज अधिकतर भारतीय स्त्रियां प्रचलित भारतीय वस्त्रों की जगह जीन्स को वरीयता दे रही हैं। इसकी वजह है मार्केट में जीन्स का व्यापक तौर पर उपलब्ध होना और जीन्स का कम्फर्ट-लेबल । इसके अतिरिक्त जीन्स स्टाइलिश ड्रेस के रुप में भी माना जाता है। साथ ही यह आधुनिकता का भी परिचायक है। यही वजह है […] Read more »
महिला-जगत स्त्री और कृष्ण-चरित्र – सारदा बनर्जी November 11, 2012 | 1 Comment on स्त्री और कृष्ण-चरित्र – सारदा बनर्जी क्या कारण है कि स्त्रियों में मिथकीय नायकों में राम की अपेक्षा कृष्ण ज़्यादा पॉप्यूलर हैं ? कृष्ण को लेकर स्त्रियों में जितनी फैंटेसी, प्रेम और उत्सुकता दिखाई देती है उतनी उत्सुकता राम को लेकर नहीं। कृष्ण को लेकर सुंदर कल्पनाएं करने, कथाएं रचने और चर्चा करने में स्त्रियां जितनी रुचि लेती हैं उतनी राम-कथा […] Read more » स्त्री और कृष्ण
विविधा कन्या-भ्रूण हत्या से उठे सवाल – सारदा बनर्जी October 25, 2012 | 1 Comment on कन्या-भ्रूण हत्या से उठे सवाल – सारदा बनर्जी समकालीन भारतीय समाज की भारतीय संविधान पर भरपूर आस्था है। केन्द्र और राज्य की सरकारों की यह जिम्मेदारी है कि वे संविधान प्रदत्त सुरक्षाओं के अनुपालन को सुनिश्चित करें। लेकिन उनकी ढीलेढाले रवैय्ये के कारण बार-बार संविधान प्रदत्त नागरिक अधिकारों के अनुपालन को लेकर सवाल उठते रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि […] Read more » कन्या भ्रूण हत्या
राजनीति राजनीति में स्त्री दिलचस्पी की कमी – सारदा बनर्जी October 13, 2012 | Leave a Comment आम तौर पर देखा गया है कि स्त्रियों में राजनीति के प्रति दिलचस्पी बेहद कम होती है। स्त्रियां राजनीति पर बात करना, चर्चा या आलोचना करना कतई पसंद नहीं करतीं। वे दूसरे अनेक रोचक विषयों पर जमकर बात करती हैं, आलोचना करती हैं पर राजनीति से कोसों दूर रहती हैं। उसे ‘बोगस’ विषय समझती हैं। […] Read more » स्त्री राजनीति
महिला-जगत सीरियल-उन्मादना और स्त्री / सारदा बनर्जी October 2, 2012 | Leave a Comment हाल-फिलहाल यह देखा जा रहा है कि टी.वी. सीरियल के साथ स्त्रियों का गहरा संपर्क बन रहा है। चाहे वह लड़की हो, युवती हो, औरत हो या बुज़ुर्ग महिला, चाहे शिक्षित हो चाहे अशिक्षित। कुछ हिन्दी टी.वी. चैनलों जैसे स्टार प्लस, ज़ी टी.वी., सोनी टी.वी., आदि के साथ ही विभिन्न क्षेत्रिय चैनलों जैसे स्टार जलसा(बंगला) […] Read more »