राजनीति जेन – जी के बहाने जेन – पी की सक्रियता September 29, 2025 / September 29, 2025 | Leave a Comment जेन-पी से अभिप्राय भारत की राजनीति में ऐसी जेनरेशन अथवा पीढ़ी से है जो परिवारवाद से जन्मी है और उसी के इर्द-गिर्द घूमती रहती है। भारत भाव से दूर इनमें संघर्ष और विचार का अभाव है। यदि है भी तो केवल निहित स्वार्थों के लिए है। वर्ष 2014 से ये सत्ता से बाहर हैं। Read more » जेन - जी के बहाने जेन - पी जेन-जी यानी युवा शक्ति जेन-पी से अभिप्राय भारत की राजनीति में ऐसी जेनरेशन अथवा पीढ़ी से है जो परिवारवाद से जन्मी
लेख गंदगी और बंदगी एक साथ कैसे? August 11, 2025 / August 11, 2025 | Leave a Comment डॉ.वेदप्रकाश विगत दिनों एक समाचार पढ़ा- साढ़े चार करोड़ कांवड़ यात्री धर्मनगरी में छोड़ गए 10 हजार मीट्रिक टन कूड़ा। यह समाचार हाल ही में संपन्न हुई कांवड़ यात्रा के संबंध में था। समाचार के विश्लेषण में आगे लिखा था- 11 जुलाई से कांवड़ यात्रा विधिवत रूप से शुरू हुई थी। यात्रा का आधा पड़ाव पूरा होने के बाद कांवड़ यात्रियों ने खाद्य पदार्थ,प्लास्टिक की बोतलें, चिप्स और गुटके के रैपर्स, पॉलिथीन की थैलियां, पुराने कपड़े, जूते- चप्पल आदि सामान कूड़ेदान में डालने के बजाय सड़क और गंगा घाटों पर ही फेंक दिया। हर की पैड़ी के संपूर्ण क्षेत्र में गंदगी फैली है। मालवीय घाट, सुभाष घाट, महिला घाट, रोड़ी बेलवाला,पंतद्वीप, कनखल, भूपतवाला, ऋषिकुल मैदान, बैरागी कैंप आदि क्षेत्रों में गंदगी पसरी है। गौरतलब यह भी है कि हरिद्वार में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण द्वारा प्लास्टिक पर प्रतिबंध के बाद भी कांवड़ यात्रा के दौरान पॉलीथिन और प्लास्टिक का कारोबार जमकर हुआ। क्या यह प्रशासन की मिलीभगत नहीं है? संयोग से इस दौरान मुझे भी हरिद्वार और ऋषिकेश गंगा स्नान एवं दर्शन के लिए जाने का सौभाग्य मिला। परमार्थ निकेतन ऋषिकेश में विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती के समय प्रतिदिन की भांति पूज्य स्वामी चिदानंद सरस्वती जी उन दिनों भी विशेष रूप से अपने उद्बोधन में कह रहे थे- घाटों पर गंदगी न करें, कूड़ा कूड़ेदान में डालें, प्लास्टिक का प्रयोग न करें, मां गंगा में पुरानी कांवड़ और पुराने कपड़े आदि न फेंके। प्लास्टिक की थैलियों का प्रयोग न हो, इसके लिए उन्होंने एक विशेष अभियान के अंतर्गत कपड़े के लाखों थैले बंटवाए। जगह-जगह स्वच्छ पेयजल हेतु व्यवस्थाएं की। तदुपरांत भी गंगा घाटों पर गंदे कपड़े, कूड़ा और प्लास्टिक की बोतलें सहजता से इधर-उधर पड़ी दिखाई दे रही थी। यहां समझने की आवश्यकता है कि गंदगी न करना, स्वच्छता रखना, प्रकृति- पर्यावरण, नदी और जल स्रोतों को दूषित न करना अपने आप में एक बड़ी भक्ति अथवा बंदगी है। अनेक स्थानों पर लोग भंडारे और अन्य कार्यक्रमों के आयोजन करते हैं, जिसमें प्लास्टिक की प्लेट, चम्मच, गिलास आदि के रूप में ढेर कूड़ा दाएं बाएं बिखरा पड़ा रहता है। भंडारा करना और अन्य धार्मिक आयोजन हर्षोंल्लास से करना बहुत अच्छी बात है लेकिन गंदगी के लिए भी सजग होना पड़ेगा। एक नागरिक के रूप में हमें यूज एंड थ्रो की संस्कृति को छोड़ना होगा। तीर्थ स्थानों पर अथवा कहीं भी गंदगी फैलाना हमें बंदगी की भावना से दूर करता है। विगत दिनों प्रयागराज में महाकुंभ मेले का आयोजन हुआ। मेले में प्रतिदिन सैकड़ों मीट्रिक टन कूड़ा निकलता था, लेकिन प्रशासन की समुचित योजना और सजगता होने से मेला क्षेत्र लगातार स्वच्छ रहा। कुछ ही स्थानों पर प्लास्टिक की थैलियां, बोतलें और कूड़ा दिखाई दिया। भारत विविधताओं का देश है। यहां विभिन्न जातियां, मत- संप्रदाय एवं पर्व- उत्सव हैं। समूचे देश में विभिन्न नदियों एवं स्थानों पर अनेक तीर्थ हैं। जहां प्रतिदिन भारी संख्या में श्रद्धालु एवं तीर्थयात्री पहुंचते हैं। क्या अपनी इन पवित्र यात्राओं पर जाते समय हम प्रकृति-पर्यावरण और तीर्थों को गंदा न करने और स्वच्छ रखने का संकल्प नहीं ले सकते? स्वच्छता की दृष्टि से लगातार प्रयास करते हुए इंदौर देश का सबसे स्वच्छ शहर बना हुआ है जबकि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कई जगह कूड़े के पहाड़ बन चुके हैं। लगातार बढ़ती जनसंख्या के बीच शासन- प्रशासन की भी अपनी सीमाएं हैं। ऐसे में प्रत्येक व्यक्ति को यह संकल्प लेना होगा कि मेरा कूड़ा मैं ही संभालूं। हरिद्वार और ऋषिकेश की यात्रा के संबंध में गांधी जी ने लिखा है- गंगा तट पर जहां पर ईश्वर दर्शन के लिए ध्यान लगाकर बैठना शोभा देता है- पाखाना, पेशाब करते हुए बडी संख्या में स्त्री-पुरुष अपनी मूढ़ता और आरोग्य के तथा धर्म के नियमों को भंग करते हैं…जिस पानी को लाखों लोग पवित्र समझकर पीते हैं, उसमें फूल, सूत, गुलाल,चावल, पंचामृत वगैरा चीजें डाली गई… मैंने यह भी सुना कि शहर के गटरों का गंदा पानी भी नदी में ही बहा दिया जाता है जोकि एक बड़े से बड़ा अपराध है। आज भी गंगोत्री धाम से लेकर गंगासागर तक मां गंगा, यमुनोत्री से लेकर प्रयागराज संगम तक मां यमुना, कृष्णा, कावेरी, मंदाकिनी, ब्रह्मपुत्र आदि विभिन्न ऐसी नदियां हैं जिनमें व्यापक स्तर पर भिन्न-भिन्न प्रकार का प्रदूषण और गंदगी फैलाई जा रही है। इस गंदगी के लिए न तो प्रशासन सजग है और न ही लोग। दिल्ली, हरियाणा और फिर उत्तर प्रदेश, वृंदावन में भी मां यमुना के किनारे गंदगी सहज ही देखी जा सकती है। यद्यपि भारत सरकार नमामि गंगे मिशन के अंतर्गत गंगा व अन्य नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के लिए प्रयास कर रही है तथापि अभी स्थिति में अधिक बदलाव नहीं हुए हैं। स्वच्छता ही सेवा, सेवा ही धर्म आदि महत्वपूर्ण सूत्रों का व्यवहार में आना अभी बाकी है। परमार्थ निकेतन में मां गंगा आरती के समय पूज्य मुनि चिदानंद सरस्वती जी, विभिन्न संत एवं भारतवर्ष की ज्ञान परंपरा के अनेक ग्रंथ लगातार यह कह रहे हैं कि- नदियां जीवनदायिनी हैं, प्रकृति-पर्यावरण के बिना जीवन का अस्तित्व नहीं है, नदियां बचेंगी तो जीवन बचेगा, संतति बचेंगी,संस्कृति बचेगी। पूज्य स्वामी चिदानंद जी अपने उद्बोधन में अक्सर कहते हैं- गंदगी और बंदगी एक साथ नहीं हो सकती। जब आप गंदगी को छोड़ देंगे, स्वच्छता को अपना लेंगे, तो बंदगी की राह बहुत आसान हो जाएगी। आइए खूब बंदगी करें, खूब तीर्थ करें, खूब स्नान करें लेकिन प्रकृति-पर्यावरण और नदियों को गंदा न करें। यदि प्लास्टिक की बोतलें, थैली अथवा कुछ कूड़ा हमारे पास है तो उसे यहां वहां न फेंके, कूड़ेदान में डालें ताकि उसे उचित व्यवस्था में ले जाकर समाप्त किया जा सके। डॉ.वेदप्रकाश Read more » गंदगी और बंदगी
राजनीति विकसित कृषि से विकसित भारत की राह August 4, 2025 / August 4, 2025 | Leave a Comment डा.वेदप्रकाश विकसित कृषि के लिए विज्ञान एवं आधुनिक तकनीक का प्रयोग आवश्यक है। समय के अनुसार विभिन्न क्षेत्रों में बदलाव आ रहे हैं। कई क्षेत्रों में भूजल का स्तर घटने एवं जलवायु परिवर्तन होने से फसलों के पैटर्न बदलने की आवश्यकता है। गेंहू , गन्ना, धान, सेब,संतरा, मौसमी, नींबू ,आम,केला व लीची आदि फसलों की आवश्यकताएं भिन्न हैं। इसलिए आज कृषि क्षेत्र के लिए शोध और नवाचार अनिवार्य है। वन ड्रॉप मोर क्रॉप के महत्व को समझना होगा। भूजल की कमी वाले क्षेत्रों में अधिक लाभ एवं पैदावार वाली किस्में विकसित करनी होंगी। वर्ष 2014 में सत्ता में आते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की आय दोगुनी करने का संकल्प प्रस्तुत किया और उसके लिए विभिन्न योजनाओं को तत्काल प्रभाव से लागू भी किया। परिणामत: विगत कुछ वर्षों से लगातार रिकॉर्ड खाद्यान्न की पैदावार और निर्यात हो रहा है। हाल ही में केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना को मंजूरी दी है। इस योजना में कृषि उत्पादन में पिछड़े जिलों को शामिल किया जाएगा जिसमें प्रत्येक राज्य से कम से कम एक जिला सम्मिलित होगा। योजना पर प्रतिवर्ष 24000 करोड़ रुपए खर्च होंगे, जिससे लगभग एक करोड़ 70 लाख किसानों को लाभ होगा। योजना में छोटे और सीमांत किसानों को आधुनिक और लाभकारी खेती की ओर बढ़ने पर बल दिया जाएगा। यह अन्नदाता के सम्मान और कृषि एवं किसान कल्याण की दिशा में महत्वपूर्ण निर्णय है। ध्यातव्य है कि भारत कृषि प्रधान देश है। देश की लगभग 47 प्रतिशत आबादी कृषि से आजीविका पर निर्भर है। आज भी देश के विभिन्न राज्यों में कृषि के लिए पुरानी तकनीक और पुराने उपकरणों पर ही निर्भरता है। तकनीकी और वैज्ञानिक विकास से वे अभी भी बहुत दूर हैं। दिसंबर 2024 की नेशनल बैंक आफ रूरल एंड एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट की एक रिपोर्ट के अनुसार किसानों की कमाई में खेती का योगदान 33 प्रतिशत है। किसान परिवारों की खेती से औसत मासिक आय केवल 4476 रुपए है। इसके अतिरिक्त खेती, पशुपालन, अन्य उद्यम,मजदूरी एवं सेवा आदि को मिलाकर किसान परिवार की औसत मासिक आय 13661 रुपए है। देश के लगभग 55.4 प्रतिशत किसान परिवारों पर कर्ज है। सामान्यतः छोटी जोत के किसान परिवारों की बदहाली सहज ही देखी जा सकती है। सर्दी, गर्मी, बरसात सभी मौसमों में खुले आसमान के नीचे कठोर परिश्रम करके भी वे मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित रहते हैं। क्या किसानों की यह दशा चिंताजनक नहीं है? विगत कुछ वर्षो से कृषि और किसान कल्याण के लिए अनेक योजनाएं आरंभ की गई हैं जिनमें किसान चैनल, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, एग्रीकल्चर मार्केट रिफॉर्म, बजटीय आवंटन में बढ़ोतरी, कृषि ऋण, कृषि बाजार ढांचे में सुधार, राष्ट्रीय बांस मिशन, मृदा स्वास्थ्य कार्ड, परंपरागत कृषि विकास योजना, राष्ट्रीय गोकुल मिशन एवं प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना आदि प्रमुख हैं। प्रधानमंत्री ने वर्ष 2018 के लाल किले की प्राचीर से राष्ट्रीय संबोधन में कहा था- हम किसानों को साथ लेकर कृषि में आधुनिकता करके कृषि के फलक को चौड़ा करके काम करना चाहते हैं। बीज से लेकर बाजार तक हम वैल्यू एडिशन करना चाहते हैं…। फलत: वर्ष 2023 के बजट में खेती किसानी को नए युग में ले जाने के उद्देश्य से डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने का विचार आया। प्राकृतिक खेती के लिए एक करोड़ किसानों को पीएम प्रणाम योजना रखी गई। वर्ष 2024 के बजट में गांवों के लिए सहकारिता नीति, राष्ट्रीय आजीविका मिशन के अंतर्गत 3 करोड़ लखपति दीदी बनाने का लक्ष्य आदि महत्वपूर्ण योजनाएं थी, तो वर्ष 2025 के बजट में प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना। करोड़ों मछुआरों, किसानों और डेयरी किसानों को अल्पकालिक ऋण सुविधा, राष्ट्रीय उच्च पैदावार के लिए बीज मिशन, कपास उत्पादकता मिशन, मखाना बोर्ड, ड्रोन दीदी और दलहन में आत्मनिर्भरता आदि ऐसी योजनाएं प्रस्तावित हैं जिनसे कृषि और किसान कल्याण की दिशा में आमूलचूल परिवर्तन होंगे। विगत दिनों भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की वार्षिक आमसभा में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने कहा कि विकसित कृषि संकल्प अभियान में आए सुझावों के आधार पर कृषि विकास की रणनीति बनेगी। उन्होंने जन औषधि केंद्र की तरह फसल औषधि केंद्र खोलने की बात भी कही। साथ ही उन्होंने किसानों की उपयोगिता और मांग आधारित शोध की जरूरत पर भी जोर दिया। आज हमें गंभीरता से यह समझने की जरूरत है कि भारत की वैश्विक कृषि उत्पादन में 7.5 प्रतिशत हिस्सेदारी है तो वहीं राष्ट्रीय जीडीपी में कृषि उत्पादों का 18 प्रतिशत योगदान है। ऐसे में कृषि क्षेत्र पर समग्रता और व्यापकता से विचार करने की आवश्यकता है। यद्यपि विश्व बाजार में भारत की कृषि का निर्यात लगातार बढ़ता जा रहा है. तदुपरांत भी अनेक चुनौतियां हमारे सामने हैं। गेहूं,चावल, दलहन एवं भिन्न-भिन्न प्रकार के खाद्यान्नों का समुचित और सुरक्षित भंडारण एक बड़ी चुनौती है। प्रतिवर्ष हजारों टन खाद्यान्न सड़ जाता है अथवा कीड़ों के द्वारा नष्ट कर दिया जाता है। कई बार भिन्न-भिन्न प्रदेशों में उगाई जा रही फल एवं सब्जियां समुचित यातायात और कोल्ड स्टोरेज के अभाव में बर्बाद हो जाती हैं। आज राष्ट्रीय और वैश्विक फलक पर आम जन की खानपान की शैली बदल रही है, ऐसे में खाद्यान्न उत्पादन के साथ-साथ खाद्य प्रसंस्करण भी आवश्यक है। यह बहुत महत्वपूर्ण एवं व्यापक क्षेत्र है। वैश्विक बाजार में इसकी मांग लगातार बढ़ रही है। नीदरलैंड, मलेशिया और थाईलैंड जैसे छोटे-छोटे देश खाद्य प्रसंस्करण की भागीदारी में हमसे कई गुना आगे हैं। एक रिपोर्ट में यह सामने आया है कि खाद्य प्रसंस्करण की दर बहुत कम होने से और सप्लाई चैन की अक्षमता के कारण प्रतिवर्ष 20- 25 प्रतिशत उत्पादन बर्बाद हो जाता है। इसलिए आज कृषि क्षेत्र में व्यापक स्तर पर निजीकरण की भी आवश्यकता है। आज जब विकसित कृषि एक बड़े संकल्प के रूप में उभर रही है तब यह आवश्यक है कि प्रत्येक प्रदेश की जलवायु, वहां की मिट्टी एवं प्रकृति के अनुसार कृषि के लिए योजनाएं बनें। वहां की आवश्यकता के अनुसार बीज, खाद, कीटनाशक एवं भंडारण सुविधा उपलब्ध करवाई जाएं। भिन्न-भिन्न प्रकार की जानकारियों एवं जागरूकता हेतु समय-समय पर किसानों से संवाद हों। स्वयं सहायता समूहों को अधिकाधिक प्रोत्साहित किया जाए। आज यह भी आवश्यक है कि कृषि क्षेत्र से संबंधित शोध वातानुकूलित कक्षों से निकलकर जमीन तक पहुंचे। साथ ही यह भी आवश्यक है कि कृषि क्षेत्र में शिक्षित और नवोंमेषी युवाओं की भागीदारी बढ़े। कृषि क्षेत्र के लिए बड़ी संख्या में तकनीक और उन्नत उपकरणों की आवश्यकता हेतु निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाए। विगत कुछ दिनों से सोशल मीडिया में कृषि मंत्री द्वारा लीची,पपीता, गन्ना और भिन्न-भिन्न प्रकार की खेती करने वाले किसानों के साथ खेत में पहुंचकर संवाद के वीडियो सामने आ रहे हैं। सकारात्मक यह है कि वे स्वयं किसानों की समस्याएं जानकर उनके तत्काल समाधान हेतु प्रयासरत हैं। ऐसे में पॉलीहाउस, कोल्ड स्टोरेज और विभिन्न उपकरणों के निर्माण में निजी क्षेत्र बड़ा सहायक हो सकता है। कृषि के साथ-साथ बांस की खेती, पशुपालन, मधुमक्खी पालन जैसी गतिविधियां भी किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ज्वार, बाजरा, मक्का,रागी जैसे मोटे अनाजों की राष्ट्रीय और वैश्विक मांग लगातार बढ़ रही है। इसके लिए उन्नत बीज, खाद एवं कीटनाशकों की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी। कुछ राज्यों से अमानक एवं नकली बीज, उर्वरक व कीटनाशकों के समाचार एक बड़ी एवं गंभीर चुनौती है। इससे फसल की गुणवत्ता खराब होने के साथ-साथ किसानों की आय पर भी बुरा असर पड़ता है। पैदावार कम होती है, साथ ही ये किसान और मिट्टी दोनों का स्वास्थ्य बिगाड़ रहे हैं। लंबे समय से बाजार में बायोस्टिमुलेंट उत्पादों की बिक्री के भी समाचार आ रहे हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। अगस्त 2023 में छपे एक समाचार के अनुसार रासायनिक खाद व कीटनाशक किसानों का स्वास्थ्य बिगाड रहे हैं। प्रबंधन अध्ययन अकादमी लखनऊ और हैदराबाद की ओर से किए गए एक सर्वे में पता चला है कि 22 प्रतिशत किसानों ने सांस की तो 40 प्रतिशत ने सिर दर्द की शिकायत की है। 16 प्रतिशत किसानों में कैंसर का प्रभाव तो 37 प्रतिशत में त्वचा रोगों की शिकायत मिली है। क्या यह चिंताजनक नहीं है? विकसित कृषि के संकल्प के लिए यह आवश्यक है कि यथाशीघ्र बीज, उर्वरक और कीटनाशक एक्ट बने और उसे दंड के कठोर प्रविधानों के साथ तत्काल लागू किया जाए। हाल ही में कृषि मंत्री ने कहा भी है कि अमानक बीज, खाद एवं कीटनाशक गंभीर विषय है जिसे लेकर सरकार जल्द कड़ा कानूनी प्रविधान करेगी…। स्पष्टत: राष्ट्रीय और वैश्विक आवश्यकता की पूर्ति हेतु कृषि क्षेत्र में व्यापक स्तर पर सुधारों की आवश्यकता है। इसके लिए विकल्पहीन प्रतिबद्धता से योजनाएं बनाकर उन्हें शीघ्रता से लागू करना होगा। क्योंकि विकसित कृषि से ही विकसित राष्ट्र का संकल्प साकार होगा। डा.वेदप्रकाश Read more » The path to developed India through developed agriculture विकसित कृषि से विकसित भारत की राह
लेख चिंताजनक है नदियों का मौन July 15, 2025 / July 15, 2025 | Leave a Comment डा.वेदप्रकाश नदियां बोलती हैं। उनका कल कल- छल छल स्वर और निरंतर प्रवाह उनकी जीवंतता का प्रमाण है। भारतीय ज्ञान परंपरा के आदि ग्रंथ ऋग्वेद के 33वें सूक्त में ऋषि विश्वामित्र और नदी का संवाद है। जहां नदियों को गायों और घोड़े के सदृश शब्द करती व दौड़ती वर्णित किया गया है। वहां कहा गया है कि नदियां सबका उपकार करने वाली होती हैं और कभी जल से हीन नहीं होती। वहां ऋषि द्वारा नदी पार करने हेतु प्रार्थना भी है। इसी प्रकार 75वें सूक्त में- इमं मे गंड्गे यमुने सरस्वति…के माध्यम से विभिन्न नदियों का महत्व और शोभा वर्णित है। आदिकाव्य रामायण और रामचरितमानस में भी विभिन्न प्रसंगों में नदियों से संवाद एवं स्तुति मिलती है। सुंदरकांड में प्रभु श्रीराम समुद्र से प्रार्थना, पूजन व संवाद करते हैं। नदियों का सतत प्रवाह अथवा गतिशीलता मानव चेतना को साहस प्रदान करता रहा है। हरिद्वार, ऋषिकेश, मथुरा, काशी,प्रयागराज और गंगासागर आदि अनेक तीर्थ नदियों से ही बने हैं। नदियों के किनारे ही सभ्यता एवं संस्कृति विकसित हुई हैं। ध्यान रहे नदियां हैं तो प्रकृति है, संस्कृति है, संतति है, वर्तमान है और भविष्य भी इन्हीं से होगा। कहीं बीहड़ जंगलों से तो कहीं कठोर पर्वत श्रेणियों से निकलती नदियां उनकी संघर्ष यात्रा के प्रमाण हैं। गंगा,यमुना, सरस्वती, गोदावरी, ब्रह्मपुत्र, गोमती, घाघरा, गंडक, कोसी, चंबल, बागमती, सिंधु , झेलम, चेनाब,रावी, व्यास, सतलुज, नर्मदा, ताप्ती, वैतरणी, कृष्णा,कावेरी, लूनी, माच्छू , बनास, साबरमती, काली, पेरियार आदि देश की छोटी बड़ी सैकड़ों नदियां बड़े भू भाग को सींचने के साथ-साथ जीवन की रेखाएं भी हैं। अनेक नदियां पर्वत, मैदान, हिम क्षेत्र और मरुस्थल में भी जीवनदायिनी बनकर बहती हैं। विभिन्न नदियों पर बने बड़े बांध जहां विद्युत उत्पादन के बड़े स्रोत हैं तो वहीं कृषि आवश्यकताओं हेतु नहरों से जल का फैलाव भी करते हैं। आज दर्जनों नदियां मर चुकी हैं, दर्जनों भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रदूषण के कारण बदहाली का शिकार हैं और जो बची हैं उनमें भी पानी का स्तर लगातार कम हो रहा है। कुल मिलाकर नदियां मौन होती जा रही हैं, क्या नदियों का यह मौन मनुष्य सहित समूची जीव सृष्टि के लिए चिंताजनक नहीं है? भारत विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बन चुका है। ऐसे में औद्योगिक, कृषि, पेयजल एवं खाद्यान्न हेतु जल की कमी और नदियों पर मंडराता संकट बड़ी चुनौती के रूप में सामने खड़ा है। गंगा और यमुना जैसी देश की बड़ी नदियों के किनारे अनेक औद्योगिक इकाइयां हैं। साथ ही मछली पालन के रूप में भी आजीविका के बड़े अवसर हैं लेकिन यदि नदियां मौन होती जाएगी तो इससे इन पर निर्भर लोगों को आर्थिक संकट के साथ-साथ विस्थापन भी झेलना पड़ेगा। यमुना नदी के संबंध में दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति की एक रिपोर्ट बताती है कि नदी के न्यूनतम बहाव के लिए जितना पानी होना चाहिए उसका आधा भी फिलहाल नहीं है। दिल्ली सहित देश के विभिन्न राज्यों एवं महानगरों में घरेलू कचरा, सीवेज और औद्योगिक दूषित जल सीधे नदियों में गिर रहा है। राजधानी दिल्ली में 28 औपचारिक औद्योगिक क्षेत्र हैं जिनमें से केवल 17 कॉमन एफ्लूएंट ट्रीटमेंट प्लांट यानी सीईटी से जुड़े हैं। 11 के लिए कोई ट्रीटमेंट प्लांट है ही नहीं। जब राष्ट्रीय राजधानी की यह दशा है तो देश के अन्य औद्योगिक महानगरों की स्थिति सहज ही समझी जा सकती है। नदियों के स्वतंत्र प्रवाह में अतिक्रमण और अवैध खनन भी एक बड़ी चुनौती बन चुका है। अप्रैल 2025 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने देहरादून की विभिन्न नदियों, नालों और खालों से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया है। समाचारों के अनुसार देहरादून में 100 एकड़, विकासनगर में 140 एकड़, ऋषिकेश में 15 एकड़ और डोईवाला में 15 एकड़ नदियों की भूमि पर अतिक्रमण है। विगत में सुप्रीम कोर्ट भी दिल्ली में यमुना नदी को अतिक्रमण मुक्त करने का आदेश दे चुका है। देश के अन्य प्रदेशों में नदी क्षेत्र के अतिक्रमण की स्थिति कमोबेश ऐसी ही है। समाचार यह भी बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया की 87 प्रतिशत नदियां गर्म हो रही हैं और 70 प्रतिशत नदियों में आक्सीजन की कमी हो रही है। जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। मौसम का चक्र बदल रहा है। दुनियाभर में नदियों का आकार भी सिकुड़ रहा है। ध्यान रहे नदियों की बदहाली और उनका मौन होना नदी के अंदर और आसपास की पारिस्थितिकी को भी गहरे प्रभावित करता है। घातक रसायनों एवं प्रदूषण के कारण नदी जीवन के लिए आवश्यक मछली, कछुए और अन्य जीवों की संख्या भी लगातार घट रही है और नदी क्षेत्र के प्रकृति-पर्यावरण में भी बदलाव देखे जा सकते हैं। मार्च 2025 के वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के एक अध्ययन से यह सामने आया है कि नदियां कार्बन डाइआक्साइड को अवशोषित करने के साथ ही उसे वातावरण में वापस छोड़ने का काम भी कर रही है… नदियों के पानी में ठहराव और प्रदूषण के कारण यदि उसका तापमान बढ़ता है तो उसमें गैसों का उत्सर्जन और तेज होगा। प्रदूषण वाले भाग पर कचरे से मिथेन गैस भी निकलती है जो कार्बन डाइआक्साइड से 21 गुना अधिक खतरनाक है। मानसून के मौसम में नदियों में जल की अधिकता होती है। यह जल नदियों को नवजीवन प्रदान करने के साथ-साथ समूचे नदी क्षेत्र को जल से भरता है। जिससे वहां भिन्न-भिन्न प्रकार की वनस्पतियां पोषित होती हैं और आसपास के क्षेत्र में भूजल का स्तर भी संतुलित रहता है। यह नदियों का रौद्र रूप नहीं है अपितु नदी क्षेत्र में मनुष्य का अनुचित हस्तक्षेप हो रहा है इसलिए दुर्घटनाएं भी बढ़ रही हैं। क्या यह हस्तक्षेप अनुचित नहीं है? ध्यान रहे नदियां अपने उद्गम से फिर किसी संगम अथवा सागर तक की यात्रा में समूची जीव सृष्टि के लिए जल एवं खाद्यान्न पैदा करती हैं। समूचा जलचक्र नदियों एवं सागर के द्वारा ही पूरा होता है। क्या नदियों का मौन होना समूचे जलचक्र को प्रभावित नहीं करेगा? नदियों के पुनर्जीवन एवं संरक्षण-संवर्धन हेतु आज यह आवश्यक है कि समुचित रणनीति बनाते हुए नदियों की प्रकृति को समझकर प्रबंधन किया जाए। नदियों की स्थिति को गंभीर एवं प्रमुखता की श्रेणी में रखते हुए उससे संबंधित नौकरशाही की जिम्मेदारी तय की जाए। यह सत्य है कि पर्याप्त सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट और औद्योगिक क्षेत्र में समुचित व्यवस्था न होने के जिम्मेदार नौकरशाह हैं। बिना सरकारी और नौकरशाही सहयोग के नदी और जल स्रोतों पर अतिक्रमण और खनन संभव नहीं है। संविधान में वर्णित मौलिक कर्तव्य हमें नदी, झीलों एवं जल स्रोतों के संरक्षण-संवर्धन हेतु दायित्व देते हैं। क्या हम संविधान की भावना के अनुरूप काम कर रहे हैं? मार्च 2017 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने गंगा और यमुना नदियों के विषय में अपना फैसला देते हुए कहा- गंगा और यमुना नदियां अपना अस्तित्व खोने के खतरे में हैं और इसलिए उन्हें अधिकारों के साथ कानूनी इकाई घोषित किया गया है। लेकिन यह विडंबना ही है कि कुछ समय बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगा दी। आज हमें यह समझना होगा कि गंगा और यमुना जैसी बड़ी नदियां भारत की बड़ी आबादी के अस्तित्व, उनके स्वास्थ्य और जीवन के लिए महत्वपूर्ण हैं। अनादि काल से ये नदियां मनुष्य को शारीरिक, आध्यात्मिक और भिन्न-भिन्न प्रकार का पोषण प्रदान करती रही हैं। आज जब ये जीवनदायिनी नदियां अस्तित्व के संकट से जूझ रही हैं, भयंकर प्रदूषण की चपेट में हैं तब यह आवश्यक है कि इन्हें कानूनी इकाई घोषित किया जाए। सरकारों के साथ-साथ समाज भी इनके संरक्षण-संवर्धन हेतु अपना दायित्व समझे,जिससे इन्हें मौन होने से बचाया जा सके क्योंकि नदियों का मौन होना समूची जीव सृष्टि के अंत की ओर बढ़ना है। डा.वेदप्रकाश Read more » The silence of the rivers is worrying
लेख पूर्णता के बोध का अवसर है- गुरु पूर्णिमा July 10, 2025 / July 10, 2025 | Leave a Comment डॉ.वेदप्रकाश गुरु और गोविंद दोनों पूर्ण हैं और ये दोनों एक दूसरे के पर्याय भी हैं। गुरु भी पूर्ण हैं और पूर्णिमा भी पूर्ण होती है इसलिए गुरु पूर्णिमा उत्सव बन जाता है। शिष्य अपूर्ण होता है और इसी अपूर्णता की पूर्ति हेतु वह गुरु के शरणागत होता है। गुरु इस अपूर्ण शिष्य को पूर्णता […] Read more » गुरु पूर्णिमा
पर्यावरण लेख चिंताजनक है पर्यावरणीय असंतुलन June 24, 2025 / June 24, 2025 | Leave a Comment डॉ. वेदप्रकाश विगत दिनों परमार्थ निकेतन ऋषिकेश जाना हुआ। वहां मां गंगा आरती के समय परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानंद सरस्वती जी ने प्रतिदिन की भांति अपने उद्बोधन में कहा कि- आज नदियां और विभिन्न जल स्रोत प्रदूषण के शिकार हैं। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण और इनके साथ-साथ मानसिक प्रदूषण […] Read more » Environmental imbalance is a cause for concern पर्यावरणीय असंतुलन
राजनीति राष्ट्र रक्षा सभी का धर्म बने May 27, 2025 / May 27, 2025 | Leave a Comment डा.वेदप्रकाश राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर ने एक मंत्र दिया- इदं राष्ट्राय इदं न मम् अर्थात् मेरा कुछ भी नहीं है, मेरा सब कुछ राष्ट्र के लिए है अथवा राष्ट्र को समर्पित है। क्या आज जब भारत सशक्त, समृद्ध , आत्मनिर्भर और विकसित भारत का संकल्प लेकर आगे बढ़ रहा […] Read more » National security should become everyone's religion
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म तीर्थ भारतवर्ष की आत्मा हैं May 3, 2025 / May 3, 2025 | Leave a Comment चार धाम यात्रा शुरू डॉ.वेदप्रकाश तीर्थ भारतवर्ष की आत्मा हैं। प्रयागराज महाकुंभ के बाद चार धाम यात्रा शुरू हो चुकी है। भारतवर्ष के आत्म तत्व, जीवन तत्व, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक तत्व एवं समग्रता में यदि भारत को जानना है तो तीर्थ एक महत्वपूर्ण माध्यम हैं। भारतभूमि समग्रता में देवभूमि है। यहां के कण […] Read more » Pilgrimages are the soul of India
लेख नायकों की पुनर्स्थापना की आवश्यकता April 23, 2025 / April 23, 2025 | Leave a Comment डा.वेदप्रकाश हाल ही में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि- हमारे राष्ट्रीय नायक महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी महाराज हैं, मुगल शासक औरंगजेब नहीं। यह हमारा नैतिक दायित्व है कि इतिहास में हुए अन्याय को हम खारिज करें। साथ ही देश के युवाओं को बताएं कि महाराणा प्रताप और शिवाजी महाराज केवल पुस्तकों […] Read more » महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी महाराज
राजनीति यमुना के लिए व्यापक और सतत योजना की आवश्यकता March 26, 2025 / March 26, 2025 | Leave a Comment डा.वेदप्रकाश यमुना भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रदूषण, अतिक्रमण और अविरल प्रवाह के अभाव में बदहाल हो चुकी है। दिल्ली में वजीराबाद वाटर वर्क्स से कालिंदी कुंज तक यमुना का लगभग 22 किलोमीटर क्षेत्र है जो गंभीर रूप से प्रदूषित है। इस प्रदूषण में लगभग 80 प्रतिशत हिस्सेदारी घरेलू सीवेज की है। दिल्ली में सीवेज को […] Read more » यमुना यमुना के लिए व्यापक और सतत योजना
लेख अभिव्यक्ति की आजादी के निहितार्थ March 17, 2025 / March 17, 2025 | Leave a Comment डॉ.वेदप्रकाश अश्लीलता, हिंसा और अभद्र भाषा का प्रयोग व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के नैतिक चरित्र पर प्रश्न चिन्ह लगता है। आज करोड़ों लोग विभिन्न रूपों में सकारात्मक और राष्ट्रहित के कार्यों में जीवन खपा रहे हैं. क्या उनकी चर्चा कहीं होती है? दूसरी और अश्लील, हिंसक और अभद्र भाषा का प्रयोग करने वाले राष्ट्रीय […] Read more » अभिव्यक्ति की आजादी के निहितार्थ
Health लेख स्वास्थ्य क्षेत्र को उपचार की दरकार March 6, 2025 / March 6, 2025 | Leave a Comment डॉ.वेदप्रकाश पहला सुख निरोगी शरीर कहा गया है। इसके लिए पोषक खानपान, स्वच्छ आवास, स्वच्छ पानी, स्वच्छ हवा एवं स्वस्थ वातावरण आदि की आवश्यकता है। साथ ही बीमार होने पर व्यक्ति को समय से सही उपचार एवं दवाइयां मिलें, यह भी आवश्यक है लेकिन क्या यह सभी को मिल पा रहा है? क्या सभी […] Read more »