विविधा भरत के अल्पसंख्यक वंशज February 6, 2014 / February 7, 2014 | Leave a Comment -विजय कुमार- पिछले दिनों हिन्दुओं की सशक्त आर्थिक भुजा (जैन समाज) को केन्द्र सरकार ने ‘अल्पसंख्यक’ घोषित किया है। इससे पूर्व भारत की ‘खड्ग भुजा’ के प्रतीक सिख और अध्यात्म व समरसता के संदेशवाहक बौद्ध भी अल्पसंख्यक घोषित हो चुके हैं। इसके लाभ-हानि को विचारे बिना एक भेड़चाल के रूप में अब जैन […] Read more » minorities in india भरत के अल्पसंख्यक वंशज भारत के अल्पसंख्यक वंशज
व्यंग्य तुम आदमी हो या… January 29, 2014 / January 29, 2014 | Leave a Comment -विजय कुमार- शर्माजी को हम सबने मिलकर एक बार फिर ‘वरिष्ठ नागरिक संघ’ (वनास) का अध्यक्ष चुन लिया। तालियों की गड़गड़ाहट के बीच वर्मा जी ने उनकी झूठी-सच्ची प्रशंसा के पुल बांधे और बाबूलाल जी ने उन्हें माला पहनायी। शर्मा जी ने सबको धन्यवाद दिया और फिर परम्परा के अनुसार उनकी ओर से […] Read more » satite on politics तुम आदमी हो या...
व्यंग्य चमचा महफिल का ‘वीकेंड’ सत्र January 22, 2014 / January 22, 2014 | Leave a Comment -विजय कुमार- दिल्ली में केजरी ‘आपा’ के नेतृत्व में ‘झाड़ू वाले हाथ’ की सरकार बनी तो ‘मोदी रोको’ अभियान में लगे लोगों की बांछें खिल गयीं। राहुल बाबा की खुशी तो छिपाये नहीं छिप रही थी। कई दिन बाद उन्होंने अपने यारों के साथ बैठकर ठीक से पीना-खाना किया। सबका मत था कि लड्डू […] Read more » Satire चमचा महफिल का ‘वीकेंड’ सत्र
व्यंग्य व्यंग्य बाण- सदस्यता अभियान January 17, 2014 / January 17, 2014 | Leave a Comment -विजय कुमार- दिल्ली में केजरी ‘आपा’ के नेतृत्व में ‘झाड़ू वाले हाथ’ की सरकार बनने पर अन्य कई लोगों की तरह शर्मा जी को भी इसमें एक आशा की किरण नजर आयी। उन्हें लगा कि यदि ‘आपा’ ऐसे ही बढ़ती रहे तो मोदी के रथ को रोकने का सोनिया मैडम और राहुल बाबा का […] Read more » AAP व्यंग्य बाण- सदस्यता अभियान
व्यंग्य आगे-आगे देखिये होता है क्या … January 8, 2014 / January 8, 2014 | Leave a Comment व्यंग्य बाण : पिछले दिनों सम्पन्न हुए चुनावों के परिणाम आने के बाद शर्मा जी काफी दिन उदास रहे। इस दौरान वे कुछ-कुछ आध्यात्मिक भी हो गये और नियमित रूप से पड़ोस के मंदिर में हो रही भागवत कथा में जाने लगे। एक दिन वक्ता ने सुख और दुख की व्याख्या करते हुए कहा […] Read more » आगे-आगे देखिये होता है क्या ... AAP
शख्सियत विवेकानंद की प्रासंगिकताः सार्धशती के समापन पर विशेष January 3, 2014 / January 11, 2014 | Leave a Comment विवेकानंद सार्धशती के समापन (12.1.2014) पर खासः व्यक्ति का इस धरा धाम पर आना और जाना सृष्टि का सनातन नियम है। जब से जगत नियन्ता ने इस सृष्टि का निर्माण किया, न जाने कितने लोग आये और अपना निर्धारित समय पूरा कर काल के गाल में समा गये; पर इतिहास उनमें से कुछ को ही […] Read more » Vivekanand विवेकानंद की प्रासंगिकताः सार्धशती के समापन पर विशेष
राजनीति आशा और विश्वास का नूतन पर्व December 25, 2013 | Leave a Comment ऐसा कहते हैं कि शेर छलांग लगाने के बाद क्षण भर के लिए पीछे मुड़कर देखता है कि वह कितनी दूर कूदा है। इसे ही ‘सिंहावलोकन’ कहते हैं। प्राचीन भारतीय युद्धशास्त्र में इसी आधार पर ‘सिंहध्वज’ नामक एक प्रयोग है। इसमें योद्धा शस्त्र चलाते हुए एक बार, और फिर पीछे देखकर दूसरी बार आगे कूदता […] Read more » आशा और विश्वास का नूतन पर्व
व्यंग्य व्यंग्य बाण : अथ श्री महा-गारत कथा December 22, 2013 | 1 Comment on व्यंग्य बाण : अथ श्री महा-गारत कथा पिछले कई दिन से शर्मा जी सुबह-शाम टहलने नहीं आ रहे थे। ठंड में बुजुर्गों को स्वास्थ्य ठीक रखने के लिए कई तरह के सुझाव और सावधानियां बरतने को कहा जाता है। मुझे लगा कि शायद इसी कारण उन्होंने टहलने का अपना नियमित कार्यक्रम स्थगित किया है; पर जब उनसे मिले कई दिन हो गये, […] Read more » व्यंग्य बाण : अथ श्री महा-गारत कथा
व्यंग्य व्यंग्य बाण : वर्षा प्रचार एवं सर्वेक्षण संस्थान November 22, 2013 | Leave a Comment विजय कुमार पिछले कई महीने से शर्मा जी कष्ट में हैं। वे समझ नहीं पा रहे हैं कि क्या करें ? नौकरी करते हुए तो पूरा दिन कार्यालय में फोकट की चाय पीते, मेज के ऊपर और नीचे से कुछ लेते-देते तथा फाइलों को दायें-बायें करते बीत जाता था; पर अवकाश प्राप्ति के बाद से […] Read more »
व्यंग्य डौडियाखेड़ा से लौटकर November 10, 2013 / November 10, 2013 | 3 Comments on डौडियाखेड़ा से लौटकर हमारे प्रिय शर्मा जी का व्यक्तित्व बहुआयामी है। कभी उनके भीतर का कवि जाग उठता है, तो कभी अभिनेता। कभी वे समाजसेवी बन जाते हैं, तो कभी पाकशास्त्री। इन दिनों उनके मन में छिपे पत्रकारिता के कीटाणु प्रबल हैं। वे हर घटना और दुर्घटना का एक अनुभवी और सिद्ध पत्रकार की तरह विश्लेषण करने लगते […] Read more » डौडियाखेड़ा से लौटकर
व्यंग्य व्यंग्य बाण : बंदर जी के तीन गांधी October 24, 2013 | 2 Comments on व्यंग्य बाण : बंदर जी के तीन गांधी विजय कुमार शर्मा जी ऊपर से चाहे जो कहें; पर सच यह है कि दिल्ली में रहने के बावजूद गांधी जी की समाधि पर जाने में उनकी कोई रुचि नहीं है। वे साफ कहते हैं कि जब मैं उनके विचारों से सहमत नहीं हूं, तो फिर दिखावा क्यों करूं ? पर इस दो अक्तूबर को […] Read more »
मीडिया विचारों का ढूला और अभिव्यक्ति का जन्तर मन्तर October 21, 2013 | Leave a Comment प्रवक्ता डॉट कॉम की पांचवीं वर्षगांठ पर विजय कुमार आपातकाल में कांग्रेसी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लोकतंत्र की हत्या और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे देशभक्त संगठन पर लगाये गये प्रतिबंध के विरुद्ध अपने साथियों सहित सत्याग्रह कर मैं पौने चार महीने डी.आई.आर. के अन्तर्गत मेरठ जेल में रहा। वहां सबसे अधिक तो संघ और जनसंघ […] Read more » प्रवक्ता डॉट कॉम