व्यंग्य साहित्य चिंतन शिविर June 15, 2016 | Leave a Comment सोनिया कांग्रेस के सभी बड़े लोग सिर झुकाए बैठे थे। समझ नहीं आ रहा था कि वे चिन्ता कर रहे हैं या चिंतन; वे उदास हैं या दुखी; वे शोक से ग्रस्त हैं या विषाद से; वे निद्रा में हैं या अर्धनिद्रा में; वे जड़ हैं या चेतन; वे आदमी हैं या इन्सान ? आधा […] Read more » chintan shivir chintan shivir of congress Featured चिंतन शिविर
व्यंग्य साहित्य मौसम का हाल June 14, 2016 | Leave a Comment शर्मा जी को बचपन से ही रेडियो सुनने का बड़ा शौक था। किसी जमाने में उनके घर में एक बड़ा रेडियो हुआ करता था। अतः वे खुद को कुछ खास समझते थे और बड़ी ठसक के साथ उसके पास बैठे रहते थे। रात में पौने नौ बजे वाले समाचारों के समय आसपास के लोग वहां […] Read more » मौसम का हाल
कहानी साहित्य दान का अन्न और जैविक खेती June 5, 2016 | Leave a Comment हरिद्वार जाने पर मैं सदा कनखल के ‘सेवाधाम आश्रम’ में ही ठहरता हूं। आश्रम के प्रमुख स्वामी सुरेशानंद जी हैं। लगभग 25 साल पूर्व रेलगाड़ी में यात्रा के दौरान उनसे परिचय हुआ था। उस समय हम दोनों दिल्ली से हरिद्वार जा रहे थे। यात्रा में कई विषयों पर वार्ता हुई। हमारे विचार काफी मिलते थे। […] Read more » Featured Organic Farming जैविक खेती दान का अन्न
व्यंग्य साहित्य कांग्रेस मुक्त भारत दल May 22, 2016 | Leave a Comment कोई भारत को धार्मिक देश कहता है, तो कोई सांस्कृतिक। कोई इसे अर्थप्रधान बताता है, तो कोई बलप्रधान। कोई सांप और सपेरों का देश कहता है, तो कोई ज्ञानियों का; पर मेरी विनम्र राय इस बारे में बहुत स्पष्ट है कि ‘मेरा भारत महान’ एक राजनीति प्रधान देश है। यहां कितने राजनीतिक दल हैं, शायद […] Read more » Featured कांग्रेस मुक्त भारत दल
समाज अंतिम क्रिया का हक May 18, 2016 | 1 Comment on अंतिम क्रिया का हक उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख नगर है बरेली। यहां का बड़ा बाजार कई किलोमीटर लम्बा है। साठ के दशक में बनी फिल्म ‘मेरा साया’ के एक गीत ‘‘झुमका गिरा रे, बरेली के बाजार में’’ ने इसे प्रसिद्ध कर दिया; पर इस बड़े बाजार में एक चीज और प्रसिद्ध है। वह है ‘दो भाई फर्नीचर स्टोर’। […] Read more » Featured अंतिम क्रिया
कहानी साहित्य स्टेशन के कानून May 6, 2016 | 1 Comment on स्टेशन के कानून रामलाल रेलवे स्टेशन पर फलों की ठेली लगाता था। बिहार के अपने गांव से बारह साल पहले जब वह यहां आया था, तब उसकी उम्र खेलने-खाने की थी; पर पेट की भूख क्या नहीं करा लेती ? शुरू मंे तो उसने स्टेशन के बाहर एक होटल में बरतन साफ किये। फिर स्टेशन पर फल बेचने […] Read more » स्टेशन के कानून
कहानी साहित्य दर्द March 30, 2016 | Leave a Comment मैं दिल्ली के पास एक छोटे से नगर का रहने वाला हूं। वहां आसपास के लोग खेती के काम से खाली होकर दोपहर में खरीदारी करने आते हैं। शाम होते तक वहां का जनजीवन शांत हो जाता है। यद्यपि बिजली, सड़क, सिनेमा, वाहनों की उपलब्धता आदि से अब वहां का स्वरूप काफी बदल गया है। […] Read more » दर्द
लेख साहित्य सरकारी पानी March 24, 2016 | 1 Comment on सरकारी पानी बिजली और पानी को बरबाद होते देख मुझे बहुत गुस्सा आता है। मैं इस मामले में कुछ सनकी स्वभाव का हूं। यदि कहीं ऐसा होता दिखे, तो मैं दूसरों को कुछ कहने की बजाय स्वयं ही आगे बढ़कर इन्हें बंद कर देता हूं। कई लोग इसे मेरी मूर्खता कहते हैं। यद्यपि पीठ पीछे वे इसकी […] Read more » wastage of water पानी सरकारी पानी
लेख साहित्य स्वयंसेवक के वेश में परिवर्तन March 15, 2016 | Leave a Comment 11 से 13 मार्च, 2016 तक राजस्थान के नागौर नगर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रतिनिधि सभा का वार्षिक सम्मेलन सम्पन्न हुआ। संघ की सर्वाधिक अधिकार प्राप्त सभा होने के नाते महत्वपूर्ण निर्णय प्रायः इसमें ही होते हैं। इस बार सभा की विशेषता यह रही कि इसमें स्वयंसेवकों के गणवेश में खाकी नेकर की जगह […] Read more » change in dress code of rss dress code of rss स्वयंसेवक स्वयंसेवक के वेश में परिवर्तन
कहानी साहित्य एक नंबर March 7, 2016 | Leave a Comment छात्रों के लिए एक नंबर का बड़ा महत्व है। कोई एक नंबर से पास हो जाता है, तो कोई फेल। किसी को एक नंबर की महिमा से छात्रवृत्ति मिल जाती है, तो किसी को नौकरी; पर एक नंबर के चक्कर में किसी को पत्नी मिली हो, ऐसी बात शायद आपने नहीं सुनी होगी; पर मेरे […] Read more » एक नंबर
कहानी साहित्य देवी की लीला March 1, 2016 | 1 Comment on देवी की लीला परसों मेरा एक मित्र रामपुर से आया। उसके पास जो अखबार था, उसमें ‘मां लीलावती निराश्रित कन्या आश्रम’ के ‘दीवाली मिलन’ का समाचार छपा था। उससे पता लगा कि इन दिनों आश्रम के अध्यक्ष मेरे मामाजी हैं। मामाजी के इस आश्रम से जुड़ने की कहानी बड़ी रोचक है; पर इसके लिए हमें लगभग दस […] Read more » देवी की लीला
कहानी साहित्य मजबूरी February 26, 2016 | 1 Comment on मजबूरी चंदन मेरा बचपन का दोस्त है। हम दोनों हमउम्र हैं। घर भी एक ही गली में है। वह मुझसे दो महीने बड़ा है; पर पढ़ना हम दोनों ने एक ही स्कूल और कक्षा में साथ-साथ शुरू किया। स्कूल जाते समय मेरे पिताजी अपनी साइकिल पर हम दोनों को ले जाते थे, तो वापसी पर यही […] Read more » Featured मजबूरी