-धीरेन्द्र प्रताप सिंह
अयोध्या मामले में आए फैसले के बाद देश में पसरी शांति और सौहार्द के माहौल ने धर्म के तवे पर राजनीति की रोटी सेंकने वालों के होश उडा दिए है। मामले के बाद देश में होने वाली अराजकता और उसमें गिरने वाली लाशों पर राजनीति करने की योजना बनाए कुछ राजनीतिक दलों को अपनी जमीन खिसकती महसूस होने लगी है। दो दिन तक माहौल बिगड़ने का इंतजार करने के बाद अब ऐसे राजनीतिक और उन्मादी दल अपनी जहरीली जुबान से देश की अमन और शांति को बिगाड़ने की योजनाओं को अंजाम देने में लग गए हैं।
हालांकि राजनीति के बारे में पहले से ही कहा जाता है कि-
राजमहलों तक नहीं जाती है चित्कारे।
पत्थरों के पास अभ्यंतर नहीं होता॥
ये सियासत की तवायफ का दुपट्टा है।
ये किसी के आसुंओं से तर नहीं होता॥
इसी बात को साबित करते हुए कुछ तथाकथित राजनीतिक और धार्मिक संगठन अपनी राजनीतिक रोंटी सेंकने के लिए विध्वसंक बयानों को प्रसारित करने में लग गए है। हालांकि ऐसे संगठनों में कुछ खुद को हिन्दू समाज का पैरोकार बताते है तो कुछ खुद को इस्लाम का सबसे बड़ा हितैषी साबित करने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है। लेकिन इनकी वास्तविकता दोनों समाज के प्रबुध्द लोगों को पता है। पर आज भी भारत का एक बडा तबका अशिक्षित और गरीब है जो इनके बहकावे आ इनकों ही अपना सबसे बड़ा रहनुमा मान लेता है। खैर बात हो रही है अयोध्या मामले को लेकर राजनीतिक दलों की लाभ लेने की योजना पर पानी फिरने की और उनके द्वारा ऐसी कोशिशों की जो हिन्दू मुसलमान नहीं बल्कि आधुनिक भारत की नींव को हिलाने का माद्दा रखते है।
ऐसे दलों में जहां अभी तक समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह का नाम शुमार हो गया है तो वहीं दूसरी तरफ दारूल उलूम देवबंद के नायब मोहतमिम मौलाना खालिक मद्रासी भी सपा की समाज तोड़क बयान का समर्थन कर रहे है। भारत के एक नागरिक होने के नाते मैं दोनों नेताओं से कहना चाहूंगा कि लखनउ बेंच का फैसला अगर किसी को मान्य नहीं लगता है तो उसके लिए वह उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है लेकिन फैसले को एक वर्ग विशेष के साथ अन्याय कह कर समाज को दंगों की राह पर ढकेलने का अधिकार किसी को नहीं है। यदि वे वाकई मुस्लिम समाज के शुभचिंतक है तो उन्हें इस मामले में कानून का सहारा लेना चाहिए। लेकिन इन नेताओं का कभी भी जनता जनार्दन के सुख दुख से नाता नहीं होता। ये तो बस उनके वोट बैंक के सहारे अपनी राजनीति चमकाना चाहते है और उसके बाद होने वाले सांप्रदायिक धु्रवीकरण के बल पर खुद की कई पीढ़ियों के लिए धन बटोर कर चलते बनने की योजना पर काम करते रहे है। क्या ये वहीं मुलायम सिंह नहीं जिन्होंने अपनी पार्टी के कई संस्थापक मुसलमानों को बाहर का रास्ता दिखा चुके है। इन्ही की तरह एक इनके शिष्य है अमर सिंह जो अपने आपकों को क्षत्रिय हितों का सबसे बड़ा प्रवक्ता समझते है लेकिन मुसलमानों के वोट बैंक की ताकत के बल पर अपनी ताकत बढ़ाने के लिए मौलाना अमर सिंह बनने का नाटक करने से भी नहीं चूंकते। हालांकि इनके अपने ही गृह जनपद आजमगढ़ में इनकी कोई औकात नहीं है। इनके भाई अरविंद सिंह ने इनकी करतूतों की वजह से इनके खिलाफ कई सालों से मोर्चा खोला हुआ है। ये वहीं अमर सिंह है जो बाटला हाउस मुठभेड़ पर सवाल उठाते है और बाद में शहीद इंस्पेक्टर मोहन शर्मा की पत्नी को आर्थिक मदद भी उपलब्ध करवाते है लेकिन गैरतमंद मोहन चंद शर्मा की पत्नी इस बेगैरत इंसान की कोई भी मदद लेने से इंकार कर देती है।
अभी तक जो सूचनाएं मिल रही है उसके अनुसार उत्तर प्रदेश में अपना जनाधार खो चुकी मुलायम सिंह प्राइवेट लिमिटेड पार्टी यानी सपा ने अन्दर खाने मुस्लिम समुदाय को भड़का कर समाज में जहर घोलने का पूरा प्लान बनाया है। जबकि बिहार चुनावों को देखते हुए भाजपा और कांग्रेस इस मामले में कोई भी भूमिका निभाने से परहेज करने के लिए विवश है।
ये समय वाकई बहुत ही चुनौतीपूर्ण है क्योंकि एक तरफ अमन के दुश्मन है तो दूसरी तरफ विश्व का सबसे बड़ा और सशक्त लोकतंत्र भारत। निश्चित ही इस लड़ाई में भारत ही जीतने वाला है लेकिन इसके लिए समाज के प्रबुध्द तबके का जागना जरूरी है।
राजनीति और धर्म के, ठेकेदार अ-नेक। शान्त ना रहने दे रहे, ये बन्दे ना नेक्। ये बन्दे हैं अ-नेक, संभल के रहना होगा। जैसे भी हो इनकी पोल खोलना होगा। कह साधक कवि, जागे फ़िर ‘भारत’ की नीति। अब तो छोङो बुरी नीति और राजनीति? sahiasha.com
बहुत अच्छा आलेख लिखा आपने
काबिले तारीफ है आपकी कलम ये मुल्ला मुलायम के राजनीती की अंतिम बिदाई है ये मुस्लिम भी जन चुके है
आइये इन……को लानत भेजें.ये चिता पर रोटी सेंकने के अपने पुरखे के पेशे से अलग नहीं होना चाहते हैं. लेकिन इतना करते हुए हमें ख्याल बस यह रखना है कि अनजाने ही इन उचक्कों का प्रचार न दें. चुकि इनकी जुबान खींच लेना संभव नहीं है तो कम से कम इतना करें जहां तक संभव हो इनकी उपेक्षा करें. ये खुद ही अपनी मौत मर जायेंगे. इस देश ने पिछले करीब पचास घंटों से हिंदू-मुस्लिम सद्भाव का जो रस चखा है वह कभी अब इन चोट्टों के गंदे दारू का स्वाद नहीं चखना चाहेगा. अच्छा आलेख.
जब तक इस देश की बहुसंख्यक हिन्दू समाज इन जयचंदो को पहचानकर इनका राजनितिक अस्तित्व समाप्त नहीं कर देगा तब तक ये हिन्दुओं , उनकी आस्था एवं मन बिन्दुओं पर कुठाराघात करते रहेंगे और अपनी राजनेतिक रोटियां सेकते रहेंगे.
रहिमन हांडी काठ की ,चढ़े न दूजी बार …अब नहीं जात -धरम के नाम पर राजनीती का निस्तार …चिंता मत करो देश की जनता ने अमन का रास्ता फिर पकड़ लिया है …मुद्दई लाख बुरा चाहे तो क्या होता है …होता है वही जो मंजूरे खुदा होता है …अब तो हिन्दू मुस्लिम राजी तो क्या करेगा कोई पाजी ..वाला नारा चरितार्थ होगा