अयोध्या निर्णय : टुकडों में बांट कर शांति

– डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल

30 सितंबर, 2010 की सांय 3.30 बजे के बाद से ही 60 वर्ष से अधिक चले रामजन्म भूमि व बाबरी मस्जिद प्रकरण पर दायर हुए मुकदमें का उच्च न्यायालय इलाहाबाद की लखनऊ पीठ के तीन न्यायमूर्तियों के द्वारा दिये गये ऐतिहासिक, अभूतपूर्व तथा कानूनी व कुछ आस्था में पगे अपना फैसला भारत की जनता को दिया जाने लगा था। जैसे-जैसे फैसला जनता के सामने आता गया वैसे-वैसे ही आम जनता में तो शांति बनी रही परंतु राजनेताओं ने फैसले के बारे में अपने अपने राजनीतिक उद्देश्य साघने वाले बयान गढ़ने शुरु कर दिये। निर्णय देने वालों में एक माननीय न्यायमूर्ति ने कहा कि यह मात्र 1,500 वर्ग गज के एक छोटे से भूमि के टुकडे के मालिकाना हक को निर्धारित करने वाला ही मुकदमा नहीं था अपितू इस जमीन के टुकडे पर तो अब देवदूतों को भी कुचलने का डर सताने लगा है तथा यह जमीन न जाने कितनी भूमिगत सुरंगों (विस्फोटक) को अपने सीने में समेटे हुए है तथा उनसे (न्यायाधीशों से) उम्मीद की जा रही थी कि वे इस जमीन को साफ कर दें और उन्होंने यह जोखिम उठाया। सबसे ज्यादा जोखिम जीवन में यह रहता है कि जोखिम उठाने का मौका ही न लिया जाय। हम सफल होंगे अथवा असफल यह तो जमाना व वक्त ही बता सकेगा और तीनों न्यायाधीशों ने मिलकर यह अभूतपूर्व निर्णय लिया जो आम भारतीय आदमी के द्वारा शांति के साथ स्वीकार किया गया। निर्णय में जमीन के तीन टुकड़े किये जा चुके थे – एक टुकड़े पर रामलला, दूसरे पर निर्मोही अखाड़ा व तीसरे पर सुन्नी वक्फ बोर्ड का हक रहेगा।

इस निर्णय को कानूनी कम व समझौते की नजर से अधिक देखा जा रहा है जबकि यह निर्णय पूरी तरह से ही कानूनी सम्मति लिये हुए है। कानूनी तकनीकी दृष्टि से सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा खारिज कर दिया गया परंतु उन्हें जमीन का एक तिहाई देकर उस पर मस्जिद बनाने का अधिकार दे दिया गया। निर्मोही अखाड़ा हालांकि बाबरी मस्जिद के ढांचे में ही 200 वर्ष से एक मंदिर चला रहा था इसलिए जमीन का एक तिहाई हिस्सा उसे भी दिया गया बाकी रामलला जहां विराजमान है, तो वहां वे रहेंगे ही। न्यायिक फैसले में न्यायसंगत तथा साफ-सुथरी व ईमानदारी की बात देखी गई। जमीन को तीन हिस्सों में बांटकर हिन्दू व मुसलमान दोनो को ही खुश करने की कोशिश की गई है तथा फैसले के रुष्ट पक्षकार अपनी आपत्ति को तीन माह (90दिनों) में उच्च्तम न्यायालय में दािखल कर सकता है और इस प्रकार उच्च न्यायालय ने अपनी बॉल उच्चतम न्यायालय के कोर्ट में फेंक दी है। 90 दिनों की इस अवधि में यदि संबंधित पक्षकार चाहें तो आपसी सहमति का वातावरण बनाया जा सकता है तथा तब तक विवादित जमीन पर कोई पक्का निर्माण कार्य नहीं कराया जा सकेगा और आज जो स्थिति जैसी है वैसी ही बनी रहेगी जिसकी जिम्मेदारी सरकार की रहेगी। सभी पक्षकारों को उच्चतम न्यायालय में जाने की छूट रहेगी। इस फैसले में ऐसे बहुत से आधार है जिस पर उच्चतम न्यायालय में फैसले के विरुध्द वाद दायर किया जा सकता है तब तक सरकार रामजन्म भूमि व बाबरी मस्जिद की यथास्थिति बनाये रखे।

उच्च न्यायालय ने मुकदमें के दौरान उत्पन्न हुए लगभग 20 प्रश्नों, जो मुख्यतया मिथक, आस्था, इतिहास, सांसारिक व सीमितता अधिनियम से संबंधित थे, में से कुछ प्रश्नों के उत्तर देने में सफलता प्राप्त की तथा कुछ प्रश्नों को कचरे के डिब्बे में डाल दिया गया। सबसे पुराना व विवादित प्रश्न तो यही था कि क्या भगवान राम ने विवादित भूमि पर जन्म लिया और जन्म लिया तो जमीन पर वह कौन सा बिन्दु अथवा कोना है जहां वास्तव में जन्म लिया। यह केवल आस्था का ही प्रश्न था क्योंकि ऐसा कोई रिकॉर्ड उपल्ब्ध नहीं था और उपलब्ध हो भी नहीं सकता था। न्यायालय ने इस प्रश्न का उत्तर देने की कोशिश की है। हालांकि इसी प्रश्न के उत्तर को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। भगवान राम स्वयं ने अपने मित्र (थ्रो दी नेक्स्ट फ्रेन्ड) के द्वारा न्यायालय में याचिका दायर की थी। अदालत ने यह मान कर कि भगवान राम एक दैवी शक्ति है जिस प्रकार वायु, अग्नि, केदारनाथ इत्यादि के लिए कोई भी स्थान आम लोगों के द्वारा देवता मान कर पूजा जाने लगता है और प्रमुख हो जाता है उसी प्रकार रामलला अथवा भगवान राम का बचपन का यह स्थान भी लोगों के द्वारा पूजने के कारण ही प्रसिध्द हुआ है। अदालत ने भगवान राम के प्रति अपना आदर दिखाते हुए इस जगह को राम का जन्म स्थान मान लिया है इस बात को भी उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा सकती हे। क्योंकि अदालत किसी के प्रति आदर नहीं रखता है। वह मात्र विश्वास में ही विश्वास नहीं रखता है तथा मात्र कानून सम्मत बात ही करता है। अब देखना यह है कि अदालत के द्वारा जमीन के एक टुकडे का बंटबारा (हिन्दुओं के लिए यह जमीन का टुकडा आस्था की चरम सीमा का प्रतीक है) करके देश में शांति स्थापित करने की कोशिश की गई। अब देखना यह है कि 90 दिनों में इस मुकदमे का फैसला सभी के द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है अथवा नहीं और कहीं यह निर्णय सर्वोच्च न्यायालय में फिर से लटक न जाये।

बंटवारा सदैव शांति स्थापित करता है ऐसा नहीं है। 1947 में देश का बंटवारा हुआ जिसमें लाखों लोग काल ग्रसित हो गये तथा तभी से जन्मी कश्मीर की समस्या आज तक नही सुलझ सकी है। मुस्लिम बाहुल्य होने के कारण कश्मीर की जनता को निरंतर राजनेता पाकिस्तान की ओर धकेलते रहते है तथा वहां की आबादी का आर्थिक संकट उन्हें भारत की ओर धकेलता है। 1947 से अब तक कश्मीर पर भारत के द्वारा अनुमान के अनुसार 3 लाख करोड़ रुपये व्यय हो चुके हैं परंतु वहां की मुस्लिम जनसंख्या अभी भी दिल खोल कर भारत के साथ नहीं हो सकी है तथा भारत की मुख्य समस्याओं में कश्मीर भी एक समस्या बना हुआ है। अयोध्या में भी यह हो सकता है कि हिंदुओं की आस्था का प्रतीक इस जमीन के टुकड़े को मुसलमान हिंदुओं को सौंप देते है तो राजनेताओं की सारी की सारी राजनीति समाप्त हो जाती है। परंतु मुसलमान ऐसा नहीं कर सके। वे देश में शांति की स्थापना के लिए इतना सा भी त्याग नहीं कर सके क्योंकि वे लोग सिर्फ भारत की बहुसंख्य आबादी से सिर्फ लेना ही जानते है। फैसले के बाद चार मुख्य पक्षकार – रामजन्म भूमि न्यास, रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी वक्फ बोर्ड तो सुलह की बात ही नहीं कर रहे है वहीं पाचंवें पक्षकार हाशिम अंसारी भी कम तनाव में नहीं है वे भी पाचंवें पक्षकार है और कह रहे है कि मस्जिद विवादित भूमि पर ही बनेगी। उन्हें सुन्नी वक्फ बोर्ड बार-बार यह कह रहा है कि वह कोई सुलह न करे तथा बयान इत्यादि न देवें। अब पांचों पक्षकरों के पीछे कितने राजनेता, कटटरपंथी लोग खड़े हुए है यह कहना मुश्किल है। यह सभी पक्षकार भी किसी सुलह की ओर न पंहुचने के लिए अत्यधिक उत्साहित है। रामलला विराजमान से जुड़े लोग कह रहे है कि सदियों पहले खंडित किये गये मंदिर के लिए न तो कोई शर्मिंदा होना चाहता है और न ही मंदिर के खंडित करने के अधर्म को किसी ने निंदा की। अब समय आ गया है कि इस अधर्म के कार्य को भूला दिया जाय। यह तो सबित हो ही गया है कि मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाया गया था अब सुन्नी वक्फ बोर्ड अपना बड़ा दिल दिखाते हुए इस निर्णय में मिली अपने हिस्से की जमीन को भी रामजन्म भूमि को दान दे दे जिससे मंदिर निर्माता मंदिर की दीवार पर दान दाताओं की सूची में सुन्नी वक्फ बोर्ड के प्रति अहोभाव के शब्द पत्थर में खुदवा सके। इससे मंदिर की भव्यता में जहां चार चांद लगेंगे वहीं देश की धर्मनिरपेक्षता की भावना भी पोषित हो सकेगी। राम केवल दशरथ का बेटा ही नहीं था बल्कि वह घट-घट में बैठा राम है जो अयोध्या के सभी पक्षकारों में बैठा हुआ है। अतः सभी पक्षकार घट-घट में बैठे राम की सुने और 90 दिनों के भीतर ही सर्वसम्मत हल तलाश कर लेवें। राम मंदिर निर्माण के लिए 500 वर्ग गज का भूमि का टुकड़ा बहुत छोटा रहेगा। राममंदिर की भव्यता के लिए सारी जमीन मिलनी चाहिए थी निर्मोही अखाड़े के मंहत भास्कर दास का कहना है कि राम मंदिर निर्माण के लिए (सुन्नी वक्फ बोर्ड को छोड़ कर ) सभी पक्षकार एकमत है सभी पक्षकार मंदिंर निर्माण के लिए तन-मन-धन से सहयोग करेगें। अगर मुस्लिम समुदाय कोटि-कोटि हिंदुओं की भावनाओं का आदर करता है और स्थल पर अपना दावा छोड़ देता है तो यह विश्व में एक मिसाल ही होगी। वह भाईचारा मजबूत होगा जो देश का आर्थिक, राजनीतिक व सामाजिक विकास तेजी से कर सकेगा। लेकिन जिस प्रकार सुन्नी वक्फ बोर्ड ने निर्णय के बाद अपने तेवर दिखाये और उच्चतम न्यायालय जाने की बात कही तो उससे तो यह उम्मीद नहीं है कि वह मंदिर के लिए कुछ त्याग करेगा जबकि इस्लाम देने वालों का, त्याग करने वालों का धर्म बताया गया है किसी के दिल को तकलीफ पहुंचाना इस्लाम में ऐसा माना जाता है जैसे किसी ने काबा ढा दिया हो। पैगंबर तथा ईस्लाम के उपदेशों व शिक्षाओं को समझ-समझ कर ही गैर मुस्लिम लोग ईस्लाम पर ईमान लाते चले गये और ईस्लाम फैलता चला गया। अब भी ऐसी मिसालें स्थापित की जा सकती है। अदालत ने तो एक रास्ता दिखा दिया अब उस रास्ते पर मजबूती के साथ आगे बढ कर अटूट भाईचारा स्थापित करना अयोध्या के पक्षकरों की जिम्मेदारी है।

* लेखक सनातन धर्म महाविद्यालय, मुजफ्फरनगर के वाणिज्य संकाय में रीडर तथा स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।

2 COMMENTS

  1. जहाँ तक हिन्दू या मुस्लिम समुदाय की बात है,कोई शायद ही इस विवाद को लंबा खीचना चाहता हो,पर आम जनता की बात सुनता कौन है?निर्णय तो वे लोग लेते हैं जिनको अपना मतलब साधना होता है और अपनी दूकान चलानी होती है.अगर वे लोग चाहे हिन्दुओं के अगुआ हों या मुसलमानों के,ज़रा एकबार तहेदिल से सोचें की क्या सचमुच इश्वर भक्त या अल्लाह के बन्दे हैं?अगर सचमुच में किसी में भक्ति है और इश्वर को चराचर में देखता है तो उसके लिए यह झगड़ा बेमानी हो जाता है.मुझे तो आश्चर्य ये होता है की लोग अपना उल्लू सीधा करने के लिए नजाने क्या क्या बहाने ढूंढते हैं?कभी कभी लगता है की मेरे जैसे नास्तिक इन ढोंगी भक्तो से कही ज्यादा अच्छे हैं.

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