आजम डुबोएंगे अखिलेश की लुटिया

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azam khan
प्रवीण दुबे
ऐसा लगता है कि आजम खान उत्तरप्रदेश की अखिलेश सरकार की लुटिया डुबोकर ही दम लेंगे। पहले चौरासी कोसी परिक्रमा फिर आगरा की राष्ट्रीय बैठक और इसके बाद मुजफ्फरनगर दंगे इन सभी को लेकर आजम खान ने जो रवैया अपनाया उससे अखिलेश सरकार मुंह दिखाने लायक नहीं रह गई है। वैसे किसी ने ठीक ही कहा है ”बोए पेड़ बबूल के तो आम कहां से होएंÓÓ, आजम खान को राष्ट्रीय राजनीति में स्थापित करने का श्रेय अखिलेश के पिता मुलायम को जाता है। मुलायम ने मुस्लिम वोट कबाडऩे के लिए सदैव आजम खान की तमाम गलतियों को दर-किनार किया और उन्हें उत्तरप्रदेश की राजनीति का मुस्लिम चेहरा बनाकर स्थापित किया। यदि मुलायम चाहते तो 90 के दशक में ही उस वक्त आजम खान को किनारे कर सकते थे जब राम जन्मभूमि आंदोलन चरम पर था और उस समय ”गंगा को डायन और भारतमाता को चुड़ैलÓÓ जैसा विवादास्पद बयान देकर आजम खान ने खासी परेशानी खड़ी कर दी थी। बात यहीं समाप्त नहीं होती कभी मुलायम सिंह के खासमखास माने जाने वाले अमरसिंह के साथ भी आजम की जमकर तकरार रही बावजूद इसके मुलायम ने आजम को गले लगाए रखा और अमर सिंह को बाहर का रास्ता देखना पड़ा। आज हालत यह है कि पूरी समाजवादी पार्टी और खासकर अखिलेश के लिए आजम खान गले की हड्डी बनते नजर आ रहे हैं, जो कि न निगली जा रही है न उगलीÓÓ। मुजफ्फरनगर दंगों के पीछे कुछ मुस्लिम कट्टरपंथी नेताओं का हाथ है यह बात तो पिछले एक पखवाड़े से चर्चा में थी, लेकिन मंगलवार को एक समाचार चैनल ने अपने स्टिंग ऑपरेशन में जो सनसनीखेज खुलासा किया उसके बाद पूरे देश ने यह देखा कि किस प्रकार इन दंगों के पीछे राजनीतिक दबाव था और यह राजनीतिक दबाव पैदा किया किसी आजम नाम के नेता ने। हालांकि अभी यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है कि आजम नाम का नेता कौन था? लेकिन समाजवादी पार्टी में आजम नाम का वजनदार नेता एक मात्र आजम खान ही हैं अत: शक की सुई पूरी तरह से उन्हीं पर जाकर टिक गई है। समाचार चैनल के स्टिंग ऑपरेशन में दंगा प्रभावित क्षेत्र के एक पुलिस अधिकारी साफ तौर पर यह कहते दिखाए गए हैं कि लखनऊ से सपा के एक बड़े नेता आजम…का फोन आया कि कवाल गांव के गिरफ्तार सातों आरोपियों जिन्हें कि 27 अगस्त की हत्या की घटना के बाद गिरफ्तार किया गया था उन्हें छोड़ दो, इसके बाद सभी आरोपियों को छोडऩा पड़ा। इस फोन में आजम ने यह भी कहा कि जो हो रहा है वह होने दो। इस स्टिंग ऑपरेशन ने मुजफ्फरनगर दंगों का पूरा सच देश के सामने ला दिया है। हालांकि आजम खान स्वयं के फोन करने की बात को खारिज कर रहे हैं लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि अपराधियों को जो कि एक सम्प्रदाय विशेष से ताल्लुकात रखने वाले थे, को छुड़ाने का आदेश देने वाला आजम…नाम का नेता सपा सरकार में दूसरा कौन है? जब तक यह बात अखिलेश सरकार जनता के सामने नहीं लाती तब तक यही माना जाएगा कि मुजफ्फरनगर में दंगों की शुरुआत के लिए आजम खान दोषी हैं। यदि आजम खान दोहरे हत्याकांड जिसमें कि छेड़छाड़ का शिकार लड़की के दोनों भाई मारे गए थे, के आरोपियों को फोन करके नहीं छुड़वाते तो माहौल खराब नहीं होता। इतना ही नहीं अखिलेश को यह भी जवाब देना होगा कि इन आरोपियों की गिरफ्तारी के समय वहां तैनात एसएसपी मंजीत सैनी और डीएम सुरेन्द्र सिंह का तबादला उसी समय क्यों किया गया? बाद में जो नए डीएम वहां आए उन्होंने जांच की दिशा ही बदल दी। डीएम और एसएसपी का तबादला भी आजम खान के कहने पर ही किया गया इसका संदेह भी बढ़ गया है। अगर दोनों अधिकारियों के तबादले नहीं होते, दोनों हत्याओं के अपराधियों को नहीं छुड़ाया जाता, तो मुजफ्फरनगर में दंगा नहीं होता। घटनाक्रम यह सिद्ध करता है कि मुजफ्फरनगर के दंगों के पीछे आजम खान जैसे नेता की मुख्य भूमिका रही है। एक बार पुन: आजम खान ने अखिलेश सरकार को बड़ी मुश्किल में डाल दिया है।

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प्रवीण दुबे
विगत 22 वर्षाे से पत्रकारिता में सर्किय हैं। आपके राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय विषयों पर 500 से अधिक आलेखों का प्रकाशन हो चुका है। राष्ट्रवादी सोच और विचार से प्रेरित श्री प्रवीण दुबे की पत्रकारिता का शुभांरम दैनिक स्वदेश ग्वालियर से 1994 में हुआ। वर्तमान में आप स्वदेश ग्वालियर के कार्यकारी संपादक है, आपके द्वारा अमृत-अटल, श्रीकांत जोशी पर आधारित संग्रह - एक ध्येय निष्ठ जीवन, ग्वालियर की बलिदान गाथा, उत्तिष्ठ जाग्रत सहित एक दर्जन के लगभग पत्र- पत्रिकाओं का संपादन किया है।

3 COMMENTS

  1. संजीव जी
    सादर प्रणाम कुछ प्रश्न है.जिनका शायद आपके पास जवाब हो.
    १) क्या राजनिती एक कैरियर का ज़रिया हैं|(आज़म खान द्वारा कहा गया)
    २)क्या मुज़फ्फरनगर दंगे को देखने के बाद ऐसा नही लगता कि ये राजनीतिक दंगा था|
    ३)और अगर ऐसा था तो क्या किसी राजनीतिक पार्टी का इसके पीछे हाथ था|
    ४)इस दंगे में जिन लोगो की मृत्यु हुई क्या सब की मृत्यु व्यर्थ गयी|
    ५)जब पाकिस्तान को १९४७ में अलग किया गया था तब सारे इस्लामिक लोगो को वहां क्यों नहीं
    भेज दिया गया था|
    ६)आज़म खान के वियूद्ध कोई ठोस कद्म क्यों नहीं उठाई जा रही ही हैं|

  2. संजीव जी
    सादर प्रणाम कुछ प्रश्न है.जिनका शायद आपके पास जवाब हो.
    १) क्या राजनिती एक कैरियर का ज़रिया हैं|(आज़म खान द्वारा कहा ग)
    २)क्या मुज़फ्फरनगर दंगे को देखने के बाद ऐसा नही लगता कि ये राजनीतिक दंगा था|
    ३)और अगर ऐसा था तो क्या किसी राजनीतिक पार्टी का इसके पीछे हाथ था|
    ४)इस दंगे में जिन लोगो की मृत्यु हुई क्या सब की मृत्यु व्यर्थ गयी|
    ५)जब पाकिस्तान को १९४७ में अलग किया गया था तब सारे इस्लामिक लोगो को वहां क्यों नहीं
    भेज दिया गया था|
    ६)आज़म खान के वियूद्ध कोई ठोस कद्म क्यों नहीं उठाई जा रही ही हैं|

  3. यह तो बड़ी अच्छी बात होगी. आज़म और अखिलेश दोनों एक दुसरे
    को काट मरेंगे . दोनों समाज घातक हैं.

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