संजय सिन्हा
बलूचिस्तान में पाकिस्तान से आजादी के लिए जंग ने जोर पकड़ ली है। बलूच नेताओं ने जगह जगह विरोध प्रदर्शनों को काफी तेज कर दिया है। पाकिस्तान की सेना की तरफ से जबरन गायब किए गये लोगों और मानवाधिकार का उल्लंघन करने का हवाला देते हुए कई बलूच नेताओं ने बलूचिस्तान की आजादी का ऐलान कर दिया है। जिसके बाद माना जा रहा है कि पाकिस्तान की सेना एक बार फिर से बलूच के लोगों का कत्लेआम कर सकती है। बलूचिस्तान के स्वतंत्रता सेनानियों की तरफ से बलूचिस्तान के लिए अलग से राष्ट्रीय ध्वज और बलूचिस्तान का अलग नक्शा जारी किया गया है जिनमें बलूचिस्तान को पाकिस्तान से अलग दिखाया गया है। सोशल मीडिया पर लगातार ‘बलूचिस्तान रिपब्लिक’ ट्रेंड कर रहा है।
ऑल इंडिया रेडियो की रिपोर्ट के मुताबिक बलूचिस्तान की प्रमुख बलूच कार्यकर्ता और लेखक मीर यार बलूच ने कहा है कि “पाकिस्तान के कब्जे वाले बलूचिस्तान में आजादी की मांग को लेकर लोग सड़कों पर उतर आए हैं और राष्ट्रव्यापी आंदोलन किए जा रहे हैं।” उन्होंने कहा कि ‘बलूचों ने देशव्यापी प्रदर्शन का ऐलान कर दिया है कि बलूचिस्तान, पाकिस्तान का हिस्सा नहीं है।’ इसके अलावा मीर यार बलूच ने इंटरनेशनल कम्युनिटी और यूनाइटेड नेशंस से “बलूचिस्तान लोकतांत्रिक गणराज्य” को एक संप्रभु राज्य के रूप में मान्यता देने का भी आग्रह किया है।वहीं अफगानिस्तान की निर्वासित सांसद मरियम सोलायमानखिल ने पाकिस्तान की सेना की बलूचों का जबरन अपहरण करने और उनसे क्रूरता करने की आलोचना की है। पाकिस्तान की सेना बलूचों के साथ काफी खतरनाक व्यवहार कर रही है। उन्होंने पाकिस्तानी सेना की कार्रवाई को “जबरन उपनिवेशीकरण, जबरन कब्जा” करार दिया है जबकि पाकिस्तान दावा करता है कि वो आतंकवाद विरोधी अभियान चला रहा है। उन्होंने एक भारतीय समाचार एजेंसी को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि “मुझे लगता है कि हर कोई उस सैन्य तानाशाही से तंग आ चुका है जिसके तहत वे रह रहे हैं।” इसके अलावा उन्होंने कहा, “बलूचिस्तान में हमारे पास डॉ. महंग बलूच जैसे शांतिपूर्ण अहिंसक कार्यकर्ता हैं जो जेल में हैं लेकिन ओसामा बिन लादेन और लश्कर ए तैयबा के नेताओं जैसे लोगों को देश में आजादी से घूमने की इजाजत है।”
आपको बता दें कि बलूचिस्तान, पाकिस्तान का दक्षिण-पश्चिमी प्रांत है जो सबसे ज्यादा खनिज संपन्न प्रांत होने के बाद भी सबसे ज्यादा गरीब है। पाकिस्तान इन इलाकों की खनिज संपदा को बेचती है और उसका इस्तेमाल पाकिस्तान की सेना का पेट भरने और पाकिस्तानी पंजाब के डेवलपमेंट में खर्च होता है। बलूचिस्तान में चलने वाले ज्यादातर चीनी प्रोजेक्ट्स में भी पाकिस्तानी पंजाब के लोग ही काम करते हैं। लिहादा बलूचिस्तान सालों से आजादी की मांग कर रहा है। बलूच विद्रोही अकसर पाकिस्तानी पंजाब के लोगों का कत्ल करते रहते हैं। इस प्रांत में चीनी प्रोजेक्ट्स पर भी हमले होते रहते हैं। बलूच विद्रोही बलूचिस्तान की खनिज संपदा में बलूच लोगों के हिस्से की मांग करते हैं। बलूच लिबरेशन आर्मी भी एक स्वतंत्रता सेनानी संगठन है, जो बलूचिस्तान की आजादी की मांग कर रहा है। बलूच फ्रीडम फाइटर्स ने दो महीने पहले बलूचिस्तान में 450 से ज्यादा लोगों ले जारी ट्रेन को अगवा कर लिया था।
पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत बलूचिस्तान आज़ादी की लड़ाई और भू-राजनीतिक खेल का केंद्र है। यहां एक ओर बलूच लोग दशकों से स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे हैं, तो दूसरी ओर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा यानी सीपीईसी के ज़रिए चीन ने अरब सागर तक अपनी पहुँच बनाने के लिए अरबों डॉलर का निवेश किया है। हाल के भारतीय सैन्य अभियान, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ (7 मई 2025), में चीन ने पाकिस्तान का खुलकर साथ दिया जो सीपीईसी को बचाने और भारत के सामने नयी चुनौती पेश करने की कोशिश थी।
1947 में बँटवारे के समय बलूचिस्तान चार रियासतों – कलात, खरन, लास बेला, और मकरान – से बना था। 11 अगस्त 1947 को, भारत की आज़ादी से चार दिन पहले, कलात के खान मीर अहमद यार खान ने बलूचिस्तान को स्वतंत्र घोषित किया लेकिन यह आजादी केवल 227 दिन चली। 28 मार्च 1948 को, जिन्ना के आदेश पर पाकिस्तानी सेना ने कलात पर कब्जा कर लिया और खान को जबरन विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने को मजबूर किया जबकि मोहम्मद अली जिन्ना ने स्वयं ब्रिटिशों के सामने कलात की स्वतंत्रता का केस लड़ा था। बलूच इसे धोखा मानते हैं और तब से विद्रोह कर रहे हैं। बलूचिस्तान अब पाकिस्तान से ज़्यादा चीन का युद्धक्षेत्र बन गया है, क्योंकि यहाँ CPEC (चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरीडोर) का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। सीपीईसी 2015 में शुरू हुई 62 अरब डॉलर की परियोजना, चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा है। इसका लक्ष्य चीन के शिनजियांग को ग्वादर पोर्ट (बलूचिस्तान) से जोड़ना है। यह 3,000 किमी का गलियारा सड़कों, रेलवे, पाइपलाइनों, और ऊर्जा परियोजनाओं का जाल है, जिसमें शामिल हैं: ग्वादर पोर्ट: अरब सागर में रणनीतिक बंदरगाह।,ऊर्जा परियोजनाएं,कोयला, हाइड्रो, और सौर संयंत्र। सड़क-रेल नेटवर्क: कराची से पेशावर और खुनजराब तक,विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज): औद्योगिक विकास के लिए।
आपको बताता चलूं कि बलूचिस्तान सिर्फ पाकिस्तान का प्रांत नहीं, बल्कि चीन की रणनीति का केंद्र है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में चीन ने पाकिस्तान को सैन्य तकनीक और संसाधन देकर भारत को घेरने की कोशिश की लेकिन इस खेल में आम बलूच कुचले जा रहे हैं। उनकी आजादी की लड़ाई CPEC और पाकिस्तानी दमन के खिलाफ है। क्या वे स्वतंत्रता हासिल करेंगे? यह भविष्य बताएगा। लेकिन यह साफ है कि बलूचिस्तान दक्षिण एशिया की भू-राजनीति का अहम हिस्सा है, और इसका भारत पर गहरा असर होगा।
संजय सिन्हा