बामियान में बुद्ध

—विनय कुमार विनायक
ईसा पूर्व पांच सौ तिरसठ में
लुम्बिनी वन नेपाल में जन्मे थे गौतम!

ईसा पूर्व पांच सौ अठाईस में
गया बिहार में गौतम बने थे भगवान बुद्ध!
ईसा पूर्व चार सौ तिरासी में कुशीनगर,
उत्तर प्रदेश में बुद्ध ने पाया महानिर्वाण!

किन्तु मरे नहीं थे बुद्ध
अहिंसा, करुणा,क्षमा,दया की मूर्ति बनकर
छा गए बुद्ध विश्व क्षितिज पर
सूक्ष्म और स्थूल रूप में!

साक्षी था मार्च दो हजार एक में ध्वस्त
बामियान की मूर्तियां जिसे तोप से ढहा दिए गए
अड़तीस और तिरेपन मीटर की
दूसरी सदी में बनी मूर्ति व बामियानी प्रतिमाएं!

जब-जब सत्य, अहिंसा, करुणा, क्षमा, दया पर
असत्य, हिंसा, क्रूरता, पाखंड ने पंजा जमाया
तब-तब बुद्ध ईसा, पैगम्बर, नानक, गांधी बनकर
कभी सलीब पर चढ़ गए ईसा क्षमा दया को बचाने
कभी नबी बने दीन दलितों को गले लगानेवाले,
कभी पूजा स्थल की ओर पैर कर सो गए
नानक बनकर कठमुल्लापन को धकियाने!

कभी सीने पर गोलियां खाए
सत्य अहिंसा को बचाने गांधी बनकर!

वह बुद्ध ही थे जिन्होंने पहली बार कहा था
असत्य, अहिंसा,क्रूरता, कठमुल्लई, पाखंड को
जिलाए रखने के लिए चाहिए
एक अंधविश्वासी धर्म, एक अंध ईश्वर,
एक अंधे देवदूत और मुट्ठी भर कठमुल्ले पंडित!

जो बांध सके अंध भक्तों को
धार्मिक मानसिक गुलामी की डोर से
अस्तु त्याग दो ऐसे धर्म को, ऐसे ईश्वर को,
ऐसे देवदूत को ऐसे कठमुल्ले पंडित को!

अगर बचाना हैं श्रेष्ठ मानवीय गुण
सत्य, अहिंसा, करुणा, क्षमा, दया,प्रेम!

ईसा पूर्व तीन सौ निन्यानबे में
सुकरात ने पिया था जहर उसी सत्य को बचाने!
ईस्वी सन् उनतीस में सूली पर चढ़े थे
ईसा मसीह उसी सत्य को फिर से बचाने!

ईस्वी सन् छः सौ बाईस में हिजरत के बाद
हज़रत पैगम्बर ने जो कहा था
वह क्या बुद्ध कथन से अलग था?
दीन व ईमान की रक्षा में
अंधविश्वास, अंधभक्ति,अंधपूजा बाधक है!

अस्तु बंध करो देव पूजा,
बंद करो देवदूत को महिमा मंडित करना!

विवेक पूर्ण मानसिक आस्था ही काफी है
ईश्वर और उनकी सृष्टि समवर्धन के लिए!

बुद्ध या कि पैगम्बर एक ही
धार्मिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के
दो समय के,दो सुधारवादी दार्शनिक थे!

जैसे कि बुद्ध स्वयं बौद्ध धर्मावलंबी नहीं
सनातनी प्रकृति मूर्ति पूजक आर्य राजकुमार थे!

वैसे ही हज़रत मुहम्मद स्वयं इस्लामी अनुयाई नहीं
मूर्ति प्रकृति पूजक कुरैशी कबिलाई सरदार थे!

दोनों का उदय अपने-अपने धर्म की
तत्कालीन कुरीतियों के खिलाफ था!

बिना कुरान हदीस को पढ़े कोई भी कह सकता
कि रक्त, वंश, नस्ल, लिंग का बिना विभेद किए
दीन हीन को अपनाकर
भाईचारे का पाठ पढ़ाने वाले थे पैगम्बर!
—विनय कुमार विनायक

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