देश आज एक ऐसे कगार पर आकर खड़ा हो गया जहाँ पर धन की लालसा बिलकुल साफ दिखने लगी है इसी कारण मौत और जीवन में अंतर बिल्कुल साफ नजर आने लगा है। यदि शब्दों को बदलकर कहें तो शायद गलत नहीं होगा कि एक बार फिर न्यूनतम एवं मध्यम वर्ग के आदमी का जीवन बेहद संकट में फंस चुका है। क्योंकि जीवन का अर्थ क्या होता है इसे समझने के लिए किसी अस्पताल के सामने का नजारा देखना पड़ेगा जहाँ मौत और जिन्दगी के बीच छिड़ी हुई जंग का नजारा बिल्कुल साफ-साफ नजर आ रहा है। देश की 90 प्रतिशत आबादी जिस मुहाने पर आज आ खड़ी हुई है वह किसी से भी छिपा हुआ नहीं है। जिन्दगी और मौत के बीच संघर्षरत जीवन जिसमें गरीब एवं मजदूर दो जून की रोटी कमाने के लिए हाड़तोड़ मेहनत करने के लिए विवश है। लेकिन आज एक ऐसी परिस्थिति आ गई है जिसमें गरीब एवं मध्यम व्यक्ति जिन्दगी की जंग हार रहा है। दो जून की रोटी के लिए हाड़तोड़ मेहनत करने वाला मानव आज जीवन की जंग में अपने आपको अनाथ एवं अकेला पा रहा है। जिससे उसकी सांसें थमनी शुरू हो चुकीं हैं। शमशान हो अथवा कब्रिस्तान प्रत्येक स्थानों का एक जैसा ही नजारा है। जो कल तक जीवित थे खुली हवा में सांस ले रहे थे आज वह मृत्यु होकर शवों में तब्दील हो चुके हैं। यह बहुत ही भयावक स्थिति है। जिसे शब्दों में कह पाना संभव नहीं है। शव गृहों का नजारा रूह कंपा दे रहा है।
शिक्षा एवं चिकित्सा जैसे अपने मूल अधिकारों से वंचित व्यक्ति आज ऐसे कगार पर खड़ा है जिसके सामने कुछ भी नजर नहीं आ रहा है। अगर नजर आ रहा है तो मात्र मौत। मौत के इतर कुछ और भी नजर नहीं आ रहा है। क्योंकि शिक्षा से वंचित इंसान की कमर तो पहले से ही टूटी हुई है। अपनी टेढ़ी कमर के भरोसे लुढ़कती हुई देश की 90 प्रतिशत आबादी आज चिकित्सा से संबन्धित समस्या से जूझ रही है। गरीबी की मार झेलता हुआ व्यक्ति अपने आपको कोस रहा है। क्योंकि उसके पास अब कोई भी रास्ता ही नहीं बचा है। बेबसी से भरी हुई आँखों से निहारता हुआ व्यक्ति मजबूरी के आंसू बहा रहा है। क्योंकि अपनी पथराई हुई आँखों से जिस ओर निहार रहा है उसे कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा। उसकी उम्मीदें टूट रही हैं। देश का सिस्टम किस कदर जर्जर है इसकी पोल इस महामारी ने खोल दी। भगवान भरोसे जीवन जीने को मजबूर व्यक्ति पूरी तरीके से टूट चुका है।
ऑक्सीजन न उपलब्ध हो पाने के कारण दम घुट रहा है। दिल्ली से लेकर पटना तथा नासिक से लेकर भोपाल तक प्रत्येक जगह एक ही जैसा नजारा है। कहीं पिता अपने पुत्र को खो रहा है तो कहीं पुत्र अपने पिता को खो रहा है। कहीं बेटी अपनी माता को खो रही है तो कहीं माता अपनी बेटी को खो रही है। यह एक ऐसी सच्चाई है जोकि रोंगटे खड़े कर दे रही है। आज गली एवं चौराहे पर जिस प्रकार के प्रश्न उठ रहे हैं वह अपने आपमें बड़े सवालिया निशान खड़ा कर रहे हैं।
क्या यही नए भारत की झलक है…? क्या यही शस्क्त भारत का दृश्य है…? क्या यही विश्व गूरू बनने की रूप रेखा है। क्योंकि जब ऑक्सीजन जैसी मूल भूत सुविधा को प्राप्त न कर पाने के कारण दम घुटना आरंभ हो गया तो फिर अब किस ओर निहारा जाए। दवाईयों की बात तो और ही निराली है। एक इंजेक्शन जिसका नाम है रेमेडिसिविर है जोकि कोविड 19 के प्रभाव से मुक्ति प्रदान करता है तो इस रेमेडिसिविर इंजेक्शन की काला बाजारी की खबरें जिस प्रकार से आई हैं साथ ही छापा मारी में जिस प्रकार के खुलासे हुए हैं साथ ही मेडिकल से संबन्धित व्यक्तियों के चेहरे जिस प्रकार से सामने आए हैं उसके लिए अब कोई भी शब्द ही नहीं बचे हैं। क्योंकि मेडिकल सुविधाओं से जुड़ा हुआ व्यक्ति जोकि इसी समाज का हिस्सा है वह किस प्रकार का रूप धारण कर चुका है यह बहुत घातक संदेश है। जीवन रक्षक दवाईयों में इस भयंकर माहामारी आपदा के समय जिस प्रकार से कालाबाजारी हुई है उसने अपने आपमें एक साथ कई सवालों को जन्म दिया है। जिसे समझने की आवश्यकता है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या अब जीवन की मूल भूत सुविधा जिसको चिकित्सा कहते हैं वह अब पूरी तरह से व्यवसायीकरण के डगर पर चल पड़ी है यह बड़ा सवाल है। क्योंकि जिस प्रकार से इस माहामारी एवं आपदा को कुछ लोगों के द्वारा अवसर में परिवर्तित करने का प्रयास किया गया है वह बहुत ही चिंताजनक है। साथ ही जर्जर चिकित्सा सिस्टम की सरकार की पोल जो खुलकर सामने आई है वह बहुत बड़ संदेश है। हमारे देश में हेल्थ सेक्टर की जो तस्वीर उभरकर सामने आ रही है वह चौकाने वाली है। झमाझम बंगले एवं चमकती गाड़ियों पर जनता के टैक्स का पैसा खर्च करने वाले नेताओं ने देश के हेल्थ सेक्टर को मजबूत क्यों नहीं किया यह बड़ा सवाल है। क्योंकि नेताओं के द्वारा अपने प्राणों की रक्षा के लिए सुरक्षा घेरा धरती से लेकर आकाश तक अभेद बनाया जाता है लेकिन जनता के प्राणों की सुरक्षा के लिए जर्जर हेल्थ सिस्टम अपने आपमें बहुत कुछ कह रहा है। नेता और जनता के बीच खुदी हुई गहरी खाई को बड़ी बारीक नजरों से देखने की आवश्यकता है। क्योंकि यह जर्जर हेल्थ सेक्टर आज एक दिन में जर्जर नहीं हो गया। अपितु सत्य यह है कि इस हेल्थ सेक्टर के आधार को कभी मजबूत किया ही नहीं गया जोकि अपने आपमें एक बड़ा सवाल है।