
—–विनय कुमार विनायक
लाशों की ढेर पर
मंदिर बनाने के पहले अच्छा है हमें
दिल-दिमाग से राम बन जाना
बन जाओ आज्ञाकारी पुत्र
राम सा कि माता का आदेश है!
बन जाओ निस्पृह-त्यागी
राम सा कि पिता की इच्छा है!
छोड़ दो सिंहासन सुख
कि लघु जनों को मिले अवसर!
बनो ऐसा मर्यादावादी राम सा
कि बची रहे सबकी मर्यादा!
कि तुम्हारी ब्याहता
तुम्हारे विश्वास पर
अग्नि में कूदकर भी ना जले!
कि तुम्हारी बहन
भाई शब्द उच्चार कर
बहशी दरिंदों से बच निकले!
कि त्यागी बनो ऐसा
कि तुम दबे-कुचले जन की
समझने लगो जुबान की भाषा!
जन आस्था की रक्षा में
त्याग करो सर्वस्व जीवन-धन
सत्य हरिश्चन्द्र वंशी राम बनकर!
कि लाशों की ढेर पर मंदिर
बनाने के पहले अच्छा है
हमें दिल-दिमाग से राम बन जाना!