राजनीति

पहले भारतीय जनता पार्टी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का हस्तक्षेप बंद हो

‘राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ और भाजपा’ के संबंधों पर केन्द्रित यह लेख कर्नाटक से प्रकाशित दैनिक प्रजावाणी में अभिमत पेज पर 31 अगस्त, 2009 को प्रकाशित हुआ था। मूलत: कन्‍नड में लिखे इस लेख का यह हिंदी अनुवाद है। हालांकि इस लेख में व्‍यक्‍त विचारों से हमारी असहमति है लेकिन समसामयिक होने और इसमें उठाए गए सवालों के मद्देनजर हम इसे प्रकाशित कर रहे हैं-संपादक

advani_bhagvatएक गांव में एक स्वामी जी 100 शिष्यों के साथ रहते थे। एक दिन ऐसा लगा मानो प्रलय ही हो जाएगी। कड़कड़ाती बिजली और तूफान, आंधी के साथ बहुत भयंकर बारिश होने लगी। स्वामी जो को लगा कि उनके बीच किसी ने कोई बड़ा पाप किया है और उसे यदि आश्रम से बाहर निकाल दिया जाए तो प्रकृति शांत हो जाएगी। यह सोचकर, एक-एक शिष्य को उन्होंने बाहर खुले में भेजना शुरू किया। एक-एक करके 99 शिष्य बाहर चले गए। जैसे ही 100 वां शिष्य आश्रम से बाहर निकला कड़कड़ाती बिजली आश्रम पर गिरी। स्वामी जी मारे गए और बरसात बंद हो गयी।

भारतीय जनता पार्टी के अंदर जिस प्रकार खुलकर मतभेद सामने आ रहे हैं और उन्हें शांत करने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा जो प्रयास चल रहा है, उसे देखकर स्वामी जी और 100 शिष्यों की कहानी याद आती है। भारतीय जनता पार्टी के अंदर के संकट को दूर करने के लिए अरूण शौरी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जो विनती की है, काश उनको कोई ये कहानी बताए।

कहने का मतलब यह है कि अनुशासन का डंडा उठाकर भारतीय जनता पार्टी से 100 लोगों को भी यदि बाहर कर दिया जाए, तब भी पार्टी के अंदर का संकट समाप्त नहीं हो सकता। समस्या के समाधान के लिए एक ही उपाय है कि मुंह ढककर रिमोट कंट्रोल से पार्टी को नियंत्रित करने वाला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भाजपा के मामलों से बाहर हो जाए।

यह भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दोनों के भविष्य की दृष्टि से ठीक होगा। भारतीय जनता पार्टी का पूर्णत: एक राजनीतिक दल बनकर और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक निष्पक्ष हिंदू संगठन बनकर चलने में और बढ़ने में ही भला है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारतीय जनता पार्टी की समस्या सुलझाए, जैसा कि अरुण शौरी कहते है, वह ठीक नहीं है।

आश्चर्य की बात है कि लोकतंत्र के बारे में खूब लिखने वाले अरूण शौरी जी को भी भारतीय जनता पार्टी के भीतर के रोग का इलाज करने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के डाक्टर की सिफारिश करने में हिचकिचाहट क्यों नहीं हुई? भारतीय जनता पार्टी भारतीय संविधान के तहत पंजीकृत एक राजनीतिक दल है। अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं की तरह भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को भी देश की जनता जब चाहे तब सत्ता सौंपती है, नहीं तो कूड़े में फेंक देती है। इसी जनता का वोट पाने के लिए भूख, पानी, तूफान किसी की परवाह न करते हुए 80 साल की उम्र में आडवाणी जैसे नेता को भी पसीना बहाना पड़ता है।

भारतीय जनता पार्टी को उपदेश देने का, उसके आंतरिक मामलों में टांग अड़ाने का अधिकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को कैसे मिल गया? क्या वो जनता के द्वारा चुनी हुयी संस्था है? एक सामान्य मतदाता को भारतीय जनता पार्टी को जितना उपदेश देने का अधिकार है, उतना ही अधिकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी है। उससे तिलमात्र भी अधिक अधिकार नहीं है। संविधान उन्हें कोई अधिकार नहीं देता।

मतभेद एवं नेतृत्वहीनता से कराह रही भारतीय जनता पार्टी के बारे में यदि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को बहुत रूचि है तो क्यों नहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत स्वयं भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष बन जाते, चुनाव लड़ते और देश का प्रधानमंत्री बनने की कोशिश करते। उन्हें कौन रोकता है? न कहने का अधिकार किसी को नहीं है? क्योंकि यहां प्रजातंत्र है।

देश के विभाजन के लिए सरदार पटेल कारण हैं या नहीं या फिर जिन्ना धर्म निरपेक्ष हैं या नहीं, इन मुद्दों पर जसवंत सिंह और आडवाणी चुनाव नहीं जीते हैं। चुनाव घोषणापत्र में ये विषय नहीं थे। जसवंत सिंह की जिन्ना की किताब के बारे में भारतीय जनता पार्टी का कौन सा कार्यकर्ता, कौन सा मतदाता माथापच्ची कर रहा है? आज की भारतीय जनता पार्टी इतनी पथभ्रष्ट हो चुकी है कि कल अगर कोई वाजपेयी और आडवाणी जी का चरित्र-हनन करते हुए कोई किताब लिखे तो बहुत लोग अपना माथा खराब नहीं करेंगे। ऐसी स्थिति में ‘जिन्ना धर्मनिरपेक्ष हैं।’ कहते ही आडवाणी जी को क्यों अध्यक्ष पद छोड़ना चाहिए? जसवंत सिंह को क्यों निकाल देना चाहिए? उस पक्ष की ओर से वकालत करने वाले अरूण शौरी तो कम से कम इन प्रश्नों का उत्तर दें।

बहुत स्पष्ट कहा जाए तो एक ही बात समझ में आती है कि भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने जिन्ना और पटेल के बारे में जो बयान दिए, उससे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं को नाराजगी हुई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सैद्धांतिक रूप से विचित्र है। देश विभाजन के कारण अगर जिन्ना हैं तो सावरकर के बारे में क्या कहेंगे? जिन्ना की अध्यक्षता में लाहौर में अलग राष्ट्र की घोषणा करने से पहले ही क्या सावरकर ने ये नहीं कहा था कि हिन्दू और मुसलमानों के लिए अलग देश होना चाहिए? (पढ़िए हो. वे. शेषाद्रि जी की देश विभाजन के बारे में लिखी किताब) फिर सरदार पटेल के बारे में इतना मोह क्यों? वो खुल्लमखुल्ला एक कांग्रेसी थे। उनका हिंदू महासभा या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ कोई दूर का भी संबंध नहीं था। देश विभाजन में जितनी भूमिका नेहरू जी की रही है, उतनी ही भूमिका पटेल जी की भी रही है। इन दोनों नेताओं ने गांधी जी के पीछे-पीछे माउंटबेटन से मिलकर विभाजन का खाका तैयार किया था।

भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दोनों अपने सिद्धांत के खिलाफ चल रहे हैं। इसके द्वारा भारतीय जनता पार्टी अपने मतदाताओं को और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदुओं को धोखा दे रहा है। केवल रोज खाकी निक्कर पहन कर शाखा जाने वाले लोगों के वोट से ही भारतीय जनता पार्टी केन्द्र में या राज्यों में सत्ता में नहीं आयी है। उस पार्टी से चुने हुए विधायकों, सांसदों में बहुतों का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से कोई संबंध ही नहीं है। ऐसा होने पर भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुराने पड़ चुके सिद्धांतों पर चलकर भारतीय जनता पार्टी अपनी समाधि क्यों बना रही है?

राजनीति से संबंधित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नीति अस्पष्ट है। ‘सभी हिंदू एक हैं’ ऐसा कहने वाला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राजनीतिक दलों का समर्थन करने का वक्त आते ही भारतीय जनता पार्टी को अपने गले से लगा लेता है। कांग्रेस, कम्यूनिस्ट, डी. एम. के., जे. डी. यू. में रहने वाले क्या हिंदू नहीं हैं? प्रणव मुखर्जी, देशपांडे, देवगौड़ा ये सब लोग हिंदुत्व के बारे में भारतीय जनता पार्टी के किन नेताओं से कम हैं? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कहने के अनुसार हिंदू नेता बनने के लिए किन योग्यताओं की आवश्यकता है? अल्पसंख्यकों के खिलाफ थोड़ा आग उगलना? हो सके तो हिन्दू-मुस्लिम दंगों को हवा देना? पब जाने वालों पर आक्रमण करना? बुर्का पहनने का विरोध करना? कभी-कभी राममंदिर निर्माण के लिए प्रतिबद्धता घोषित करना? क्या हिंदू नेता बनने के लिए यही सब चाहिए?

दलित लोगों द्वारा मैला ढोने की घृणित परंपरा को कानून बनाकर रोकने और इस प्रकार हिंदू धर्म पर लगे कलंक को दूर करने वाले देवराज अर्स (कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री) जाति भेद को दूर करके मंदिर का पुजारी बनने का अधिकार देने वाले एन. टी. रामाराव जैसे लोग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हीरो क्यों नहीं बनते?

राममंदिर निर्माण करेंगे, समान नागरिक संहिता लागू करेंगे, संविधान की धारा 370 को समाप्त करेंगे, ऐसा प्रचार करके चुनाव जीतने वाले और बाद में उसे भूलकर सत्ता सुख भोगने वाले भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के बारे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को क्यों इतनी ममता है? हिंदूत्व के प्रति लगाव की बजाए क्या यह भारतीय जनता पार्टी का सरपरस्त बनकर सत्ता में भागीदारी की अनाधिकृत इच्छा नहीं है? लेकिन, भारतीय जनता पार्टी के बारे में जब भी कोई विवाद उठता है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ वाले यह कहकर दूर रहते हैं कि हम भारतीय जनता पार्टी में हस्तक्षेप नहीं करते। ऐसा कहने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोग जहां-जहां भारतीय जनता पार्टी अधिकार में आती है, वहां-वहां सरकार की समितियों, आयोगों और मंडलियों में क्या अधिकार का स्थान पाने के लिए बेशर्म होकर प्रयास नहीं करते? ये अधिकार बल्लारी के रेड्डी भाइयों से भी मिले तो भोग करने के लिए वे तैयार रहते हैं। आपरेशन कमल (दूसरी पार्टियों के कई एम. एल. ए. को पैसा देकर इस्तीफा दिलाना, उन्हें मंत्री बनाना और फिर भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़वाना) होते समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपनी नाराजगी क्यों नहीं जतायी? इस प्रकार के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भारतीय जनता पार्टी को उपदेश देने का कौन सा नैतिक अधिकार है?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को पहले एक काम करना चाहिए। भारतीय जनता पार्टी को उसके हाल पर छोड़ देना चाहिए। अभी भी कांग्रेस में समर्थ नेता नहीं हैं, प्रादेशिक पार्टियों के बारे में देश की जनता का मोहभंग हो गया है, नाम के लिए राष्ट्रीय दल कहलाने वाली सी.पी.एम., सी.पी.आई. डेढ़ राज्यों (प. बंगाल, त्रिपुरा) में सिमट चुकी है, ऐसे हालात में भारतीय जनता पार्टी में आज भी कुछ सशक्त नेता हैं। यदि विकास के मुद्दे को लेकर पार्टी आगे बढ़े तो उसका साथ देने के लिए, कांग्रेस विरोधी एक बहुत बड़ा वोटबैंक है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दूसरा काम होना चाहिए कि वह हिंदुओं के हित में अपने को ईमानदारी से काम करने के लिए समर्पित कर दे। केवल मुस्लिम, इसाई विरोध करना ही हिंदुत्व हो गया है। इस प्रकार की प्रवृत्ति से, अतिवादिता से, नकारात्मक विचारों से हिंदूत्व को उबारने की जरूरत है। साथ ही संघ को चाहिए कि वह हिंदू धर्म की जड़ों को हिलाने वाली जातीयता, अस्पृश्यता और रूढ़िवादिता आदि के विरूद्ध कार्य-योजना तैयार करके मिशनरी लोगों की तरह राजनीति से दूर रहकर, किसी प्रकार के अंजाम की परवाह न करते हुए अपने-आप को सेवा के काम में लगा दे। अगर ये सब नहीं हो सकता है तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को चाहिए कि वह भारतीय जनता पार्टी में खुद का विलय कर दे।

लेखक : दिनेश अमीन मत्तू

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