कविता

स्त्री

lady

ladyस्त्री होना, एक सहज सा

अनुभव है

क्यों, क्या

क्या वो सब है

कुछ नहीं

नारी के रूप को

सुन, गुन

मैं संतुष्ट नहीं था

बहन, बेटी, पत्नी, प्रेमिका

इनका स्वरुप भी

कितना विस्तृत

हो सकता, जितना

ब्रह्मांड, का होता है

जब जाना, नारी

उस वट वृक्ष

को जन्म देती है

जिसकी पूजा

संसार करता है

जिसकी जड़

इतनी विशाल होती है

कि जब थका मुसाफ़िर

उसके तले

विश्राम करता है

तब कुछ क्षण बाद ही

वो पाता है

शांति का प्रसाद

सुखांत, देता हुआ

उसकी शाखा को पाता है

हँसते हुए, उसके पत्तों को

प्रणय स्वरुप, उसकी जड़ों को

 

पृथ्वी ( स्त्री ) तू धन्य है

प्रत्येक पीड़ा को हरने वाले

वृक्ष की जननी

तू धन्य ही धन्य है

क्योंकि ये शक्ति आकाश ( पुरुष )

पर भी नहीं है

निर्मल, कोमल, अप्रतिबंधित प्रेम

एक अनोखी शक्ति है

जो एक निर्जीव प्राणी में

जीवन की चेतना का

संचार करती है

एक अनोखी दृष्टि का

जिसमें ईश्वर

स्पष्ट दृष्टि गोचर होता है |

 

उसका ( वात्सल्य, श्रृंगार, मित्रता, काम, वफ़ा, प्रीती )

ईश्वरीय दर्शन

‘निर्जन’ अब हर घड़ी हर पल चाहूँगा

जिससे कभी मैं अपने आप को

नहीं भूल पाऊंगा

क्योंकि मैं भी

स्नेह से बंधा, प्रेम को समेटे

सुख की नींद सोना चाहता हूँ