कविता

विदाई

आँसुओं के संग जब
होती है ठठोली
मुश्किल है समझना
तब नैनों की बोली

पिता दिखता है परेशान
माँ लगती है बेचैन
बहन दिनभर हँसती है
रोती है सारी रैन

भाई की आँखों में
दिखता है तब ग़म का रेला
निकट आती है जब
बहन के विदाई की बेला

अजीब-सी घड़ी होती है
जब बजती है शहनाई
किसी से होता है मिलन
होती है किसी से जुदाई

✍️ आलोक कौशिक