हे भाय ! कम्बल है कि पद्मश्री सम्मान…?

0
140

                     प्रभुनाथ शुक्ल

भगवान ने ठंड और गरीबों की जोड़ी काफी शोध के बाद बनाई है। गरीबी को लेकर रोना आम है। लेकिन उनकी हस्ती है कि मिटती नहीं है। गरीबी मिटाने को अनगिनत लोग आए और नारे भी लाए। गरीबी तो नहीं मिटा पाए, समय के साथ खुद निपट गए। हरजाई ठंड और गरीब की दोस्ती भी पाषाणकालीन है। ठंड रईसजादों को घास तक नहीं डालती है जबकि गरीब की झोपड़ी में बगैर दस्तक के बेहिचक पहुंच जाती है। झोपड़ी वाला भी ठंड से बेइंतहा मोहब्बत करता है। उसकी मोहब्बत में यू-र्टन हो जाता है।

जिस तरह बुखार मापने का यंत्र थर्मामीटर होता है, उसी तरह ठंड लिए गरीबमापी यंत्र कंबल का अविष्कार हुआ है। सरकार हो या समाजसेवी ठंड का मौसम आते ही रैन बसेरों से लेकर अनाथालयों में गरीबों की खोज में निकल पड़ते हैं। गरीबों को ठंड से निजात दिलाने के लिए कंबल वितरण समारोह का व्यापक पैमाने पर आयोजन किया जाता है। जितना खर्च कम्बल खरीद पर नहीं आता उसके कई गुने का हिसाब- किताब गरीबों की खोज में बन जाता है। कम्बल खरीद की उपकृत राशि का कोई आडिट भी नहीं होता। कंबल आयोजन की आड़ में कइयों की जेब मोटी हो जाती है।

हमारे यहाँ गरीबों की पहचान के लिए लालवाला राशनकार्ड है, लेकिन विकल्प के तौर पर कबंल का भी प्रयोग किया जा सकता है। मुलुक में ठंड के मौसम में सरकारी और सामाजिक संस्थाओं के साथ चुनावी मैदान में उतरने वाले योद्धाओं की तरफ से भी भव्य कबंल वितरण समारोह का आयोजन है। कंबल वितरण समारोह को इस तरह प्रस्तुत किया जाता है, जैसे गरीबों को गोया कंबल के बजाय पद्मश्री या फिर दादासाहब फाल्के पुरस्कार से नवाजा जा हो। उस दौरान ताड़ियों की गड़गड़ाहट के बीच एक-एक गरीबों को सम्मानित किया जाता है। सम्मानित करने वाले नायकों के समर्थन में गगनभेदी जयघोष किया जाता है। ऐसा लगता है कि इस मुलुक में गरीबी मिट जाएगी या फिर ठंड।

कम्बल वितरण समारोह के महानायक गरीबों के कंधे पर जैसे ही पवित्र कंबल डालता है वैसे ही सैकड़ों की संख्या में कैमरे एक्शन मोड में होते हैं। भीड़ से कैमरामैन बोलता है सर प्लीज! इस्माइल। इतना सुनते ही नायक महोदय हाथ उठाकर जनता का अभिवादन करते हुए खींस निपोर देते हैं। इस बीच सैंकड़ों तालियों बीच गरीबों के मसीहा का शॉट ओके होता है। मुलुक में गरीबी मिटाने के अनगिनत शौर्य गाथाएं हैं। गरीबी और कंबल का चोली दामन का साथ है। ठंड, कबंल और गरीबी का समिश्रण एक ट्रिपल इंजन का वाला फार्मूला है।

वैसे हमारी दिल्ली युगों-युगों से गरीबी मिटाने का नारा देती आई है। दिल्ली गरीबों का बेहद खयाल रखती है और गरीब भी उसका बेहद खयाल रखते हैं। लेकिन गरीबी मिटाने का प्रयास स्वाधीनता काल से चला आ रहा है। फिर भी गिला इस बात का है कि गरीबी और गरीबों की हैसियत इतनी मोटी है कि मिटती नहीं है। मुलुक में जब भी चुनावी मौसम आता है तो गरीबों की डिमांड बढ़ जाती है। लेकिन फिर एक विशेष मौसम में ही बेचारे गरीबों की याद आती है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

12,766 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress