– योगेश कुमार गोयल
कोरोना पूरी दुनिया में कहर बरपा रहा है। इससे जहां दुनियाभर में करीब सवा करोड़ लोग संक्रमित हो चुके हैं, वहीं साढ़े लाख मौत के मुंह में समा चुके हैं। भारत में भी कोरोना संक्रमितों और इससे होने वाली मौतों का ग्राफ लगातार ऊपर ओर जा रहा है। देश में अब करीब 20 हजार मामले प्रतिदिन सामने आ रहे हैं और कोरोना संक्रमितों की संख्या साढ़े छह लाख को पार कर गई है। बड़ी संख्या में श्रमिकों के गांवों की ओर पलायन और देश में तमाम औद्योगिक व अन्य गतिविधियों की शुरूआत के बाद कोरोना संक्रमण के तेजी से फैलने की संभावना बढ़ गई है। ग्रामीण इलाकों के दृष्टिगत तो यह बेहद खतरनाक है क्योंकि संक्रमण को लेकर बड़ी चिंता अब देश के ग्रामीण इलाकों को लेकर है। कई जगहों पर अपने क्षेत्रों तक पहुंचे श्रमिकों में कोरोना संक्रमण की पुष्टि भी हुई लेकिन ऐसे लोगों की संख्या भी बहुत ज्यादा हो सकती है, जिनकी जांच के अभाव में उनमें कोरोना संक्रमण का पता ही नहीं चल पाता। चिंता की बात यह है कि अगर देश के ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना संक्रमण का प्रसार हुआ तो उससे निपटना लगभग असंभव होगा क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पतालों में मरीजों के लिए प्रायः अनिवार्य सुविधाएं ही उपलब्ध नहीं होती।
तमाम जिम्मेदार संस्थाएं आशंका जताती रही हैं कि यदि कोरोना संक्रमण भारत के ग्रामीण इलाकों तक पहुंच गया तो हालात कितने भयावह होंगे, उसका अनुमान लगाने से ही रोम-रोम सिहर उठता है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) सहित तमाम चिकित्सा विशेषज्ञ पहले ही आशंका जता चुके हैं कि अगर यह महामारी गांवों में फैली तो उससे निपटना असंभव होगा। दरअसल ग्रामीण इलाकों में सामान्य बीमारियों के इलाज की ही संतोषजनक सुविधा उपलब्ध नहीं होती, फिर भला कोरोना की जांच और इलाज होने की कल्पना ही कैसे की जा सकती है? स्वास्थ्य सेवाओं में 102वें स्थान पर आने वाले सवा अरब से अधिक आबादी वाले भारत की बहुत बड़ी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है, जहां स्वास्थ्य ढ़ांचा बुरी तरह चरमराया हुआ है। अगर गांवों में कोरोना महामारी बनकर फैला तो वहां संक्रमितों की पहचान करना और उनके सही आंकड़े जुटाना दुष्कर कार्य होगा।
आईसीएमआर में वायरोलॉजी के विशेष शोध के पूर्व प्रमुख डा. टी जेकब जॉन के मुताबिक भारत में जल्द ही कोरोना संक्रमण अपने चरम तक पहुंच सकता है। उनके अनुसार कोरोना संक्रमण जिस तरह से देश में फैल रहा है, उस दृष्टि से आने वाले दिनों में भारत की एक करोड़ से ज्यादा आबादी इसकी चपेट में आ सकती है। कई अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों का भी दावा है कि जुलाई माह के अंत तक भारत में संक्रमितों की संख्या 15 लाख तक हो सकती है और ऐसी स्थिति से निपटने लिए भारत में मौजूदा मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर और मेडिकल उपकरणों की संख्या काफी कम है। विश्व स्वास्थ्य संगठन पहले ही कह चुका है कि भारत में कोरोना को परास्त करने के लिए जनस्वास्थ्य के लिए पर्याप्त कदम उठाने होंगे लेकिन अब जिस प्रकार देश की बहुत बड़ी आबादी को उसी के हाल पर छोड़ दिया गया है, उसे देखते हुए आने वाले दिनों में स्थिति विस्फोटक हो सकती है।
यदि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना महामारी फैलती है तो उसके उपचार के लिए हमारा स्वास्थ्य ढ़ांचा कितना मजबूत है, उस पर भी एक नजर डाल लें। ‘नेशनल हैल्थ प्रोफाइल 2019’ की रिपोर्ट के मुताबिक देश में कुल 26 हजार अस्पतालों में से हालांकि ग्रामीण भारत में ही करीब 21 हजार अस्पताल हैं लेकिन इनकी हालत संतोषजनक नहीं है। रिपोर्ट में बताया गया था कि यदि ग्रामीण भारत की मात्र 0.03 फीसदी आबादी को भी जरूरत पड़े तो सरकारी अस्पतालों में उसके लिए बिस्तर उपलब्ध नहीं होंगे। देशभर के सरकारी अस्पतालों में सात लाख से अधिक बिस्तर हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में बसने वाली देश की दो तिहाई आबादी के लिए बिस्तरों की संख्या महज 2.6 लाख ही है। निजी अस्पतालों, क्लीनिक, डायग्नोस्टिक सेंटर और कम्युनिटी सेंटर को भी शामिल कर लें तो कुल बिस्तरों की संख्या करीब 10 लाख ही है।
बिस्तरों की उपलब्धता का यह संकट हालांकि केवल भारत की समस्या नहीं है बल्कि चीन, फ्रांस, दक्षिण कोरिया, इटली, अमेरिका इत्यादि विकसित देश भी इस समस्या से जूझते दिखाई दिए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक प्रत्येक एक हजार नागरिकों पर अमेरिका में 2.8, इटली में 3.4, चीन में 4.2, फ्रांस में 6.5 तथा दक्षिण कोरिया में 11.5 बिस्तर उपलब्ध हैं। दूसरी ओर भारत में प्रत्येक दस हजार लोगों पर करीब छह अर्थात् 1700 मरीजों पर सिर्फ एक बिस्तर उपलब्ध हैं। ग्रामीण अंचलों में स्थिति काफी खराब है, जहां करीब 3100 मरीजों पर महज एक बिस्तर उपलब्ध है। बिहार में तो प्रत्येक सोलह हजार लोगों पर केवल एक ही बिस्तर उपलब्ध है। झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, मणिपुर, गुजरात इत्यादि में भी करीब दो हजार लोगों पर महज एक बिस्तर उपलब्ध है।
देशभर में करीब 26 हजार सरकारी अस्पताल हैं अर्थात् प्रत्येक 47 हजार लोगों पर मात्र एक सरकारी अस्पताल। ‘नेशनल हैल्थ प्रोफाइल 2019’ की रिपोर्ट के मुताबिक सेना और रेलवे के अस्पतालों को मिलाकर देशभर में कुल 32 हजार सरकारी अस्पताल हैं। हालांकि निजी अस्पतालों की संख्या 70 हजार के आसपास है। अरूणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश जैसे अपेक्षाकृत छोटे राज्यों में एक लाख आबादी पर क्रमशः 16 व 12 सरकारी अस्पताल हैं लेकिन देश की कुल 21 फीसदी आबादी वाले राज्यों दिल्ली, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात तथा आंध्र प्रदेश में अस्पतालों की संख्या प्रति एक लाख लोगों पर एक से भी कम है। दिल्ली में 1.54 लाख लोगों पर एक, महाराष्ट्र में औसतन 1.6 लाख लोगों पर एक, मध्य प्रदेश में 1.56 लाख तथा छत्तीसगढ़ में 1.19 लाख लोगों पर एक-एक, गुजरात में 1.37 लाख और आंध्र प्रदेश में प्रत्येक दो लाख लोगों पर एक-एक अस्पताल हैं। अरूणाचल प्रदेश तथा हिमाचल में क्रमशः 6300 और 8570 लोगों पर एक-एक अस्पताल उपलब्ध हैं। सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की उपलब्धता देखें तो देशभर में करीब 1.17 लाख डॉक्टर हैं अर्थात् लगभग 10700 लोगों पर एक डॉक्टर ही उपलब्ध है। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के नियमानुसार प्र्रत्येक एक हजार मरीजों पर एक डॉक्टर होना चाहिए लेकिन ग्रामीण भारत में तो यह औसत 26 हजार लोगों पर एक डॉक्टर का ही है। ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी 2019 के आंकड़ों के मुताबिक पश्चिम बंगाल में 6.2 करोड़ की ग्रामीण आबादी पर सरकारी अस्पतालों में 70 हजार लोगों के लिए केवल एक डॉक्टर उपलब्ध है। इसी प्रकार बिहार तथा झारखंड में भी ग्रामीण क्षेत्रों में 50 हजार लोगों के लिए केवल एक डॉक्टर उपलब्ध है। सरकारी अस्पतालों में रजिस्टर्ड नर्स और मिडवाइव्स की संख्या बीस लाख से अधिक है, जिसका औसत प्रत्येक 610 लोगों पर एक नर्स का है। बहरहाल, सबसे महत्वपूर्ण सवाल यही है कि ग्रामीण भारत में कोरोना संक्रमण फैलने की दशा में उससे निबटने में हम कितने सक्षम हैं?