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व्यापक इरादों पर अमल की मुश्किलें

-प्रमोद भार्गव-
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संदर्भः- राष्ट्रपति का अभिभाषण

सांसद के संयुक्त राष्ट्र में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने केंद्र की नई सरकार के इरादों, नीतियों और कार्ययोजनाओं का पाठ पढ़ दिया। पाठ इसलिए, क्योंकि राष्ट्रपति का अभिभाषण एक संवैधानिक संसदीय औपचारिकता है, जिसके पालन में राष्ट्रपति की कोई निजी सोच, चिंतन या दिशा सामने नहीं आती। महामहिम सत्तारूढ़ दल के अजेंडे को ही पटल पर रखते हैं। सरकार की इस वचनबद्धता में व्यापक इरादे और कार्ययोजनाएं तो साफ तौर से परिलक्षित हैं, लेकिन किसी भी योजना को एक तय समय सीमा में पूरा करने का जिक्र कहीं नहीं है। जबकि महिला अरक्षण जैसे तैयारशुदा विधेयक मानसून सत्र में लाया जा सकता है। इसी तरह जरूरतमंद सभी बेघर लोगों को 2022 तक घर देने का वायदा किया गया है, जबकि 2019 तक आवासीय समस्या का निदान खोजने की जरूरत थी। क्योंकि अगले आम चुनाव 2019 में होंगे। जाहिर है नरेंद्र मोदी की सरकार 2019 में लौटने की मंशा अभी से पाले हुए हैं।

इस एजेंडे में वे सब घोषणाएं और 67 साल से अनुत्तरित रहे सवाल दर्ज है, जिन्हें नरेंद्र मोदी चुनावी सभाओं में दोहराते रहे हैं। मोदी ने पूरे चुनाव में राम मंदिर के विवादित मुद्दे को नहीं छुआ, इसीलिए वह अभिभाषण से भी गायब है। हालांकि भाजपा के चुनावी घोषणा-पत्र में मंदिर निर्माण का वादा शामिल है। इसी तरह घारा 370 से मोदी दूर ही रहे है। बावजूद यह अच्छी बात है कि कश्मीर से विस्थापित हिंदुओं और उत्तर-पूर्व क्षेत्र में घुसपैठ व अवैध प्रवासियों से जुड़े मुद्दों को प्राथमिकता से निपटने को तरजीह दी गई है। पंडितों को अपने पूर्वजों की भूमि पर पूर्ण गरिमा, सुरक्षा और सुनिश्चित आजिविका के साथ पुनर्वास का भरोसा जताया है। प्रधानमंत्री कार्यालय से जो छनकर समाचार आ रहे हैं, उनसे भी पता चल रहा है कि मोदी ने इन दोनों मसलों पर काम षुरू कर दिया है। अब जम्मु कश्मीर की उमर अब्दुल्ला सरकार को भी राज्य में ऐसा महौल बनाने की जरूरत है कि पंडितों का भयमुक्त पुनर्वास संभव हो। उमर, फारूख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती कई मर्तबा मीडिया में बयान जारी करके पंडितों के पलायन पर अफसोस और वापसी न होने पर दुख व चिंता जता चुके हैं। लिहाजा इस पुनर्बहाली का सबको एक सुखद अवसर मानकर सम्मान करने की जरूरत है।

अभिभाषण के तीन एस- मूल मंत्र है। स्किल यानी कौशल विकास, स्केल मसलन व्यापकता और स्पीड यानी गतिशीलता। विकास की गति का यह पहिया चहुंओर जब घूमेगा, तभी दिखाए सपनों को साकार किया जा सकता है। एक भारत श्रेष्ठ भारत और सबका साथ सबका विकास, भारत की अखंडता, संप्रभुता व जीविका से जुड़े जो नए नारे मोदी ने दिए हैं, वे यदि वाकई आने वाले पांच सालों में कार्यरूप में परिणत होते दिखाई देते हैं तो निश्चित है, देश की न केवल दशा और दिशा बदलेगी, बल्कि भारत को अखंड बनाए रखने का मूल-मंत्र विविधता में एकता भी एकसूत्र में पिरोया दिखेगा।

यह अच्छी बात है कि मोदी जाति, धर्म, संप्रदाय जैसी विभाजित दृश्टि से देशवासियों को नहीं देख रहे हैं, बल्कि देश की समूची सवा अरब आबादी की हिस्सेदारी से जताई आकांक्षाओं को पूरी करने की बात कह रहे हैं। यही कारण है कि मोदी सरकार के प्रति मुस्लिम भी समाचार चैनलों की चर्चा में आश्वस्त दिखाई दे रहे हैं। यह भरोसा बैठना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि मोदी संघ की वैचारिक पाठशाला से संस्कार लेकर आए हैं और 2002 के गोघरा दंगों के दागों के अतीत से राजनीतिक पूर्वग्रही उन्हें मुक्त नहीं होने दे रहे। लिहाजा यह अभिभाषण बड़ी सूझ-बूझ से तैयार किया लगता है। सरकार अनुसूचित जनजातियों के लिए जहां बनबंधु कल्याण योजना शुरू करेगी, वहीं देश की प्रगति में सभी अल्पसंख्यकों को बराबरी का हक देगी। इस मकसदपूर्ति के लिए सरकार अल्पसंख्यक समुदायों को आधुनिक एवं तकनीकी शिक्षा की सुविधाएं हासिल कराएगी। मदरासों का भी आधुनिकीकरण किया जाएगा। जिससे मुस्लिम किशोर व युवा कुरान के साथ कंप्यूटर ज्ञान भी प्राप्त कर सकें। मोदी अपने साक्षात्कारों में कहते भी रहे हैं कि वे मुस्लिम युवाओं के एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में कंप्यूटर देखना चाहते हैं। लेकिन अपनी हालत सुधारने की दिशा में मुस्लिमों को थोड़ा रूढ़ियों से मुक्त होकर परिवार नियोजन अपनाने की जरूरत है, जिससे उनके बच्चे शिक्षा और स्वास्थ्य में अव्वल रहे। अकेले सरकार के बूते किसी जाति या समुदाय का पूरी तरह कल्याण नहीं हो सकता। ऐसा यदि संभव हुआ होता तो आदिवासियों का कल्याण हो गया होता। विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और आजीविका के तमाम उपाय करने के बावजूद यह जनजाति आजादी के 67 साल बाद भी विकास के तय मानकों के हिसाब से निचले पायदान पर ही ठहरी हुई है।

अभिभाषण में जिस तरह से जनजाति और अ्रल्पसंख्यक वंचितों की चिंता की गई है, उससे साफ है कि गरीबी उन्मूलन के पूर्व संप्रग सरकार की कार्य योजनाओं को नई सरकार जारी रखेगी। फिर चाहे वह मनरेगा हो, खाद्य सुरक्षा हो, या फिर घरेलू गैस और उर्वरकों पर दी जा रही सब्सिडी हो। ये रियायतें दी जानी इसलिए भी जरूरी हैं, क्योंकि हमने आधुनिक, औद्योगिक और पर्यावरण सरंक्षण के नाम पर एक बड़ी आबादी, जो सीधे प्रकुति से आजीविका के संसाधन जुटाती थी, उसे कानूनी तौर से प्रतिबंधित कर दिया है। इसलिए इन्हें विकास परियोजनाओं से जोड़ने की जरूरत तो है ही, इन्हें दी जाने वाले खाद्यान्न में रियायतें भी हर हाल में मिलती रहनी चाहिए। गांव और शहर के बीच की खाई तभी पटेगी। गांव के पुनरूद्धार से ही श्रेष्ठ भारत की अवधारणा फलीभूत होगी। जो देश इंडिया बनाम भारत में तब्दील कर दिया गया है, उसमें एकरूपता गरीबी उन्मूलन से ही आएगी।

अभिभाषण में तेज गति की रेलें चलाने के साथ, हीरक चतुर्भज रेल परियोजना शुरू करने की बात कहीं गई है। मोदी ने शायद यह प्रेरणा अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की सड़क चतुर्भज योजना से ली है। सभंवतःइस परियोजना के तहत पूर्वोत्तर के अरूणाचल, मेघालय और त्रिपुरा राज्यों को रेल से जोड़ने की है। देश के इन दूरांचलों में पहुंच आसान बनाने के लिए रेल के विस्तार की नई शुरूआत यहीं से होनी चाहिए। तकनीकि और प्रबंधन शिक्षा के लिए जो आईआईटी और आईआईएम खोले जाएं, उनकी शुरूआत भी पूर्वोत्तर से ही करना बेहतर होगा। जिससे ये राज्य अपने को षेश भारत, भारत से अलग न समझें और अतुल्य भारत में भागीदारी करने लग जाएं। लेकिन इससे पहले सरकारी षिक्षा में प्राथमिक,माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक शिक्षाओं को सुधारा जाना जरूरी है। प्रारंभरिक शिक्षा के ये माध्यम नहीं सुधारे गए तो स्थानीय गरीब और वंचितों को उच्च तकनीकी शिक्षा का लाभ मिलने वाला नहीं है।

यह अच्छी बात है कि इस कार्य योजना में आतंकवाद चरमपंथ, सांप्रदायिक दंगों और जघन्य अपराधों को एक ही धरातल पर रखा है। इससे यह संदेश गया है कि मुकादमा व्यक्ति की हैसियत का आकलन करके दर्ज नहीं होगा। लेकिन पुलिस तंत्र में सुधार किए बिना कमजोर फरियादी को न्याय दिलाना मुश्किल है। इस हेतु सुप्रीम कोर्ट आठ साल पहले दिशा-निर्देश जारी कर चुकी है, लेकिन केंद्र समेत किसी भी राज्य सरकार ने इन निर्देशों पर अमल नहीं किया। मोदी को केंद्रीय गृह मंत्रालय के साथ भाजपा शासित राज्यों में तो इन सिफारिशों पर तत्काल अमल कराने की जरूरत है।

देश में एक सौ नए शहरों का विकास भाजपा के चुनावी घोषणा-पत्र में शामिल था, यह अब राष्ट्रपति के अभिभाषण में भी है। अनियंत्रित शहरीकरण फायदे से कहीं ज्यादा परेशानियों का सबब बन रहा है। विडंबना यह कि शहरों में लगी खेती की जमीन शहरीकरण की बलि चढ़ती जा रही है। इस कारण खेती का रकबा लगतार घट रहा है, जो निकट भविष्य में अनाज का संकट पैदा कर सकते है। सौ नगरों के शहरीकरण से अच्छा है, देश में दस हजार ग्रामों को उच्च शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि आधारित उद्योग और आधुनिक तकनीक से जोड़ने के उपाय किए जाएं। ऐसा होता है तो गांवों से पलायन थमेगा और शहर बेजा आबादी के दबाव से मुक्त रहेंगे। फिलहाल ये सब दावे हसीन सपने हैं, इन पर अमल के लिए धनराशि कैसे और कितनी उपलब्ध कराई जाती है, यह तो अगले महीने आने वाले रेल और आम बजट के प्रावधानों से पता चलेगा। लेकिन मोदी इच्छाशक्ति के घनी हैं, इसलिए उनसे अच्छे बजट की ही उम्मीद है।