बड़ा सवाल ; दिल्ली में हुई घटना का जिम्मेदार कौन, जवाब ; हम सब..

सुशील कुमार ‘नवीन’

26 जनवरी को दिल्ली में जो हुआ। गलत हुआ। ऐसा नहीं होना चाहिए था। किसानों का यह तरीका न्यायसंगत नहीं है। किसान नहीं, ये तो खालिस्तानी हैं। उपद्रवी हैं। आंतकवादी हैं। गुंडे हैं। विपक्षी दलों के कार्यकर्ता हैं। पड़ौसी मुल्क द्वारा प्रायोजित हैं। और भी न जाने क्या-क्या। मंगलवार दोपहर बाद यदि कुछ चर्चा में है तो बस यही। हर कोई विश्लेषक बन बड़े-बड़े व्याख्यान देने को उतावला दिख रहा है। फर्क इतना ही है कोई समर्थन में बोल रहा है तो कोई विरोध में।

अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर इस घटना का जिम्मेदार कौन। इस बड़े सवाल का जवाब छोटा सा है। ‘हम सब’ इसके जिम्मेदार हैं। आप भी सोच रहे होंगे। भला ये क्या बात हुई। ‘हम’ इसके जिम्मेदार क्यों। ‘हम’ तो अपने घर पर थे। घटना दिल्ली में हुई फिर ‘हम’ जिम्मेदार क्यों। ठीक है,आप दिल्ली नहीं गए। फिर ये इतनी भारी संख्या में भीड़ वहां कैसे पहुंच गई। इतने दिनों से इनके रहने, खाने-पीने की व्यवस्था करने वाले कौन हैं। रजाई-गद्दे, साग सब्जी, दूध-लस्सी उन तक कौन पहुंचा रहा था। हम सब में आप अकेले थोड़े ही है। सामान्य से लेकर सत्ता और तंत्र सब इसमें शामिल हैं। दिल्ली आने का निमंत्रण व्यक्तिगत रूप से तो किसी को नहीं दिया गया था। फिर गांव-गांव से किसान ट्रैक्टर लेकर दिल्ली कैसे पहुंच गए। इन्हें पहले ही रोका क्यों नहीं गया। दिल्ली की सीमाओं पर इतना बड़ा जमावड़ा एक दिन में तो हुआ नहीं। देश की गुप्तचर संस्थाएं क्या सोई पड़ी थी जो ऐसे हालात होने का अनुमान नहीं कर पाई। सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी जानता है कि भीड़ की कोई दिशा नहीं होती। नेताओं की भी जब तक ही चलती है जब तक भीड़ सिर्फ उन्हीं के विचारों से प्रभावित होने वाली हो। जब भीड़ में उनसे इतर लोग आने शुरू हो जाते हैं तो विचारधारा भी बदलनी शुरू हो जाती है। यहां भी ऐसा ही हुआ है। किसान नेताओं ने दिल्ली आने का आह्वान तो कर दिया पर आने के बाद कैसे रहना है, ये समझा नहीं पाए। जोश-जोश में होश खोने वालों से हुई शुरुआत दो माह के शांतिपूर्ण आंदोलन को प्रभावित कर गई।

हर बार 26 जनवरी और 15 अगस्त पर दावे किए जाते हैं कि सुरक्षा इतनी चॉक चौबन्ध है कि बिना मंजूरी परिंदा भी पर नही मार सकता। फिर भीड़तंत्र को बेकाबू क्यों होने दिया गया। बॉर्डर से लाल किला तो बहुत दूर है। उस तक पहुंचना सहज थोड़े ही है। प्रशासनिक प्रबंधों की लापरवाही को भी इस घटना में कम उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।

तिरंगा देश की आन बान शान का प्रतीक है। इसके बिना हम कुछ नहीं है। अपने अंदर झांककर देखें कि खुद कितना इसका सम्मान करते हैं। हर 26 जनवरी, 15 अगस्त को कुछ समय के लिए इसे हाथ में रख अपने आपको सच्चा देशभक्त साबित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते। परेड खत्म हुई, या समारोह खत्म हुआ तब वो तिरंगे कहां जाते हैं।सड़कों पर बिखरे मिलते हैं जो अगले दिन कूड़े के ढेरों की शोभा बनाते नजर आते हैं। तिरंगे का सबसे बड़ा सम्मान दिल में है जो कभी कम नहीं हो सकता।

मंगलवार को जो हुआ,निश्चित रूप से नहीं होना चाहिए था। समय अब इस तरह की पुनरावृत्ति होने से रोकने पर विचार करने का है। हम सब को इस पर विचार करना होगा। आंदोलन अपनी जगह है और शांति, कानून व्यवस्था अपनी जगह। हिंसा कोई समाधान नहीं। बातचीत से ही हल निकलेगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here