राजनीति

नई पहचान के साथ नई राह पर बिहार

-डॉ. मनोज जैन

फरवरी 1992 की बात है जब मैं विवेकानन्द भारत परिक्रमा दल के एक सहयात्री के रुप में भारत यात्रा पर था। बंगाल और बिहार की सीमा रेखा पर बसे हुये संथाल परगना के एक छोटे से गांव जामताड़ा का वह दृश्य मुझे आज भी याद है आधुनिक जीवन की सभी सुबिधाओं से महरुम जामताड़ा में रात्रि में दाल, चावल, दो सब्जी, चटनी, अचार, पापड़, खीर और रोटी के साथ लालटेनों की टिमटिमाती रोशनी में भोजन करते समय हमें अनुमान ही नहीं था कि हम किस प्रकार के गांव में ठहरे हुये हैं। सुबह जब हमनें जामताड़ा की विपन्नता को अनुभव किया तब हमें पता चला कि पांच हजार की आबादी बाले जामताड़ा के हर व्यक्ति ने एक एक रुपया देकर विवेकानन्द भारत परिक्रमा दल के भोजन एंव आवास की व्यवस्था की हैं। स्वयं अभावों में जीकर समाज के लिये कार्य करने का ऐसा सामूहिक उदाहरण मेरी जिन्दगी में पहला था।

सारे देश की यात्रा करते हुये सबसे अधिक विरोधाभासी अनुभव हमें बिहार में ही हुये थे। जहां सारे देश में युवा ड्रग्स, डांस और डॉल में उलझे हुये दिख रहे थे तो बिहार में युवा बर्ग राजनैतिक बर्जनाओं की बेडियों को तोडने पर उतारु दिख रहा था। यही कारण था कि जिस दिन हम मगध विश्वविद्यालय पहुचें थे उसके पिछले ही दिन जहानाबाद में 43 लोगों की गला रेत कर हत्या कर दी गयी थी। इस घटना से सारा बिहार ही बन्द था। मगध विश्वविद्यालय में भी छात्र आन्दोलन की गरम हवा बह रही थी। हमारा अनुमान था कि ऐसे उत्तेजनापूर्ण माहौल में किसी प्रकार की अनहौनी न हो जाये इसलिये चुपचाप निकल लेना ही ठीक है। परन्तु वहां न केवल सभा हुयी अपितु छात्रों ने स्वामी विवेकानन्द के विचारों के आलोक में वर्तमान राजनैतिक चुनौतियों पर समसामायिक प्रश्न भी पूछे।

उक्त दौनों घटनाओं को देख कर मन बार बार यही प्रश्न मथता था कि जिस प्रान्त की युवा पीढी इतनी अधिक जागरुक तथा सामाजिक सहयोग की भावना रखने वाली है उसे कोई मसखरा कितने दिनों तक मूर्ख बना कर रख सकता है? जल्दी ही यह प्रदेश भी राजनैतिक तमस को चीर कर उजाले में निखर कर आयेगा। और सदियों से देश और दुनियां को मानवता और शान्ति की राह प्रशस्त करने बाला यह प्रदेश अपनी पहचान को पुन: स्थापित करेगा। बिहार में प्रतिभाओं की कमी कभी नहीं रही। देश की सर्वोच्च प्रशासनिक सेवा में बिहार कैडर को देख कर ही इसका अनुमान लगाया जा सकता है। देश के सर्वांच्च मेंडीकल संस्थानों में बिहार के डाक्टरों को देख कर आसानी से यह अंदाज लग जाता है कि यह उर्वर मस्तिष्क की भूमि है। देश भर की बैकों सर्वाधिक कर्मचारी बिहार के ही है। परन्तु यह सब व्यक्तिगत प्रतिभायें है। बिहार ने अपनी सामूहिक प्रतिभा का परिचय अब दिया है जब उसने अपनी कुल जमा ढाई फीसदी जातिगत आंकडों बाले कुर्मी समुदाय के नीतिश कुमार को सारे जातीय समीकरणों के ऊपर स्थापित करते हुये दोबारा सत्ता सौंपी है। बिहार की जनता ने पिछले पांच वर्षों में बिहार के उपर बने हुये सभी चुटकलों को पूर्व मुख्यमंत्री के मसखरेपन की भांति हवा में उड़ा दिया है। और आज देश का सर्वाधिक प्रगति की ओर अग्रसर राज्य बन गया है। आज जिस प्रकार ओबामा अमेरिकी युवाओं को सावधान करते हुये कहते है कि अमेरिकी युवाओं जाग जाओ, नहीं तो भारतीय युवा तुम्हारी सभी नौकरियों पर काबिज हो जायेंगे। मैं उस दिन को देख रहां हूं कि आगामी दस बर्षो में बिहार, शिक्षा के क्षेत्र में देश में सबसे उपरी पायदान पर स्थापित होगा यह तथ्य स्थापित करने के लिये केबल पटना के आनन्द कुमार का ग्रुप 30 का उदाहरण ही काफी है, जिसने गत वर्षों से कीर्तिमान बना कर रखा हुआ है। अब जब कानून ब्यवस्था की स्थिति अच्छी है। बच्चे अपहरण के भय से दूर विद्यालय जा सकते है तो आने वाले समय में ऊर्वर मस्तिक का बिहार देश के बौद्धिक नक्शे पर पुन: स्थापित होगा और उसका सर्वाधिक श्रेय नीतिश कुमार और उनकी कार्यप्रणाली को जायेगा। जिसके कारण उन्मादी अपराधियों की पहचान खत्म की जा सकी है।

(लेखक जैन महाविद्यालय, भिण्ड में राजनीति विज्ञान के प्राध्यापक हैं।)