भाजपा को यह समझना चाहिये कि जनमानस कांग्रेस के खिलाफ है, लेकिन जब तक वह मजबूत विकल्प और आक्रमक भूमिका में नहीं होगी, मतदाताओं का भरोसा नहीं जीत सकेगी। उसे अब आपसी एकजुटता बनाकर मजबूत होकर जनता के लिये जनता के सामने आना होगा।
बड़े खेद के साथ लिखना पड़ता है कि भाजपा के वयोवृद्ध जिन्नावादी नेता आडवाणी जी अपनी महत्वाकांक्षा के कारण लगातार कुछ न कुछ ऐसा संदेश समाज को देते आ रहे है जिससे भाजपा के लिये आने वाले चुनाव अधिक कष्टकारी हो सकते है।
आज जब दूर-दूर तक पूरे राष्ट्र में गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को भाजपा के अतिरिक्त अन्य दलों के भी कार्यकत्र्ता व समर्थक सुर से सुर मिलाकर राष्ट्रीय नेतृत्व सौपना चाहते हैं तो फिर भाजपा के वयोवृद्ध नेता क्यों इसके विरुद्ध जाना चाहते है। व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा से बड़ी पार्टी व पार्टी से बड़ा देश होता है परन्तु आज हमारे राष्ट्रीय नेताओं में समर्पण व देशभक्ति की भावनाओं का अभाव होता जा रहा है।
अब जब घोटालों से घिरने के कारण भ्रष्टाचार की दलदल में धंसती जा रही सोनिया की सरकार जनता व राष्ट्र की सुरक्षा व विकास पर पूरी तरह नकारा प्रमाणित हो रही है और साहसी, धैर्यवान, विचारवान एवं प्रखर राष्ट्रभक्त श्री नरेन्द्र मोदी के रुप में एक ज्योति की किरण प्रकाशमान हो रही हो तो अन्धकार को दूर करने के लिये ऐसी ज्योति को जगमग करके उजाला फैलाने का दायित्व हम सबको मिलकर निभाना चाहिये।
हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि आज अगर श्री मोदी को प्रचार अभियान के साथ-साथ राष्ट्रीय नेतृत्व का दायित्व भी सौंपा जायेगा तो जो सर्वे विभिन्न एजेंसियों द्वारा दिये जा रहे है कि यदि मोदी को भाजपा प्रधानमंत्री के तौर पर जनता के सामने पेश करती है तो उसे 60 से 70 सीटों का फायदा होगा जबकि कार्यकत्र्ता मानते है कि पार्टी को 100 के आस-पास सीटें अधिक मिलेंगी। फिर भी इतना सबकुछ देखते हुए आडवानी जी क्यों अपनी जिद पर अडे हुए है यदि पार्टी मोदी जी को प्रधानमंत्री के तौर पर नहीं उतारेगी तो उसको बहुत बड़ा नुकसान उठाना पडेगा। यदि आज नहीं तो कभी नहीं वाली स्थिति इस समय भाजपा के सामने है।
विनोद कुमार सर्वोदय
तिवारी जी क्या आप लेख की विषय वस्तु से भटक गए हैं… या… आप क्या कहना चाह रहे है.. वो समझाने में असमर्थ हैं…… आप मोदी की सरकार केंद्र में चाहते हैं… या नहीं??
भाजपा और कांग्रेस की नीतियाँ आर्थिक आर मंहगाई को लेकर एक जैसी है इसलिए नाटो भाजपा सत्ता मा skti है और ना हिमोदी के कारण उसको ओऎ घटक मिल्ष्केग.
भा ज पा की अंदरूनी राजनीती व परस्पर चिटिओं की तरह टांग खींचने की प्रवर्ती उसे कुछ भी नहीं करने देगी.यह भी देश का दुर्भाग्य है कि हमारे यहाँ विरोधी दल का कर्तव्य यह theek से नहीं निभा रही,और सशक्त विकल्प नहीं बन पाती.भा ज पा की यह भी कमजोरी है कि जब यह सत्ता के निकट पहुँचने को होती है,तो इसमें बिखराव होना शुरू हो जाता है.इसलिए अभी इससे ज्यादा उम्मीद करना मुनासिब नहीं होगा.