भाजपा जागे और भाजपाई चेतें

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मनोज ज्वाला
हमारे देश के मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ व राजस्थान सहित पांच राज्यों
में हुए विधान-सभा चुनावों के जो अप्रत्याशित परिणाम आए हैं, उनकी चर्चा
अमेरिका में भी हो रही है । वहां एक प्रमुख अखबार- न्यूयार्क टाइम्स में
इन चुनाव-परिणामों की एक समीक्षा प्रकाशित हुई है , जिसका अनुवाद पठनीय
है ।
“भारतीयों के मतदान का तरीका इस कदर साफ है कि उससे वर्तमान मोदी-सरकार
को सबक सीखना चाहिये…भारतीय मतदाता वित्तीय घाटा को नही समझता और उसे,
कोई मतलब नही कि यह 2.4% रहे या 3.4% । उन्हें सब्सिडी और फ्री-बी (मुफ्त
देने की योजना) की भी समझ नही । उन्हें तो ये भी नही पता कि सब्सिडी और
फ्री-बी एक उधार है जिसे एक दिन कोई न कोई चुकायेगा ही । भारतीय जनता को
राष्ट्रीय विकास दर से कोई मतलब नहीं, भले ही पिछले चार सालों में 3.8 से
बढ़कर 7.4 हो गया, जो कि अमरीका, ब्रिटेन जापान आदि देशों से आगे है ।
भारतीय लोग हमेशा यह मांग करते रहते हैं कि उन्हें सिर्फ प्याज और दाल
ही नही, डीजल पेट्रोल भी सस्ती मिलनी चाहिये और किसानों को भी अच्छी कीमत
मिलनी चाहिये । भारतीयों को पुरानी आदते सुधारने की बात मत कहिये, उनकी
नजर में ये सरकार का काम है कि हर चीज वही बदले । भारतीयों को दूरगामी
मुद्दों से कोई लेना देना नही, उन्हें हर चीज आज ही चाहिये, और आज ही
नही, अभी के अभी चाहिये । भारतीयों की स्मरण-शक्ति कमजोर है और उनका
दृष्टिकोण बहुत ही संकीर्ण होता है । वो पिछला सब कुछ भूल जाते हैं और
नेताओं के पिछले कुकर्मो को माफ कर देते हैं । वो ढीठई से जातिवाद पर वोट
करते है और जातिवाद एक मुख्य शत्रु है जो युवाओं का उत्थान नही करता
बल्कि लोगों को बांटकर रख देता है… और चीन और पाक जैसे देश, भारतीयों
को ही जातिवाद फैलाने का हथियार बनाते हैं क्योंकि, दोनों ही अपने
जी०डी०पी० के लिये भारतीय बाजार पर निर्भर हैं । भारतीय रक्षा तंत्र
पिछले पांच सालों में बहुत मजबूत हुआ है पाकिस्तान और खाडी देशों के
बनिस्बत । चूंकि ये देश, भारत को शासन का निर्देश नही दे सकते, इसलिये वो
विध्वंसकारी संगठनों को अरबों-खरबों की फंडिंग करते है ताकिभारत को
बर्बाद किया जा सके ।ऐसे में
मोदी ही इसे कूटनीतिक युद्ध को जीत सकते हैं । किन्तु
दुख है कि ये बात, भारतीय जनता ही नहीं समझती । अगर मोदी अगले पांच
महीनों तक दूरगामी विकास-योजनाओं को क्रियान्वित करने मे लगे रह जाते हैं
तो, वो 2019 खो बैठेंगे । फिर एक मृत और गिरा सिपाही देश के लिये कुछ नही
कर सकता । अतएव उन्हें, अगले पांच साल की सरकार बनाने के लिये हर हाल में
कठोर बनकर जिंदा रहना होगा । अब उन्हें बचे पांच महीनों में राजनीतिज्ञ
बनना पड़ेगा । जनता अगर सस्ता पेट्रोल डीजल चाहती है, तो दीजिये उसे ।
अगर किसान कर्जमाफी चाहते है, तो निराश मत कीजिये उन्हें । वे ‘सबका साथ
सबका विकास नही जानते, वे सिर्फ अपने पॉकेट में आये ‘गांधी’ को जानते हैं
। हम, मोदी को सलाह देंगे कि अगले पांच महीने ‘स्टेट्समैनशि’ छोड़िये और
‘पॉलिटिशियन’ बनिये । 2019 की जीत के बाद ही स्टेट्समैन बनिये, क्योंकि
भारत का विकास ‘स्टेट्समैन मोदी’ से ही हो सकता है, ‘पॉलिटिशियन मोदी’ से
नही” ।
जाहिर है न्यूयार्क टाइम्स द्वारा की गई उपरोक्त समीक्षा में
हमारे प्रधानमंत्री को राजपुरुष बनने के बजाय राजनीतिज्ञ बनने की सलाह दी
गई है । उस अखबार का यह आकलन और सुझाव सत्य व उपयुक्त है, किन्तु
पर्याप्त नहीं है । क्योंकि उस हार का एक सबसे अहम कारण जो रहा उस ओर
अखबार के उस स्तम्भकार का ध्यान गया ही नहीं । ये उनाव-परिणाम नरेन्द्र
मोदी के यशस्वी नेतृत्व से चमत्कृत व अतिआत्मविश्वासपूर्ण आत्ममुग्द्धता
से ग्रसित भाजपा को झकझोरने-जगाने वाले और उसके नेताओं को चेताने वाले
हैं । विपरीत झंझावातों में भी गन्तव्य की ओर जाती हुई नैया अगर अनुकूल
धारा में आकर डूब जाए , तो निश्चित जानिए कि ऐसा होने के पहले नाविक या
तो निद्रा-मग्न होगा या किसी कल्पना-लोक में खोया होगा । भाजपा के साथ
यही हुआ । इसके नेतृत्वकर्तागण मतदाताओं की मनसिकता को पढने के बजाय
स्वयं के प्रति अतिआत्मविश्वास व आत्ममुग्द्धता की निद्रा में ही डुबे
हुए थे । आज से एक दशक पहले जब देश की केन्द्रीय सत्ता पर आसीन थी
कांग्रेस छायी हुई थी तथा भाजपा-विरोधी कांग्रेसी हवा पूरे जोर से चारों
तरफ बह रही थी और गुजरात-दंगा व भगवा-आतंक नामक कांग्रेसी-वामपंथी
दुष्प्रचार की बाढ सी आयी हुई थी तब उन तमाम प्रतिकूलताओं से घिरी होने
पर भी जो भाजपा जिस मध्यप्रदेश में कांग्रेस को धूल चटा कर सत्तासीन होती
रही वही भाजपा नरेन्द्र मोदी के यशस्वी नेतृत्व में देश भर से कांग्रेस
का सफाया कर चुके होने और चारो तरफ स्वतःस्फूर्त ‘कांग्रेस-मुक्त भारत’
की आंधी से अनुकूलता कायम हो जाने के बावजूद इन चुनावों में सत्ता से
बेदखल हो गई तो इसे और क्या कहा जाए ? भाजपा की कमान और लगाम थामे
केन्द्रीय नेतृत्वकर्ताओं को उनके कतिपय महत कार्यों की प्रतिक्रिया से
निर्मित हालातों के बावत वैसे तो देश भर में फैले इसके हितचिन्तकों
द्वारा आगाह किया जाता रहा था, किन्तु विशेषकर इन तीनों राज्यों में
पिछले कुछ महीनों से वहां के क्षुब्ध लोगों द्वारा विभिन्न तरीकों से
आन्दोलन भी चलाये जा रहे थे और विविध माध्यमों से पार्टी के
शीर्ष-नेतृत्व को यह संदेश दिया जा रहा था कि वह उन मुद्दों व
जनाकांक्षाओं को नजरंदाज न करे , जिनकी बदौलत केन्द्र की सत्ता हासिल
हुई है और साथ ही यह भी कि कांगेसी शासन की जिन कारगुजारियों के कारण देश
का और विशेषकर बहुसंख्यक समाज का बंटाधार होता रहा है उनका उन्मूलन अगर न
कर सके तो कम से कम उनका संरक्षण-संवर्द्धन तो कतई न करे । अयोध्या में
मन्दिर-निर्माण, जम्मू-कश्मीर से धारा ३७० का निरस्तीकरण, समान नागरिक
कानून का प्रावधान तथा गौ-वध निषेधीकरण और हिन्दू-हितों का संरक्षण ये
‘पंच-तत्व’ ही भाजपा को भारत के अन्य राजनीतिक दलों से भिन्न बनाते हैं ।
ये ही वे पांच तत्व हैं, जो देश के बहुसंख्यक समाज को भाजपा की ओर
आकर्षित करते रहे हैं । सन २०१४ के संसदीय चुनाव में बहुसंख्यक समाज
इन्हीं पांच आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए भाजपा को पूर्ण बहुमत के साथ एक
मजबूत सरकार की शक्ति प्रदान किया था । इस बहुसंख्यक समाज के व्यापक
समर्थन से भाजपा सिर्फ केन्द्र में ही नहीं, बल्कि देश के विभिन्न
राज्यों मंा भी लगातार इस कदर सत्तारूढ होती रही कि देश की राजनीति में
‘कांग्रेस-मुक्त भारत’ का नारा सहज ही गूंजित हो उठा तो ऐसा प्रतीत होने
लगा कि कांग्रेस अब तो इतिहास की सामग्री बन कर रह जाएगी ।
किन्तु केन्द्र की सत्ता में आने के बाद भाजपा-नेतृत्व अपने
उपरोक्त पांच-तत्वों को क्रियान्वित करने की तत्परता बरतने के बजाय पिछले
सत्तर सालों में कांग्रेसी सरकारों द्वारा कायम की गई आर्थिक सामाजिक
शासनिक सामरिक बदहाली दूर करने की बहुविध योजनाओं के क्रियान्वयन को ही
प्राथमिकता देने में जुट गई । फलस्वरुप उपरोक्त पांचों जनाकांक्षायें
टलती रहीं । अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनियम विषयक न्यायिक फैसले को पलट कर
पूर्व के तत्सम्बन्धी कानून को और सख्त बनाते हुए पुनः कायम कर देने और
अयोध्या-मामले पर न्यायिक फैसले की प्रतीक्षा करने के निर्णय से
बहुसंख्यक समाज का एक तबका भाजपा से इस कदर नाराज हो गया कि वह चुनाव में
किसी भी उम्मीद्वार को मत न देने के विकल्प को चुनने (नोटा) का आन्दोलन
चलाने लगा । इन तीनों राज्यों में इस आन्दोलन की वजह से ही भाजपा को हार
का सामना करना पडा । हार के एक और प्रमुख कारण की चर्चा करना यहां जरुरी
है । वह यह है कि भाजपा शासित प्रदेशों में ऐसी आम शिकायत मिलती रही है
कि उसके उसके विधायक-सांसद व नेता-मंत्री पार्टी-कार्यकर्ताओं की वाजीब
अपेक्षाओं-जरुरतों को भी पूरा न अहीं करते और उनसे दूरी बनाए रखते हैं ।
चुनाव में ऐसे नाराज कार्यकर्ताओं ने भी अपनी खुन्नश निकाली , इससे इंकार
नहीं किया जा सकता । इन तमाम कारकों से न्यूयार्क टाइम्स की उपरोक्त
टिप्प्णी को मिला देने पर यही निष्कर्ष निकलता है कि आगामी संसदीय चुनाव
के मद्दे-नजर भाजपा जागे और भाजपाई चेतें , ताकि गन्दी नीति, भ्रष्ट
नेता व खाऊ-पकाऊ नीयत से ग्रसित पार्टी पूरे देश को ‘पप्पू’ का खिलौना
बनाने की कुत्सित मंशा को पूरा करने में सफल न हो सके ।

1 COMMENT

  1. मनोज ज्वाला जी के लगभग अन्य सभी लेखों में से वर्तमान राजनीतिक स्थिति पर लिखा प्रस्तुत निबंध भारतवासियों के लिए चेतावनी है| न्यू यार्क टाइम्ज़ में दी गयी तथाकथित समीक्षा के अतिरिक्त—बिना अस्तित्व समीक्षा को झूठ बताया गया है—केवल भाजपा को ही नहीं बल्कि सभी भारतवासियों जिनमें राष्ट्रवादी व अन्य संशयी व भयभीत सरलमति लोग भी सम्मिलित हैं, अपने भविष्य का सोचें| हमें विभिन्न राजनैतिक दलों में भले-बुरे की पहचान होनी चाहिए| एक ओर युगपुरुष मोदी जी के नेतृत्व में राष्ट्रवादी दल भाजपा है ओर दूसरी ओर अंधकारमय खाई है| परिवार की भांति भाजपा की अगुवाई में राष्ट्रीय शासन से मिल कार्य करते उसे सुधारा जा सकता है लेकिन अंधकारमय खाई में गिर फिर कभी उबरने का विचार तक विद्रोह बने दंडित किया जा सकता है| इतिहास को याद रखना भले ही कठिन हो लेकिन अपने परिवार—आज राष्ट्रवादी भाजपा ही परिवार जैसा सुख व सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम है—के विपरीत अन्य किसी राजनैतिक दल के पीछे जाना केवल अंधकारमय खाई में गिरने जैसा होगा|

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