गुजरात में मोदी जीते या भाजपा

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आशीष वशिष्ठ

गुजरात में नरेन्द्र मोदी की तीसरी बार ताजपोशी हुई है और राज्य में लगातार पांचवी बार भाजपा जीती है. चुनाव में भाजपा को 182 विधानसभा सीटों में 116 हासिल हुए हैं, जबकि कांग्रेस को 60 पर संतोष पड़ा है. इस बार भाजपा को 2007 चुनावों के मुकाबले 1 सीट कम आई है, यानी पिछले चुनाव में भाजपा को 117 सीटें थीं. तमाम विरोधों, आलोचनाओं, संशयों और कयासों की मध्य मोदी हैट्रिक लगाने में कामयाब रहे हैं, लेकिन अहम सवाल यह है कि गुजरात में मोदी जीते या भाजपा.

अगर देखा जाए तो पूरे चुनाव प्रचार अभियान में मोदी हावी रहे. उन्होंने स्वयं को पार्टी से ऊपर रखा कुल मिलाकर मोदी ने गुजरात की लड़ाई अकेले लड़ी. असल में मोदी एक साथ कई मोर्चो पर लड़ाई लड़ रहे थे. विरोधियों के अलावा मोदी को बड़ी चुनौती अपनी पार्टी से मिल रही थी. कांग्रेस के पूरे संगठन और केंद्र सरकार से मोदी अकेले ही लड़ते नजर आए. न तो मोदी ने जरूरत समझी और न ही भाजपा और संघ परिवार के बड़े नेताओं ने भी गुजरात सरकार के बचाव में अपनी तरफ से ताकत झोंकी. भाजपा के केंद्रीय नेताओं की जनसभाएं भी सिर्फ औपचारिकता रहीं.

अब चूंकि मोदी गुजरात का किला फतह कर चुके हैं ऐसे में जीत का श्रेय निश्चित तौर पर उन्हें मिलेगा. चुनाव नतीजे आते ही मोदी की प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी को लेकर पार्टी के भीतर और बाहर बहस का दौर शुरू हो चुका है. दरअसल, गुजरात चुनाव नरेंद्र मोदी की वजह से ऐतिहासिक हो गया था.

मोदी की जगह कोई और होता तो ये सवाल उतना महत्वपूर्ण नहीं होता, लेकिन मोदी के कारण गुजरात के चुनावी नतीजे राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय असर भी डालेंगे. क्योंकि गुजरात चुनाव नतीजे को राष्ट्रीय स्तर पर उनके प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पर मुहर के रूप में देखा जा रहा है. कुल मिलकार ब्रांड मोदी हिट रहा और पार्टी के भीतर और बाहर उनकी पीएम पद की उम्मीदवारी को लेकर बहस भी शुरू हो चुकी है.

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि चुनाव प्रचार में मोदी की जादूगरी सबके सिर चढक़र बोली. भाजपा और कांग्रेस दोनों ने एक-दूसरे से अपना रूप बदलकर चुनाव लड़ा था. बदले अंदाज में मोदी ने अपने चुनाव अभियान का कांग्रेसीकरण कर दिया तो कांग्रेस ने भाजपा के पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शैली में चुनाव प्रचार किया.

सन् 1970 के बाद जिस तरह कांग्रेस इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा यानी पूरी तरह से व्यक्ति केंद्रित राजनीति की तरफ गई, वैसे ही गुजरात में पूरी तरह राजनीति अब मोदी के इर्द-गिर्द घूम रही है. वहीं, कांग्रेस ने भाजपा की तरह मुद्दे तलाशे और संघ की तरह संगठन ने मैन टू मैन मार्किग यानी प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचने की कोशिश की. गुजरात में मोदी के अलावा कोई मुद्दा पिछले चुनाव में भी नहीं था. लेकिन, मोदी के साथ भाजपा संगठन भी जमीनी रणनीति में दिखाई पड़ रहा था.

इस दफा सब कुछ मोदी हैं. अकेले उन्होंने रोजाना डेढ़ दर्जन सभाएं कीं. हर मतदाता तक सीधे या थ्री डी मीटिंगों के जरिये वह पहुंचे. मोदी ने अपनी सभाओं में पूरा भाषण खुद पर ही सीमित रखा या कांग्रेस के बड़े नेताओं पर हमले किए. जनसभाओं में मोदी जिस प्रत्याशी के क्षेत्र में गए, उसका नाम भी नहीं लिया. उन्होंने कहा भी कि वह उनके काम को यानी मोदी को वोट दें.

भाजपा के स्थानीय नेता भी जिस तरह कांग्रेस में गांधी परिवार के इर्दगिर्द पूरा चुनाव घूमता रहा है, उसी तर्ज पर मोदी पर ही चुनाव केंद्रित किए रहे. सभी ने कांग्रेस की प्रदेश में सबसे कमजोर नब्ज कोई नेता न होने पर प्रहार किया और मोदी की विराट छवि को पेश किया. भाजपा सरकार के बजाय मोदी की कार्यकुशलता, गर्वी गुजरात, विकास पुरुष की छवि को ही भुनाने की कोशिश की. वहीं, कांग्रेस ने इस दफा चुनाव को स्थानीय मुद्दों पर ले जाने की कोशिश की.

साथ ही जिस तरह भाजपा गांधी परिवार को निशाना बनाकर उसे लोकतंत्र में सामंतवादी ठहराती रही है, कांग्रेस ने भी मोदीमय चुनाव पर प्रहार किया. सोनिया गांधी और राहुल ने भी एक व्यक्ति की महत्वाकांक्षा यानी मोदी की स्वेच्छाचारिता पर प्रहार किया. पिछली दफा की तरह उन्होंने चुनाव को मोदी बनाम गांधी परिवार नहीं बनने दिया. कांग्रेस संगठन ने भी करीब एक साल पहले ही हर इलाके का सर्वे कर लिया था. उसके बाद प्रत्येक जिला-नगर पंचायत, तालुका और ग्राम सभाओं तक लोगों से संवाद स्थापित किया. कांग्रेस के लोग पूरे क्षेत्र में फैले रहे और लोगों से सीधे संवाद स्थापित करने की कोशिश की.

गुजरात वासियों के लिए बड़ा प्रश्न यह भी था कि 11 वर्षों से शासन कर रहे मोदी को दोबारा अवसर दिया जाए या नहीं? संभव है कि स्थानीय मुद्दे कुछ-कुछ जगह हावी हों, परंतु गुजरात में पिछले 11 वर्षों के शासन के दौरान मोदी के खिलाफ कोई बड़ा आंदोलन का न होना, न ही किसी प्रकार का सामूहिक विरोध दिखना, इससे साबित होता है कि मोदी विरोधी लहर पर यह मतदान सवार नहीं रहा होगा. मतदान के बढ़े प्रतिशत को सत्ता विरोधी लहर का नाम दिया जा रहा था, कांग्रेस को थोड़ा लाभ हुआ तो जरूर है लेकिन केशुभाई पटेल की जीपीपी कोई चमत्कार नहीं दिखा सकी.

देश और दुनिया में अपनी धमक बरकरार रखने वाले नरेंद्र मोदी के पीछे उनकी कड़ी मेहनत भी है. उन्होंने अपने विरोधियों के समक्ष खुद को कई बार साबित किया है. 2002 की बात करे तो माना जा सकता है कि साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के सहारे मोदी जीत गए, लेकिन 2007 के चुनाव भी मोदी ने अनेक विरोधों-अंतर्विरोधों के बावजूद जीत कर दिखाए थे. चुनाव नतीजे आने के बाद विरोधी खेमे में मायूसी छा गई है.

मोदी की जीत से केवल गुजरात ही नहीं बल्कि देश की राजनीति में बड़ा परिवर्तन देखने को मिलेगा. मोदी आज की तारीख में बीजेपी के सबसे बड़े नेता के रूप में उभर कर सामने आ रहे है. पार्टी में जो जगह आडवाणी और वाजपेयी के कारण खाली दिख रही है उसे भरने में नरेंद्र मोदी पहली कतार में है. ऐसे में यह सवाल लाजमी है कि क्या देश के अंदर अगली राजनीतिक लड़ाई मोदी बनाम राहुल की नहीं बल्कि सेकुलरिज्म बनाम हिंदुत्व की वैचारिक लड़ाई होगी.

भाजपा में भी मोदी के बढ़ते और ऊंचे होते कद से पार्टी के बड़े नेताओं के ब्लड प्रेशर को बढ़ा दिया है. नरेंद्र मोदी की जीत के बाद उनकी मां ने प्रधानमंत्री बनने का आशीर्वाद दे दिया है. मोदी की जीत के बाद भाजपा के निवर्तमान अध्यक्ष नितिन गडकरी के दूसरे कार्यकाल पर भी आशंका के बादल उमडऩे लगे हैं.

इस पद पर मोदी अथवा उनके पसंद के किसी व्यक्ति की ताजपोशी हो सकती है. वाइब्रेंट गुजरात निवेशक सम्मेलन हो या फिर टाटा की नैनो का गुजरात में जाना या फिर ब्रिटिश सरकार का मोदी के नेतृत्व पर मुहर. मोदी हर कसौटी पर खरे उतरे हैं. लबोलुबाब यह है कि गुजरात में मोदी जीते हैं, भाजपा नहीं.

1 COMMENT

  1. desh me heroworship ki prmpra aaj bhi mojood hone ki vjeh se modi bar bar jeet rhe hai lekin desh ka p. m. ve tb tk nhi bn skte jb tk n.d.a. ke sare ghtk razi na ho aur abhi to b.j.p. ke sare neta modi ke naam pr razi nhi hain.

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