हादसों एवं लापरवाही की खूनी सड़कें

0
148
 ललित गर्ग- 
‘दुर्घटना’ एक ऐसा शब्द है जिसे पढ़ते ही कुछ दृश्य आखों के सामने आ जाते हैं, जो भयावह होते हैं, त्रासद होते हैं, डरावने होते हैं। किस तरह लापरवाही एवं महंगी गाड़ियों को सड़कों पर तेज रफ्तार में चलाना एक फैशन बनता जा रहा है, उसकी ताजी एवं भयावह निष्पत्ति की दुर्घटना दिल्ली के मीराबाग इलाके में बुधवार को देखने को मिली, जब एक बेलगाम एसयूवी कार ने कई वाहनों को टक्कर मारी और नौ लोगों को कुचल दिया। इसमें एक लड़की की जान चली गई। यह घटना राजधानी में आए दिन होने वाले सड़क हादसों की एक कड़ी भर है। सच यह है कि ऐसे बेलगाम वाहनों की वजह से सड़कें अब पूरी तरह असुरक्षित हो चुकी हैं। सड़क पर तेज गति से चलते वाहन एक तरह से हत्या के हथियार होते जा रहे हैं। 
यह विडम्बनापूर्ण है कि हर रोज ऐसी दुर्घटनाओं और उनके भयावह नतीजों की खबरें आम होने के बावजूद बाकी वाहनों के मालिक या चालक कोई सबक नहीं लेते। सड़क पर दौड़ती गाड़ी मामूली गलती से भी न केवल दूसरों की जान ले सकती है, बल्कि खुद चालक और उसमें बैठे लोगों की जिंदगी भी खत्म हो सकती है। पर लगता है कि सड़कों पर बेलगाम गाड़ी चलाना कुछ लोगों के लिए मौज-मस्ती एवं शौक का मामला होता है लेकिन यह कैसी मौज-मस्ती है जो कई जिन्दगियां तबाह कर देती है। ऐसी दुर्घटनाओं को लेकर आम आदमी में संवेदनहीनता की काली छाया का पसरना त्रासद है और इससे भी बड़ी त्रासदी सरकार की आंखों पर काली पट्टी का बंधना है। हर स्थिति में मनुष्य जीवन ही दांव पर लग रहा है। इन बढ़ती दुर्घटनाओं की नृशंस चुनौतियों का क्या अंत है? बहुत कठिन है दुर्घटनाओं की उफनती नदी में जीवनरूपी नौका को सही दिशा में ले चलना और मुकाम तक पहुंचाना, यह चुनौती सरकार के सम्मुख तो है ही, आम जनता भी इससे बच नहीं सकती।
लोगों की समृद्धि एवं सम्पन्नता ने जीवन को एक मजाक बना दिया है, मगर ऐसा लगता है कि यातायात नियमों का पालन करना तथाकथित धनाढ्य लोगों के लिये दोयम दर्जे का काम हैं। इस मानसिकता वाले लोग दुर्घटनाएं करना अपनी शान समझते हैं। तभी सुप्रीम कोर्ट भी तल्ख टिप्पणी कर चुका है कि ड्राइविंग लाइसेंस किसी को मार डालने के लिए नहीं दिए जाते। सचाई यह भी हैं कि नियमों के उल्लंघन की एवज में पुलिस की पकड़ में आने वाले लोग बिना झिझक जुर्माना चुकाकर अपनी गलती के असर को खत्म हुआ मान लेते हैं। बेलगाम वाहन चलाने के पीछे एक बड़ी वजह यह भी है कि हादसों से संबंधित कानूनी प्रावधान अभी इस कदर कमजोर हैं कि किसी की लापरवाही की वजह से दो-चार या ज्यादा लोगों की जान चली जाती है और आरोपी को कई बार थाने से ही छोड़ दिया जाता है। जाहिर है, जब तक सड़क पर वाहन चलाने को लेकर नियम-कायदों पर अमल के मामले में सख्त और असर डालने वाले कानूनी प्रावधान तय नहीं किए जायेंगे, तब तक सड़क पर बेलगाम होकर गाड़ी चलाने वाले लोगों के भीतर जिम्मेदारी नहीं पैदा की जा सकेगी। सड़क दुर्घटनाओं ने कहर बरपा रखा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 2009 में सड़क सुरक्षा पर अपनी पहली वैश्विक स्थिति रिपोर्ट में सड़क दुर्घटनाओं की दुनिया भर में ‘सबसे बड़े कातिल’ के रूप में पहचान की थी। भारत में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में 78.7 प्रतिशत हादसे चालकों की लापरवाही के कारण होते हैं। जिनमें इन नव धनाढ्य लोगों के कारण होने वाली दुर्घटनाओं की संख्या भी खतरनाक स्तर तक बढ़ रही है। वैसे एक प्रमुख वजह शराब व अन्य मादक पदार्थों का सेवन कर वाहन चलाना है। ‘कम्यूनिटी अगेन्स्ट ड्रंकन ड्राइव’ (कैड) द्वारा सितंबर से दिसंबर 2017 के बीच कराए गए ताजा सर्वे में यह बात सामने आई है कि दिल्ली-एनसीआर के लगभग 55.6 प्रतिशत ड्राइवर शराब पीकर गाड़ी चलाते हैं। राजमार्गों को तेज रफ्तार वाले वाहनों के अनुकूल बनाने पर जितना जोर दिया जाता है उतना जोर फौरन आपातकालीन सेवाएं उपलब्ध कराने पर दिया जाता तो स्थिति कुछ और होती। विडंबना यह है कि जहां हमें पश्चिमी देशों से कुछ सीखना चाहिए वहां हम आंखें मूंद लेते हैं और पश्चिम की जिन चीजों की हमें जरूरत नहीं है उन्हें सिर्फ इसलिए अपना रहे हैं कि हम भी आधुनिक कहला सकें। एक आकलन के मुताबिक आपराधिक घटनाओं की तुलना में पांच गुना अधिक लोगों की मौत सड़क हादसों में होती है। कहीं बदहाल सड़कों के कारण तो कहीं अधिक सुविधापूर्ण अत्याधुनिक चिकनी सड़कों पर तेज रफ्तार अनियंत्रित वाहनों के कारण ये हादसे होते हैं। दुनिया भर में सड़क हादसों में बारह लाख लोगों की प्रतिवर्ष मौत हो जाती है। इन हादसों से करीब पांच करोड़ लोग प्रभावित होते हैं। बात केवल राजमार्गों की ही नहीं है, गांवों, शहरों एवं महानगरों में सड़क हादसों पर कई बड़े सवाल खड़े कर दिये हैं। सरकार की नाकामी इसमें प्रमुख है। हाल ही में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल देश भर में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में रोजाना चार सौ से ज्यादा लोगों की जान चली गई। इन हादसों में मारे जाने वाले लोग आमतौर पर गाड़ियों में बैठे चालकों की बेहद मामूली लापरवाही के शिकार हो जाते हैं।। सड़क पर वाहन चलाने से संबंधित नियम कायदों का सख्ती और सावधानी से पालन करके गाड़ी चलाने वाला न केवल दूसरे बहुत सारे लोगों का सफर सुरक्षित बना सकता है, बल्कि अपने जिंदा रहने को लेकर भी निश्चिंत रह सकता है। ट्रैफिक व्यवस्था कुछ अंशों में  महानगरों को छोड़कर कहीं पर भी पर्याप्त व प्रभावी नहीं है। पुलिस ”व्यक्ति“ की सुरक्षा में तैनात रहती है ”जनता“ की सुरक्षा में नहीं। हजारों वाहन प्रतिमास सड़कों पर नए आ रहे हैं, भीड़ बढ़ रही है, रोज किसी न किसी को निगलनेवाली ”रेड लाइनें“ बढ़ रही हंै। दुर्घटना में मरने  वालों की तो गिनती हो जाती है पर वाहनों से निकलने वाले जहरीले धुएँ से प्रतिदिन मौत की ओर बढ़ने वालों की गिनती असंख्य है। वाहनों में सुधार हो रहा है पर सड़कों और चालकों में कोई सुधार नहीं। सन् 2020 तक वाहनों का उत्पादन और मांग दोगुने हो जाएंगे। सड़कें दुगुनी नहीं होंगी। रेलों की पटरियां दुगुनी नहीं होंगी। अतः यातायात-अनुशासन बहुत जरूरी है।नया भारत निर्मित करने, औद्योगिक विकास और पूंजी निवेश के लिए सरकार सभी प्रकार के गति-अवरोधक हटा रही है। लगता है सड़कों पर भी गति अवरोध हटा रही है। कोई चाहिए जो नियमों की सख्ती से पालना करवा के निर्दोषों को मौत के मुंह से बचा सके। सड़क दुर्घटनाओं  पर नियंत्रण के लिये जरूरी है कि सड़क सुरक्षा के लिये व्यापक कानूनी ढांचे को बनाना। 1988 में बने मोटर वाहन अधिनियम का व्यावहारिकता से परे होना भी दुर्घटनाओं का बड़ा कारण है। पिछले तीन दशकों में सड़क परिवहन में आए बदलाव के अनुरूप मोटर अधिनियम में व्यापक बदलाव की दरकार है। न मौजूदा न पूर्ववर्ती सरकारें सड़क दुर्घटनाओं को नियंत्रित करने की दिशा में गंभीर नजर्र आइं। इसी का नतीजा है कि कोई सुस्पष्ट प्रणाली हमारे सामने नहीं है। अगर सरकार नए वाहनों को लाइसेंस देना बंद नहीं कर सकती तो कम से कम राजमार्गों पर हर चालीस-पचास किलोमीटर की दूरी पर एक ट्रॉमा सेंटर तो खोल ही सकती है ताकि इन हादसों के शिकार लोगों को समय पर प्राथमिक उपचार मिल सके। सड़क हादसों में मरने वालों की बढ़ती संख्या ने आज मानो एक महामारी का रूप ले लिया है। इस बारे में राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकडे दिल दहलाने वाले हैं। पिछले साल सड़क दुर्घटनाओं में औसतन हर घंटे सोलह लोग मारे गए। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया के अट्ठाईस देशों में ही सड़क हादसों पर नियंत्रण की दृष्टि से बनाए गए कानूनों का कड़ाई से पालन होता है। बात चाहे पब की हो या रेल की, प्रदूषण की हो या खाद्य पदार्थों में मिलावट की-हमें हादसों की स्थितियों पर नियंत्रण के ठोस उपाय करने ही होंगे। तेजी से बढ़ता हादसों एवं लापरवाही का हिंसक एवं डरावना दौर किसी एक प्रान्त या व्यक्ति का दर्द नहीं रहा। इसने हर भारतीय दिल को जख्मी किया है। इंसानों के जीवन पर मंडरा रहे मौत के तरह-तरह की डरावने हादसों एवं दुर्घटनाओं पर काबू पाने के लिये प्रतीक्षा नहीं, प्रक्रिया आवश्यक है।  तेज रफ्तार से वाहन दौड़ाते वाले लोग सड़क के किनारे लगे बोर्ड़ पर लिखे वाक्य ‘दुर्घटना से देर भली’ पढ़ते जरूर हैं, किन्तु देर उन्हें मान्य नहीं है, दुर्घटना भले ही हो जाए।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress