कविता साहित्‍य

बोन्साई

मेरी ज़ड़ों को काट छाँट के,

मुछे बौना बना दिया,

अपनी ख़ुशी और

सजावट के लिये मुझे,

कमरे में रख  दिया।

मेरा भी हक था,

किसी बाग़ मे रहूँ,

ऊँचा उठू ,

और फल फूल से लदूँ।

फल फूल तो अब भी लगेंगे,

मगर मै घुटूगाँ यहीं तुम्हारी,

सजावट के शौक के लिये,

जिसको तुमने कला का

नाम भी दे दिया।

क्यों करते हो खिलवाड़,

हम अभी भी ज़िन्दा हैं,

घर के कि सी कोने में ,

मेज़पर  पर पड़े हुए!

हर आने जाने वाला,

तारीफ तुमहारी ही करता है,

कितने जतन से तुमने ,

हमे संजोया है!

पर आज तक किसी को

ना हमारा दर्द  दिखा है

हमें बौना बनाके,

तुम कलाकार बन गये,

और हम एक कोने पड़े,

फिर भी फूलों से लद गये।