बाजार को बढ़ावा देने वाला बजट

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-प्रमोद भार्गव- budgetरेल बजट ने ही नरेंद्र मोदी सरकार के बजट की दिशा तय कर दी थी। जाहिर है, आम बजट भी उसी दिशा आगे बढ़ना था। जिस तरह से रेलवे में एफडीआई और पीपीपी को प्रोत्साहित करने की खिड़कियां खोली गई हैं, उसे आगे बढ़ाते हुए आम बजट में इसके दरवाजे खोल दिए गए। इसीलिए बजट की दृश्टि स्पष्ट होते ही शेयर बाजार में उछाल आ गया। बजट में देश व समाज की अधोसंरचना से जुड़े तमाम पहलूओं को छूने की कोशिश के बावजूद इसे आम मसलन निम्न आय वर्ग के आदमी के लिए शुभ बजट नहीं कहा जा सकता है। जब लोक कल्याणकारी योजनाओं में बजट प्रावधान और खाध सामग्री और उर्वरकों में दी जाने वाली सब्सिडी में कटौती के आंकड़े साफ होंगे, तब और स्पष्ट हो जाएगा कि यह बजट सर्वहारा और किसान के हित साधने वाला है भी अथवा नहीं ?

सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार और देष की जीडिपी में सबसे ज्यादा भागीदारी के बावजूद इस बजट में खेती को लाभ का धंधा बनाने के स्पष्ट संकेत कहीं दिखाई नहीं देते। खेती से जुड़े मजदूरों की संख्या भी सबसे ज्यादा है, बावजूद मनरेगा और खाध सुरक्षा गांरटी जैसी योजनाओं में दी जाने वाली सब्सिडी में कटौती करके गरीब की आजीविका को संकट में डालने के उपाय किए जा रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में डिजिटल इंटरनेट कनेक्टिविटी का भरोसा वित्त मंत्री अरूण जेटली ने जताया है, लेकिन प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा को विश्वसनीय बनाने का वादा कहीं नहीं है। जबकि शिक्षा से जुड़ी गुणवत्ता के जितने भी सर्वे आए हैं, उनमें छात्र लिखने-पढ़ने और जोड़-बाकी का स्तर भी हासिल नहीं कर पाए हैं।

बजट में 200 करोड़ रूपए कृषि क्षेत्र के लिए हैं, जबकि इतनी ही राशि सरदार पटेल की मूर्ति लगाने पर खर्च की जाएगी। किसान हित से कहीं ज्यादा चिंता खेल संस्थान खड़े करने पर जताई है। कई राज्यों में राष्ट्रीय खेल अकादमियां खोलने के साथ, अकेले जम्मू-कश्मीर में 200 करोड़ रूपए खेलों पर खर्च किए जाएंगे। खेल प्रतिभाओं को निष्पक्षता से आगे नहीं लाया जाता, इसलिए सक्षम और पहुंच वाले लोगों की संतानें ही इसका लाभ उठाएंगी ? इसी तरह 100 करोड़ की लगत से मणिपुर में खेल विश्वविद्यालय खोला जाएगा। अच्छा होता पहले पूर्वोत्तर राज्यों में केवल पहुंच आसान बनाने के लिए रेल, सड़क और हवाई मार्गों के विकास पर ध्यान केंद्रित किया जाता। हालांकि इन राज्यों में रेल विकास के लिए 1000 करोड़ और जैविक खेती के लिए 100 करोड़ रूपए का बजट प्रावधान किए हैं, लेकिन पहाड़ी इलाका होने के कारण यह राशि उंट के मुंह में जीरे की तरह है।

गंगा सफाई पर मोदी हमेषा चिंतित दिखाई दिए हैं। इसीलिए 100 करोड़ रूपए केवल सफाई कैसे हो, इसके अध्ययन पर खर्च किए जाएंगे। मसलन इतनी बड़ी धन-राशि ‘गंगा-मंथन‘ जैसी बौद्धिक बहसों और व्यर्थ की सर्वेक्षण आधारित रिपोर्ट तैयार करने पर खर्च कर दी जाएगी। जबकि गंगा के मैली होने के कारण कौन-कौन से हैं, यह रिपोर्ट पहले से ही तैयार है। इस पर सख्ती से अमल की जरूरत है। गंगा के किसी एक किनारे से सफाई अभियान की शुरूआत करने की जरूरत है। गंगा की सतह पर 1620 किमी लंबा जलमार्ग तैयार करना अच्छा संकल्प है। इसके जरिए इलाहाबाद से हल्दिया तक जहाजों से माल ढुलाई का काम होगा। यह योजना तय समय-सीमा में पूरी हो जाती है तो सड़क मार्ग पर दबाव भी कम होगा। इसी तरह बंदरगाहों के विकास पर बजट प्रावधान अच्छी बात है। नए राज्यमार्गों के निर्माण पर 37000 करोड़ का बजट रखा गया है, इससे 850 किमी लंबी नई सड़के बनेंगी। सड़क मार्ग विकास की बुनियादी जरूरतें हैं।

रक्षा क्षेत्र के लिए 2 लाख 29 हजार करोड़ के बजट प्रावधान के साथ 49 फीसदी एफडीआई की भी भागीदारी सुनिश्चित कर दी गई है। यह फैसला स्वागत योग्य है। हालांकि रक्षा में 26 फीसदी एफडीआई का पहले से ही प्रावधान था। नतीजतन ब्रह्मोस मिसाइल अस्तित्व में आ गई थी। इससे देश में विभिन्न प्रकार के हथियार बनाने की क्षमता विकसित होगी। हालांकि रक्षा उत्पाद क्षेत्र में देशी कंपनियों की भागीदारी बढ़ानी चाहिए। जिससे हम स्वदेश में ही हथियारों का निर्माण करके दूसरे देशों को बेच सकें। टाटा और लार्सन एंड टुब्रो कंपनियों ने मध्यम मारक क्षमता वाली अच्छी किस्म की राइफलें विकसित की हैं। इन्हें और प्रोत्साहित करने की जरूरत हैं, जिससे हम इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो सकें। फिलहाल हम हथियारों के सबसे बड़े आयातक देश हैं। जाहिर हैं, सबसे ज्यादा विदेशी पूंजी हमें हथियार खरीदने में खर्च करनी पड़ती है।

औद्योगिक, प्रौद्योगिक और रीयल स्टेट को बढ़ावा देने के इस बजट में बड़े इंतजाम हैं। सात नए औधोगिक क्षेत्र, 100 स्मार्ट सिटी, पांच टूरिस्ट सर्किट, पांच एम्स, 12 मेडिकल कॉलेज सात आईएमएम और 16 बंदरगाहों का निर्माण उद्योग क्षेत्र को गति देगा। देश के हरेक परिवार को बैंक से जोड़ने का प्रावधान भी इस कड़ी का हिस्सा है। कोयला उत्पादन और अन्य खनिजों के खनन के लिए नियमों की सरलता और राज्यों को प्राप्त होने वाली रॉयल्टी पर पुनर्विचार पर भरोसा जाताना भी इस बात का संकेत हैं कि अब पर्यावरण की परवाह किए बिना खनिज संपदा उद्योगपतियों को लीज पर दे दी जाएगी। विदेशी कंपनियों के निवेश में परेशानियों को एकल खिड़की बनाकर दूर किया जाएगा। शेयर बाजार में उछाल और टीवी पर उद्योगपतियों के चेहरों पर चमक इस बात का प्रारंभिक संकेत है कि उनके अच्छे दिन आ गए हैं।

बजट में नौकरीपेशा लोगों की भी बल्ले-बल्ले हैं। वन रैक, वन पेंशन के लिए 1000 करोड़ का प्रस्ताव है। इससे रक्षा सैनिकों और सुरक्षा बलों को मिलने वाली पेंशन में जो असमानताएं हैं, वे दूर होंगी। पीपीएफ की सीमा एक लाख से बढ़ाकर डेढ़ लाख, बुजुर्गों को ढाई से बढ़ाकर तीन लाख के कर छूट प्रावधान किए हैं। घर कर्ज पर भी छूट सीमा बढ़ाई है। सरकारी कर्मचारी और मध्यवर्ग का धन सुरक्षित रहे इस दृष्टि से बीमा और अल्प बचत योजनाओं में धन जमा करने पर भी कर छूट के प्रावधान किए हैं। बावजूद यह समस्या यथावत है कि पांच लाख की वार्शिक आमदनी वाला आदमी महानगर में अपना घर कैसे खरीदेगा ?

बजट में मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह सरकार की तर्ज पर ‘बेटी बाचाओ और बेटी पढ़ाओ‘ की बात कही गई है, लेकिन महिला सुरक्षा पर ध्यान नहीं दिया गया। निर्भया-निधि पर भी कुछ साफ नहीं है, जबकि महिला सुरक्षा के लिहाज से महिला पुलिस और न्यायालयों में महिला न्यायाधीश बढ़ने के इंतजाम जरूरी थे, क्योंकि कुछ सालों के भीतर महिलाओं पर अत्याचार लगातार बढ़ रहे हैं।

सरकार का खाद्य तेल और स्टील के बर्तन सस्ते करना तो समझ में आता है, लेकिन कंप्यूटर और दूसरे इलेक्ट्रोनिक उपकरणों को सस्ता करने के उपाय बाजार को बढ़ावा देने का ही सबब हैं। यह अच्छी बात है, सरकार ने तंबाकू से बनने वाले सभी उत्पादों पर कर बढ़ा दिए है, लेकिन शराब महंगी करने का जिक्र नहीं है। कुल मिलाकर पहली नजर बजट औद्योगिक घरानों और सरकारी अमले के हित में जाता दिखाई दे रहा है, क्योंकि प्रशासन को जवाबदेह, पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त बनाने की इच्छाशक्ति कहीं दिखाई नहीं देती। किसान, मजदूर और वंचितों की चिंता कम है। हो सकता है कि यह असमानता मोदी सरकार का पहल बजट होने के कारण जानबूझकर रखी गई हो, जिससे अर्थव्यवस्था पटरी पर आए और फिर सर्वहारा की सोची जाए ? जिस तरह से बजट में योजनाओं पर 100-100 करोड़ न्यौछावर किए गए है, उससे यह बजट शगुन का बजट लगता है। लिहाजा इसके परिणाम दीर्घकालिक होंगे।

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  1. थोड़े शब्दों में अगर बयान किया जाए तो दोनों ही बजट निराशाजनक हैं.बाजार का रूख भी इसी ओर इंगित करता है.

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