कविता साहित्‍य

लेकिन गुस्सा भी आता है 

भुदयाल श्रीवास्तव 

  छिंदवाड़ा मध्य प्रदेश 

लेकिन गुस्सा भी आता है 

खड़ी हुई दर्पण के सम्मुख ,

लगी बहुत मैं सीधी सादी |

पता नहीं क्यों अम्मा मुझको ,

कहती शैतानों की दादी |

मैं तो बिलकुल भोली भाली ,

सबकी बात मानती हूँ मैं |

पर झूठे आरोप लगें तो,

घूँसा तभी तानती हूँ मैं |

फिर गुस्सा भी आ जाता है,

कोई अगर छीने आज़ादी |

नील गगन में उड़ना चाहूँ ,

जल में मछली बनकर तैरूँ |

पकड़ूँ ठंडी हवा सुबह की ,

हाथ पीठ पर उसके फेरूं |

पर शैतानों की दादी कह ,

अम्मा ने क्यों  आफत ढादी|

अपनी -अपनी इच्छाएं सब ,

सदा रोप मुझ हैं देते |

मेरी भी तो कुछ चाहत है ,

टोह कभी इसकी न लेते |

बस जी बस ,दादाजी ही हैं ,

जो कहते मुझको शाहजादी |