सीए: सम्मान के साथ जिम्मेदारियाँ हजार

(आलेख- डॉ अर्पण जैन ‘अविचल’)

राष्ट्र के नवनिर्माण की बयार है, उद्योग नीति की श्रेष्ठता से हिंदुस्तान में स्वरोजगार चरम पर है, कही छोटी इकाइयाँ संचालित है तो कही वृहद। जीएसटी का बोलबाला हो चाहे वित्तीय सेवाओं की अनिवार्यता, संगठनात्मक तंत्र हो चाहे व्यक्तिगत कर आदि की सहायता, एक पेशा सदा से ही राष्ट्र के वित्तीय ढाँचें में स्थायित्व लाने के लिए प्रतिबद्ध रहा, विपरीत परिस्थितियों में भी यही पेशा ऐसा रहा जिसने अपने कर्म से जनमानस को तो सहायता पहुंचाई ही साथ में राष्ट्र के आर्थिक उदारीकरण के दौर को भी संभाला।

जी हाँ हम चर्चा कर रहें है सी ए पेशे की जिसे अंग्रेजी में चार्टर्ड अकाउंटेंट या हिंदी में ‘सनदी लेखाकार’ कहा जाता है। जिसका सीधा संबंध भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान (Institute of Chartered Accountants of India) से होता है।

जिम्मेदारी भरा यह पेश राष्ट्र के वित्तीय नवनिर्माण की भूमिका के प्रथम पहलू पर कार्य कर रहा है।
1 जुलाई 1949 को सनदी लेखाकार अधिनियम 1949 के तहत एक संगठनात्मक ढांचे का निर्माण हुआ जिसे भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान (Institute of Chartered Accountants of India) कहा जाता है। और इसी दिवस को सम्पूर्ण भारत के चार्टर्ड अकाउंटेंटस के द्वारा विभिन्न शाखाओं में ‘सी ए डे’ या ‘सी ए दिवस के रूप में मनाया जाता है।
अपने अस्तित्व के लगभग छह दशकों के दौरान, भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान न केवल देश में एक प्रमुख लेखा निकाय के रूप में स्थापित व मान्यता प्राप्त रहा बल्कि यह वैश्विक स्तर पर भी शिक्षा, व्यावसायिक विकास, उच्च लेखांकन, लेखा परीक्षा और नैतिक मानकों के रखरखाव के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए जाना जाता है। ICAI सदस्यता के मामले में American Institute of Certified Public Accountants के बाद दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी पेशेवर लेखा संस्थान  है। 
ICAI कंपनियों पर लागु होने वाले लेखा मानको की सिफारिश लेखांकन मानकों की राष्ट्रीय सलाहकार समिति (NACAS) से करती है और अन्य संगठनों पर लागु होने वाले लेखा मानकों का निर्धारण करती है। इस संस्थान की सदस्यता की परीक्षा भी अपने कठोर मानकों के लिए जानी जाती है।

भारत सरकार की वित्तीय नीति निर्धारण, शोध, धन-नगदी संबंधित विभिन्न उपक्रमों, नीतियों के निर्माण, औद्योगिक नीतियों के बनाने आदि में सरकारी संस्थाओ जैसे की RBI, SEBI, MCA, CAG, IRDA आदि को सहयोग करता है।
भारत के भाग्य निर्माताओं की जब भी चर्चा होगी, बिना सनदी लेखाकारों के योगदान के वह चर्चा अधूरी ही मानी जाएगी।
कंपनियों के लिए वित्तीय सेवाएं, ऑडिट, लेखाजोखा, कर सलाह, नीति निर्धारण, आर्थिक सक्षमता आदि जिम्मेदारियों का निर्वहन करने वाले चार्टर्ड अकाउंटेंट्स दिन-रात जिन वित्तीय चिंताओं से ग्रस्त होते है वही उनकी मेहनत एक कंपनी, उद्योग की तरक्की का कारण बनती है और उपक्रमों, उद्योगों, कंपनियों की तरक्की राष्ट्र की आर्थिक समृद्धि की रीढ़ की हड्डी है।
आज जब सम्पूर्ण देश वित्तीय अफरा-तफरी के दौर से गुजर रहा है, नोटबन्दी के तुरंत बाद जीएसटी के लागू होने से भयाक्रांत उद्योगपतियों, छोटे-मझले व्यवसायियों का हाल बेहाल हुआ,  कागजों के जमा-खर्च का डर उनमें जो समाया उससे उभारने का काम बहुत हद तक भारत में कार्यरत चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ने ही किया। 
इस पेशे में सम्मान भी खूब है तो उसके साथ जिम्मेदारियों का पुलिंदा भी बहुत है। इसके बावजूद भी वर्तमान में कार्यरत सनदी लेखाकार या कहें चार्टर्ड अकाउंटेंट्स अपनी जिम्मेदारियों के बीच सामंजस्य बखूबी बना रहे  है।
इन बुद्धिजीवियों से राष्ट्र भी अपनी कुछ अपेक्षाएँ रखता है, जैसे कि जिम्मेदार चार्टर्ड अकाउंटेंट्स को राष्ट्र की आर्थिक और उद्योग नीति को अधिक स्थायित्व प्रदान करने की दिशा में शोध करके नीतियों के निर्माण की सलाह सरकारों को देना चाहिए।
नीतिनिर्धारक लोगों को भारत की 67% प्रतिशत आबादी जो गांवों में निवास करती है उनके अनुरूप आर्थिक नीतियों की दिशा मोड़नी चाहिए।
भारत एक ग्राम प्रधान देश है, इसलिए अधिकतर आबादी को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से चार्टर्ड अकाउंटिंग की पढाई और उसका उपयोग भारतीय भाषाओं या कहें हिंदी में भी बढ़ाने की दिशा में कार्य करना चाहिए।

जैसे भारतीयों का दुर्भाग्य है कि उन्हें उनकी भाषा में न्याय नहीं मिल सकता किन्तु यदि ICAI चाहे तो निश्चित तौर पर आर्थिक समाधान, कंपनी के नियम कायदे कानून की जानकारी, सलाह आदि भारतीय भाषाओं में उपलब्ध करवाई जा सकती है।

ये हौसलों की उड़ान को पंख देने का पेशा है, निश्चित तौर पर भारत के आर्थिक भाग्य विधाता के रूप में सदैव यह स्थापित रहें यही कामना है।

*डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’*
पत्रकार एवं स्तंभकार
संपर्क: ०७०६७४५५४५५

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