प्रत्याशी नही मोदी लहर से मुकाबिल है सिंधिया…

*3 माह से लगातार अपने क्षेत्र में पत्नी के साथ मेहनत कर रहे है सिंधिया
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अगर आप गुना लोकसभा में किसी से भी चुनावी मुकाबले पर बात करते है तो वह सिरे से मुकाबले को खारिज कर देता है ।मुकाबला है कहाँ? इस प्रतिप्रश्न से यहां का वोटर मिजाजपुर्सी करने वाले को एक तरह से चुप करा देता है इस साफ दिख रहे मिजाज के इतर कांग्रेस महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया औऱ उनकी धर्मपत्नी प्रियदर्शिनी राजे 43 डिग्री के झुलसा देने वाले तापमान में भी गुना,अशोकनगर औऱ शिवपुरी जिलों में फैली अपनी लोकसभा में जबरदस्त प्रचार कर रहे है लगभग 100 से अधिक बाहरी नेताओं को मैदानी जिम्मेदारी देकर चुनाव प्रबन्धन से लेकर बूथ मैनेजमेंट तक पर लगाया गया है स्थानीय स्तर पर लगभग सभी कांग्रेस नेताओं को उनके प्रभाव क्षेत्र में 12 मई तक का वर्क प्लान देकर उतार दिया गया है खुद सिंधिया सभी विधानसभाओ में जाकर इलेक्शन मोड़ वाली छोटी छोटी सभाएं ले रहे है उनकी धर्मपत्नी पिछले 3 महीने से यहां बेहद सक्रिय है उन्होंने भी अब तक का सबसे प्रभावी औऱ व्यापक जनसम्पर्क अभियान चला रखा है आचार सहिंता लगने से पहले ही वे पूरे लोकसभा क्षेत्र का सघन दौरा कर चुकी थी प्रियदर्शिनी राजे के इस जनसंपर्क को देख यहां इस अटकल ने जन्म ले लिया कि क्या महारानी इस बार गुना से खुद उम्मीदवार तो नही होंगी।हालांकि सिंधिया की उम्मीदवारी फाइनल नही होने तक प्रियदर्शिनी राजे ने भी इस सस्पेंस को बनाये रखा।फिलहाल सिंधिया दम्पति पूरी ताकत से गुना लोकसभा में लड़ते हुए नजर आ रहे है तब भी जब उनके सामने प्रथम दृष्टया कमजोर केंडिडेट बीजेपी ने उतारा है केपी यादव जो कल तक सिंधिया के सांसद प्रतिनिधि हुआ करते थे औऱ हाल ही में मुंगावली विधानसभा से बीजेपी के टिकट पर चुनाव हार चुके है।
पिछले काफी समय से बीजेपी में यह अटकल थी कि अमित शाह ने कांग्रेस की गुना,छिंदवाड़ा, औऱ रतलाम की अजेय सीटों को जीतने का लक्ष्य 2019 में लिया है लेकिन केन्डिडेचर से साफ है कि अमित शाह ऐसा करने में सफल नही हो पाए है।बीजेपी में केपी यादव की स्वीकार्यता अभी ग्रास रुट पर नही है कारण एक तो वह नए नए बीजेपी में आये है और सिंधिया खेमे से ही आये है सिंधिया के कद के अनुरूप भी यहां लोग उन्हें अधिमान्यता नही दे रहे है बीजेपी का कार्यकर्ता जो मोदी के लिये मानसिक रूप से तैयार था उसे केन्डिडेचर से झटका लगा है यह बीजेपी की नामांकन रैली में साफ नजर आया।असल मे गुना लोकसभा अंचल में अभी सिंधिया परिवर्तन के अतिशय प्रभाव वाला इलाका है 2014 में जब प्रचंड मोदी लहर थी और बीजेपी ने केंडिडेट भी जयभान सिंह जैसे नेता को बनाया था जिनके बारे मे कहा जाता है कि उन्होंने स्व.सिंधिया को ग्वालियर से गुना आकर लड़ने पर विवश कर दिया था वह भी 2014 में एक लाख से ज्यादा वोट से यहां हार गए थे तब खुद मोदी तक यहां सभा करने आये थे। प्रदेश में बीजेपी की सरकार थी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने ताबड़तोड़ सभाएं यहां ली थी वे खुद जयभान सिंह का नामंकन दाखिल कराणे शिवपुरी आये ।इस लिहाज से 2019 में बीजेपी की तैयारियां कमतर है और केन्डिडेचर भी सिंधिया कांग्रेस से आया हुआ है।इसलिये पहले चरण में तो सिंधिया के लिये बीजेपी ने आसान रास्ता खुद ही उपलब्ध करा दिया है।
बदली परिस्थितियों में इस बार सूबे में सरकार भी कांग्रेस की है और सिंधिया की पोजिशन विधानसभा चुनाव में यहां खासी मजबूत हुई है वहीं बीजेपी को पूरे संसदीय क्षेत्र में सिर्फ 3 सीट ही मिली है 5 पर उसे हार का सामना करना पड़ा है।
कुल मिलाकर मौजूदा माहौल पूरी तरह से सिंधिया के पक्ष में लिहाजा उन्हें बहुत तनाव लेने की आवश्यकता नही होनी चाहिए लेकिन जमीन पर ऐसा नही है सिंधिया 2014 की तुलना में ज़्यादा एक्टिव मोड़ में नजर आ रहे है पशिचमी यूपी के इंचार्ज होने के बाबजूद वह गुना मे यूपी से ज्यादा समय दे रहे है पहली बार उनकी पत्नी मैदान पर पोलिंग बूथ स्तर पर सीधे लोगों और कांग्रेस कार्यकर्ताओं से कनेक्ट हो रही है उनकी खुद की इलेक्शन टीम यहां मोर्चा संभाले हुए है वे जनसंपर्क के साथ लोगो की समस्याओं को भी निपटा रही है बीजेपी पर खुलकर हमला कर रही है मोदी को निशाने पर लेती है सांसद के रूप में अपने पति की उपलब्धि भी गिनाती है इससे पहले के चार चुनावों में वे सिर्फ सिंधिया परिवार की बात करती थी लेकिन इस बार वे मंजे नेता की तरह बकायदा केम्पेन कर रही है।
सिंधिया खुद हर बार की तरह चुनावी सभाएं ले रहे है दूसरी पार्टी के नेताओ को कांग्रेस में शामिल कर रहे है  बीजेपी के पूर्व मंत्री के एल अग्रवाल जो उनके सर्वाधिक मुखर आलोचक रहे है को कल कांग्रेस में शामिल कराया गया है इसी तरह बीजेपी के दो औऱ पूर्व विधायक राव राजकुमार यादव, जगन्नाथ रघुवंशी को भी पहले ही कांग्रेस ज्वाइन कराई जा चुकी है।
इस फूल प्रूफ चुनावी बिसात के पीछे आखिर वजह क्या है?तब जबकि बसपा का किरार केंडिडेट  कांग्रेस से ज्यादा बीजेपी को नुकसान पहुँचा सकता है,सिंधिया अपने चुनाव के लिये इतने चिंतित क्यों है? सामने से नजर आ रहे माहौल के इतर क्या मोदी लहर की अदृश्य संभावना से सिंधिया चिंतित है!क्या वोटर की चुप्पी औऱ पांच साल में मोदी की जनता के साथ बनी सीधी अपील कोई चुनौती है बेशक सिंधिया परिवार का यहां अपना वर्चस्व है इसके बाबजूद यह भी तथ्य है कि 2014 में शहरी इलाकों से सिंधिया को पराजय का सामना करना पड़ा था करीब 3 लाख वोट शहरी मिजाज के है इस संसदीय सीट पर औऱ सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पूरे देश मे एक बड़े वर्ग ने अपने वोट का मानस बना लिया है इसे फिलहाल पोलेटिकल पण्डित शायद पढ़ नही पा रहे है वह किसी इलेक्शन केम्पेन से शायद ही प्रभावित हो।दूसरा यह भी तथ्य है कि प्रधानमंत्री आवास,उज्ज्वला, शौचालय, जैसी योजनाओं ने उस वर्ग में मोदी को स्थापित किया है जिसे कभी राजनीतिक विमर्श में शामिल नही किया जाता है।यही वर्ग हार जीत की पटकथा भी लिखता है।एक औऱ तथ्य कर्जमाफी का है कमलनाथ सरकार इस मामले में बहुत अच्छा काम नही कर पाई है किसानों में इसे लेकर नाराजगी है यही नही जिन मुद्दों को लेकर खासकर समर्थन मूल्य पर उपज खरीदी,को लेकर जो व्यवहारिक दिक्कते शिवराज सरकार में थी वही आज भी जस की तस बनी हुई है।बिजली की सप्लाई में अचानक आई गड़बड़ी ने भी वोटर को सीधे प्रभावित किया है।
इस सबके ऊपर मोदी फैक्टर आम वोटर में प्रभावी तरीके से मौजूद है इसे आप एक सामान्य नजरिये से ही देख सकते है खासकर पहली ,दूसरी बार वोट करने वाले युवाओं में मोदीमेनिया अभी गायब नही हुआ।एक सामान्य धारणा हर वर्ग में है कि वे तो मोदी को वोट देंगे भले ही केंडिडेट कोई भी हो।
इसका मतलब यही है कि भले ही प्रत्याशी का कद सिंधिया के समतुल्य न हो लेकिन प्रधानमंत्री गुना के मतदाताओं में अभी भी बड़ा फैक्टर है शायद इस ओपिनियन को सिंधिया बहुत बारीकी से समझ चुके है इसलिये वह कोई रिस्क नही लेना चाहते है वे उसी मोड़ में चुनाव लड़ रहे है जैसा 2014 में थे।
वैसे भी अगर इस माकूल नजर आ रही परिस्थितियों में सिंधिया बड़े अंतर से चुनाव नही जीते तो यह भी उनके लिये चिंतनीय विषय होगा क्योंकि एक लाख से ज्यादा मतो से तो वे 2014 में दिखाई दे रही मोदी लहर में ही जीते थे इसलिये केपी यादव को 2009 में नरोत्तम मिश्रा से बड़ी लीड लेकर  हराना भी उनके लिये बड़ी चुनोती है।

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