डॉ. मधुसूदन

(एक) प्रवेश:जब हम हिदी-संस्कृत या स्वदेशी प्राकृतों का शब्द चलन में स्वीकारते हैं, तो मात्र एक शब्द ही नहीं पर पूरा उस शब्द से जुडा जाल साथ साथ हमारी भाषा में घुलने में सहायता होती है। ऐसे विस्तार से, वास्तव में हम कई गुना लाभ प्राप्त करते हैं। समझने के लिए, शब्द विस्तार के दो उदाहरण देख लीजिए। आप आश्वस्त हो जाएंगे।
(दो) ’अंध’ शब्द का जाल एक अंध शब्द (के अर्थ) से निम्न सारे शब्द आपस में जुडे हुए हैं। पर यह जुडना स्थूल है। मूल ’अंध’ शब्द का अर्थ आँखॊं की देखने की अक्षमता ही होता है। पर स्थूल रूप से निम्न शब्द आपस में जुडे हैं।(१) अंध, (२) आँधी, (३) अंधकार, (४) अंधकारमय, (५) अंध खोपडी, (६)अंधपरम्परा, (६)अंधक, (७)अंधकूप, (८)अंधा, (९)अंधड, (१०)अंधतमस,(११) अंधता, (१२)अंधरी,(१३) अंधविश्वास,(१४) अंधसैन्य, (१५) अंधार,(१६) अंधापन, (१७)अँधियारा, (१८)अँधियारी, (१९)अंधेरा, (२०) अंधेर, (२१) अंधड,(२२) अंधाधुंध, (२३) अंधेरी, (२४) अंधेर नगरी, (२५) अंधश्रद्धा ये सारे शब्द आपस में विशेष अर्थ से जुडे हुए है।
(तीन) अंध के अर्थ से कैसे जुडे हैं ?(१) अंध==> वास्तव में अंध का अर्थ जुडा है, (ऊपर कहा गया ही है।) आँखो से देखने की अक्षमता वा सामर्थ्यहीनता से। पर इसी अंध से विकसे और जुडे हुए निम्न शब्दों को देखिए। (२) आँधी ==> का अर्थ जुडा है, ऐसे बवण्डर या चक्रवात से जिस में धूल उडने से देखने की क्षमता घट जाती है।(३) अंधकार वा (४) अंधकारमय ==> जुडा है फिर देखने की अक्षमता जो प्रकाश के अभाव में अनुभव होती है।(५) अंध-खोपडी ==> बिना सोचे विचारे निर्णय या बर्ताव करने वाला मानव।(६) अंध परम्परा ==> अंधे नेता के पीछे पीछे बिना सोचे समझे जाने वाली पंक्ति। (७)अंधकूप,===> घास पात से ढका हुआ कुआँ। (गहराई ना दिखे ऐसा) सभी शब्दों के अर्थ कैसे अंध के अर्थ से जुडे हैं? इसका एक पहेली की भाँति मौलिक शोध बडा मनोरंजक होगा।
(चार)अंध से जुडी पहेलीकैसे अंधेर नगरी, अंध विश्वास, अंध-श्रद्धा, अंधता, अंधरी, अंधसैन्य, अंधार, अंधापन, अँधियारा, अँधियारी, अंधेरा, अंधेर, अंधड, अंधाधुंध, अंधेरी, अंधेर नगरी, अंधश्रद्धा इत्यादि शब्द आपस में स्थूल पर अंध के अर्थ से जुडे हुए है? सोचिए।
(पाँच) अंग्रेज़ी के पुरकर्ताओं को आवाहन: सारे अंग्रेज़ी के पुरकर्ताओं को आवाहन (respectful invitation) करता हूँ। ऐसी प्रक्रिया क्या आप उसी अर्थ के अंग्रेज़ी शब्द Blind पर विस्तरित कर के दिखा सकते हैं? यह विशेषता अंग्रेज़ी का ब्लाइण्ड शब्द उधार लेनेपर हमारी हिन्दी को समृद्ध करना संभव नहीं।
(छः) Blind अंग्रेज़ी का शब्द: Blind अंग्रेज़ी का शब्द है। उसे यदि स्वीकारा गया तो क्या इस Blind पर हमारे उपसर्ग और प्रत्यय की प्रक्रिया से निम्न शब्द भी साथ साथ स्वीकारे जा सकते हैं?प्रयोग करके देखिए।ब्लाइण्ड, ब्लाइण्डक, ब्लाइण्डकार, ब्लाइण्डमय, ऐसा विस्तार कानोंको कटु ही लगता है। और सारी शब्दावली इसी प्रकार बन भी नहीं सकती। कभी अनिवार्य होनेपर एक ही शब्द स्वीकार के लिए सोचा जा सकता है। पर यह कार्य भी जिनकी राष्ट्रीयता के विषय में संदेह ना हो ऐसे विद्वानों के आयोग द्वारा संगठित रूप में सम्पन्न होना चाहिए।
(सात) एक और शब्द का उदाहरण: एक और शब्द का उदाहरण सहज ध्यान में आ रहा है।जो मूलतः फल से जुडा है।उदाहरण (२)फल. सफल, सफलता, विफल, विफलता, फलना, फलना-फूलना, फलदायी, फलतः, फलाशा, फलीभूत, साफल्य. वैफल्य, फलाहार, मराठी/गुजराती में चलता फराळ भी इसी का विस्तार है।ऐसा विस्तार देखना भी एक मनोरंजक पहेली जैसा होगा।(१) मूलतः फल तो, वो है, जो वृक्षों पर लगता है, वो ही मूल अर्थ है। पर जब छात्र किसी परीक्षा में उत्तीर्ण होता है, तो वह सफल हुआ ऐसा कहा जाता है। सफल का मौलिक अर्थ है, फल के साथ होना। पर यहाँ फल होता है परीक्षा में यशस्वी होना । इस प्रकार भाषा के इस उदाहरण में कहीं भी आपको वृक्ष का फल दिखाई नहीं देता। अर्थात ऐसा शब्द प्रयोग भी, फल के अर्थ को विस्तार देता है। फिर इसी शब्द का विस्तृत अर्थ आप, उपसर्ग, प्रत्यय, समास, संधि इत्यादि विधियों से और बढा सकते हैं।
(आठ ) अंग्रेज़ी का ’फ्रूट’ लेकर उस पर शब्द विस्तार कोई हिन्दी में करके दिखाएँ। अंग्रेज़ी में नहीं हिन्दी में। फ्रूट का विस्तार कर के देखिए। ऐसे अनगिनत उदाहरण दिए जा सकते हैं। ये है हमारी भाषा समृद्धि का आयाम ।इसी विषय के विस्तार पर कई उदाहरण दिए जा सकते हैं। और ऐसी शब्द क्रीडा आप युवा छात्रों में करवाकर हिन्दी-संस्कृत को प्रोत्साहित कर सकते हैं।अस्तु।
स्वतंत्र भारत में अभी भी कई लोग मानसिक दासता से ग्रस्त हैं ऐसे लोगो के मन में अंग्रेजो के चले जाने के बाद भी अंग्रेजी भाषा का बहुत महत्ब हैं। उनके विचार से भारत में कोई ऐसी भाषा नहीं हैं जो राष्ट्रभाषा बनने के योग्य हो। ऐसे लोग प्राय यह पूछते हैं के हर बर्ष अंग्रेजी में इतने शब्द जोड़े गए हैं , हिंदी भाषा में कितने शब्द जोड़े गए हैं। श्री मधुसूदन जी ने अपने लेख हमारे शब्दों की बिस्तर क्षमता के लेख द्वारा यह सिद्ध कर दिया के अंग्रेजी एक ऐसी भाषा हैं जिसमे बिस्तार की कोई क्षमता नहीं हैं। जब के हिंदी भाषा में अशंख्या नए शब्द बनाए जा सकते हैं जब के अंग्रेजी भाषा एक भिखारी भाषा हैं। अंग्रेजी भाषा में कई कमिया हैं , किन्तु परस्थियाबस यह विश्व की प्रमुख भाषा बन गई हैं किन्तु फिर भी भारत के लोगो को चाहिए के बह लोग हिंदी को भारत की राष्ट्र भाषा बना दे। हिंदी में राष्ट्र भाषा बनने के लिए सभी गुण हैं। हिंदी में राष्ट्र भाषा बनने के लिए सभी गुण हैं। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए श्री मदुसूदन जी का यह लेख बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि कई लोग कहते हैं के हिंदी में वैज्ञानिक और तकनिकी शब्दों की कमी हैं। यह लेख दिखाता हैं के हिंदी भाषा में शब्दों की कोई कमी नहीं हैं।
. मधु भाई,
सादर प्रणाम। आपका आलेख प्राप्त हुआ।
आपके इन शोधपूर्ण आलेखों में आपकी उर्वर मेधा
से निकले सार्थक तथ्य ज्ञानवर्धक होने के साथ ही
रोचक भी हैं, जो मन में जिज्ञासा जगाते हुए पाठक
को आनन्दित भी करते है और अभिभूत भी।
सभी हिन्दीप्रेमी आपके इस ” हिन्दीशब्दकल्पद्रुम ” के
लिये आभारी रहेंगे – ऐसा मेरा विश्वास है।
आपके प्रयास सराहनीय हैं।
सादर,
शकुन बहिन
‘डा. मधुसूदन जी ने हिन्दी भाषा के उत्थान के लिये अथक प्रयास किये हैं .भाषा को समृद्ध एवं व्यावहारोपयोगी बनाने के लिए शब्द-रचना प्रक्रिया पर भी शोधपूर्पूण आलेख प्रस्तुत किये .उपसर्गऔर प्रत्ययों के योग से एक शब्द को अनेक रूप दे कर विभिन्न अर्थों में प्रयुक्त किया जा सकता है ,अनेक उदाहरण देकर उन्होने इस बात की पुष्टि की है .हिन्दी भाषा में नये शब्दों की रचना कर उसकी क्षमता में वृद्धि से उसका भंडार भरेगा और हमें अन्य भाषाओं से शब्द माँगने की आवश्यकता नहीं होगी .भाषा की सामर्थ्य बढ़ाने के लिये यह बहुत उपयोगी कदम होगा .’
– प्रतिभा सक्सेना.
बावजूद इसके ; हिन्दी-भाषियों का ही औपनिवेशिक मानस हिन्दी को ‘हिंग्रेजी’ बनाने में लगा हुआ है ।
आलेख को शकुन जी ने दिया हुआ नाम ‘शब्दकल्पद्रुम’ अत्योचित और बहुत प्रभावी है।
मधुसूदन