अपना आसमान तराशना

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 राजशेखर ने उस दिन मुझे अपने शिक्षक सह गुरु समर्पण के द्वारा लिखित एक किताब भेंट की। किताब का नाम था ‘Carving a sky’ (अपना आसमान तराशना)। र्हापर कोलिन्स इण्डिया ने अध्यात्म प्रवर्ग में इसे प्रकाशित किया है।
राजशेखर की अपने शिक्षक के प्रति श्रद्धा से में अवगत था। अध्यात्म के सम्बन्ध में अपने पूर्वाग्रह तथा अपनी उम्र से सम्बन्धित असमर्थताओं के कारण मुझे नहीं लगता था कि मैं किताब को पढ़ पाउँगा। मैंने राजशेखर से इसे जाहिर भी किया था। लेकिन पन्ने उलटाने लगा तो पढ़ता ही चला गया। पुस्तक का कथ्य यात्रावृत्त के रुप में प्रस्तुत किया गया है. इससे यह पुस्तक अधिक दिलचस्प हो गई है। मैंने फोन कर राजशेखर को आश्वस्त किया कि मैं किताब पढ़ पाउँगा।
मुझे पुराने दिनों की एक तस्वीर की याद आई। मैंने लेक्चरर के पद पर योगदान किया था. कॉलेज के प्राचार्य से मिलने गया। वे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के विद्वान थे। मैंने अपना परिचय देते हुए आशा व्यक्त की कि उनके सान्निध्य में मुझे सीखने के अवसर मिलते रहेंगे। मैं अवाक् रह गया जब उन्होंने रुखाई और कड़ाई से मुझे कहा, “I am a man of history. You are a man of Botany. How can you learn from me?”
मुझे यकीन नहीं हुआ. वे ऐसा कैसे कह सकते हैं! वे उत्कृष्ट कोटि के विद्वान हैं। कहीं वे मुझे खुशामदी तो नहीं समझ रहे? लेकिन वे मेरे प्राचार्य थे, मुझे तो विनम्र ही रहना था। इसलिए मैंने निवेदन किया, — “सर, मेरी जानकारी के अनुसार ज्ञान की हर शाखा एक ही सत्य, परम सत्य का संधान करती है।” वे कुछ नहीं बोले। मैंने राहत की साँस ली और उन्हें नमस्कार कर चला आया।
आध्यात्मवादी संसार, सृष्टि और मनुष्य के सम्बन्धों की कई तरह से व्याख्या करते रहे हैं। उनमें से एक नजरिया कहता है कि संसार माया है। हमारा वास्तविक घर वहाँ है जहाँ ईश्वर का वास है, अपने किसी अपकर्म के कारण वहाँ से निर्वासित होकर हम यहाँ आए हैं । हमारा ध्यान रहना चाहिए कि हमारे आचरण ऐसे हों कि हम पुनः ईश्वर का सान्निध्य हासिल कर सकें। आत्मा परमात्मा का अंश है, इसलिए यह उसमें विलीन हो जाना चाहता है। यहाँ के जीवन के सुख दुख के तानेबाने में उलझने के बजाय हमारा ध्यान परलोक के जीवन पर होना चाहिए।
दूसरी ओर रवीन्द्रनाथ ठाकुर की तरह के अध्यात्मवादी जीवन को आनन्द-यज्ञ मानते हैं। उनके अनुसार हमारा अस्तित्व पारिस्थितिकी तंत्र में विसरित रहा करता है। संसार विधाता की प्रयोगशाला है। मनुष्य को विधाता (अथवा प्रकृति) के द्वारा आयोजित आनन्द-यज्ञ में आमंत्रण मिला हुआ है। जीवन सुन्दर है और विधाता मनुष्य के जीवन के माध्यम से आत्मप्रकाश करते हैं। जीवन सत्य है, माया नहीं जैसा कि पहली विचारधारा का दावा है।
‘Carving a Sky” नाम की किताब की विषयवस्तु व्यक्ति के मानवीय(Human) होने के लक्ष्य से सम्बन्धित है। लेखक की प्रारम्भिक पंक्ति है– उत्कृष्टता की आकांक्षा रखना ही मानवीय होना होता है। अनूठा, सम्भवतः सर्वोत्तम, होने की इच्छा हम सबमें सहजात है। इस अवलोकन ने मुझे उद्दीप्त किया। मैं आध्यात्मिकता की किसी स्पष्ट और अकादमिक समझ का दावा नहीं कर सकता। मैंने धार्मिक और आध्यात्मिक ग्रन्थो का अध्ययन नहीं किया है। फिर भी इस किताब के पन्नों पर नजर फेरने से जिन्दगी के क्या और क्यों जैसे सवालों के जवाब से अपने ही तजुर्बों की रोशनी में रुबरु होने के अवसर मिलते हैं हमारे जैसे संशयी लोगों को।
समर्पण रहस्यवादी जुमलों का इस्तेमाल नहीं करते। वे सीधे कहते हैं – “कायम रहने के लिए सचेत संघर्ष ही जीवन है।”
समर्पण कहते हैं — हर प्रजाति का अस्तित्व उसकी सक्रियता के सीमित क्षेत्र में समटा रहता है। लेकिन मनुष्य वृद्धि के द्वारा अधिक बड़ा स्थान सृजित करने के लिए अपने अस्तित्व को एक मंच के रुप में इस्तेमाल कर असम्भव की आकांक्षा रखता है और उसे हासिल करता है।
वृद्धि और उसके बाद स्वाधीनता हासिल करने के लिए अस्तित्व में शक्ति का योगदान कर स्थान तराशा(carve) जाता है।
मैं अपनी परछाइयों में उलझ गया। मुझे अस्तित्व Existence के साथ साथ पैटर्न युक्त तथा बिना पैटर्न की ऊर्जा, अनन्य Exclusive तथा सम्मिलित Inclusive एवम् जीवन का दर्शन– जैसे शब्दों के मेरे अपने ही तरीके के मायनी मिलने लगे। मेरी समझ में अनन्य अस्तित्व में हम बस खुद और खुद से सरोकार रखनेवालों से ही मतलब रखते हैं. जब कि सम्मिलित अस्तित्व उनलोगों का होता है जो परिवेशीय विवेक से युक्त होते हैं, जो अपने पारस्थितिक तंत्र के जैव और निर्जीव अवयवों के प्रति संवेदनशील होते हैं।
सम्मान—– समर्पण कहते हैं अगर कोई एक मूल्य ऐसा है जिसका पूरी दुनिया में पालन होना चाहिए तो वह है – सम्मान करने की रीति। सत्य, आत्मसंयम. अहिंसा और ईमानदारी जैसे मूल्य स्वतः इसका अनुसरण करते हैं। तभी से मैं सम्मान के पहलुओं को समझने की कोशिश कर रहा हूँ । हर व्यक्ति में ऐसे लक्षण दिख सकते हैं जो सम्माननीय हो. आप उस व्यक्ति को प्यार नहीं कर सकते, जिसके लिए आपके मन में सम्मान नहीं हो।
व्यक्ति को सम्मान करें। तब आपको उसके अनोखेपन को समझने की क्षमता मिलेगी। तब हो सकता है कि आप उसे उसकी पूरी सम्भावनाओं का एहसास दिला सकें। यह कोई रोल मॉडल और हासिल करने के लिए लक्ष्य तय करने के विपरीत होता है।
सतत संघर्ष के जरिए बिना पैटर्न की ऊर्जा को पैटर्न युक्त ऊर्जा में रुपान्तरित करने की क्रियाविधि पर वृद्धि निर्भर करती है। जब संघर्ष सचेत होता है तो इसे प्रयास कहते हैं।
जीवन में वृद्धि प्रतिबद्धता पर निर्भर करती है, निश्चित पराजय के सामने रहते हुए भी वृद्धि में अवरोध नहीं आता। । अपनी पसन्द और नापसन्दी के कारण हम चीजों को उनके सही परिप्रेक्ष्य में नहीं देख पाते, क्योंकि हमारी समझ हमेशा लगाव और विमुखता से रंजित रहती है। सम्यक सफाई की जाने की जरूरत होती है ताकि चीजें वैसी ही नजर आएँ जैसी वे होती हैं।
आकांक्षाएँ, आदर्श और मूल्य बिना पैटर्न की ऊर्जा को वृद्धि में रुपान्तरित करती हैं। जब कोई व्यक्ति किसी आदर्श के साथ बँधा रहता है, तब वह अपने अन्दर काफी ऊर्जा उत्पन्न कर सकता है, जिसके नतीजे में वह विकसित होता है। बिखरी हुई, बेतरतीब ऊर्जा वृद्धि द्वारा पैटर्नयुक्त ऊर्जा में उन्नत होती है। व्यक्ति प्रज्ञ होता है।
जीवन अस्तित्व के लिए एक सचेत संघर्ष है। प्रत्येक मानवेतर प्रजाति का जीवन उसकी गतिविधि के सीमित स्थान से ही बँधा रहता है।. लेकिन मनुष्य असम्भव की आकांक्षा करता है और उसे प्राप्त करता है, वृद्धि के द्वारा अधिक बड़ा आकाश निर्माण करने के लिए अपने अस्तित्व को मच के रुप में उपयोग करने के लिए ।
मानव जीवन में अस्तित्व की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति उन दृष्टान्तों में देखी जा सकती हैं जब यह बाधा का अतिक्रमण करने के लिए नई सम्भावनाएँ पैदा करता है।हम तभी हारते हैं जब हम हारने के लिए राजी हो जाते हैं, क्योकि जीवन अनन्त सम्भावनाओं का प्रवेश-द्वार हुआ करता है।
जीवन महत्वपूर्ण है, लेकिन जीवन का दर्शन अधिक महत्वपूर्ण है. हमें जानना चाहिए कि हम क्यों जी रहे हैं। जीवन का दर्शन हताशा और यन्त्रणा से उबरने की ताकत देता है. महान लोग भी यन्त्रणा पाते हैं, लेकिन वे कभी हताश नहीं होते क्योंकि उनके पास जीवन का दर्शन होता है
मानव जीवन की यात्रा शारीरिक वृद्धि से शुरु होती है, बौद्धिक वृद्धि से होकर गुजरती है और आध्यात्मिक वृद्धि में समाप्त होती है. जिसका प्रकाश व्यक्ति में प्रज्ञा के रुप में होता है।
मनीषी वह होता है जसने जीवन की सच्चाइयों को समझ लिया है और इसलिए जिसका संसार के प्रति दृष्टिकोण तृष्णा से बदलकर समर्पण की ओर हो जाता है।
प्रज्ञा में वद्धि करने के लिए, हमें, किसी विचार, आदर्श अथवा आकांक्षाओं को केन्द्र में रखकर दीर्घ काल तक सचेत प्रयास करना होता है।

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