बच्चों का पन्ना कौवा का स्कूल August 13, 2013 / August 13, 2013 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment सिर पर भारी बस्ता लादे, कौवा जी पहुँचे स्कूल लेकिन जल्दी जल्दी में वे, रबर पेंसिल आए भूल| […] Read more » कौवा का स्कूल
बच्चों का पन्ना हाँथी जी की शादी August 10, 2013 / August 10, 2013 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment हाँथी जी की शादी थी, दिन महज बचे थे चार| दरजी ना कर पाया था, उनके कपड़े तैयार| बीमारी से दरज़ी की, माता जी थीं बेहाल| ऊनकी दवा कराने दर्ज़ी चला गया भोपाल| बिना सूट के कैसे होगी, शादी,गज घबराया| सभी जानवरों को उसने, रो रो कर हाल सुनाया| बड़े बुज़ुर्गों ने आपस में, सहमति […] Read more » हाँथी जी की शादी
बच्चों का पन्ना बाल कविता : आम का पेड़ August 8, 2013 / August 8, 2013 by मिलन सिन्हा | 3 Comments on बाल कविता : आम का पेड़ मिलन सिन्हा यह है आम का पेड़ इसमें आम लगे हैं ढेर। बच्चे खेलते हैं इसके नीचे भागते हैं एक दूसरे के पीछे। थक कर फिर बैठ जाते हैं मिलजुल कर आम खाते हैं। झूले भी लगे हैं यहाँ – वहाँ ऐसा मजा फिर मिलेगा कहाँ। आम के पेड़ होते […] Read more » बाल कविता : आम का पेड़
बच्चों का पन्ना बेटे की सीख August 5, 2013 / August 5, 2013 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | 1 Comment on बेटे की सीख बेटे ने उस दिन बापू से, कहा,पिताजी वोट डालिये| आज मिला चुनने का मौका, इस मौके को को नहीं टालिये| यह अवसर भी गया हाथ से, पांच साल फिर न आयेगा| थोड़ी सी गफलत के कारण, गलत आदमी चुन जायेगा| ऐसे में तो अंधकार के, हाथों सूरज हार जायेगा| झूठों के चाबुक सॆ सच्चा, निश्चित […] Read more » बेटे की सीख
बच्चों का पन्ना चंद्र ग्रहण July 29, 2013 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment प्रभुदयाल श्रीवास्तव बहुत दिनों से सोच रहा हूं, मन में कब से लगी लगन है| आज बताओ हमें गुरुजी, कैसे होता सूर्य ग्रहण है| बोले गुरुवर,प्यारे चेले, तुम्हें पड़ेगा पता लगाना| तुम्हें ढूढ़ना है सूरज के, सभी ग्रहों का ठौर ठिकाना| ऊपर देखो नील गगन मे, हैं सारे ग्रह दौड़ लगाते| बिना रुके सूरज के […] Read more » चंद्र ग्रहण
बच्चों का पन्ना कलयुग के मुर्गे July 27, 2013 / July 27, 2013 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment रोज चार पर मुर्गों की अब, नींद नहीं खुल पाती बापू| इस कारण से ही तो अब वे, गाते नहीं प्रभाती बापू| कुछ सालों पहिले तो मुर्गे, सुबह बाँग हर दिन देते थे| उठो उठो हो गया सबेरा, संदेशा सबको देते थे| किंतु बात अब यह मुर्गों को, बिल्कुल नहीं सुहाती बापू| इस कारण से […] Read more » कलयुग के मुर्गे
बच्चों का पन्ना पौधों का करिश्मा July 22, 2013 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment क्राफ्ट विषय में उसने बागवानी लिया था|सबसे अच्छा उसे यही लगा था|बाकी दर्जीगिरी और कताई बुनाई भी एच्छिक विषयों में थे,परंतु दर्जीगिरी के विषय में तो सोचकर ही वह सिहर उठता था|पहले कपड़े का नाप लो, फिर जो आइटम बनाना है […] Read more » पौधों का करिश्मा
बच्चों का पन्ना तितली July 20, 2013 / July 20, 2013 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment इस तितली के पंख सुनहरे पीले हैं| उस तितली के पंख हरे और नीले हैं| किसी ओस के घर में रहकर आई है| इस कारण से अंग अभी तक गीले हैं| उस बगिया में दौड़ दौड़ कर जाती है| क्योंकि पुष्प वहां के सभी रसीले हैं| लगता है मिलकर पराग से आई है| शायद इससे […] Read more »
बच्चों का पन्ना बाल कविता : बच्चों की कल्पना July 14, 2013 / July 14, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment मिलन सिन्हा बच्चों की कल्पना यही वह अपना गाँव है हम बच्चों का गाँव है। बन्दर है, मदारी है पनघट है, फूलों की क्यारी है खेत है, खलिहान है झूमते पेड़, खुला आसमान है। यही वह अपना गाँव है हम बच्चों का गाँव है। मदरसा है, पाठशाला है कोई गोरा, कोई काला […] Read more » बच्चों की कल्पना
बच्चों का पन्ना चीटी बोली July 12, 2013 / July 12, 2013 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment चीटी बोली चलो कहीं से , चना खरीदें भाई| अब तो सहन नहीं होता है, भूख मुझे लग आई| चीटा बोला शक्कर गुड़ की, गंध मुझे है आती| इतना मीठा माल रखा, तू खाने क्यों न जाती| बोली चीटी अरे भाईजी, गुड़ से डर है लगता | जो भी उसके गया तो, जाकर वहीं चिपकता| Read more » चीटी बोली
बच्चों का पन्ना जूनियर गधा July 5, 2013 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment देखो मम्मी देखो पापा, बस्ता हमसे उठ न पाता| हम बच्चों का दर्द आप सब, लोगों को क्यों समझ न आता| आठ सेर का वज़न हमारा, बस बस्ता तो दस का है माँ| इसको कंधे पर ले जाना, नहीं हमारे बस का है माँ| हम बच्चों पर कहर इस तरह, क्यों दुनियाँ वाले […] Read more » जूनियर गधा
बच्चों का पन्ना मुट्टा July 5, 2013 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment ” ऐसे ऐसे एक था घर” ” घर कहाँ था दद्दा?” “घर,घर कहां होता है?” ” गांव में होता है, शहर में होता है और कहाँ होता है|” “नहीं यह घर था पहाड़ की तलहटी में” “अरे बाप रे पहाड़ पर” “अरे बुद्धु,पहाड़ पर नहीं पहाड़ के नीचे” ” अच्छा…..दद्दा ठीक है ,फिर आगे क्या […] Read more » मुट्टा