धर्म-अध्यात्म यशोदानंदन-८ February 24, 2015 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment कंस वापस अपने राजप्रासाद में आ तो गया परन्तु भगवान के प्रति शत्रुता के सागर में निमग्न वह बैठे-सोते, चलते-फिरते, भोजन करते, काम करते – जीवन की सभी अवस्थाओं में भगवान विष्णु का ही चिन्तन करने लगा। वह जितना ही इस चिन्तन से बाहर निकलने का प्रयास करता, उतना ही अनायास गहरे में डूब […] Read more » yashodanandan यशोदानंदन यशोदानंदन-८
धर्म-अध्यात्म यशोदानंदन-७ February 23, 2015 / February 24, 2015 by विपिन किशोर सिन्हा | 2 Comments on यशोदानंदन-७ अब वसुदेव को अपने शिशुओं को लेकर कंस के पास नहीं आना पड़ता था। शिशु के जन्म का समाचार पाते ही वह क्रूर स्वयं बन्दीगृह में पहुंचता था। देवकी की गोद से शिशु को छीन उनके सम्मुख ही पत्थर पर पटक देता था। छोटी बहन बिलखती रहती। अत्यधिक दुःख के कारण चेतनाशून्य हो जाती लेकिन […] Read more » यशोदानंदन
चिंतन जन-जागरण सरकार के सामने सपनों को पंख देने की चुनौती February 23, 2015 / February 24, 2015 by शाहिद नकवी | Leave a Comment देश मे लम्बे अर्से के बाद एक मजबूत प्रधानमंत्री के नेतृत्व मे पूर्ण बहुतम वाली सरकार अपना वास्तविक आम बजट पेश करने जा रही है ।हांलाकि जुलाई 2014 में भी इस सरकार ने बजट पेश किया था लेकिन ये बजट सरकार बनने के छह सप्ताह के भीतर पेश किया गया था इसलिए उसे उतनी तवज्जो […] Read more » budget 2015 india
धर्म-अध्यात्म यशोदानंदन-६ February 15, 2015 / February 15, 2015 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment कंस बाल्यकाल से ही आततायी और आसुरी प्रवृत्ति का था। राजा उग्रसेन के अथक प्रयास के पश्चात भी उसके स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं आया। वह उग्र से उग्रतर होता ही गया। युवराज पद पर अभिषेक के पश्चात् तो वह एक प्रकार से राजा ही हो गया। महाराज उग्रसेन का साम्राज्य उनके लिए मात्र […] Read more » यशोदानंदन-६
धर्म-अध्यात्म यशोदानंदन-५ February 14, 2015 / February 14, 2015 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment “महर्षि! श्रीकृष्ण का मथुरा में प्रवेश से लेकर कंस-वध का संपूर्ण वृतांत का आप अपने श्रीमुख से मुझे सुनाकर अनुगृहीत करने की कृपा करेंगे? मेरा हृदय, मेरा रोम-रोम, मेरा समस्त अस्तित्व अपने प्रिय पुत्र के कुशल-क्षेम के लिए व्याकुल है। मुझपर कृपा कीजिए महर्षि, मुझपर कृपा कीजिए” “श्रीकृष्ण के चरित्र और कृत्य को सुनने-सुनाने से […] Read more » यशोदानंदन यशोदानंदन-५
धर्म-अध्यात्म यशोदानंदन-४ February 13, 2015 / February 13, 2015 by विपिन किशोर सिन्हा | 1 Comment on यशोदानंदन-४ गर्गाचार्य के पास कोई विकल्प शेष नहीं रहा। उन्होंने समस्त उपस्थित जन समुदाय को अपना-अपना स्थान ग्रहण करने का निर्देश दिया और स्वयं अपना आसन ग्रहण करने के पश्चात्अपना कथन आरंभ किया – “पुत्री यशोदा और प्रिय नन्द जी! तुम दोनों समस्त शरीरधारियों में अत्यन्त भाग्यशाली और स्राहनीय हो। जो अवसर सृष्टि के आरंभ […] Read more » यशोदानंदन
धर्म-अध्यात्म यशोदानंदन-३ February 12, 2015 / February 12, 2015 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment महर्षि की बातें यशोदा जी बड़े ध्यान से सुन रही थीं। जैसे ही ऋषिवर ने अपना कथन समाप्त किया उनके मुखमंडल पर एक विशेष आभा प्रकट हुई। नेत्रों में एक चमक आ गई। अधरों पर एक पवित्र स्मित-रेखा ने स्थान बना लिया। परन्तु विह्वलता कम नहीं हुई। परिचारिकाओं की सहायता से वे पर्यंक पर […] Read more » यशोदानंदन
धर्म-अध्यात्म बोधत्व राष्ट्र के लिए February 12, 2015 / February 12, 2015 by शिवदेव आर्य | 1 Comment on बोधत्व राष्ट्र के लिए शिवदेव आर्य संसार में जितने भी पर्व तथा उत्सव आते हैं, उन सबका एक ही माध्यम (उद्देश्य) होता है – हम कैसे एक नए उत्साह के साथ अपने कार्य में लगें? हमें अब क्या-क्या नई-नई योजनाएं बनाने की आवश्यकता है, जो हमें उन्नति के मार्ग का अनुसरण करा सकें। समाज में दृष्टिगोचर होता है […] Read more » बोधत्व राष्ट्र के लिए
धर्म-अध्यात्म यशोदानंदन-२ February 11, 2015 / February 11, 2015 by विपिन किशोर सिन्हा | 2 Comments on यशोदानंदन-२ सेवकों ने दोनों पर्यंकों को पास ला दिया। यशोदा जी की दृष्टि जैसे ही पति पर पड़ी, वे बोल पड़ीं – “कहाँ छोड़ आए मेरे गोपाल को …………?” आगे बोलने के पूर्व ही वाणी अवरुद्ध हो गई। नेत्रों ने पुनः जल बरसाना आरंभ कर दिया। नन्द जी कातर नेत्रों से श्रीकृष्ण की माता को देखे […] Read more » यशोदानंदन
धर्म-अध्यात्म यशोदानन्दन -१ February 10, 2015 / February 10, 2015 by विपिन किशोर सिन्हा | 2 Comments on यशोदानन्दन -१ “क्या कहा आपने? कृष्ण मेरा पुत्र नहीं है? यह कैसे हो सकता है? मुझे स्मरण नहीं कि आपने कभी मिथ्यावाचन किया हो। फिर यह असत्य संभाषण क्यों? कही आप मेरे साथ हंसी तो नहीं कर रहे हैं? लेकिन यह विनोद का समय नहीं। बताइये वह कहाँ है? उसे कहाँ छोड़ आए आप? वह […] Read more » यशोदानन्दन
धर्म-अध्यात्म तंत्र में मानवीय मंत्र स्थापना का सिद्धांत February 10, 2015 by प्रवीण गुगनानी | Leave a Comment सन्दर्भ: एकात्म मानववाद भारत को देश से बहुत अधिक आगे बढ़कर एक राष्ट्र के रूप में और इसके अंश के रूप में यहाँ के निवासियों को नागरिक नहीं अपितु परिवार सदस्य के रूप में माननें के विस्तृत दृष्टिकोण का अर्थ स्थापन यदि किसी राजनैतिक भाव या सिद्धांत में हो पाया है तो वह है पंडित […] Read more » एकात्म मानववाद तंत्र में मानवीय मंत्र स्थापना का सिद्धांत
धर्म-अध्यात्म ‘वेद पारायण व बहुकुण्डीय यज्ञों का औचीत्य और प्रासंगिकता’ February 3, 2015 by मनमोहन आर्य | 1 Comment on ‘वेद पारायण व बहुकुण्डीय यज्ञों का औचीत्य और प्रासंगिकता’ आर्य जगत की पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से समय-समय पर ज्ञात होता है कि अमुक-अमुक स्थान पर बहुकुण्डीय यज्ञ हो रहा है व कहीं किसी एक वेद और कहीं चतुर्वेद पारायण यज्ञ हो रहें हैं। यदा-कदा यह सुनने को भी मिलता है कि किसी स्थान पर एक विशाल यज्ञ हो रहा है जिसमें लाखों व करोड़ों […] Read more » ‘वेद पारायण बहुकुण्डीय यज्ञों का औचीत्य बहुकुण्डीय यज्ञों का प्रासंगिकता’