चिंतन धर्म-अध्यात्म ‘ईश्वर व उसकी उपासना पद्धतियां – एक वा अनेक?’ November 13, 2014 / November 15, 2014 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment हम संसार में देख रहे हैं कि अनेक मत-मतान्तर हैं। सभी के अपने-अपने इष्ट देव हैं। कोई उसे ईश्वर के रूप में मानता है, कोई कहता है कि वह गाड है और कुछ ने उसका नाम खुदा रखा हुआ है। जिस प्रकार भिन्न-भिन्न भाषाओं में एक ही संज्ञा – माता के लिए मां, अम्मा, माता, […] Read more » ‘ईश्वर व उसकी उपासना पद्धतियां - एक वा अनेक?’ god and the ways of their worship
धर्म-अध्यात्म धार्मिक इण्डस्ट्री के बीज November 3, 2014 / November 3, 2014 by डॉ. कौशल किशोर मिश्र | Leave a Comment कौशलेन्द्रम आबाबाबाबाबाबाबाबा ….शीबाबाबाबाबाबाबा ….हालू लुइया ….हालू लुइया …हालू लुइया …हालू लुइया ……धन्यवाद …धन्यवाद ….धन्यवाद ….धन्यवाद …………..! जगदलपुर के लगभग हर मोहल्ले में स्थापित चर्चों में, अक्टूबर माह में आयोजित होने वाला, ईसाइयों का यह एक चंगाई और धन्यवादी समारोह है जिसमें चिल्ला-चिल्ला कर दोहराये जाने वाले हिब्र्यू भाषा के ये शब्द एक धार्मिक आवेश सा […] Read more »
चिंतन जन-जागरण समाज ‘हमारा स्वर्णिम अतीत और देश की अवनति के कारणों पर विचार’ October 29, 2014 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment ओ३म् संसार में वैदिक धर्म व संस्कृति सबसे प्राचीन है। इसका आधार चार वेद – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद हैं। वेदों का लेखक कोई मनुष्य या ऋषि-मुनि नहीं अपितु परम्परा से इसे ईश्वर प्रदत्त बताया जाता है। वैदिक प्रमाणों एवं विचार करने पर ज्ञात होता […] Read more » ‘हमारा स्वर्णिम अतीत और देश की अवनति के कारणों पर विचार’
धर्म-अध्यात्म दिपावली पर करें धन प्राप्ति और प्रसन्नता के लिए अष्टलक्ष्मी पूजन October 24, 2014 by मयंक चतुर्वेदी | Leave a Comment मयंक चतुर्वेदी सांसारिक जीवन में आज धन के महत्व को कोई नकार नहीं सकता। भारतीय परम्परा में वैदिक काल में ही इसके महत्व को स्वीकार करते हुए ऐसे मंत्रों और प्रार्थनाओं का श्रृजन किया गया था जिससे मनुष्य जीविनभर अधिक से अधिक धन कमाने के प्रयास कर सके। आज यह सिद्ध भी हो गया है […] Read more » अष्टलक्ष्मी पूजन
धर्म-अध्यात्म महाभारत – ७ October 21, 2014 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment धृतराष्ट्र फिर भी अपना ध्येय नहीं बदलता। वह प्रतिप्रश्न करता है – मेरी राजसभा भीष्म, द्रोण, कृप आदि वीर पुरुषों और ज्ञानियों से अलंकृत है। वे सभी महासमर में मेरा ही साथ देंगें। फिर मैं अपनी विजय के प्रति आश्वस्त क्यों नहीं होऊं। विदुरजी धृतराष्ट्र की राजसभा की पोल खोलते हुए कहते हैं – […] Read more » महाभारत
धर्म-अध्यात्म अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाय October 21, 2014 by प्रणय विक्रम सिंह | Leave a Comment प्रणय विक्रम सिंह दीपावली अर्थात आलोक का विस्तार। पराजित अमावस्या का उच्छवास, घोर अंधकार का पलायन, आलोक सुरसरि का धरती पर अवतरण है दीपावली। आकाश के अनंत नक्षत्र मंडल से धरा की मूर्तिमान स्पर्धा है दीपावली। मनुष्य की चिर आलोक पिपासा के लिए चहुं दिसि आलोक वर्षा है दीपोत्सव का पर्व। अंधकार पर प्रकाश की […] Read more » अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाय
जन-जागरण धर्म-अध्यात्म शुभ-लाभ नहीं होगा, चीन के अशुभ सामान से October 21, 2014 / November 15, 2014 by प्रवीण गुगनानी | Leave a Comment शुभ-लाभ नहीं होगा, चीन के अशुभ सामान से भारतीय परम्पराओं और शास्त्रों में केवल लाभ अर्जन करनें को ही लक्ष्य नहीं माना गया बल्कि वह लाभ शुभता के मार्ग से चल कर आया हो तो ही स्वीकार्य माना गया है. दीवाली के इस अवसर पर जब हम अपनें निवास और व्यवसाय स्थल पर शुभ-लाभ लिखतें […] Read more » चीन के अशुभ सामान से शुभ-लाभ नहीं होगा
धर्म-अध्यात्म महाभारत – ६ October 20, 2014 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment यदि ज्ञान से धृतराष्ट्र का हृदय परिवर्तन संभव होता, तो विदुर के वचनों से कभी का हो गया होता। विदुरजी को यह तथ्य ज्ञात है फिर भी वे बार-बार सत्परामर्श देने से चुकते नहीं हैं। उस रात्रि में धृतराष्ट्र की उद्विग्नता कम होने का नाम ही नहीं लेती। उसे ज्ञान नहीं, सान्त्वना की आवश्यकता थी […] Read more » महाभारत
धर्म-अध्यात्म महाभारत-५ October 19, 2014 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment श्रीकृष्ण और युधिष्ठिर का उत्तर सुनने के बाद संजय के पास कहने को कुछ भी शेष नहीं रहा। वह जाने के लिए प्रस्तुत होता है। अर्जुन उसे विदा करने जाते हैं। सदा कर्म में विश्वास करनेवाले अर्जुन सदैव अल्पभाषी रहे हैं। बहुत आवश्यकता पड़ने पर ही वे कुछ बोलते थे। संजय के माध्यम से […] Read more » महाभारत
धर्म-अध्यात्म महाभारत-४ October 19, 2014 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment श्रीकृष्ण आरंभ में युद्ध ही एकमात्र समाधान है, ऐसा नहीं मानते। सर्वशक्तिमान होने के बावजूद वे कभी अनायास शक्ति-प्रयोग की बात भी नहीं करते परन्तु उपमा-उपमेय के द्वारा शिष्ट भाषा में सबकुछ कह भी जाते हैं। संजय के माध्यम से वे धृतराष्ट्र को संदेश देते हैं – वनं राजा धृतराष्ट्रः सपुत्रो व्याघ्रा वने संजय […] Read more » महाभारत
धर्म-अध्यात्म महाभारत-३ October 17, 2014 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment संजय भी जल्दी हार माननेवाला कहां था। वह ज्ञानी भले ही न हो, जानकार तो था ही। सामान्य जन ज्ञान और जानकारी को एक ही मानते हैं। सत्य और असत्य को पहचानना उतना कठिन नहीं है, जितना ज्ञान और जानकारी में अन्तर समझना। ज्ञान प्राप्त होने के बाद मनुष्य मौन हो जाता है। उसकी […] Read more » महाभारत
धर्म-अध्यात्म धर्मस्थलों का काम वातावरण को स्वच्छ बनाना,प्रदूषित करना नहीं? October 17, 2014 / October 17, 2014 by निर्मल रानी | 3 Comments on धर्मस्थलों का काम वातावरण को स्वच्छ बनाना,प्रदूषित करना नहीं? निर्मल रानी जनता दल युनाईटेड के अध्यक्ष शरद यादव ने पिछले दिनों अपने एक बयान में कहा कि सभी धर्मस्थानों से लाऊडस्पीकर हटा दिए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि श्रद्धालु लोग स्वेच्छा से धर्म स्थलों को जा सकते हैं उन्हें बुलाने की कोई आवश्यकता नहीं है। यादव ने कहा कि धर्मस्थलों पर लाऊडस्पीकर के इस्तेमाल […] Read more » धर्मस्थलों का काम