लेख BE और MSc: शिक्षा के स्तर नहीं, सोच के आईने हैं September 3, 2025 by महिमा सामंत | Leave a Comment महिमा सामंत यहाँ उल्लिखित MSc से आशय भौतिकी, रसायनशास्त्र, गणित आदि शुद्ध विज्ञान विषयों की स्नातकोत्तर डिग्री से है। कुछ लोग BE (स्नातक डिग्री) और इस प्रकार की MSc (स्नातकोत्तर डिग्री) की ग़लत तुलना करके, MSc करने वालों को BE करने वालों से कम महत्त्व का समझते हैं। इस लेख में उसी ग़लत धारणा के […] Read more » BE and MSc: They are not levels of education they are mirrors of thinking
पर्यावरण लेख जल प्रलय के सन्देश ? September 2, 2025 / September 2, 2025 by तनवीर जाफरी | Leave a Comment तनवीर जाफ़रीभारत के पंजाब राज्य को सबसे उपजाऊ धरती के राज्यों में सर्वोपरि गिना जाता है। इसका मुख्य कारण यही है कि यह राज्य खेती के लिये सबसे ज़रूरी समझे जाने वाले कारक यानी पानी के लिये सबसे धनी राज्य है। सिंधु नदी की पांच सहायक नदियाँ सतलुज, ब्यास, रावी, चिनाब और झेलम इसी पंजाब […] Read more » जल प्रलय के सन्देश
बच्चों का पन्ना लेख स्वास्थ्य-योग स्कूली बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य: एक सामूहिक जिम्मेदारी September 2, 2025 / September 2, 2025 by उमेश कुमार सिंह | Leave a Comment डॉ. मनोज कुमार तिवारी वरिष्ठ परामर्शदाता एआरटीसी, एस एस हॉस्पिटल, आईएमएस, बीएचयू, वाराणसी आज के दौर में स्कूली बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता और उस पर ध्यान देना अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है। बच्चे हमारे समाज और राष्ट्र का भविष्य हैं, और एक स्वस्थ भविष्य की नींव उनके शारीरिक और मानसिक कल्याण पर ही टिकी होती है। जिस प्रकार […] Read more » Mental health of school children स्कूली बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य स्कूली बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य: एक सामूहिक जिम्मेदारी
लेख सच्चे शिक्षक वही जो सोंचने के लिए प्रेरित करें September 2, 2025 / September 2, 2025 by शम्भू शरण सत्यार्थी | Leave a Comment शम्भू शरण सत्यार्थी भारत ज्ञान और गुरुकुल परंपरा का देश रहा है। यहाँ शिक्षक का स्थान सर्वोच्च माना गया है। हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु और गुरु महेश्वर हैं। अर्थात गुरु ही सृष्टि का निर्माण करने वाले, उसे सँभालने वाले और अज्ञान का नाश करने वाले होते हैं। यही […] Read more » शिक्षक शिक्षक का महत्व
लेख समाज सरकारी नौकरी के लिए वैवाहिक रिश्ते दांव पर September 2, 2025 / September 2, 2025 by अमरपाल सिंह वर्मा | Leave a Comment अमरपाल सिंह वर्मा हमारा समाज रिश्तों और विश्वास की नींव पर खड़ा है। हम विवाह को एक संस्था और वैवाहिक बंधन को सात जन्मों का बंधन मानते हैं लेकिन अब विवाह का यह बंधन लालच की सीढ़ी बन रहा है। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकारी नौकरी पाने के लिए लोग कागजों पर शादी और […] Read more » Marital relations are at stake for government job सरकारी नौकरी के लिए वैवाहिक रिश्ते दांव पर
लेख खतरनाक मौसम में भी स्कूल खुले क्यों? September 2, 2025 / September 2, 2025 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment “बच्चों की सुरक्षा बनाम औपचारिकता का सवाल: जर्जर स्कूल भवन, प्रशासन की संवेदनहीनता और बाढ़-गंदगी के बीच पढ़ाई नहीं, जीवन की रक्षा पहली प्राथमिकता – आपदा में भी आदेशों की राजनीति क्यों?” बारिश और बाढ़ की स्थिति में बच्चों और शिक्षकों को स्कूल बुलाना उनकी जान से खिलवाड़ है। जर्जर इमारतें, गंदगी, जलभराव और यातायात […] Read more » Why are schools open even in dangerous weather? खतरनाक मौसम में भी स्कूल
लेख पंजाब में बाढ़ आखिर क्यों – क्या प्रकृति रुष्ट है? September 1, 2025 / September 1, 2025 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment “प्रकृति चेतावनी देती है, रुष्ट नहीं होती – असली वजह इंसानी लापरवाही और असंतुलित विकास” पंजाब में बाढ़ को केवल प्राकृतिक आपदा कहना सही नहीं होगा। नदियों का स्वरूप, असामान्य बारिश और जलवायु परिवर्तन तो कारण हैं ही, लेकिन असली दोषी अनियोजित निर्माण, अवैध खनन, ड्रेनेज की उपेक्षा और धान-प्रधान कृषि पद्धति भी है। प्रकृति […] Read more » Why is there flood in Punjab – पंजाब में बाढ़ आखिर क्यों
लेख खनिज उत्खनन से होगा रोजगार का हल September 1, 2025 / September 1, 2025 by प्रमोद भार्गव | Leave a Comment प्रमोद भार्गव दुनिया तकनीकी प्रकृति चाहे जितनी कर ले, अंततः उसकी आर्थिक उन्नति, प्रगति एवं विकास के हल प्राकृतिक संपदा में ही निहित हैं। भारत हो या कोई अन्य देश खनिज और कृषि के बूते ही उन्नति के शिखर छूते हैं। इस दृष्टि से भारत भूमि को कुदरत ने अटूट प्राकृतिक संपदा दी हुई है। […] Read more » रोजगार का हल
लेख सड़क हादसेः बेसुध प्रशासन, लाचार सरकार September 1, 2025 / September 1, 2025 by प्रमोद भार्गव | Leave a Comment संदर्भ -सड़क परिवहन मंत्रालय ने तेज गति पर फोड़ा सड़क हादसों का ठीकरा प्रमोद भार्गव देश में सड़क दुर्घटनाओं को लेकर 2023 की नई रिपोर्ट आई है, लेकिन हाल वही पुराना है। बीते वर्श की तुलना में 4.2 प्रतिशत हादसे बढ़ गए, इनमें जान गवांने वालों की संख्या भी बढ़ गई। षासन और प्रशासन ने […] Read more » helpless government Road accidents: Insensitive administration सड़क हादसेः
Health लेख न्यायालय की फटकार और डॉक्टरों की लिखावट September 1, 2025 / September 1, 2025 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment “जहाँ पर्ची के हर अक्षर स्पष्ट होंगे, वहीं मरीज का जीवन और अधिकार सुरक्षित रहेंगे।” “पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट का हालिया आदेश एक मील का पत्थर है। अदालत ने डॉक्टरों को साफ और स्पष्ट पर्ची लिखने का निर्देश देकर सीधे मरीज के जीवन और अनुच्छेद 21 से इसे जोड़ा है। यह आदेश केवल लिखावट की औपचारिकता नहीं, […] Read more » The court's rebuke and the doctors' writings डॉक्टरों की लिखावट
लेख लोक मेले बचा सकते हैं ग्रामीण कुटीर उद्योगों की सांसें August 27, 2025 / August 28, 2025 by अमरपाल सिंह वर्मा | Leave a Comment अमरपाल सिंह वर्मा राजस्थान सरकार ने हाल ही में ‘विकसित राजस्थान 2047’ विजन डॉक्यूमेंट को मंजूरी दी है। इसमें राज्य को 2047 तक 4.3 ट्रिलियन डॉलर की अर्थ व्यवस्था बनाने का लक्ष्य रखा गया है। यह लक्ष्य न केवल बड़े औद्योगिक निवेश बुनियादी ढांचे के निर्माण पर निर्भर करेगा बल्कि ग्रामीण समाज की भागीदारी पर भी इसमें महत्वपूर्ण है। सरकार गांवों के उत्पादों को वैश्विक पहचान दिलाने की दिशा में कदम बढ़ाने की इच्छुक है। यह सोच निश्चित ही दूरदर्शी है लेकिन बड़ा सवाल है कि इसे जमीन पर उतारने का व्यावहारिक रास्ता क्या है?अगर सरकार की सोच धरातल पर उतरती है तो गांवों में रोजगार को खूब बढ़ावा मिल सकता है। गांवों की महिलाएं बुनाई, कताई और कढ़ाई में माहिर हैं। हजारों परिवार पीढिय़ों से खादी, हस्तशिल्प, मिट्टी के बर्तन, लकड़ी की कलाकृतियां या अन्य घरेलू उद्योग चला रहे हैं. उनकी बिक्री न के बराबर है। गांवों के कुटीर उद्योग केवल रोजगार का साधन नहीं थे, वे हमारी संस्कृति और आत्म निर्भरता की पहचान थे लेकिन बाजार की अनुपलब्धता के कारण ग्रामीण कुटीर उद्योग कमजोर पड़ रहे हैं। बड़ी तादाद में लोग बेरोजगारी और आय की कमी के कारण गांव छोडक़र शहरों का रुख कर रहे हैं। प्रश्न उठता है कि इस समाधान का क्या है? इस प्रश्न का उत्तर कहीं न कहीं राजस्थान मेला आयोजक संघ के सचिव जगराम गुर्जर के सुझाव में छिपा है। गुर्जर तीन दशक से लोक मेले आयोजित कर रहे हैं। उनका कहना है कि विभिन्न धार्मिक, पर्यटन महत्व के स्थानों सहित अकेले राजस्थान में ही सौ से अधिक लोक मेले हर साल आयोजित होते हैं और देश भर में इनकी संख्या हजारों में है। इन मेलों में हजारों लोग खरीदारी के लिए आते हैं। ऐसे में अगर राज्य के ग्रामीण कुटीर उद्योग, हस्तशिल्प, खादी और ग्रामोद्योग से जुड़े उत्पादों को मेलों में मंच दिया जाए तो कारीगरों को खरीदार और पहचान दोनों मिल सकते हैं।गुर्जर का यह सुझाव इसलिए भी प्रासंगिक है क्योंकि ग्रामीण उत्पादों की सबसे बड़ी समस्या बाजार का अभाव है। अगर ग्रामीणों को इन लोक मेलों में जोड़ दिया जाए तो उन्हें उत्पाद बेचने के लिए बड़ा अवसर मिल सकता है। स्थानीय से वैश्विक तक का सफर इस जरिए से शुरू किया जा सकता है।सरकार को गांवों के उत्पादों को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए चरणबद्ध रणनीति अपनानी होगी। सबसे पहले जरूरी है कि किसी जिले के उत्पाद को उसी जिले में पहचान दिलाई जाए। उसके बाद बड़े मेलों के माध्यम से उसे अन्य जिलों तक पहुंचाया जाए। जब राज्य भर में ब्रांड वैल्यू बने तो उसे राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ाया जाए और अंतत: उसी ब्रांड को वैश्विक बाजार में उतारा जाए, यानी वैश्विक पहचान का रास्ता स्थानीय पहचान से होकर ही जाता है।इस काम में सरकार की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। केवल विजन डॉक्यूमेंट में बड़े लक्ष्य लिख देने से कुछ नहीं हो सकता। सरकार को जिला उद्योग केंद्रों के माध्यम से गांवों के हस्तशिल्पियों, कारीगरों और बुनकरों का सर्वे कराना चाहिए। उनकी सूची बनाकर उन्हें मेलों में भागीदारी के लिए प्रेरित और सहयोग करना चाहिए। राज्य में लगने वाले मेले महज उत्सव नहीं हैं, वे ग्रामीण अर्थ व्यवस्था को गति देने का सर्वसुलभ बाजार साबित हो सकते हैं। गांवों के उत्पादों को ग्लोबल बनाने का संकल्प निश्चय ही सराहनीय है लेकिन यह सपना तभी साकार होगा जब सरकार और समाज मिलकर ग्रामीण उद्योगों को स्थानीय से वैश्विक तक की यात्रा तय करने में सहयोग दें। जगराम गुर्जर का मेला मॉडल इस यात्रा का सशक्त कदम हो सकता है। इससे न केवल कारीगरों की आर्थिक स्थिति सुधर सकती है बल्कि राजस्थान के पारंपरिक कुटीर उद्योगों को भी नई पहचान मिलना संभव है। अमरपाल सिंह वर्मा Read more »
लेख अर्धनग्न मुजरे के दौर में गुम होती साहित्यिक स्त्रियाँ August 27, 2025 / August 28, 2025 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment “सोशल मीडिया की चमक-दमक के शोर में किताबों का स्वर कहीं खो गया है।” इंस्टाग्राम और डिजिटल मीडिया का दौर है। यहाँ आकर्षण और तमाशा सबसे ज्यादा बिकते हैं। लेकिन समाज की आत्मा को बचाए रखने के लिए जरूरी है कि स्त्रियाँ फिर से साहित्य की ओर लौटें। इंस्टाग्राम का शोर कुछ समय बाद थम […] Read more » सोशल मीडिया की चमक-दमक के शोर में किताबों का स्वर