नरक और मोक्ष के द्वंद्व में फंसे बाबा रामदेव

बाबा रामदेव ने कल रामलीला मैदान में शानदार मीटिंग की। उस मीटिंग में अनेक स्वनामधन्य लोग जैसे संघ के गंभीर विचारक गोविन्दाचार्य,भाजपा नेता बलबीर पुंज, नामी वकील रामजेठमलानी,सुब्रह्मण्यम स्वामी,स्वामी अग्निवेश,किरण बेदी आदि मौजूद थे। बाबा रामदेव ने यह मीटिंग किसी योगाभ्यास के लिए नहीं बुलायी थी। यह विशुद्ध राजनीतिक मीटिंग थी। इस मीटिंग में बाबा रामदेव के अलावा अनेक लोगों ने अपने विचार रखे। यह मीटिंग कई मायनों में महत्वपूर्ण है। यह बाबा रामदेव की राजनीतिक आकांक्षाओं को साकार करने वाली मीटिंग थी।

एक नागरिक के नाते बाबा में राजनीतिक आकांक्षाएं पैदा हुई हैं यह संतसमाज और योगियों के लिए अशुभ संकेत है। बाबा का समाज में सम्मान है और सब लोग उन्हें श्रद्धा की नजर से देखते हैं।उनके बताए योगमार्ग पर लाखों लोग आज भी चल रहे हैं। योग की ब्रॉण्डिंग करने में बाबा की बाजार रणनीति सफल रही है। मुश्किल यह है कि जिस भाव और श्रद्धा से बाबा को योग में ग्रहण किया गया है राजनीति में उसी श्रद्धा से ग्रहण नहीं किया जाएगा।

बाबा रामदेव को यह भ्रम है कि वे जितने आसानी से योग के लिए लिए लोगों को आकर्षित करने में सफल रहे हैं उसी गति से राजनीतिक एजेण्डे पर भी सक्रिय कर लेंगे । बाबा राजनीतिक तौर पर जिन लोगों से बंधे हैं और जिन लोगों को लेकर वे राजनीतिक मंचों से भाषण दे रहे हैं उनमें अनेक किस्म के स्वयंसेवी संस्थाओं के कार्यकर्ता और नेता हैं। किरणबेदी से लेकर स्वामी अग्निवेश आदि इन सबकी सीमित राजनीतिक अपील है और ये लोग दलीय राजनीति में विश्वास नहीं करते। वरना अपना दल बनाते।

भारत में लोकतंत्र दलीय राजनीति से बंधा है और दलीय राजनीति कोई करिश्माई चीज नहीं है। राजनीति रैली की भीड़ इकट्ठा करने की कला नहीं है,भाषणकला नहीं है। दलीय राजनीति की समूची प्रक्रिया बेहद जटिल और अंतर्विरोधी है। मसलन योग सिखाते हुए बाबा रामदेव को धन मिलता है। जो सीखना चाहता है उसे पैसा देना होता है। राजनीति में बाबा को रैली करनी है ,अपने राजनीतिक विचार व्यक्त करने हैं,प्रचार करना है तो उन्हें अपनी गाँठ से धन खर्च करना होगा अथवा किसी सेठ-साहूकार-तस्कर-माफिया-भ्रष्ट पूंजीपति से मांगना होगा और कहना होगा कि मेरी मदद करो। आम जनता से पैसा जुगाडना और राजनीति करना यह आज के जमाने की कीमती राजनीति में संभव नहीं है।

बाबा जानते हैं राजनीति का मतलब राजनीति है, फिर और कोई गोरखधंधा नहीं चल सकता। राजनीति टाइमखाऊ और पैसाखाऊ है। योग में बाबा को जो आनंद मिलता होगा उसका सहस्रांश आनंद उन्हें राजनीति में नहीं मिलेगा। अभी से ही बाबा ने राजनीति के चक्कर में शंकर की बारात एकत्रित करनी आरंभ कर दी है । मसलन दिल्ली में कल जो रैली बाबा ने की उसमें मंच पर बैठे जितने भी नेता और सामाजिक कार्यकर्ता थे उनकी आम जनता में कितनी राजनीतिक साख है यह बाबा अच्छी तरह जानते हैं। इनमें कोई भी जनता के समर्थन से चुनकर विधानसभा-लोकसभा तक नहीं जा सकता। रामजेठमलानी- सुब्रह्मण्यम स्वामी की एक-एक आदमी की पार्टी है नाममात्र की। बाकी दो भाजपानेता मंच पर थे जिनका कोई जनाधार नहीं है। किरनबेदी और स्वामी अग्निवेश कहीं पर नगरपालिका का चुनाव भी नहीं जीत सकते। यही हाल अन्य लोगों का है। बाबा रामदेव आज अपनी सारी चमक,प्रतिष्ठा और भव्यता के बाबजूद यदि अपने मंच पर इस तरह के जनाधारविहीन नेताओं के साथ दिख रहे हैं तो भविष्य तय है कि कैसा होगा। कहने का यह अर्थ नहीं है कि रामजेठमलानी, अग्निवेश,सुब्रह्मण्यम स्वामी आदि जो लोग मंच पर बैठे थे उनकी कोई प्रप्तिष्ठा नहीं है। निश्चित रूप से ये लोग अपने सीमित दायरे में यशस्वी लोग हैं। लेकिन राजनीति में ये जनाधाररहित नेता हैं। राजनीति में मात्र साख से काम नहीं चलता वहां जनाधार होना चाहिए।

बाबा रामदेव की एक और मुश्किल है वे राजनीति करना चाहते हैं साथ ही योग-भोग और राजनीति का संगम बनाना चाहते हैं। राजनीति संयासियों-योगियों का काम नहीं है । यह एक खास किस्म का सत्ताभोगी कला,शास्त्र,और सिस्टम है।बाबा को भोग से घृणा है फिर वे राजनीति में क्यों जाना चाहते हैं ? राजनीति लंगोटधारियों का खेल नहीं है। राजनीति उन लोगों का काम भी नहीं जो घर फूंक तमाशा देखते हों। राजनीति एक उद्योग है।एक सिस्टम है। जिस तरह योग एक सिस्टम है।

बाबा योग के सिस्टम से राजनीति के सिस्टम में आना चाहते हैं तो इन्हें अपना मेकअप बदलना होगा। वे योगी के मेकअप और योग के सिस्टम से राजनीति के सिस्टम में नहीं आ सकते। उन्हें सिस्टम बदलना होगा। राजनीतिक सिस्टम की मांग है कि अब योगाश्रम खोलने की बजाय राजनीतिक दल के ऑफिस खोलें। अपने कार्यकर्ताओं को शरीरविद्या और योगविद्या की बजाय दैनंदिन राजनीतिक फजीहतों में उलझाएं। योगचर्चा की बजाय राजनीतिक चर्चाएं करें। स्वास्थ्य की बजाय अन्य राजनीतिक सवालों पर प्रवचन दें। इससे बाबा के अब तक के कामों का अवमूल्यन होगा। बाबा नहीं जानते राजनीति में हर चीज का अवमूल्यन होता है। व्यक्तित्व,मान-प्रतिष्ठा,पैसा,संगठन आदि सबका अवमूल्यन होता है।

यह सच है राजनीति और सत्ता की चमक बड़ी जबर्दस्त होती है लेकिन राजनीति में एक दोष है अवमूल्यन का। इस अवमूल्यन के वायरस का सभी शिकार होते हैं वे चाहे जिस दल के हों,जितने भी ताकतवर हों। राजनीति में निर्माण और अवमूल्यन स्वाभाविक प्रक्रिया है। बाबा रामदेव की राजनीति के प्रति बढ़ती ललक इस बात का संकेत है कि वे अब अवसान की ओर जाना चाहते हैं। वैसे योग का उनका कारोबार अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच चुका है। वे योग से जितना निचोड़ सकते थे उसका अधिकतम निचोड चुके हैं। जितने योगी बना सकते थे उतने बना चुके हैं।

आज बाबा रामदेव का योग ब्राण्ड सबसे पापुलर ब्राँण्ड है और इसकी चमक योग तक ही अपील करती है। योग की आंतरिक समस्याएं कई हैं,मसलन् योग में राजनीति का घालमेल करने से फासिज्म पैदा होता है। बाबा रामदेव जानते हैं या जानबूझकर अनजान बन रहे हैं,योग वस्तुतः धर्म है और धर्म और राजनीति का घालमेल अंततः फासिज्म के जिन्न को जन्म दे सकता है। भारत 1980 के बाद पैदा हुए राममंदिर के नाम से पैदा हुए खतरनाक राजनीतिक खेल को देख चुका है।

बाबा रामदेव को लगता है कि वे भ्रष्टाचार से परेशान हैं तो वे योग को कुछ सालों के लिए विराम दें और खुलकर राजनीति करें। राजनेता बनें,कुर्ता-पाजामा पहनें,पेंट-शर्ट पहनें, अपना ड्रेसकोड बदलें। जिस तरह योगियों का अपना ड्रेसकोड है,संतों का है,पुजारियों का है,उसी तरह राजनीतिज्ञों का भी है। बाबा अपना ड्रेसकोड बदलें। संत जब तक संत के ड्रेसकोड में है वह धार्मिक व्यक्ति है और यदि वह धर्म और राजनीति में घालमेल करना चाहता है तो यह स्वीकार्य नहीं है । राममंदिर आंदोलन की विफलता सामने है। भाजपा ने संतों का इस्तेमाल किया आडवाणी जी संत नहीं बन गए। वे रामभक्त राजनीतिज्ञ बने रहे,रामभक्त संत नहीं बने।

संतों की पूंजी पर भाजपा के अटलबिहारी बाजपेयी प्रधानमंत्री के पद पर पहुँचे थे लेकिन भाजपा ने अपने सांसदों में बमुश्किल 10 प्रतिशत सीटें भी संतों को नहीं दी थीं। बाद में जो संत भाजपा से चुने गए उनका इतिहास सुखद नहीं रहा है। संतों की ताकत से चलने वाले आंदोलन,जिसका पीछे से संचालन आरएसएस कर रहा था, का हश्र सामने है।

एनडीए की सरकार बनने पर राममंदिर एजेण्डा नहीं था। यह संतों के साथ भाजपा का विश्वासघात था। भाजपानेता जानते थे राममंदिर एजेण्डा रहेगा तो केन्द्र सरकार नहीं बना सकते, अटलजी प्रधानमंत्री नहीं बन सकते और फिर क्या था रामभक्तों ने आनन-फानन में राममंदिर को तीन चुल्लू पानी भी नहीं दिया और सरकार में जा बैठे। संतसमाज का इतना बडा निरादर पहले कभी किसी दल ने नहीं किया।

कायदे से भाजपा को अड़ जाना चाहिए था कि राममंदिर को हम अपने प्रधान लक्ष्य से नहीं हटाएंगे,लेकिन सत्ता सबसे कुत्ती चीज है उसे पाने के लिए राजनेता किसी भी नरक में जाने को तैयार रहते हैं और एनडीए का तथाकथित मोर्चा तब ही बना जब राममंदिर के सवाल को भाजपा ने छोड़ दिया। संतों के राजनीतिक पराभव और भाजपा के राजनीतिक उत्थान के बीच यही अंतर्क्रिया है। संतों ने शंख बजाए भाजपा ने सत्ता पायी।

संदेह हो रहा है कि कहीं बाबा रामदेव नए रूप में संतसमाज को फिर से राजनीतिक गोलबंदी करके एकजुट करके भाजपा को सत्ता पर बिठाने की रणनीतियों पर तो नहीं चल रहे ?

बाबा रामदेव को जितनी भ्रष्टाचार से नफरत है उन्हें विभिन्न दलों और खासकर भाजपा के बारे में अपने विचार और रिश्ते को साफ करना चाहिए। मसलन बाबा ने कांग्रेस को भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार ठहराया है और वे बार-बार उसके खिलाफ बोल रहे हैं। लेकिन पश्चिम बंगाल में कुछ महिने पहले बाबा आए थे,कोलकाता में उन्होंने खुलेआम कहा वे ममता बनर्जी के लिए वोट मांगेगे। बाबा जानते हैं कि उनके बयान का अर्थ है कि कांग्रेस के लिए ही वोट मांगेगे। किनके खिलाफ वोट मानेंगे ? बाबा वाममोर्चे के खिलाफ वोट मांगेंगे। वे जानते हैं वाममोर्चा कालेधन के खिलाफ संघर्ष तब से कर रहा है जब बाबा का योगी के रूप में जन्म नहीं हुआ था। यदि बाबा अपने विचारों पर अडिग हैं और उन्हें भ्रष्टनेताओं से चिड़ है तो वे बताएं कि वामशासन में 35 सालों में किस मंत्री या मुख्यमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप आए ? इनदिनों वाममोर्चा अपनी अकुशलता और नाकामी की वजह से जनता में अलगाव झेल रहा है।

एक अन्य सवाल इठता है कि बाबा गेरूआ वस्त्र पहनकर,संत के बाने के साथ ही राजनीति क्यों करना चाहते हैं ?क्या इससे वोट ज्यादा मिलेंगे ? जी नहीं,रामराज्य परिषद नामक राजनीतिक दल का पतन भारत देख चुका है। किसी ने भी उस पार्टी को गंभीरता से नहीं लिया जबकि उसके पास करपात्री महाराज जैसा शानदार संत और विद्वान था।

संत का मार्ग राजनीति की ओर नहीं मोक्ष की ओर जाता है। बाबा रामदेव एक नयी मिसाल कायम करना चाहते हैं कि संतमार्ग को राजनीति की ओर ले जाना चाहते हैं। संत यदि राजनीति में जाते हैं यो यह संत के लिए अवैधमार्ग है। संत का वैध मार्ग राजनीति नहीं है। राजनीति में जो संत हैं वे संतई कम और गैर-संतई के धंधे ज्यादा कर रहे हैं। राजनीतिविज्ञान की भाषा में संत का राजनीति में आने का अर्थ धर्म का राजनीति में आना है और इससे राजनीति नहीं साम्प्रदायिकता यानी फासिज्म पैदा होता है।

धर्म का राजनीति में रूपान्तरण धर्म के रूप में नहीं होता। धर्म के आधार पर विकसित राजनीति कारपोरेट घरानों की दासी होती है। भाजपा के नेतृत्व में बनी सरकारों के कामकाज इस तथ्य की पुष्टि करते हैं। भाजपा ने संतों और धर्म को मोहरे की तरह इस्तेमाल किया है और राजनीति में नव्य आर्थिक उदारीकरण की नीतियों और मुक्तबाजार के सिद्धांतों को खुलेआम लागू किया है। बाबा रामदेव राजनीति करना चाहते हैं तो भाजपा, संघ परिवार की नीतियों, मुक्तबाजार और नव्य़ आर्थिक उदारीकरण के बारे में अपने एजेण्डे का लिखित में खुलासा करें। साथ ही संत और योग को विराम दें और राजनीति करें। जब तक वे यह पैकेज लागू नहीं करते वे अपना शोषण कराने के लिए अभिशप्त हैं वैसे ही जैसे राममंदिर आंदोलन के नाम पर संघ परिवार और भाजपा ने संतों का शोषण किया था।

22 COMMENTS

  1. इंसान जी, शैलेन्द्र जी और राजेश जी! आप लोगो की प्रतिक्रिया में एक समानता है कि बाबा ने भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया है, पर ये सबसे अधिक महत्वपूर्ण है कि उस मुद्दे को सही दिशा मिले न कि वो किसी भ्रष्ट पार्टी कि राजनीतिक महत्वाकांक्षा कि बलि चढ़े! मै भी यही चाहता हू कि किसी भ्रष्ट पार्टी का साथ देकर इस मुद्दे को विवादित बनाने से अधिक अच्छा ये है कि सारी भ्रष्ट पार्टियों को किनारे करके एक नया सूर्य आये जिससे देश को एक नयी दिशा मिले! चूँकि बाबा ने खुद भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया है इसलिए अच्छा यही होगा कि वो खुद भ्रष्ट भा ज पा से किनारा करे और भारत के स्वाभिमान को सही मायनों में साकार करे!

  2. मुझे नहीं लगता कि बाबा रामदेव भा.ज.पा. के लिए इतना कर रहे हैं ? उनके कार्यों से किसे लाभ हो रहा है और किसे हानि यह जनता का विषय नहीं है / मुद्दा भ्रष्टाचार और कालेधन का है /
    इस मुद्दे पर कौन उनका साथ नहीं देगा ? उनकी सभा में आपको कुछ नामधन्य लोग ही दिखे क्या कारण है कि आपको लाखों लाखों लोग नजर नहीं आए ? कहीं दृष्टि दोष तो नहीं है ?
    उनको राजनीति में क्यों नही आना चाहिए ? बुद्धिमत्ता इसमे है की उन्हें सम्मान के साथ संसद में ले आना चाहिए / पर कुछ लोग ऐसा नही चाहते की बाबा रामदेव संसद में आवाज बुलंद करें / आपके लेख से यही ध्वनि निकल रही है की बाबा रामदेव राजनीति ना करे ? सवाल है क्यों नही करें ? कोई कानूनी आपत्ति तो है नही / एक सवाल मेरा भी … जब नेहरू “जैसे” लोग , नरसिम्हा राव , राजीव , मनमोहन “जैसे” लोग प्रधान मंत्री बन सकते है तो बाबा रामदेव एक राजनीतिक पार्टी क्यों नही बना सकते ?

  3. रोमन शैली में अपनी टिप्पणी का लिप्यंतरण प्रस्तुत करने वाले पाठकों से मेरा अनुरोध है कि वे देवनागरी में ही लिखें| मैं ऐसे लेखों और टिप्पणियों को कदापि नहीं पढता| आप रोमन शैली में लिखे अपने परिपक्व और संजीदा विचारों से मुझे क्यों वंचित रखना चाहते हैं? वैसे भी रोमन शैली में लिखना देश और हिंदी भाषा का अपमान है|प्रयोक्ता-मैत्रीपूर्ण कंप्यूटर व अच्छे सोफ्टवेयर के आगमन के पश्चात अब देवनागरी अथवा द्रविड़ लिपि में लिखना बहुत ही सरल हो गया है| मैंने यहाँ कुछ प्रचलित साफ्टवेयर्स की सहायता द्वारा हिंदी में लिख सकने का सुझाव दिया है| निम्नलिखित कदम उठाएं|
    १. हिंदी भाषी और जो अक्सर हिंदी में नहीं लिखते नीचे दिए लिंक को डाउनलोड करें: https://www.google.com/ime/transliteration/. आप वेबसाईट पर दिए आदेश का अनुसरण करें और अंग्रेजी अथवा हिंदी में लिखने के लिए Screen पर Language Bar में EN English (United States) or HI Hindi (India) किसी को चुन (हिंदी के अतिरिक्त चुनी हुई कई प्रांतीय भाषायों की लिपि में भी लिख सकेंगे) आप Microsoft Word में हिंदी में लेख का प्रारूप तैयार कर उसे कहीं भी Cut and Paste कर सकते हैं| वैसे तो इन्टरनेट पर किसी भी वेबसाईट पर सीधे हिंदी में लिख सकते हैं लेकिन पहले Microsoft Word में लिखने से आप छोटी बड़ी गलतीयों को ठीक कर सकते हैं और इस प्रकार इन्टरनेट पर कीया खर्चा कम होगा| HI Hindi (India) पर क्लिक कर आप Google पर सीधे हिंदी के शब्द लिख कर Internet पर उन वेबसाईट्स को खोज और देख सकेंगे जो कतई देखने को नहीं मिली|
    २. नीचे का लिंक शब्दकोष है जो आपको अंग्रेजी-हिंदी-अंग्रेजी की शब्दावली को प्रयोग करने में सहायक होगा| इसे आप अपने कम्पुटर पर Favorites में डाल जब चाहें प्रयोग में ला सकते है| https://www.shabdkosh.com/ हिंदी को सुचारू रूप से लिखने के लिए साधारणता प्रयोग किये अंग्रेजी के शब्दों का हिंदी में अनुवाद करना आवश्यक है| तभी आप अच्छी हिंदी लिख पायेंगे|

  4. raam naaraayan ji aapki samajh badi spasht hai aur aap apani baar badi kushalataa se kahate hain. prasannataa huii aapki tippani padh kar. aap koii lekh likhenge to bahut uttan hogaa.

  5. बाबा रामदेव अभी कुछ भी हो चाहे योगगुरु हो चाहे राजनितिक हो या ऋषि हो सबसे पहले वो एक भारतीय नागरिक है और एक नागरिक राजनीती कर सकता है देश सेवा के लिए मानव उत्थान के लिए अपनी सोच के अनुसार सही और सक्षम कदम उठा सकता है और बाबा रामदेव ने भी वही किया लोग अपनी सोच के अनुसार बोलते है की बाबा का बाजार अच्छा चल रहा है परन्तु सोच कर देखे या लिख कर मुझे भी बताये की बाबा के बाजार से देश को कितना और कहा पर नुकसान हुआ चाहे कोई भी व्यक्ति किसी भी मजहब का हो क्या योग का फायदा नहीं उठा सकता है क्या पंतजलि योगपीठ की आयुर्वेद से फायदा नहीं उठा सकता फिर भी कुछ सकीर्ण विचारो के लोग बाबा पर आक्षेप करते रहते है उनका पहला आक्षेप है की बाबा ने बहुत धन कमाया क्या एक नागरिक को देश में धन कमाना गुनाह है नहीं फिर भी लोग आरोप लगते है क्यों क्या बिलगेट्स पर आरोप है की उन्होंने ज्यादा धन कम लिया नहीं इसका कारन है बाबा रामदेव ने जो भगवा कपडे पहन रखे है लोग बाबाओ को कंगाल देखना चाहते है बस बाबा बन गए तो धन की क्या जरुरत बाबा बन गए तो राजनीती में आने की क्या जरुरत क्या वो बाबा से पहले एक नागरिक नहीं है क्या महर्षि अरविन्द एक सवतंत्रता सेनानी नहीं थे ‘ क्या गांधीजी महात्मा नहीं थे फिर भी एक राजनितिक थे तो माननीय जगदीश्वर चतुरुवेदिजी की ये सलाह की बाबा अपना dresscode बदले कहा तक उचित है

  6. bhaai saajid ji aur insaan ji aap logon ki bhaawanaaon kaa mein samman karataa hun. par ek galat fahami se kinaaraa kar len ki bhaajapaa aur baabaa ramdew kaa koi gathjod hai. andar khate bhajapa hi hai jo baabaa ke bhaybhit hai aur unhen kamzor karane mein lagi huii hai kyonki bjp ko hi sabase badaa khataraa baabaa ramdew ji se hai, we hi to hain jo bjp ke wot bank mein sab se badi sendh lagaa rahe hain.

  7. साजिद भाई, मैं आपके विचारों से बिलकुल सहमत हूँ परन्तु मैं इस इट-कुत्ते-दा-वैरी लेख पर टिपण्णी को विश्राम देते आपसे अनुरोध करूंगा कि आप इतने संकीर्ण और कठोर न बने| दो भागों में कटते बच्चे को असली माँ ने उस पर अधिकार दिखाती ढोंगी माँ को सोंप देने में ही बच्चे की भलाई देखी| यदि आप पिछले चौंसठ वर्षों में चलते भ्रष्टाचार के आदी नहीं हुए तो थोड़ा धैर्य रखो| वास्तव में मैं भी आपकी तरह अधीर हो देखता हूँ ऊंट किस करवट बैठता है लेकिन उसे बैठने के लिए जगह तो देनी होगी|

  8. @ इंसान जी, शैलेन्द्र जी और राजेश जी! आप लोगो की प्रतिक्रिया में एक समानता है कि बाबा ने भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया है, पर ये सबसे अधिक महत्वपूर्ण है कि उस मुद्दे को सही दिशा मिले न कि वो किसी भ्रष्ट पार्टी कि राजनीतिक महत्वाकांक्षा कि बलि चढ़े! मै भी यही चाहता हू कि किसी भ्रष्ट पार्टी का साथ देकर इस मुद्दे को विवादित बनाने से अधिक अच्छा ये है कि सारी भ्रष्ट पार्टियों को किनारे करके एक नया सूर्य आये जिससे देश को एक नयी दिशा मिले! चूँकि बाबा ने खुद भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया है इसलिए अच्छा यही होगा कि वो खुद भ्रष्ट भा ज पा से किनारा करे और भारत के स्वाभिमान को सही मायनों में साकार करे!

  9. जगदीश्वर जी के पूर्वाग्रही प्रलाप पर टिपण्णी करना समय का दुरूपयोग है. समय गवाना ही हो तो उसके और भी तरीके हैं जो इस से तो अछे ही हैं.
    स्वामी रामदेव जी में कमियाँ देखने की जिद हो तो मिल ही जायेंगी, पर थोड़ा समझ और इमानदारी से देखें तो उन्हों ने भ्रष्टाचार के मुद्दे को सशक्त ढंग से ज़िंदा किया है जो की दफन हो चुका था. सोये, मरे देश में प्राण फूंकने का अविस्मर्णीय और महान काम उन्हों ने किया है.
    इसी लिए देश के दुश्मन और गद्दार उनसे परेशान हैं. कुछ न कुछ कमिया तो हर जगह होती हैं जिनसे समझौता करना ही पड़ता है. पर इतना तो साफ़ है की इस देश को कंगाल बनानेवालों की तुलना में बाबा रामदेव एक तारणहार, एक अवतार हैं.

  10. साजिद भाई, आप ठीक कहते हैं, भा.ज.पा. को अभी तक देश लूटने का ज्यादा मौका नहीं मिला| कुच्छ वर्ष पहले मेरे पंजाब में चुनाव के समय का एक लोकप्रिय चुटकला याद आ गया| भा.ज.पा. और कांग्रेस के दो चुनाव प्रतियोगियों में उनकी पार्टियों को लेकर तर्क-वितर्क हो गया| भा.ज.पा. के प्रतियोगी ने शिकायत की कि उसके प्रतिद्वंदी ने गॉव की सड़क के ठेके से पांच लाख बनाए है; स्कूल की नई इमारत में अधिक रेत मिला एक लाख रूपए खाए हैं जबकि उसकी छत पहली बरसात में ही गिर गई; इसने गौशाला का चंदा भी खाया है; इसे वोट मत दो| कांग्रेस उमीदवार ने बड़े निर्भय हो कर माना कि उसने सड़क के ठेके से पांच लाख हजम किये हैं; स्कूल की इमारत से भी एक लाख बनाया है और यह भी सच है कि गौशाला का चन्दा मैंने निजी खर्चे पर लगाया है, और ऊँची आवाज़ में बोला मैंने पैसे बनाए है लेकिन यह न भूलो कि अब इसने पैसे बनाने हैं| इस लिए भाइयो-बहनों इसे वोट मत देना!

    मन की संकीर्णता से नहीं बल्कि भारत में इस समय प्रस्तुत वातावरण की स्पष्टता से देखें तो सभी बहती गंगा में हाथ धो रहे हैं| अब तक तो ऐसा जान पड़ता है कि राजनीति में लोग केवल स्वयं के लाभ के लिए ही आते हैं| भा.ज.पा. के लोग इस रोग से अछूते नहीं हैं| मुझे नहीं मालुम कि बाबा रामदेव का झुकाव भा.ज.पा. की ओर किन कारणों से बना हुआ है| यह तो केवल वे ही बता सकते हैं| मेरे लिए घोर अँधेरे में एक किरण के स्वरूप उजागर हुए हैं बाबा रामदेव| मैंने स्वंतंत्रता से आज तक भगवे कपड़ों में किसी व्यक्ति को भारत और इस देश की गरीब जनता की दयनीय दशा पर इतना विचार करते नहीं सुना और देखा है| उनके द्वारा स्थापित भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के उद्देश्यों से अवगत आज मुझे विश्वास हो चला है कि भारतीय राजनीति में अपराधी, भ्रष्ट, व अनैतिक तत्वों के लिए कोई स्थान न होगा|

  11. प्रिय मित्र मेरा सवाल फिर अनुतरित रह गया बाबा ने भाजपा को कब चन्दा दिया कृपया लिंक दे, आपकी बात को कोई गंभीरता से नहीं लेगा.

  12. bhai sahab lage raho. congress ke kisi na kisi neta ki najar jaroor padegi aur apko bhi padm bhushan/vibhushan/shri koi na koi award mil hi jayega. Aur kuch nahi bana to sahitya akadmi ka hi koi purashkar avashya milega.

  13. @ इंसान जी, शैलेन्द्र जी सवाल सिर्फ भ्रष्टाचार और काले धन का है न की किसी दल का, मुझे तो ये समझ नहीं आ रहा है की क्या बाबा को भा. ज. पा. के भ्रष्टाचार के बारे में पता है या नहीं अगर पता है और उन्होंने तब भी उस पार्टी को चंदा दिया है तो क्या ये उनके द्वारा जनता से किया गया विश्वासघात नहीं है. उन्हें ये पैसा सिर्फ योग के प्रचार और प्रसार के लिए दिया गया था! और उस पैसे से वो भा. ज. पा. की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को साकार कर रहे है! भा. ज. पा. को अभी तक देश लूटने का ज्यादा मौका नहीं मिला इसलिए लोग उसके समर्थन में है! पर भा. ज. पा. ने जो ८ साल शासन किया है उसमे ही हमने जूदेव, बंगारू लक्ष्मण और उन जैसे कई लोगो को देखा है! सवाल ये है कि क्या बाबा को भा. ज. पा. में कोई भी भ्रष्टाचारी नहीं दिखा जो उन्होंने उसका समर्थन किया! बाबा भी दुसरे राजनीतिज्ञों से अलग नहीं है उन्हें बस राजनीति में आने के लिए एक मुद्दा चाहिए था जो उन्हें मिल गया! और उनकी मंशा कितनी साफ़ है ये उन्होंने भा. ज. पा. को चंदा देकर साबित कर दिया है!

  14. साजिद भाई की टिपण्णी ने मुझे सोच में डाल दिया है| उमा भारती को लेकर बाबा रामदेव के लिए उनका दृष्टिकोण भले ही उनकी स्वयं की सूझ-भूझ है लेकिन मैं समझता हूँ कि बाबा रामदेव राजनीति में राजगुरु के रूप में अवश्य उभरेंगे जो उमा भारती और अन्य दोगले राजनीतिज्ञों पर अंकुश धरे रखेंगे| रही बात बी.जे.पी. की, आप तनिक सोचो कि भारत में दो बड़ी राजनीतिक पार्टियों में कांग्रेस तथा-कथित स्वतंत्रता के पश्चात से अंग्रेजों की प्रतिनिधी-कार्यवाहक के रूप में चौंसठ वर्षों से उधम मचाये है| तनिक और गहराई से सोचो, क्या कांग्रेस-तंत्र में एम.पी, एम.एल.ऐ., और न जाने कितने राजनीतिक खिताब पूर्व राय-बहादुर, राय-ज़ादा, चौधरी जैसे नहीं हैं? क्या ऐतिहासिक आक्रमणकारी लुटेरों की भांति देश व देशवासियों को लूटा नहीं जा रहा है? सत्ता में बने रहने के लिए अंग्रेजों ने लाखों भारतीयों को आजीविका दी और उन्हें सशस्त्र सेनाओं का अंग बनाए रखा| यूनियन जैक में निष्ठा बनाए उन्होंने लंबे काल के लिए देश को अधीन कर भारतीय चरित्र को अपंग कर दिया| और, इसी अपंग चरित्र पर आधारित अंग्रेजी-भाषा में निष्ठां बनाए उनके प्रतिनिधी-कार्यवाहक कांग्रेस प्रशासन ने सत्ता में बने रहने के लिए सभी छोटे बड़ों को भ्रष्टता और अनैतिकता फ़ैलाने की छूट दे रखी है| एक दूसरे को रौदते कॉकरोच की जिंदगी से अब ऊब कर लोग सच्ची स्वतंत्रता चाहते हैं| दूसरी राजनीतिक पार्टी, भारतीय जनता पार्टी अपने पूर्व रूप में १९५१ में भारत में ही जन्मी है| इस कारण बाबा रामदेव का बी.जे.पी. की ओर झुकाव स्वाभाविक ही है| और, मेरे विचार में इस स्वदेशी राजनीतिक पार्टी के अंतर्गत तिरंगे में निष्ठां बनाए धर्म और जाति से ऊपर उठ प्रत्येक भारतीय स्वतंत्र प्रजातंत्र भारत में अपना सचरित्र योग-दान देते स्वाभिमान पूर्वक जीवन यापन करेगा|

  15. सिंह साहब से पहली बार पूरी तरह सहमत, बाबा रामदेव ज्यादा कुछ कर पायें या नही यह मैं नहीं कह सकता पर एक बात सभी को साफ़ दिख सकती है की भ्रष्टाचारी सकते मैं हैं, यदि भ्रष्टाचार के खिलाफ बाबा की तरफ से इतनी आवाज़ बुलंद ना होती तो आज भी हसन अली ऐश कर रहा होता, लेकिन आज वो पुलिस की गिरफ्त मैं है.न्यायालय ने उसमे डंडा किया हुआ है, जगह जगह आयकर की छापामारी चल रही है, यह सब अनायास ही नहीं हो रहा है, इसे बाबा का गुणगान ना समझा जाये लेकिन हर कोई अपने आप को बाबा से ज्यादा स्वच्छ दिखाने का प्रयास जरूर कर रहा है. यह भले ही अल्प समय के लिए हो लेकिन है बड़ा सुखद.

  16. साजिद जी अन्दर से बीजेपी सबसे ज्यादा परेशान है बाबा से क्योंकि बाबा बीजेपी का ही वोट बैंक तोड़ेंगे सो आप परेशान न हो कम से कम ये निश्चय करें की जब बाबा एक अलग राजनीतिक दल का गठन करेंगे तो आप उसमे शामिल होंगे
    जय हिंद जय भारत

  17. स्वामी रामदेव की तीन बातो में से ऊपर की २ बाते बिलकुल ठीक है, पर क्या हम बाबा के रूप में एक और उमा भारती को नहीं देख रहे है! ऐसे लोग कहने को तो सन्यासी होते है पर सबसे बड़े भोगी भी होते है! अगर सत्ता की मलाई न मिले तो उमा भारती जैसी सन्यासी अपना सन्यास भूल कर अधिकार मांगने लगती है कि मुझे सी. एम. क्यों नहीं बनाया! यही हाल बाबा का भी है कि उन्हें भ्रष्ट तो सभी लगते है पर भा. ज. पा. उन्हें भ्रष्ट नहीं लगती तभी तो उन्होंने भा. ज. पा. को ११.०० लाख का चेक दिया है! बाबा को ये साफ़ करना होगा कि जब सभी भ्रष्ट है, तो क्या भा. ज. पा. उनको भ्रष्ट नहीं लगती है जो उन्होंने ऐसा किया! या वो भा. ज. पा. के एक और गुप्त कार्यकर्ता है! अगर ऐसा है तो फिर दुसरे नेताओ कि तरह ऐसा ढोंग क्यों! अगर भा. ज. पा. के समर्थक हो तो खुल के बोलो डरना क्या है! भ्रष्टाचार चाहे १० करोड़ का हो या १०० करोड़ का, वो भ्रष्टाचार ही होता है, बाबा एक योग गुरु के रूप में सम्मानित है और रहेंगे पर उन्हें इस प्रकार के दोगले व्यवहार कि अनुमति नहीं दी जा सकती है! रही दुसरे नेताओ कि बात तो वो तो दोगले होते ही है! पर बाबा को इस प्रकार भ्रष्ट भा. ज. पा. के समर्थन का कारण बताना ही होगा!

  18. जगदीश्वर जी मानना पड़ेगा कि इस बार अपने लेख का शीर्षक बड़ा धांसू चुना है. वाह ,क्या कहना!नरक और मोक्ष के द्वंद्व में फंसे बाबा रामदेव”.मान गए उस्ताद!पर आप अपने लेख को पढ़ कर तो देखिये .जो आपने लिखा है वह आपके लेख के शीर्षक से मेल खाता है क्या?मुझे तो नहीं लगता. कही आप ये तो कहना नहीं चाहते कि राजनिति नरक है और संत लोग जो मोक्ष की ओर अपने जाना चाहते हैं और दूसरों को भी ले जाना चाहते हैं,अगर राजनीति की ओर मुड़ेंगे तो उनके लिए तो मोक्ष मार्ग बंद हो ही जाएगाऔर साथ साथ उनके अनुयायी भी उससे वंचित हो जायेंगे.चतुर्वेदी जी बुरा न मानिये तो एक बात कहू मुझे तो लग रहा है कि आप अपने चतुर्वेदी रूप में आ रहे हैं और आपको लग रहा है कि ऐसा आदमी, जो परोक्ष रूप में ही सही ब्राह्मन वाद को आगे बढ़ा रहा था अगर वह राजनीति में उलझ गया तो फिर लोक परलोक कि गाथा गाने वाला एक चारण कम हो जाएगा.ऐसे राजनीति के बारे में आपका नजरिया वर्त्तमान से भले ही मेल खाता हो पर यह किसी आदर्श क़ी ओर नहीं इंगित करता. तथाकथित वाम पंथियों के साथ यही प्रवंचना है कि वे दूर तक देख ही नहीं पाते.ऐसे मैं नहीं जानता कि बाबा रामदेव अपने प्रयास में सफल होंगे कि नहीं क्योंकि मुझे यह आशंका है कि १९७७ क़ी पुनरावृति नहो . . पर एक बार और प्रयोग करने में हानि ही क्या है?अगर बाबा अपने प्रयास में नहीं भी सफल हों तो कम से कम यह तो बता ही दे रहे हैं कि संतों का काम परलोक ही नहीं इह लोक में भी लोगो का पथ प्रदर्शित करना है.ऐसे बाबा रामदेव जैसे लोग योग प्रक्रिया को लोक प्रिय बना कर कम से कम आम लोगों का शारीरिक स्वास्थ्य तो सुधार ही रहे हैं.अगर साथ ही साथ वे राजनीति में भी चरित्र निर्माण के पथ पर आगे आना चाहते हैं तो इसमे आप जैसे लोगों को एतराज क्यों? राजनीति बहुत ही गन्दी हो गयी है ,पर इसे सही दिशा की तलाश अवश्य है. बाबा रामदेव सरीखे लोग शायद वह सही दिशा दे सकें.
    ऐसे भी बाबा रामदेव के इस एलान से आप जितने परेशान हैं उससे कम परेशान बी.जे.पी और लालू नहीं हैं कारण अलग अलग हैं ,पर परेशानी एक समान है.

  19. जगदीश्‍वर चतुर्वेदी और बाबा रामदेव का संबंध अब केवल पंजाबी कहावत इट-कुत्ते-दा-वैर बन कर रह गया है| जहां बाबा दीखते हैं, पंडित जी बोखला जाते हैं और फिर एक नए लेख के रूप में उनके हाथों हम ईट-पत्थर ही देखते हैं| मेरे मन में प्राय: एक प्रश्न उठता है कि मानसिक विकार के अतिरिक्त कौन शक्ति पंडित जी को बाबा के बारे में अनाप शनाप लिखने को प्रोत्साहित करती है| मैं यह सोचने पर भी बाध्य हूं कि यदि जगदीश्वर चतुर्वेदी श्री रामायण के हनुमान होते तो वे अवश्य लंका के विभीषण को मार देते क्योंकि स्वर्ण-लंका में उन्हें पथ-भ्रष्ट करने के बहुत से साधन उपलब्ध थे| चौंसठ वर्षों से नरक के दल दल में फंसे भारतीयों को मोक्ष दिलवाने पहुंचे बाबा रामदेव नरक से ही ऊपर उठे हैं| और, जगदीश्वर चतुर्वेदी ईंट पत्थर मार मार उन्हें फिर नरक में धकेल देना चाहते हैं|

  20. बाबा रामदेव के बारे में पहले भी आप एक क्रमवार लेख श्रंखला चला चुके हैं, आप जितना ज्यादा बाबा की आलोचना करेंगे, उनके समर्थक बढ़ते जायेंगे, कुछ लोगो का सोचना हैं की नेट का इस्तेमाल भारत में बहुत सीमित स्तर पर होता है और इससे नाम मात्र के विचारों को ही बदला जा सकता है, हो सकता है यह सच हो पर यह भी सच हैं की जो लोग नेट का इस्तेमाल करते हैं वे इससे प्राप्त जानकारी की चर्चा अपने सेकड़ो मित्रों में अवश्य करते है, और निश्चित रूप से इससे प्राप्त जानकारी का प्रसार होता है, मै तो बहुत खुश हूँ की आप जैसे लेखकों के कारण बाबा रामदेव का प्रचार हो रहा है, आपका लेख पढने के बाद व्यक्ति बाबा के बारे में और अधिक जानने की कोशिश करता है तब जाकर उसे मालुम पड़ता है की बाबा कमसे कम देश हित में ही काम कर रहे है .

  21. आपसे मेरा एक नवेदन हे आप अपने नाम को बदल दो आपके चिंतन से मेल नहीं खाता धन्यवाद

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