भारत में ब्याज दरें एवं खुदरा महंगाई दर कम करने के प्रयास कर रही है केंद्र सरकार

0
195

भारतीय रिजर्व बैंक ने दिनांक 8 दिसम्बर 2021 को घोषित की गई मौद्रिक नीति में लगातार नौवीं बार नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं किया है। इस संदर्भ में भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने रुख को नरम रखा है। मार्च और मई 2020 में रेपो रेट में लगातार दो बार कटौती की गई थी। इसके बाद से रेपो दर को लगातार उसी स्तर पर बनाए रखा गया है। भारतीय रिजर्व बैंक के इस एलान के बाद रेपो रेट 4 फीसदी और रिवर्स रेपो रेट 3.35 फीसदी पर बनी रहेगी। रेपो रेट वह दर है, जिस पर भारतीय रिजर्व बैंक अन्य बैंकों को ऋण प्रदान करता है। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर श्री शक्तिकांत दास ने मौद्रिक नीति का एलान करते हुए कहा है कि मौद्रिक नीति समिति ने सर्वसम्मति से रेपो रेट को बरकरार रखने का फैसला किया है। साथ ही भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर ने वित्तीय वर्ष 2021-22 में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर 9.5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है। साथ ही, चालू वित्त वर्ष 2021-22 में खुदरा महंगाई दर का लक्ष्य संशोधित कर 5.3 प्रतिशत कर दिया है। इस मौद्रिक नीति में यह भी बताया गया है कि खुदरा महंगाई की दर अब 6 प्रतिशत के सह्यता स्तर (टॉलरेंस लेवल) से नीचे बनी हुए है। आज समय की मांग है कि कोरोना महामारी के बाद अभी विकास दर को प्रोत्साहित किया जाय।

विशेष रूप से कोरोना महामारी के बाद से देश की अर्थव्यवस्था कठिनाई के दौर से गुजर रही है। केंद्र सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक तालमेल से कार्य कर रहे हैं यह देश के हित में है। सामान्यतः खुदरा महंगाई दर के 6 प्रतिशत (सह्यता स्तर) से अधिक होते ही भारतीय रिजर्व बैंक रेपो रेट में वृद्धि के बारे में सोचना शुरू कर देता हैं। परंतु वर्तमान समय की आवश्यकताओं को देखते हुए मुद्रा स्फीति के लक्ष्य में नरमी बनाए रखना जरूरी हो गया है क्योंकि देश की विकास दर में तेजी लाना अभी अधिक जरूरी है। मुद्रा स्फीति के लक्ष्य के सम्बंध में यह नरमी आगे आने वाले समय में भी बनाए रखी जानी चाहिये। वर्तमान परिस्थितियों में विकास पर फोकस करना जरूरी है। वैसे भी खुदरा महंगाई दर वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान 5.3 प्रतिशत ही रहने वाली है, जो सह्यता स्तर से नीचे है। हां, हाल ही के समय में खुदरा महंगाई पर कुछ दबाव दिखाई दे रहा है किंतु केंद्र सरकार लगातार सतर्कता बनाए हुए है है एवं समय समय पर इस सम्बंध में कई निर्णय ले रही है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में कुछ कमी दिखाई देने लगी है एवं केंद्र सरकार ने खाद्य तेल के आयात पर आयात शुल्क में भी कुछ कमी की घोषणा की है तथा केंद्र सरकार ने पेट्रोल एवं डीजल पर इक्साइज ड्यूटी में भी कमी तथा कई राज्य सरकारों ने पेट्रोल एवं डीजल पर वैट की दर में कमी की घोषणा की है। साथ ही, मानसून समाप्त होने के बाद खाद्य पदार्थों यथा सब्जी एवं फलों की उपलब्धता बाजार में बढ़ी है। इस प्रकार केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा सामूहिक रूप से किए जा रहे प्रयासों के चलते खुदरा महंगाई की दर कुछ हद्द तक कम होने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है।

वर्ष 2014 में केंद्र में माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी की सरकार के आने के बाद, देश की जनता को उच्च मुद्रा स्फीति की दर से निजात दिलाने के उद्देश्य से, केंद्र सरकार एवं भारतीय रिज़र्व बैंक ने दिनांक 20 फरवरी 2015 को एक मौद्रिक नीति ढांचा करार पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के अंतर्गत यह तय किया गया था कि देश में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रा स्फीति की दर को जनवरी 2016 तक 6 प्रतिशत के नीचे तथा इसके बाद 4 प्रतिशत के नीचे (+/- 2 प्रतिशत के उतार चड़ाव के साथ) रखा जाएगा। उक्त समझौते के पूर्व, देश में मुद्रा स्फीति की वार्षिक औसत दर लगभग 10 प्रतिशत बनी हुई थी। उक्त समझौते के लागू होने के बाद से देश में, मुद्रा स्फीति की वार्षिक औसत दर लगभग 4/5 प्रतिशत के आसपास आ गई है। जिसके लिए केंद्र सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक की प्रशंसा की जानी चाहिए।

उक्त करार पर हस्ताक्षर करने के बाद से भारतीय रिजर्व बैंक सामान्यतः उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई दर के 6 प्रतिशत (सह्यता स्तर) के पास आते ही रेपो रेट (ब्याज दर) में वृद्धि के बारे में सोचना शुरू कर देता हैं क्योंकि इससे आम नागरिकों के हाथों में मुद्रा कम होने लगती है एवं उत्पादों की मांग कम होने से महंगाई पर अंकुश लगने लगता है। इसके ठीक विपरीत यदि देश में महंगाई दर नियंत्रण में बनी रहती है तो भारतीय रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कमी करने लगता है ताकि आम नागरिकों के हाथों में मुद्रा की उपलब्धता बढ़े एवं देश के आर्थिक विकास को बल मिल सके। परंतु, देश में यदि मुद्रा स्फीति सब्ज़ियों, फलों, आयातित तेल आदि के दामों में बढ़ोतरी के कारण बढ़ती है तो रेपो रेट बढ़ाने का कोई फायदा भी नहीं होता है क्योंकि रेपो रेट बढ़ने का इन कारणों से बढ़ी कीमतों को कम करने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। अतः यदि देश में मुद्रा स्फीति उक्त कारणों से बढ़ रही है तो रेपो रेट को बढ़ाने की कोई जरूरत भी नहीं होना चाहिए। इस प्रकार देश में मुद्रा स्फीति की दर को भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में बदलाव कर नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता है।

देश की अर्थव्यवस्था में संरचात्मक एवं नीतिगत कई प्रकार के बदलाव किए गए हैं। इन बदलावों का असर अब भारत में दिखना शुरू हुआ है। अब तो कई अंतरराष्ट्रीय संस्थान जैसे, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, आदि भी कहने लगे हैं कि आगे आने वाले समय में पूरे विश्व में केवल भारत ही दहाई के आंकड़े की विकास दर हासिल कर पाएगा और भारतीय अर्थव्यवस्था अब तेजी से उसी ओर बढ़ रही है। भारतीय रिजर्व बैंक ने और केंद्र सरकार ने भी अपने अपने आकलनों में यह कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था वित्तीय वर्ष 2021-22 में 9.5 से 10 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर हासिल कर लेगी।

साथ ही, हाल ही के समय में विश्व का भारतीय अर्थव्यवस्था पर भरोसा बढ़ा है, इसलिए देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी लगातार बढ़ रहा है। अब आवश्यकता है हमें अपने आप पर विश्वास बढ़ाने की। अब भारतीय रिजर्व बैंक को वास्तविक एक्सचेंज दर पर भी नजर बनाए रखनी होगी यदि यह दर बढ़ती है तो देश में आयातित वस्तुएं महंगी होने लगती हैं और देश में भी मुद्रा स्फीति की दर बढ़ने लगती है, इस प्रकार देश के आर्थिक विकास की गति पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। बाहरी पूंजी का देश में स्वागत किया जाना चाहिए परंतु वास्तविक एक्सचेंज दर पर नियंत्रण बना रहे और इसमें वृद्धि न हो, इस बात का ध्यान रखना भी आवश्यक होगा।

प्रहलाद सबनानी

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,806 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress