सदी का काला कानून – साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयक-2011

4
267

विनोद बंसल

अभी हाल ही में यूपीए अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद द्वारा एक विधेयक का मसौदा तैयार किया गया है। इसका नाम सांप्रदायिक एव लक्षित हिंसा रोकथाम (न्याय एवं क्षतिपूर्ति) विधेयक 2011 [‘Prevention of Communal and Targeted Violence (Access to Justice and Reparations) Bill,2011’] है। ऐसा लगता है कि इस प्रस्तावित विधेयक को अल्पसंख्यकों का वोट बैंक मजबूत करने का लक्ष्य लेकर, हिन्दू समाज, हिन्दू संगठनों और हिन्दू नेताओं को कुचलने के लिए तैयार किया गया है। साम्प्रदायिक हिंसा रोकने की आड़ में लाए जा रहे इस विधेयक के माध्यम से न सिर्फ़ साम्प्रदायिक हिंसा करने वालों को संरक्षण मिलेगा बल्कि हिंसा के शिकार रहे हिन्दू समाज तथा इसके विरोध में आवाज उठानेवाले हिन्दू संगठनों का दमन करना आसान होगा। इसके अतिरिक्त यह विधेयक संविधान की मूल भावना के विपरीत राज्य सरकारों के कार्यों में हस्तक्षेप कर देश के संघीय ढांचे को भी ध्वस्त करेगा। ऐसा प्रतीत होता है कि इसके लागू होने पर भारतीय समाज में परस्पर अविश्वास और विद्वेष की खाई इतनी बड़ी और गहरी हो जायेगी जिसको पाटना किसी के लिए भी सम्भव नहीं होगा।

मजे की बात यह है कि एक समानान्तर व असंवैधानिक सरकार की तरह काम कर रही राष्ट्रीय सलाहकार परिषद बिना किसी जवाब देही के सलाह की आड़ में केन्द्र सरकार को आदेश देती है और सरकार दासत्व भाव से उनको लागू करने के लिए हमेशा तत्पर रहती है। जिस ड्राफ्ट कमेटी ने इस विधेयक को बनाया है, उसका चरित्र ही इस विधेयक के इरादे को स्पष्ट कर देता है। जब इसके सदस्यों और सलाहकारों में हर्ष मंडेर, अनु आगा, तीस्ता सीतलवाड़, फराह नकवी जैसे हिन्दू विद्वेषी तथा सैयद शहाबुद्दीन, जॉन दयाल, शबनम हाशमी और नियाज फारुखी जैसे घोर साम्प्रदायिक शक्तियों के हस्तक हों तो विधेयक के इरादे क्या होंगे, आसानी से कल्पना की जा सकती है। आखिर ऐसे लोगों द्वारा बनाया गया दस्तावेज उनके चिन्तन के विपरीत कैसे हो सकता है।

जिस समुदाय की रक्षा के बहाने से इस विधेयक को लाया गया है इसको इस विधेयक में ‘समूह’ का नाम दिया गया है। इस ‘समूह’ में कथित धार्मिक व भाषाई अल्पसंख्यकों के अतिरिक्त दलित व वनवासी वर्ग को भी सम्मिलित किया गया है। अलग-अलग भाषा बोलने वालों के बीच सामान्य विवाद भी भाषाई अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक विवाद का रूप धारण कर सकते हैं। इस प्रकार के विवाद किस प्रकार के सामाजिक वैमनस्य को जन्म देंगे, इसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है। विधेयक अनुसूचित जातियों व जनजातियों को हिन्दू समाज से अलग कर समाज को भी बांटने का कार्य करेगा। कुछ वर्गों में पारस्परिक असंतोष के बावजूद उन सबका यह विश्वास है कि उनकी समस्याओं का समाधान हिन्दू समाज के अंगभूत बने रहने पर ही हो सकता है।

सतत् – 2

यह विधेयक मानता है कि बहुसंख्यक समाज हिंसा करता है और अल्पसंख्यक समाज उसका शिकार होता है जबकि भारत का इतिहास कुछ और ही बताता है। हिन्दू ने कभी भी गैर हिन्दुओं को सताया नहीं, उनको संरक्षण ही दिया है। उसने कभी हिंसा नहीं की, वह हमेशा हिंसा का शिकार हुआ है। क्या यह सरकार हिन्दू समाज को अपनी रक्षा का अधिकार भी नहीं देना चाहती ? क्या हिन्दू की नियति सेक्युलर बिरादरी के संरक्षण में चलने वाली साम्प्रदायिक हिंसा से कुचले जाने की ही है ? किसी भी महिला के शील पर आक्रमण होना, किसी भी सभ्य समाज में उचित नहीं माना जाता। यह विधेयक एक गैर हिन्दू महिला के साथ किए गए दुर्व्यवहार को तो अपराध मानता है; परन्तु हिन्दू महिला के साथ किए गए बलात्कार को अपराध नहीं मानता जबकि साम्प्रदायिक दंगों में हिन्दू महिला का शील ही विधर्मियों के निशाने पर रहता है।

इस विधेयक में प्रावधान है कि ”समूह” के व्यापार में बाधा डालने पर भी यह कानून लागू होगा। इसका अर्थ है कि अगर कोई अल्पसंख्यक बहुसंख्यक समाज के किसी व्यक्ति का मकान खरीदना चाहता है और वह मना कर देता है तो इस अधिनियम के अन्तर्गत वह हिन्दू अपराधी घोषित हो जायेगा। इसी प्रकार अल्पसंख्यकों के विरुद्ध घृणा का प्रचार भी अपराध माना गया है। यदि किसी बहुसंख्यक की किसी बात से किसी अल्पसंख्यक को मानसिक कष्ट हुआ है तो वह भी अपराध माना जायेगा। अल्पसंख्यक वर्ग के किसी व्यक्ति के अपराधिक कृत्य का शाब्दिक विरोध भी इस विधेयक के अन्तर्गत अपराध माना जायेगा। यानि अब अफजल गुरु को फांसी की मांग करना, बांग्लादेशी घुसपैठियों के निष्कासन की मांग करना, धर्मान्तरण पर रोक लगाने की मांग करना भी अपराध बन जायेगा। दुनिया के सभी प्रबुध्द नागरिक जानते हैं कि हिन्दू धर्म, हिन्दू देवी-देवताओं व हिन्दू संगठनों के विरुध्द कौन विषवमन करता है। माननीय न्यायपालिका ने भी साम्प्रदायिक हिंसा की सेक्युलरिस्टों द्वारा चर्चित सभी घटनाओं के मूल में इस प्रकार के हिन्दू विरोधी साहित्यों व भाषणों को ही पाया है। गुजरात की बहुचर्चित घटना गोधरा में 59 रामभक्तों को जिन्दा जलाने की प्रतिक्रिया के कारण हुई, यह तथ्य अब कई आयोगों के द्वारा स्थापित किया जा चुका है। अपराध करने वालों को संरक्षण देना और प्रतिक्रिया करने वाले समाज को दण्डित करना किसी भी प्रकार से उचित नहीं माना जा सकता। किसी निर्मम तानाशाह के इतिहास में भी अपराधियों को इतना बेशर्म संरक्षण कहीं नहीं दिया गया होगा।

भारतीय संविधान की मूल भावना के अनुसार किसी आरोपी को तब तक निरपराध माना जायेगा जब तक वह दोषी सिद्ध न हो जाये; परन्तु, इस विधेयक में आरोपी तब तक दोषी माना जायेगा जब तक वह अपने आपको निर्दोष सिद्ध न कर दे। इसका मतलब होगा कि किसी भी गैर हिन्दू के लिए अब किसी हिन्दू को जेल भेजना आसान हो जायेगा। वह केवल आरोप लगायेगा और पुलिस अधिकारी आरोपी हिन्दू को जेल में डाल देगा। इस विधेयक के प्रावधान पुलिस अधिकारी को इतना कस देते हैं कि वह उसे जेल में रखने का पूरा प्रयास करेगा ही क्योंकि उसे अपनी प्रगति रिपोर्ट शिकायतकर्ता को निरंतर भेजनी होगी। यदि किसी संगठन के कार्यकर्ता पर साम्प्रदायिक घृणा का कोई आरोप है तो उस संगठन के मुखिया पर भी शिकंजा कसा जा सकता है। इसी प्रकार यदि कोई प्रशासनिक अधिकारी हिंसा रोकने में असफल है तो राज्य का मुखिया भी जिम्मेदार माना जायेगा। यही नहीं किसी सैन्य बल, अर्ध्दसैनिक बल या पुलिस के कर्मचारी को तथाकथित हिंसा रोकने में असफल पाए जाने पर उसके मुखिया पर भी शिकंजा कसा जा सकता है। सतत् –3

-3-

भारतीय संविधान के अनुसार कानून व्यवस्था राज्य सरकार का विषय है। केन्द्र सरकार केवल सलाह दे सकती है। इससे भारत का संघीय ढांचा सुरक्षित रहता है; परन्तु इस विधेयक के पारित होने के बाद अब इस विधेयक की परिभाषित ‘साम्प्रदायिक हिंसा’ राज्य के भीतर आंतरिक उपद्रव के रूप में देखी जायेगी और केन्द्र सरकार को किसी भी विरोधी दल द्वारा शासित राज्य में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप का अधिकार मिल जायेगा। इसलिए यह विधेयक भारत के संघीय ढांचे को भी ध्वस्त कर देगा।

विधेयक अगर पास हो जाता है तो हिन्दुओं का भारत में जीना दूभर हो जायेगा। देश द्रोही और हिन्दू द्रोही तत्व खुलकर भारत और हिन्दू समाज को समाप्त करने का षडयन्त्र करते रहेंगे; परन्तु हिन्दू संगठन इनको रोकना तो दूर इनके विरुध्द आवाज भी नहीं उठा पायेंगे। हिन्दू जब अपने आप को कहीं से भी संरक्षित नहीं पायेगा तो धर्मान्तरण का कुचक्र तेजी से प्रारम्भ हो जायेगा। इससे भी भयंकर स्थिति तब होगी जब सेना, पुलिस व प्रशासन इन अपराधियों को रोकने की जगह इनको संरक्षण देंगे और इनके हाथ की कठपुतली बन देशभक्त हिन्दू संगठनों के विरुध्द कार्यवाही करने के लिए मजबूर हो जायेंगे।

इस विधेयक के कुछ ही तथ्यों का विश्लेषण करने पर ही इसका भयावह चित्र सामने आ जाता है। इसके बाद आपातकाल में लिए गए मनमानीपूर्ण निर्णय भी फीके पड़ जायेंगे। हिन्दू का हिन्दू के रूप में रहना मुश्किल हो जायेगा। देश के प्रधान मंत्री श्री मनमोहन सिंह ने पहले ही कहा था कि देश के संसाधनों पर मुसलमानों का पहला अधिकार है। यह विधेयक उनके इस कथन का ही एक नया संस्करण लगता है। किसी राजनीतिक विरोधी को भी इसकी आड़ में कुचलकर असीमित काल के लिए किसी भी जेल में डाला जा सकता है।

इस खतरनाक कानून पर अपनी गहरी चिन्ता व्यक्त करते हुए विश्व हिन्दू परिषद की केन्द्रीय प्रबन्ध समिति की अभी हाल ही में सम्पन्न प्रयाग बैठक में भी एक प्रस्ताव पारित किया गया है। इस प्रस्ताव में कहा गया है कि विहिप इस विधेयक को रोलट एक्ट से भी अधिक खतरनाक मानती है। और सरकार को चेतावनी देती है कि वह अल्पसंख्यकों के वोट बैंक को मजबूत करने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए हिन्दू समाज और हिन्दू संगठनों को कुचलने के अपने कुत्सित और अपवित्र इरादे को छोड़ दे। यदि वे इस विधेयक को लेकर आगे बढ़ते हैं तो हिन्दू समाज एक प्रबल देशव्यापी आन्दोलन करेगा। विहिप ने देश के राजनीतिज्ञों, प्रबुध्द वर्ग व हिन्दू समाज तथा पूज्य संतों से अपील भी की है कि वे केन्द्र सरकार के इस पैशाचिक विधेयक को रोकने के लिए सशक्त प्रतिकार करें।

आइये हम सभी राष्ट्र भक्त मिल कर इस काले कानून के खिलाफ़ अपनी आबाज बुलन्द करते हुए भारत के प्रधान मंत्री व राष्ट्रपति को लिखें तथा एक व्यापक जन जागरण के द्वारा अपनी बात को जन-जन तक पहुंचाएं। कहीं ऐसा न हो कि कोई हमें कहे कि अब पछताये क्या होत है जब चिडिया चुग गई खेत?

 

4 COMMENTS

  1. इस कानून के द्वारा अल्प संख्यकों के हित के नाम पर वास्तव में जो उद्देश्य पूरे करने की योजनाएं है, वे ये हैं : १. हिन्दुस्थान में हिन्दुओं को प्रताड़ित, अपमानित करते हुए धर्मान्तरित होने के लिए मजबूर करना. २. अल्पसंख्यकों की भावनाओं को आहत होने से रोकने के नाम पर हिन्दू गति-विधियों पर रोक लगाना. ३. हिन्दू समाज और अल्प संख्यक के नाम पर खड़े किये समाज में टकराव पैदा कर के हिन्दुओं अर्थात भारत को विभाजित व दुर्बल बनाना. ४. इस्लामिक ताकतों को हिन्दुओं के विरुद्ध लड़ा कर , दोनों को कमज़ोर करना और अंत में मुस्लिम शक्तियों को आतंकवादी कह कर कुचल देना. इस प्रकार भारत के ईसाईकरण का रास्ता साफ़ करने की एक दूरगामी और अत्यंत कुटिल योजना इसके पीछे छुपी हुई है. इसमें सबसे अधिक दुर्दशा मुस्लिन समाज के होनी है जिसे कि ईसाई ताकतों द्वारा न केवल भारत में, अपितु सारे संसार में बलि का बकरा बनाया जा रहा है.बहुत कम लोग जानते हैं कि अमेरिका ने ‘वर्ड ट्रेड सेंटर’ स्वयं गिरवाने का प्रबंध सी.आई.ए. की मदद से किया था और ईराक व अफगानिस्तान में लाखों मुसलमानों की ह्त्या को जायज़ सिद्ध कर दिया था. ईसाई ताकतों द्वारा आगे भी मुसलमानों के साथ यही होना है. मुस्लिम समाज का दुभाग्य यह है कि वे इस ईसाई षड्यंत्र को समझने में असमर्थ हैं……………………….
    हिन्दुओं के लिए समझने की एक ख़ास बात यह है कि मुस्लिम जिहाद को हम अपना सबसे बड़ा शत्रु समझ रहे हैं तो वास्तव में ऐसा है नहीं. चर्च संचालित मीडिया के कारण हमें ऐसा भ्रम हो जाता है. सही बात तो यह है कि आज हमारे लिए इस्लामी जिहाद से कई गुणा अधिक खतरनाक पश्चिमी चर्च और उसके द्वारा संचालित संगठन है. उपरोक्त सोनिया जुंडली द्वारा बनाया कानून का मसौदा भी उसी ईसाई षड्यंत्र का एक हिस्सा है. …………इस सामयिक लेख हेतु लेखक विनोद बंसल जी बधाई के पात्र हैं.

  2. यह हिन्दुओ को कुचल देने के उद्देश्य से बनाया जा रहा कानून है … इसका भरपूर विरोध होना चाहिए … यह सोनिया का असली रूप है …

  3. ये कानून वास्तव में हिन्दुओं को नियोजित तरीके से खत्म करने की मुस्लिम( अहमद पटेल )एवं ईसाई (रोओम की जासूस सोनिया मानियो ) की साजिस है . इस देश में मुस्लिम पर्सनल लो बोर्ड हो सकता है मगर हिन्दू अपने किसी भी बात सही बात को नहीं रख सकता .

  4. धर्मनिरपेक्ष राजनीती : सम्पर्दायिक उद्देश्य

Leave a Reply to vikas Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here