चीन की दीवार तोड़ता द्रोणाचार्य

gopichand

रियो ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने पर स्पेन की कैरोलिन मारिन के कोच फर्नांडो रिवास ने कहा था कि मैं चीनी दीवार को तोड़ने के लिए 10 साल से मेहनत कर रहा था। फर्नांडो खुद भी बैडमिंटन खिलाड़ी थे लेकिन जब सुविधाओं के अभाव मे फर्नांडो का करियर अटक गया तो उन्होंने ठान ली थी कि वो ऐसे खिलाड़ी तैयार करेंगे जो चीनी वर्चस्व को टक्कर देंगे। कहने की जरूरत नहीं कि आज बैडमिंटन में चीन का वर्चस्व टूटता जा रहा है। दुनिया के प्रतिष्ठित खिताबों पर भारत, स्पेन या दूसरे देशों के खिलाड़ियों का कब्जा हो रहा है। पिछले 4 बार के ओलंपिक बैडमिंटन फाइनल में चीन के ही शटलर खेलते रहे. कई मेडल भी जीते। इस बार भी पुरुष डबल्स मे चीन के शटलर गोल्ड जीते लेकिन बाकी के इवेंट में चीन के शटलरों को कड़ी चुनौती मिली और वे सेमीफाइनल से आगे नहीं बढ़ सके। यानि चीन के वर्चस्व को कड़ी चुनौती मिल रही है।
फर्नांडो जैसा एक और शख्स है जिसका नाम भारतीय खेल जगत में बड़ी अदब से लिया जाता है वो शख्स है पुलेला गोपीचंद। गोपीचंद भारतीय बैडमिंटन टीम के हेड कोच हैं। वे आज अपनी बैडमिंटन अकादमी चलाते हैं जिसमें साइना नेहवाल, पीवी सिंधू, पी कश्यप और श्रीकांत कदांबी जैसे खिलाडी निकले हैं। इसी अकादमी की मेहनत की बदौलत देश को बैडमिंटन में साइना और सिंधु के रूप में दो ओलंपिक मेडल मिले हैं
फर्नांडो की तर्ज पर ही गोपीचंद को खुद एक खिलाड़ी रहते हुए कई ताने सहने पड़े थे। लोग उन्हें कहते थे कि तुम चीन के बड़े खिलाड़ियों के सामन कुछ नही कर पाओगे। बस यही बात गोपी को चुभ गई लेकिन उन्होंने उसी दिन से फैसला लिया को वो चीन के खिलाड़ियों को हराकर ही दम लेंगे। आखिरकार साल 2001 में वो लम्हा आया जब गोपी ने चीन के चेन होंग को हराकर ऑल इंग्लैंड चैंपियनशिप का खिताब जीता। यही से गोपीचंद ने करोडों भारतीयो को यह अहसासस दिलाया था कि चीन केखिलाड़ियों को हराना मुस्किल काम नहीं है। हालांकि वक्त बीतने के साथ चीन बैडमिंटन का सुपरपावर बनता गया…ली जु रेई, वांग यिहान और लिन डैन जैसे खिलाड़ियों ने चीन को बैडमिंटन में कई खिताब और ओलंपिक में कई मेडल दिलाए। चीन को हरा पाना बेहद मुश्किल सा हो गया।
इधर ऑल इंग्लैंड चैपियनशिप जीतने के बाद गोपी ने इंटरनेशल बैडिमिंटन में कम रुचि दिखाई और 2003 मे रिटायरमेंट ले लिया। इसके बाद गोपीचंद ने कोचिंग की तरफ ध्यान दिया और 8 साल पहले हैदराबाद में कोचिंग अकादमी खोली। इसके लिए गोपी को अपना घर तक गिरवी रखना पड़ा। गोपी की अकादमी में साइना नेहवाल , पीवी सिधु और श्रीकांत जैसे खिलाडी आए। गोपी ने इनको तराशा, उनमें आत्विश्वास भरा और इस काबिल बनाया कि ये खिलाड़ी चीन के श्रेष्ठ खिलाड़ियों को हरा सकें।
गोपी की सीख और नक्शेकदम पर चलते हुए गोपी के शिष्यों ने अपने गुरु के सपनों को पूरा किया। चाहे साइना हों, सिंधु हों या श्रीकांत हों, किसी न किसी मुकाम पर ये चीन के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों को हरा चुके हैं। 2012 में साइना ने पहले चीन की ली जु रेई को इंडोनेशियन ओपन मे शिकस्त दी और इसी साल ओलंपिक का ब्रर्न्ज मेडल भी जीता। जून 2016 में साइना ने चीन की नंबर वन शटलर वांग यिहान को परास्त करके ऑस्ट्रेलियन ओपन के फाइनल मे जगह बनाई। चीनी शटरो को चुनौती मिलने की ये शुरुआत भर थी। इसके बाद पी वी सिंधु ने रियो ओलंपिक में वो कर दिखाय जिसकी शायद कल्पना नही की जा सकती। महिला सिंगल्स के क्वार्टरफाइनल मुकाबले में सिंधु ने चीन की अजेय माने जाने वाली वांग यिहान कोसीधे सेटों में 22-20, 21-19 से करारी शिकस्त दी। रियो ओलंपिक में मेंस सिंगल्स के क्वार्टरफाइनल को कौन भूल सकता है, इस मैच में गोपीचंद के एक और शिष्य श्रीकांत कदांबी ने पूर्व वर्ल्ड नंबर वन लिन डैन के पसीने छुड़ा दिए थे। हालांकि ये मैच वर्ल्ड चैंपियन लिन डैन ही जीते लेकिन श्रीकांत ने उन्हें कड़ी चुनौती दी। लिन को दूसरा सेट गंवाना पड़ा और तीसरे सेट में 21-18 का करीबी अंतर रहा। इससे पहले भी श्रीकांत 2014के चाइना ओपन के फाइनल में लिन डैन को हरा चुके हैं।
यानि गोपीचंद ने चीन के वर्चस्व को तोड़ने का जो सपना देखा था उसी सपने की बुनियाद पर अपने चेलों को उन्होंने इस काबिल बनाया कि वे असंभव को संभव बना दें। गोपी की स्ट्रैटिजी और मेहनत का नतीजा है कि आज भारत के शटलर चीन के शटलरों की चुनौती को आसानी से पार पाने की क्षमता रखते हैं। ओलंपिक जैसे मंचों पर चीन के शटलरों से जीत छीन सकते हैं। किसी बड़े टूर्नामेंट के फाइनल में परास्त कर सकते हैं। यह वर्ल्ड बैडमिंटन के लिए एक सुखद अहसास है कि दुनियाभर में बैडमिंटन की प्रतिभाएं सामने आ रही हैं जिससे चीन की चुनौती टूट रही है और इस काम में भारतीय बैडमिंटन के द्रोणाचार्य गोपीचंद का बहुत sindhuबड़ा हाथ है।

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