फिर बौरायी मंजरियों के बीच
कोयल कूकी,
दिल में एक टीस उठी
पागल भोरें मंडराने लगे,
अधखिली कलियों के अधरों पर
पलाश फूटे या आग
किसी मन में,
चूड़ी की है खनक कहीं,
कहीं थिरकन है अंगों में,
ढोल-मंजीरों की थाप
गूंजती है कानों में
मौसम हो गया है अधीर,
बिखर गये चहूं ओर रंग-अबीर
पर बिन तुम्हारे
रंग नहीं होली के रंगों में |
Bahut Khoobsoorat Rachna Hai.
रचना की प्रशंसा के लिए सहृदय आभार !