कल आना है फिर संडे

छ:दिन बीते किसी तरह से ,कल आना है फिर संडे|

खेल खेल के नये तरीके,और सीखेंगे नये फंडे|

 

सुबह देर तक सोऊंगा मैं,कोई मुझे जगाना मत|

उठ जाने के बाद कोई भी ,घर का काम कराना मत|

और नाश्ते में खाऊंगा,गरम गरम आलू बंडे|

 

मित्रों के संग चेयर रेस हम‌ ,मज़े मज़े से खेलेंगे|

पीकर दूध किलो भर फिर, भरपूर दंड हम पेलेगें|

और शाम को खायेंगे फिर,उबले हुये पांच अंडे|

 

देर शाम को देखूँगा मैं ,अच्छी सी पिक्चर जाकर|

डिनर खाऊंगा बढ़िया बढ़िया ,अच्छे होटल में जाकर|

देर रात जो सोऊँगा तो ,आ जायेगा फिर मंडे|

 

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लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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