कविता

  आओ ! थोड़ा मुस्कुरा लेते हैं 

        प्रभुनाथ शुक्ल

देखो ! दुनिया कितनी बदल गई है ना

सबको तो बस ! अपनी ही पड़ी है

दूसरे की कोई सुनता ही नहीं

कोई दूसरे को पढ़ता नहीं

दूसरे को कोई जानता नहीं

आओ ! हम-तुम मन की बातें करते हैं

थोड़ा मुस्कुरा और खिलखिला लेते हैं 

जब ! फुर्सत मिले तो थोड़ा मुस्कुराते जाओ

देखो ! जिंदगी कितनी आसान हो जाएगी ?

मैं चाहती हूँ जब तुम थक जाओ

जब तुम हार जाओ तो मेरी तरफ देख लिया करो

मैं तुम्हारा हौसला और संकल्प हूं

मैं तुम्हारा प्रकल्प हूँ

जीवन जीने की कला हूँ

तुम कभी मेरी तरफ देखते ही नहीं

मैं संदेश देती हूँ !

लेकिन, तुम उसे अनसुना कर देते हो

मैं तुम्हें संभालती हूँ !

तुम्हारे संकल्पों की याद दिलाती हूँ

लेकिन ! दीवानगी में तुम भूल जाते हो