खेल जगत

राष्‍ट्रमंडल खेल: नारी शक्‍ति ने रचा इतिहास

-वेद प्रकाश अरोड़ा

भारत आज जिस तरह आर्थिक क्षेत्र में एक जर्बदस्‍त शक्‍ति के रूप में अपनी धाक जमा रहा है, उसी तरह वह खेलों के अंतर्राष्‍ट्रीय क्षितिज पर भी एक चमकदार सितारे के समान उभर कर सामने आया है। 71 देशों के 19वें राष्‍ट्रमंडल खेलों का आरंभ और समापन रंगारंग और मनमोहक तो रहा ही है, उनका 4 अक्‍तूबर से 14 अक्‍तूबर का सफर उत्‍तेजना के क्षणों से भरपूर होने के साथ साथ हर दिन भारत के लिए खुशियों पर खुशियां लाया। मेलबोर्न और मेनचस्‍टर में आयोजित राष्‍ट्रमंडल खेलों में बटोरे गए स्‍वर्ण और अन्‍य पदकों की तुलना में इस बार कहीं अधिक पदक अपनी झोली में डालकर भारत ने एक जानदार और कद्दावर राष्‍ट्र होने का जीवंत प्रमाण दिया। 2006 के मेलबोर्न खेलों में हमने कुल 49 पदक पाए, जिनमें 22 स्‍वर्ण पदक थे, लेकिन चार वर्ष पहले मेनचेस्‍टर खेलों में हमने 30 स्‍वर्ण और 69 कुल पदक प्राप्‍त किए थे। मेलबोर्न में लगे दाग को हमने दिल्‍ली में धो डाला। इन खेलों में हमने सैकड़े को पार कर शुभ शकुन को दर्शाने वाले कुल 101 पदक प्राप्‍त किए जिनमें 38 स्‍वर्ण पदक भी शामिल हैं। ये खेल इसलिए भी यादगार बन गए हैं कि इन्‍होंने देश की खेल संस्‍कृति में न सिर्फ चार चांद लगाए हैं बल्‍कि उनमें कई खुशनुमा रंग भरे हैं और नई ऊंचाइयों को स्‍पर्श किया है। पहले हम अक्‍सर मन मसोस कर रह जाते थे कि एक अरब से अधिक जनसंख्‍या वाला हमारा देश गिने-चुने खेलों में भाग लेकर भी कोई खास कमाल नहीं दिखा पाया। हमारी झोली में उंगलियों पर गिने जाने लायक कुछ ही स्‍वर्ण पदक पड़ते थे और हमें चंद रजत तथा कांस्‍य पदकों से संतोष करना पड़ता था, लेकिन वक्‍त के करवट लेने के साथ-साथ हमारी नजर और नजरिये में बदलाव आया है। अब हम अतीत का रोना रोने के बजाय वर्तमान और भविष्‍य को सजाने संवारने और एक बड़ी खेल ताकत बनाने में विश्‍वास करते हैं। पहले एथलेटिक्‍स और ट्रैक और फील्‍ड खेलों में पूरी तरह मात खाने पर हमारा सिर शर्म से झुक जाता था लेकिन इस बार महिलाओं की रिले दौड़ में हमारी महिला टीम ने नाइजीरिया को पीछे छोड़कर यह प्रमाणित कर दिया कि हमारी देश की युवतियां दमखम में और शारीरिक क्षमता में किसी से कम नहीं हैं। अगर 4×400 मीटर की महिला रिले दौड़ में मंजीत कौर, मंदीप कौर, अश्‍विनी और सिनी जोस ने स्‍वर्ण हासिल किया तो महिला डिस्‍कस थ्रो में स्‍वर्ण, रजत और कांस्‍य तीनों पदक क्रमश: कृष्‍णा पुनिया, हरवंत कौर और सीमा अंतिल ने अपने नाम कर यह दिखा दिया कि भारतीय महिलाएं शारीरिक बल, दमखम और मुस्‍तैदी में किसी से कम नहीं। कृष्‍णा पुनिया एथलेटिक्‍स में 52 वर्षों में स्‍वर्ण पदक जीतने वाली पहली महिला है। मिल्‍खा सिंह के बाद वह ऐसी दूसरी महिला है जिसने ट्रैक और फील्‍ड प्रतियोगिता में स्‍वर्ण पदक जीतकर भारत को गौरवान्‍वित किया है। इस जीत के बाद हम ताल ठोककर कह सकते हैं कि इन खेलों ने भारतीय नारी को नई और सशक्‍त परिभाषा दी है।

जब हम कुछ पीछे मुड़कर इतिहास पर नजर डालते हैं तो पाते हैं कि पहले जितने भी राष्‍ट्रमंडल खेल हुए उनमें इंगलैंड हमेशा भारत से अधिक स्‍वर्ण पदक जीतकर दूसरे नंबर पर बरकरार रहता था, लेकिन इस बार भारत ने उससे बाजी मार कर दूसरा स्‍थान प्राप्‍त कर लिया है। इंगलैंड भले ही 142 पदक लेकर पदक संख्‍या में हमसे आगे रहा है लेकिन स्‍वर्ण पदकों के मामले में हम उसके 37 पदकों से एक पदक अधिक यानि 38 पदक लेकर एक पायदान ऊपर बढ़ गए हैं। विश्‍वभर के खेल इतिहास में उसी देश को विजेता या अग्रणी माना जाता है जो औरों की तुलना में अधिक स्‍वर्ण पदक प्राप्‍त करता है। स्‍वर्ण पदकों की संख्‍या से ही सूरमा विजेताओं की श्रेष्‍ठता और देश के खेल कद को नापा जाता है। 14 अक्‍तूबर तक दोनों देश कभी एक पायदान ऊपर तो कभी एक पायदान नीचे चले जाते थे, लेकिन अंतिम दिन भारतीय महिला शक्‍ति की आंधी के आगे प्रतिद्वंदी पस्‍त होते चले गए। इस अंतिम दिन के पहले बैडमिंटन डबल्‍स में भारतीय महिलाओं –ज्‍वालागुट्टी और अश्‍विनी पोनप्‍पा की जोड़ी ने सिंगापुर की लड़कियों को पराजित कर 37वां स्‍वर्ण पदक भारत की झोली में डाला। इस 37वें पदक की जीत ने भारत को इंगलैंड की बराबरी पर ला खड़ा किया। टाई अथवा ज़िच को विश्‍व की नंवर 3 खिलाड़ी और भारत में सबकी प्‍यारी सायना नेहवाल ने तोड़कर यानि मलेशिया की खिलाड़ी म्यू चू को कांटे के एकल मुकाबले में पराजित कर देश को स्‍वर्ण तालिका में इंगलैंड के ऊपर पहुंचा दिया। इस 38वें स्‍वर्ण पदक को जीतने के बाद भारत पदक तालिका में आस्‍ट्रेलिया से मात्र एक पायदान नीचे यानि दूसरे स्‍थान पर पहुंच गया। सायना की इस जीत से पहले कोई भी भारतीय महिला खिलाड़ी बैडमिंटन एकल को अपने नाम नहीं कर सकी थी।

यह कहना अत्युक्‍ति नहीं होगा कि इन राष्‍ट्रमंडल खेलों में पदक तालिका में दूसरे स्‍थान पर पहुंचने में प्रत्‍येक पदक प्राप्‍त भारतीय महिला अथवा पुरुष खिलाड़ी का योगदान अमूल्‍य कहा जाएगा – चाहे वह चार स्‍वर्ण पदक विजेता गगन नारंग हों या तीन स्‍वर्ण विजेता ओंकार सिंह या फिर पहलवान सुशील कुमार। इन सबको आज पूरा देश नमन करता है, लेकिन यह मानने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए कि भारत की असली ताकत से रूबरू होने के लिए छोटे शहर, कस्‍बों और गांवों में बिखरे अनमोल हीरों का मोल जानने और उन्‍हें गढ़ने-तराशने का समय आ गया है।राष्‍ट्रमंडल खेलों में कई गुदड़ी के लाल अपने चमत्‍कारी खेल से आम आदमी से खास आदमी बन गए हैं। रांची में ऑटो ड्राइवर की बेटी दीपिका ने तीरंदाजी में, महाराष्‍ट्र की गरीब आदिवासी लड़की कविता राउत ने दस हजार मीटर की दौड़ में, सामान्‍य परिवार में जन्‍मी तेजस्‍विनी सांवत ने निशोनबाजी में और रेलवे में नौकरी के बावजूद शूटर अनीसा सय्यैद ने पिस्‍टल शूटिंग में गजब का प्रदर्शन कर खेल इतिहास में अपना नाम दर्ज करा लिया है। इन खेलों ने जग जाहिर कर दिया है कि देश की भरपूर ताकत भारत में है, इंडिया में नहीं। अभी इसका श्रेष्‍ठ उदाहरण हरियाणा है। वहां के अखाड़ों की मिट्टी ने कई जाने-माने और बलशाली पहलवान तैयार किए हैं। देश को मिले कुल 38 स्‍वर्ण पदकों में से 11 स्‍वर्ण पदक तथा 23 अन्‍य पदक लेकर वह सबसे आगे है। यह कमाल उसने तब कर दिखाया है जब उसकी आबादी देश की कुल जनसंख्‍या का 2 प्रतिशत है । राज्‍य की दो बहनों में से बड़ी बहन गीता को स्‍वर्ण पदक और छोटी बहन बबीता को कुश्‍ती में ही रजत पदक मिला है, लेकिन इसके लिए उन्‍होंने पहाड़ पर चढ़ने जैसी कठिनाइयों का सामना किया । गांव के लोग लड़कियों को कुश्‍ती सिखाने के सख्‍त विरूद्ध थे जिसकी वजह ये उनके पिता को ही अपनी बेटियों को घर के पिछवाड़े में पहलवानी के दांवपेच और गुर सिखाने पड़े । देहाती और पिछड़े इलाकों में फर्श से अर्श पर जाने की सैकड़ों गाथाएं मिल जाएंगी । संक्षेप में कह सकते हैं कि इन खेलों ने भारत की नारी शक्‍ति का, गुदड़ी के लालों को अपने उज्‍जवल भविष्‍य का आइना दिखाया है और आम आदमी को खास आदमी बनाने के द्वार खोले हैं। अब जरूरत है खेलों के अनुकूल वातावरण बनाने की तथा क्रिकेट के खेल जैसी सहूलियतें और वित्‍तीय सहायता देने की। नई-नई तकनीक सिखाने के लिए यह भी आवश्‍यक है कि आधुनिक सुविधाओं से संपन्‍न स्‍टेडियम और खेल परिसर बनाये जायें, खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देने के लिए द्रोणाचार्य जैसे गुरू, प्रशिक्षक और गाइड नियुक्‍त किए जाएं, यह इसलिए आवश्‍यक है कि कई प्रतियोगिताओं में हमारे खिलाड़ी मात्र एक दो अंकों में कमी के कारण परास्‍त हो जाते हैं। अगर वे पूरी तकनीकों और बारीकियों की जानकारी के साथ मैदान में उतरेंगे तो दशमलवों के अंतर से मात नहीं खाएंगे। गुरु का ज्ञान गाढ़े वक्‍त में चमत्‍कार का काम करता है। इसके अलावा खिलाड़ियों की खुराक पर भी समुचित ध्‍यान देना होगा। विभिन्‍न खेलों के लिए संस्‍थान और अकादमियां बहुत सहायक और कारगर होती हैं। इस मामले में पटियाला के राष्‍ट्रीय खेल संस्‍थान के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। वहां एक हजार खिलाड़ियों को रखने और सिखाने की सुचारू व्‍यवस्‍था है। इसमें प्रशिक्षकों को भी प्रशिक्षण देने की व्‍यवस्‍था है। केन्‍द्र के अलावा राज्‍य की भी अपनी खेल नीति होनी चाहिए। सही प्रोत्‍साहन, प्ररेणा और दिशा ज्ञान मिलने पर हमारे खिलाड़ी आगामी एशियाई खेलों और ओलंपिक खेलों में बेहतर प्रदर्शन कर अपनी धाक जमाने में सफल होंगे। (स्टार न्यूज़ एजेंसी)