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माखनलाल विश्वविद्यालय में हंगामा प्रकरण: सिंहों की लड़ाई में फंसे मुलाजिम

सबके अपने स्वार्थ, सबके अपने तर्क

भोपाल स्थित माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता  विश्‍वविद्यालय में आजकल हंगामा बरपा है। हंगामा दो ‘सिंहों’ – श्रीकांत सिंह और पुष्पेन्द्रपाल सिंह के कारण है। इसके लिए दोनों ने अपनी अक्ल और शक्ल का भरपूर फायदा उठाया। व्यक्तिगत स्वार्थ को साधने के लिए ‘बेचारे कर्मचारियों’ को बलि का बकरा बनाया गया। अध्यापक और अधिकारियों की लड़ाई में फंसे कर्मचारी अब तड़फरा रहे हैं, क्योंकि कुलपति प्रो. कुठियाला के खिलाफ आग भड़काने वाले पर्दे के पीछे से खेल खेल रहे हैं। अब कर्मचारी इस बात से छला महसूस कर रहे हैं कि उनके साथ विश्वासघात किया गया है।

गौरतलब है प्रो. कुठियाला का विरोध उनकी नियुक्ति पूर्व ही शुरु हो चुका था। चूंकि कुठियाला संघ से जुड़े हैं इसलिए कांग्रेसी-कम्युनिस्ट और कुछ छद्म संघियों ने ‘बाहरी’ के नाम पर इनका विरोध किया। जब ‘बाहरी’ का शिगूफा नहीं चला तो कुठियाला के पूर्व कार्यकाल पर आरोप लगाए गए। अंततः जब नियुक्ति हो गई तो पर्दे के पीछे से उनका विरोध करने वाले स्वागत में फूलों का गुलदस्ता लिए सबसे आगे खड़े थे।

कुठियाला के पद ग्रहण करने बाद उनका विरोध विवि के शोध निदेशक विजयदत्त श्रीधर ने शुरु किया। श्रीधर रहे तो कांग्रेसी पत्रकार लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर के चहेते हैं। गौर के समय उनकी नियुक्ति कुलपति के रूप में होने वाली थी लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी के हस्तक्षेप के कारण अच्युतानंद मिश्र कुलपति बनाए गए। बाद में श्रीधर को ‘शोध निदेशक’ के पद से नवाजा गया। तब संघ के अधिकारी तिलमिला कर रह गए थे। मिश्र तो कार्यकाल शांतिपूर्ण तरीके से पूरा कर गए लेकिन श्रीधर ‘शोध परियोजना’ में रेवड़ी बांटने और अपनी बहू की नियुक्ति को लेकर विवादों में आ गए। रेक्टर ओपी दूबे और निदेशक आईटी श्रीमती जेआर झणाने से काफी विवाद हुआ। स्थानीय होने के कारण श्रीधर का विरोध अध्यापक खुलकर नही कर पाये।

विवि के ही लोग बताते हैं कि कुठियाला को विवि में स्वच्छता अभियान चलाना महंगा पड़ा है। उनके आने के बाद ही शोध निदेशक, रेक्टर, निदेशक आईटी और रजिस्ट्रार की रवानगी हुई। पूर्व में नक्सलियों और मार्क्‍सवादियों के निकट रहे और दिग्विजय सिंह के कृपापात्र नौकरशाह शरदचन्द्र बेहार के जमाने में नियुक्त कम्युनिस्ट भी घबरा गए। जब से कुठियाला ने नए कोर्स की शुरुआत की तभी से उनका विरोध शुरु हो गया।

विवि से संबद्ध अध्ययन केन्द्रों में भी बड़े पैमाने पर गोरखधंधे का पता चला है। पूर्व कुलपति अच्युतानन्द मिश्र के कार्यकाल में विधानसभा अध्यक्ष ने इसकी जांच का आदेश दिया था। उसके बाद ही विवि कम्प्यूटर सेंटर में आग लग गई और अनेक दस्तावेज जल गए।

विवि सूत्रों के मुताबिक रजिस्टार का कार्यभार संभाल रहे श्रीकांत सिंह और निदेशक पब्लिक रिलेशन का काम देख रहे पुष्पेन्द्रपाल सिंह ने कुलपति के खिलाफ प्रदर्शन, मीडिया दुष्प्रचार का ताना-बाना बुना। इस षड्यंत्र में सहायक कुलसचिव दीपेन्द्र सिंह बघेल सहयोगी की भूमिका में है। पुष्पेन्द्रपाल जहां अवसरवादी हैं वहीं श्रीकांत सिंह छद्म संघी और दीपेन्द्र सिंह हार्डकोर कम्युनिस्ट। जानकारों के मुताबिक पीपी और श्रीकांत वर्षों से चले आ रहे एकछत्र राज टूटने के डर से घबराये हैं तो दीपेन्द्र अपनी वैचारिक निष्ठा के कारण मैदान में है।

पता चला है, दोनों सिंह प्रोफेसर बनना चाहते हैं ताकि उनका दबदबा बरकरार रहे। कुलपति हैं कि बाहर से प्रोफेसर लाने की कवायद में हैं। दोनों सिंहों ने आंतरिक और बाहरी ताकतों के दम पर कुलपति को ठीक कर देने की अप्रत्यक्ष धमकी तक दे दी है। इस काम में दोनों सिंहों ने अपने छात्र-गुर्गो को मोर्चा संभालने के लिए हिदायत दे दी है। कुलपति ने विवि की अकादमिक गुणवत्ता और स्तर से किसी भी प्रकार के समझौते की पेशकश को ठुकरा दिया है। कुलपति का ये इंकार ही उनके लिए आफत की चेतावनी बन गई।

एक दिन जब कुलपति प्रोफेसर कुठियाला विवि में नही थे तो कर्मचारी संघ, शिक्षक संघ और अधिकारी संघ ने कुलपति के खिलाफ प्रदर्शन किया। प्रदर्शन विवि परिसर में ही था। मांग क्या थी और ज्ञापन किसे दिया गया अभी तक स्पष्ट नहीं है। क्योंकि विवि के रेक्टर, रजिस्टार और अन्य कुछ अधिकारी भी प्रदर्शन में शामिल बताये जाते हैं। प्रदर्शन को वहां के पब्लिसीटी विशेषज्ञों ने मैनेज किया। इसलिए कुलपति और विश्वविद्यालय के खिलाफ हुए इस प्रदर्शन की अच्छी मीडिया पब्लिसिटी भी हुई। दूसरे ही दिन विश्वविद्यालय से संबंद्ध अध्ययन केन्द्रों के संचालकों ने प्रदर्शन किया। इसकी भी बढ़िया पब्लिसिटी हुई। इन संचालकों के संघ ने कुलपति पर केन्द्रों के निरीक्षण के नाम पर पैसा मांगने का आरोप लगाया। खबरों में यह भी छपा कि मांगने वाले ने यह भी कहा कि यह पैसा ‘ऊपर तक’ पहुंचना है। प्रदर्शन के दौरान कुलपति भ्रष्टाचार के लिए व्यक्तिगत तौर पर आरोप भी लगाए गए। जाहिर है इतना सब होने के बाद विश्विद्यालय के बारे में तरह-तरह की चर्चाएं चल रही है। सवाल यह भी उठ रहा है कि आखिर कुलपति के खिलाफ अचानक इतने सारे मोर्चे क्यों खुल गए? प्रो. कुठियाला ने आते ही ऐसा क्या कर दिया कि उन्हें इतना विरोध झेलना पड़ रहा है। कुठियाला का सबसे बड़ा विरोध इस बात के लिए हो रहा है कि वे संघ से जुड़े हैं। यह बात कुलपति सरेआम स्वीकार भी करते हैं।

अब सारा मामला संघ के आला अधिकारियों और भाजपा-सरकार के संबंधित व्यक्तियों तक पहुंचा दिया गया है। संघ ने अपने कुछ कार्यकर्ताओं को वि.वि. के विध्वंसकारियों की कुंडली तैयार करने को भी कह दिया है। देखना है कि संघ और भाजपा इस विश्वविद्यालय को बचा पाता है या पतन की कगार पर इसे ऐसे ही छोड़ देता है।

माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय परिसर में विश्वविद्यालय के समस्त अधिकारियों, शिक्षकों एवं समस्त कर्मचारियों ने कुलपति के तानाशाहीपूर्ण, भ्रष्ट, स्वार्थपरक, मनमाने एवं विश्वविद्यालय-विरोधी कार्यप्रणाली के विरोध में जम कर हंगामा और नारेबाजी की। इस अवसर पर V.C के मौजूद न होने पर सभी ने रेक्टर को ज्ञापन भी सौंपा जिसमे V .C को सुधर जाने की हिदायत दी गयी। अगर VC फिर भी न सुधरा तो अगले चरण में सरकार से उसकी बर्खास्तगी की मांग करने की धमकी भी प्रदर्शनकारियों ने लगे हाथ दे डाली। ये जंगी प्रदर्शन करीब ३ घंटे चला।

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चित्र परिचय: प्रदर्शन की एक तस्वीर जिसमे रेक्टर श्री अग्रवाल, रजिस्‍ट्रार श्री श्रीकांत (इनकी तस्वीर कट गयी है, आधे नज़र आ रहे हैं) साथ ही कर्मचारी संघ का अध्यक्ष अर्जुन दोहरे भी नज़र आ रहा है…