कांग्रेस ,संघ के देशहित कार्यों की सराहना करे

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अनिल अनूप 
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदम्बरम ने भोपाल में कहा कि अगर कांग्रेस मध्य प्रदेश में सत्ता में आती है तो वह सरकारी कर्मचारियों को उनके शाखाओं में शामिल होने पर पाबंदी लगा देगी। चिदम्बरम ने कहा कि ऐसा इसलिए किया जाएगा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राजनीतिक संस्था है।
गौरतलब है कि कांग्रेस द्वारा जारी अपने ‘वचन पत्र’ में कहा गया है कि अगर प्रदेश में उसकी सरकार आती है तो वह शासकीय परिसरों में आरएसएस की शाखाएं लगाने पर प्रतिबंध लगाएंगे और शासकीय अधिकारी व कर्मचारियों को शाखाओं में छूट संबंधी आदेश निरस्त करेंगे। इसके बाद भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा, पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा व मध्य प्रदेश भाजपा अध्यक्ष राकेश सिंह ने कांग्रेस को चुनौती देते हुए कहा कि हिम्मत है तो संघ की शाखाओं पर प्रतिबंध लगाकर दिखाएं। गौरतलब है कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 1981 में मध्य प्रदेश में सरकारी भवनों में आरएसएस की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाया था। इसके बाद 2000 में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की सरकार ने इस प्रतिबंध को सिविल सर्विसेज कंडक्ट रूल के तहत जारी रखा था। इसके बाद नवम्बर 2003 में भाजपा नीत सरकार प्रदेश में आई और उमा भारती मुख्यमंत्री बनीं। उन्होंने भी इस प्रतिबंध को जारी रखा। उमा भारती के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद बाबूलाल गौर मुख्यमंत्री बने। तब भी यह प्रतिबंध जारी रहा। 2005 में शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने और उन्होंने 2006 में आरएसएस को सामाजिक-सांस्कृतिक व गैर-राजनीतिक संगठन बताते हुए इस पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया था।
मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रधान कमलनाथ ने कहा है कि संघ पर प्रतिबंध लगाने की कोई बात कांग्रेस के ‘वचन पत्र’ में नहीं कही गई। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा, ऐसा लगता है कि इन दिनों कांग्रेस का एक ही एजेंडा है, मंदिर नहीं बनने देंगे, शाखा नहीं चलने देंगे। वरिष्ठ भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा कि कांग्रेस संघ पर रोक लगाने की योजना बना रही है, लेकिन ईसाई पादरियों को धर्म के प्रचार की अनुमति दी जाएगी। ऐसे में अब हिन्दुत्व के प्रचारक संघ और धर्मांतरण में लगे ईसाईयों के बीच चुनाव का वक्त है। स्वामी ने कहा कि कांग्रेस के पास कोई नया विचार नहीं है। इनके पास लोगों को आकर्षित करने का कोई मुद्दा नहीं है।
इसे देश का दुर्भाग्य ही कह सकते हैं कि मात्र मत प्राप्त करने और सत्ता प्राप्ति को प्राथमिकता देते हुए देशहित की भी अनदेखी की जाने लगी है। आजादी के तत्काल बाद सत्ता में आई कांग्रेस की सरकार जिसकी कमान पंडित जवाहर लाल नेहरू के हाथ में थी ने संघ विरोधी नीति अपनाई और उसी तरह जनसंघ विरुद्ध भी कहते व करते रहे।
छ: दशक की तुष्टिकरण की नीति के परिणामस्वरूप देश के बहुमत हिन्दू समाज को लगा कि उसकी भावनाओं की अनदेखी की जा रही है तो हिन्दू समाज की सोच में एक सकारात्मक बदलाव आया। हिन्दू समाज ने संघ विचारधारा को पहले से अधिक समझते हुए उसे अपनाया और देश की सभ्यता व संस्कृति के प्रति अपने कर्तव्य को भी समझा। देश में छ: दशक तक राज करने वाली कांग्रेस हिन्दू समाज में आ रहे परिवर्तन को समझने में असफल रही और उसने तुष्टिकरण की राह पर चलते हुए हिन्दू समाज की भावनाओं की अनदेखी की और परिणामस्वरूप वह आज केंद्र की सत्ता से बाहर है। समय की मांग तो यह थी कि वह देश के बहुमत हिन्दू समाज की भावनाओं को समझती और हिन्दू समाज की भावनाओं का सम्मान करती, लेकिन हुआ उलट। संघ पर किसी तरह का प्रतिबंध लगाना कांग्रेस के हित में नहीं। घोषणा मात्र से ही हिन्दू समाज की प्रतिक्रिया का दबाव झेलने में कांग्रेस अपने को असमर्थ पा रही है और अपनी स्थिति स्पष्ट करने का प्रयास कर रही है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं द्वारा संघ विरुद्ध जो कुछ समय-समय पर कहा जा रहा है वह कांग्रेस के लिए आत्मघाती ही साबित होगा।
समय की मांग है कि कांग्रेस संघ पर निशाना साधने की बजाए संघ के देशहित कार्यों की सराहना करे और तुष्टिकरण की नीति का त्याग कर बहुमत समाज की भावनाओं का सम्मान करे।

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