राजनीति

कांग्रेस और ईसाई मिशनरियों द्वारा संपोषित है अन्ना अभियान

गौतम चौधरी

अन्ना का अनशन तुडवा दिया गया है और अब अन्ना हजारे भ्रष्टाचार के खिलाफ देशभर में अलख जगाने निकले हैं। कुछ लोग अन्ना को दूसरे गांधी के रूप में प्रचारित कर रहे हैं तो कुछ लोग उन्हें मोदी समर्थक होने पर पानी पी पी का गलिया रहे हैं। भारत की मीडिया इस पूरे राजनीतिक नाटक को आजादी की दूसरी लडाई घोषित करने पर तुली है। हर ओर से यही बात सुनने को मिल रही है कि अन्ना ने तो कमाल कर दिया और एक बार फिर से देश भ्रष्टाचार के मामले पर उठ खडा हुआ है। लेकिन जब संपूर्णता में विचार किया जाये तो एक प्रष्न मन को सालता है कि सचमुच इस देश से भ्रष्टाचार के रक्तबीज का अंत हो पाएगा? अन्ना के साथ वालों पर ही विचार किया जाये, जो लोग अन्ना के साथ हैं क्या वे दूध के धुले हैं? पहली बात तो यह है कि अन्ना के लिए देशभर में लोकमत जुआने का काम विदेषी पैसे पर पल रहे पंचसिताराई समाजसेवी संगठन एवं ईसाई मिशनरी के विद्यालय, महाविद्यायों के विद्यार्थी कर रहे हैं। इसके पीछे का कारण क्या हो सकता है, इसपर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए।

इधर समाचार माध्यमों ने इस आन्दोलन को हाथोंहाथ लिया। बाद में जब तर्क वितर्क होने लगे तो कुछ बुध्दिजीवियों ने इस मामले को समाचार वाहिनियों के टीआरपी से जोड दिया। अन्ना का अनशन और समाचार माध्यमों द्वारा कवरेज को देखकर ऐसा लगता है कि पूरा का पूरा आन्दोलन स्वस्फूर्त नहीं बल्कि प्रायोजित है। सो अन्ना के इस अभियान को सहजता से लेना कई मामलों में घातक साबित हो सकता है। राजनीति के हिसाब से देखा जाये तो कांग्रेस का नंबर एक का दुष्मन भारतीय जनता पार्टी नहीं अपितु मराठी क्षत्रप शरद पवार का कुनवां है। कांग्रेस को महाराष्ट्र में शरद पवार से ही चुनौती मिल रही है। इधर कांग्रेसी महारानी सोनिया गांधी को इस बात का डर है कि अगर डॉ0 मनमोहन सिंह जम गये तो उनके लाडले राहुल के लिए खतरा बनकर उभरेंगे तब इटली की सत्ता को चुनौती देना आसान हो पाएगा। इसलिए सोनिया जी आजकल खासे चिंतित हैं। यही नहीं बाबा रामदेव, के0 एन0 गोविन्दार्चा और सुब्रमण्यम स्वामी की तिकडी ने कांग्रेस को और अधिक डरा दिया है। ऐसे में इस शक को बल मिलने लगा है कि आन्ना के इस पूरे आन्दोलन को कांग्रेस पार्टी एक खास योजना के लिए प्रयोजित कर रही है। चर्च संपोषित संगठनों और शैक्षणिक संस्थाओं के समर्थन को देखकर कहा जा सकता है कि इस मामले में चर्च की भी भूमिका है। ऐसा मानना गलत नहीं होगा कि अन्ना अभियान को कांग्रेस और ईसाई चर्च का समर्थन प्राप्त हो। यही नहीं इस आन्दोलन को अमेरिकी लॉबी वाले गैर सरकारी संगठनों का भी सहयोग मिल रहा है।

हालांकि अन्ना के इस अनशन से किसी को एतराज नहीं होना चाहिए। अन्ना और उनके रणनीतिक समर्थकों ने खीचतान कर भ्रष्टचार के खिलाफ लोहा लेने में कोई कमी भी नहीं की है लेकिन सवाल यह उठता है कि जो अधिवक्ता सर्वोच्च न्यायालय में मात्र एक घंटा समय देने के लिए 25 लाख रूपये लेता है वह भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग का सफल सिपाही हो सकता है क्या? विदेषी पैसों पर सिनेमा बनाने वाले, विदेषी पैसों पर समाज सेवा का नाटक करने वाले तथा ईसाई मिशनरी विद्यालयों के बच्चों द्वारा यह लडाई लडी जा सकती है क्या? ऐसा संभव नहीं है। इसलिए अन्ना का अभियान 100 प्रतिशत असफल होगा। आज इस देश का संपूर्ण सरकारी विभाग भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया है। रेलवे का टिकट संग्राहक पैसे लेकर सीट बेच रहा है। विद्यालय में बिना घुस के प्रमाण-पत्र नहीं मिलता, बिना घुस का पुलिस प्राथमिकी नहीं लिखती, आज कोई ऐसा विभाग नहीं जहां बिना पैसे काम हो जाये। जो अखबार लगातार भ्रष्टाचार के खिलाफ लिख रहा है उसकी बुनियाद भष्टाचार पर टिकी है। इस देश का ऐसा कोई अखबार नहीं जो अपना सही प्रसार संख्या दिखाता हो। हर अखबार को सरकार के सूचना एवं लोकसंपर्क विभाग में कमीशन देकर विज्ञापन लेना पडता है। कमीशन के रेट खुले हैं। जो अखबार कमीशन नहीं देता उसे डीएभीपी तक का विज्ञापन नहीं दिया जाता। ऐसे देश में कोई यह कहे कि एक विधेयक के पारित होने मात्र से भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा तो यह आकास-कुषुम के समान कल्पना है। देश के सर्वोच्च पंचायत में सूचना के अधिकार को कानूनी जामा पहनाया गया, तय किया गया कि हर विभाग सूचना मांगने वाले को सूचना उपलब्ध कराएगा लेकिन क्या आज ऐसा हो रहा है? एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहूंगा। विगत वर्षों गुजरात में किसानों ने आत्महत्या की। जब एक सूचना के अधिकार से जुडे कार्यकर्ता ने पूरे प्रदेश में हुई घटनाओं का ब्योरा मांगा तो प्रदेश के पुलिस विभाग ने सूचना देने से मना कर दिया। फिर वह कार्यकर्ता सूचना आयूक्त से मिला सूचना आयूक्त के आदेश पर पुलिस विभाग थोडी हडकता में आयी लेकिन उक्त कार्यकर्ता को एक पत्र लिखकर सूचित किया गया कि इस संदर्भ की सूचना विभाग के पास उपलब्ध नहीं है इसलिए वे प्रत्येक जिला केन्द्र के पुलिस मुख्यालय से यह सूचना प्राप्त करें। उक्त कार्यकर्ता ने प्रदेश के सूचना अधिकारी को संपर्क कर फिर से आवेदन दिया। इस बार सूचना अधिकारी ने पुलिस विभाग को कडे शब्दों में डांट पिलाई, बावजूद इसके पुलिस विभाग ने प्रदेश के 26 जिलों में से मात्र 13 जिलों में आत्महत्या करने वाले किसानों की सूचि दी और कहा कि अभी तक केन्दीकृत रूप से उनके पास इतनी ही सूचना उपलब्ध हो पायी है। तबतक दो साल का समय बीत चुका था। जो पुलिस अधिकारी उस समय पुलिस मुख्यालय का सूचना अधिकारी था आज वह अहमदाबाद महानगर पुलिस आयुक्त है। केवल गुजरात में ही अभी तक तीन आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है। देशभर में ऐसी कई हत्याएं हुई है लेकिन हत्या करने वाला गिरोह अभी तक पुलिस गिरफ्त से बाहर है। बिहार में स्वण्0श्निर् ाम चतुर्भुज सडक परियोजना में काम करने वाले इमानदार अभियंता को मौत के घाट उतार दिया गया। उक्त अभियंता ने कुछ ही दिनों पहले प्रधानमंत्री कार्यालय को परियोजना में हो रही धांधली के लिए पत्र लिखा था और उसकी हत्या कर दी गयी। हालांकि हत्यारा पकडा गया, ऐसा बताया जाता है, लेकिन उस संदर्भ का प्रधानमंत्री कार्यालय से पत्र लिक करने वाला आदमी आजतक पुलिस की पकड से बाहर है। इस देश में गांधी मारे गये। राष्ट्रवादी चिंतक पं0 दीनदयाल को मार दिया गया, प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को ताशकंद में विश दिया गया, इन्दिरा गांधी को मार दिया गया, राजीव को बम से उडा दिया गया। इस देश में ऐसी कई घटनाए हुई है जिसका असली दोषी आज भी पुलिस और कानून के सिकंजों से बाहर है। देश में भ्रष्टाचार के, घोटाले के कई मामले उजागर हुए लेकिन किसी पर कोई कार्रवाई हुई क्या? बस जेल होता है।

कुल मिलाकर देखें तो अन्ना का अनशन भी एक राजनीतिक अभिनय है। अन्ना हो सकते हैं बढिया आदमी हों, यह भी सत्य है कि अन्ना के साथ काम में जुटे कुछ लोग अच्छे हैं लेकिन अन्ना के इर्द गीर्द रहने वालों पर भडोसा नहीं किया जाना चाहिए। अन्ना के अभियान को हवा देने की जिम्मेदारी जिन लोगों ने उठा रखी है वे सामाजिक कार्यकर्ता सदा से कांग्रेस के पुरोहित रहे हैं। उनका काम ही रहा है कि देश के विभिन्न सामाजिक संगठनों में प्रवेश का कांग्रेस का हित पोषण करना। फिर इनको पैसे देने वाली संस्थाओं पर पूंजीवादी अमेरिका और जडवादी ईसाइयों का अधिकार है। जो पूरी दुनिया को ईसाई बनाने पर तुले हैं। ऐसे में अन्ना के आन्दोलन को न तो देशहित से जोडकर देखा जाना चाहिए और न ही आम भारतियों का आन्दोलन माना जाना चाहिए। बाबा रामदेव से घबराई कांग्रेस अन्ना का उपयोग कर रही है तो दूसरी ओर सोनिया गांधी देश के प्रधानमंत्री डॉ0 मनमोहन सिंह को दबाव में लाने के लिए अन्ना के माध्यम से निषाना साध रही है। इधर ईसाई मिशनरियों से संपोषित संस्था देश को अस्थिर करने के फिराक में जिसे अन्ना जैसे सीधे सपाटे व्यक्ति का कंधा उपलब्ध करा दिया गया है। इस मामले में क्या होगा यह तो समय बताएगा लेकिन फिहाल जो लोग अपनी गोटी लाल करने में लगे हैं उनके मार्ग में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कुछ बुध्दिजीवियों ने रोडा अटका दिया। बहुत दिनों के बाद संघ ने बुध्दिमानी का काम किया है। भ्रष्टाचार के मामले पर संघ ने न केवल बाबा रामदेव की पीठ थपथपाई है अपितु अन्ना को भी अपना समर्थन दिया है। इसलिए जो लोग यह मान कर चल रहे हैं कि अन्ना का कंधा उन्हें सहुलियत से उपलब्ध होगा ऐसा संभव नहीं है। इस पूरे ऐपीसोड में भले लग रहा हो कि कांग्रेस और ईसाई चर्च को फायदा हुआ हो लेकिन ये लोग अपने बुने जाल में ही फसने वाले हैं।