कांग्रेस और ईसाई मिशनरियों द्वारा संपोषित है अन्ना अभियान

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गौतम चौधरी

अन्ना का अनशन तुडवा दिया गया है और अब अन्ना हजारे भ्रष्टाचार के खिलाफ देशभर में अलख जगाने निकले हैं। कुछ लोग अन्ना को दूसरे गांधी के रूप में प्रचारित कर रहे हैं तो कुछ लोग उन्हें मोदी समर्थक होने पर पानी पी पी का गलिया रहे हैं। भारत की मीडिया इस पूरे राजनीतिक नाटक को आजादी की दूसरी लडाई घोषित करने पर तुली है। हर ओर से यही बात सुनने को मिल रही है कि अन्ना ने तो कमाल कर दिया और एक बार फिर से देश भ्रष्टाचार के मामले पर उठ खडा हुआ है। लेकिन जब संपूर्णता में विचार किया जाये तो एक प्रष्न मन को सालता है कि सचमुच इस देश से भ्रष्टाचार के रक्तबीज का अंत हो पाएगा? अन्ना के साथ वालों पर ही विचार किया जाये, जो लोग अन्ना के साथ हैं क्या वे दूध के धुले हैं? पहली बात तो यह है कि अन्ना के लिए देशभर में लोकमत जुआने का काम विदेषी पैसे पर पल रहे पंचसिताराई समाजसेवी संगठन एवं ईसाई मिशनरी के विद्यालय, महाविद्यायों के विद्यार्थी कर रहे हैं। इसके पीछे का कारण क्या हो सकता है, इसपर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए।

इधर समाचार माध्यमों ने इस आन्दोलन को हाथोंहाथ लिया। बाद में जब तर्क वितर्क होने लगे तो कुछ बुध्दिजीवियों ने इस मामले को समाचार वाहिनियों के टीआरपी से जोड दिया। अन्ना का अनशन और समाचार माध्यमों द्वारा कवरेज को देखकर ऐसा लगता है कि पूरा का पूरा आन्दोलन स्वस्फूर्त नहीं बल्कि प्रायोजित है। सो अन्ना के इस अभियान को सहजता से लेना कई मामलों में घातक साबित हो सकता है। राजनीति के हिसाब से देखा जाये तो कांग्रेस का नंबर एक का दुष्मन भारतीय जनता पार्टी नहीं अपितु मराठी क्षत्रप शरद पवार का कुनवां है। कांग्रेस को महाराष्ट्र में शरद पवार से ही चुनौती मिल रही है। इधर कांग्रेसी महारानी सोनिया गांधी को इस बात का डर है कि अगर डॉ0 मनमोहन सिंह जम गये तो उनके लाडले राहुल के लिए खतरा बनकर उभरेंगे तब इटली की सत्ता को चुनौती देना आसान हो पाएगा। इसलिए सोनिया जी आजकल खासे चिंतित हैं। यही नहीं बाबा रामदेव, के0 एन0 गोविन्दार्चा और सुब्रमण्यम स्वामी की तिकडी ने कांग्रेस को और अधिक डरा दिया है। ऐसे में इस शक को बल मिलने लगा है कि आन्ना के इस पूरे आन्दोलन को कांग्रेस पार्टी एक खास योजना के लिए प्रयोजित कर रही है। चर्च संपोषित संगठनों और शैक्षणिक संस्थाओं के समर्थन को देखकर कहा जा सकता है कि इस मामले में चर्च की भी भूमिका है। ऐसा मानना गलत नहीं होगा कि अन्ना अभियान को कांग्रेस और ईसाई चर्च का समर्थन प्राप्त हो। यही नहीं इस आन्दोलन को अमेरिकी लॉबी वाले गैर सरकारी संगठनों का भी सहयोग मिल रहा है।

हालांकि अन्ना के इस अनशन से किसी को एतराज नहीं होना चाहिए। अन्ना और उनके रणनीतिक समर्थकों ने खीचतान कर भ्रष्टचार के खिलाफ लोहा लेने में कोई कमी भी नहीं की है लेकिन सवाल यह उठता है कि जो अधिवक्ता सर्वोच्च न्यायालय में मात्र एक घंटा समय देने के लिए 25 लाख रूपये लेता है वह भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग का सफल सिपाही हो सकता है क्या? विदेषी पैसों पर सिनेमा बनाने वाले, विदेषी पैसों पर समाज सेवा का नाटक करने वाले तथा ईसाई मिशनरी विद्यालयों के बच्चों द्वारा यह लडाई लडी जा सकती है क्या? ऐसा संभव नहीं है। इसलिए अन्ना का अभियान 100 प्रतिशत असफल होगा। आज इस देश का संपूर्ण सरकारी विभाग भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया है। रेलवे का टिकट संग्राहक पैसे लेकर सीट बेच रहा है। विद्यालय में बिना घुस के प्रमाण-पत्र नहीं मिलता, बिना घुस का पुलिस प्राथमिकी नहीं लिखती, आज कोई ऐसा विभाग नहीं जहां बिना पैसे काम हो जाये। जो अखबार लगातार भ्रष्टाचार के खिलाफ लिख रहा है उसकी बुनियाद भष्टाचार पर टिकी है। इस देश का ऐसा कोई अखबार नहीं जो अपना सही प्रसार संख्या दिखाता हो। हर अखबार को सरकार के सूचना एवं लोकसंपर्क विभाग में कमीशन देकर विज्ञापन लेना पडता है। कमीशन के रेट खुले हैं। जो अखबार कमीशन नहीं देता उसे डीएभीपी तक का विज्ञापन नहीं दिया जाता। ऐसे देश में कोई यह कहे कि एक विधेयक के पारित होने मात्र से भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा तो यह आकास-कुषुम के समान कल्पना है। देश के सर्वोच्च पंचायत में सूचना के अधिकार को कानूनी जामा पहनाया गया, तय किया गया कि हर विभाग सूचना मांगने वाले को सूचना उपलब्ध कराएगा लेकिन क्या आज ऐसा हो रहा है? एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहूंगा। विगत वर्षों गुजरात में किसानों ने आत्महत्या की। जब एक सूचना के अधिकार से जुडे कार्यकर्ता ने पूरे प्रदेश में हुई घटनाओं का ब्योरा मांगा तो प्रदेश के पुलिस विभाग ने सूचना देने से मना कर दिया। फिर वह कार्यकर्ता सूचना आयूक्त से मिला सूचना आयूक्त के आदेश पर पुलिस विभाग थोडी हडकता में आयी लेकिन उक्त कार्यकर्ता को एक पत्र लिखकर सूचित किया गया कि इस संदर्भ की सूचना विभाग के पास उपलब्ध नहीं है इसलिए वे प्रत्येक जिला केन्द्र के पुलिस मुख्यालय से यह सूचना प्राप्त करें। उक्त कार्यकर्ता ने प्रदेश के सूचना अधिकारी को संपर्क कर फिर से आवेदन दिया। इस बार सूचना अधिकारी ने पुलिस विभाग को कडे शब्दों में डांट पिलाई, बावजूद इसके पुलिस विभाग ने प्रदेश के 26 जिलों में से मात्र 13 जिलों में आत्महत्या करने वाले किसानों की सूचि दी और कहा कि अभी तक केन्दीकृत रूप से उनके पास इतनी ही सूचना उपलब्ध हो पायी है। तबतक दो साल का समय बीत चुका था। जो पुलिस अधिकारी उस समय पुलिस मुख्यालय का सूचना अधिकारी था आज वह अहमदाबाद महानगर पुलिस आयुक्त है। केवल गुजरात में ही अभी तक तीन आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है। देशभर में ऐसी कई हत्याएं हुई है लेकिन हत्या करने वाला गिरोह अभी तक पुलिस गिरफ्त से बाहर है। बिहार में स्वण्0श्निर् ाम चतुर्भुज सडक परियोजना में काम करने वाले इमानदार अभियंता को मौत के घाट उतार दिया गया। उक्त अभियंता ने कुछ ही दिनों पहले प्रधानमंत्री कार्यालय को परियोजना में हो रही धांधली के लिए पत्र लिखा था और उसकी हत्या कर दी गयी। हालांकि हत्यारा पकडा गया, ऐसा बताया जाता है, लेकिन उस संदर्भ का प्रधानमंत्री कार्यालय से पत्र लिक करने वाला आदमी आजतक पुलिस की पकड से बाहर है। इस देश में गांधी मारे गये। राष्ट्रवादी चिंतक पं0 दीनदयाल को मार दिया गया, प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को ताशकंद में विश दिया गया, इन्दिरा गांधी को मार दिया गया, राजीव को बम से उडा दिया गया। इस देश में ऐसी कई घटनाए हुई है जिसका असली दोषी आज भी पुलिस और कानून के सिकंजों से बाहर है। देश में भ्रष्टाचार के, घोटाले के कई मामले उजागर हुए लेकिन किसी पर कोई कार्रवाई हुई क्या? बस जेल होता है।

कुल मिलाकर देखें तो अन्ना का अनशन भी एक राजनीतिक अभिनय है। अन्ना हो सकते हैं बढिया आदमी हों, यह भी सत्य है कि अन्ना के साथ काम में जुटे कुछ लोग अच्छे हैं लेकिन अन्ना के इर्द गीर्द रहने वालों पर भडोसा नहीं किया जाना चाहिए। अन्ना के अभियान को हवा देने की जिम्मेदारी जिन लोगों ने उठा रखी है वे सामाजिक कार्यकर्ता सदा से कांग्रेस के पुरोहित रहे हैं। उनका काम ही रहा है कि देश के विभिन्न सामाजिक संगठनों में प्रवेश का कांग्रेस का हित पोषण करना। फिर इनको पैसे देने वाली संस्थाओं पर पूंजीवादी अमेरिका और जडवादी ईसाइयों का अधिकार है। जो पूरी दुनिया को ईसाई बनाने पर तुले हैं। ऐसे में अन्ना के आन्दोलन को न तो देशहित से जोडकर देखा जाना चाहिए और न ही आम भारतियों का आन्दोलन माना जाना चाहिए। बाबा रामदेव से घबराई कांग्रेस अन्ना का उपयोग कर रही है तो दूसरी ओर सोनिया गांधी देश के प्रधानमंत्री डॉ0 मनमोहन सिंह को दबाव में लाने के लिए अन्ना के माध्यम से निषाना साध रही है। इधर ईसाई मिशनरियों से संपोषित संस्था देश को अस्थिर करने के फिराक में जिसे अन्ना जैसे सीधे सपाटे व्यक्ति का कंधा उपलब्ध करा दिया गया है। इस मामले में क्या होगा यह तो समय बताएगा लेकिन फिहाल जो लोग अपनी गोटी लाल करने में लगे हैं उनके मार्ग में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कुछ बुध्दिजीवियों ने रोडा अटका दिया। बहुत दिनों के बाद संघ ने बुध्दिमानी का काम किया है। भ्रष्टाचार के मामले पर संघ ने न केवल बाबा रामदेव की पीठ थपथपाई है अपितु अन्ना को भी अपना समर्थन दिया है। इसलिए जो लोग यह मान कर चल रहे हैं कि अन्ना का कंधा उन्हें सहुलियत से उपलब्ध होगा ऐसा संभव नहीं है। इस पूरे ऐपीसोड में भले लग रहा हो कि कांग्रेस और ईसाई चर्च को फायदा हुआ हो लेकिन ये लोग अपने बुने जाल में ही फसने वाले हैं।

11 COMMENTS

  1. इस लेख से पूरा सहमत .नक्सलियों के समर्थक सजायाफ्ता देशद्रोही विनायक सेन के खुले समर्थक केजरीवाल ,अमरनाथ यात्रा को पाखंड कहने वाले तथा नक्सलियों को लाल सलाम कहने वाले ( अहमदाबाद में थप्पड़ भी खा जाने वाले ) स्वामी अग्निवेश और अरुंधती राय और गिलानियों जैसे देशद्रोहियों के ,जो खुले आम कश्मीर को भारत का अंग ही नहीं मानते और वहां के आतंकियों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने वाले लड़ाके बताते हैं ,के वकील भूषणों ने अन्ना जैसे संत सिपाही को मानसिक रूप से घेरे में ले लिया है और कांग्रेस के ये एजेंट उनका दुरूपयोग कर रहे हैं सरकार से एक क्षद्म मिलीभगत द्वारा .सरकार द्वारा सजायाफ्ता विनायक सेन की नियुक्ति योजना आयोग की स्वास्थ्य समिति में करना सब साफ़ कर देता है .अच्छा हो की संत ,सिपाही ,सेवक अन्ना इन से सावधान रहें और अपनी कीर्ति को न गवां बैठें इन कांग्रेस के दलालों के हाथ पड़ कर .

  2. गौतम चौधारे जी के आलेख के सदर्भ में और बाबा रामदेव, अन्ना के आन्दोलन के प्रसंग में एक अति महत्व के जानकारी देना चाहता हूँ. इसके प्रकाश में राष्ट्रीय समाचारों को देखेंगे तो धोखा खाने से बच जायेंगे. वैसे तो आज कल मीडिया के इस्तेमाल से जनता को लगातार मुर्ख बनाया जा रहा है, ठगा जा रहा है. सूचना यह है :

    Who owns the media in India ?

    *There are several major publishing groups in India, the most prominent
    among them being the ‘Times of India ‘ Group, the Indian Express Group, the
    Hindustan Times Group, The Hindu group, the Anandabazar Patrika Group, the Eenadu Group, the Malayalam Manorama Group, the Mathrubhumi group, the Sahara group, the Bhaskar group, and the Dainik Jagran group.

    Let us see the ownership of different media agencies.

    *NDTV: A very popular TV news media is funded by Gospels of Charity in Spain that supports Communism. Recently it has developed a soft corner towards Pakistan because Pakistan President has allowed only this channel to be aired in Pakistan. Indian CEO Prannoy Roy is co-brother of Prakash Karat, General Secretary of Communist party of India.His wife and Brinda Karat are sisters.

    *India Today which used to be the only national weekly which supported BJP is now bought by NDTV!! Since then the tone has changed drastically and turned into Hindu bashing.

    *CNN-IBN: This is 100 percent funded by Southern Baptist Church with its
    branches in all over the world with HQ in US. The Church annually allocates
    $800 million for promotion of its channel. Its Indian head is Rajdeep
    Sardesai and his wife Sagarika Ghosh.

    *Times group list: Times Of India, Mid-Day, Nav-Bharth Times, Stardust , Femina, Vijaya Times,Vijaya Karnataka, Times now (24- hour news channel) and many more. Times Group is owned by Bennet & Coleman. ‘World Christian Council’ does 80 percent of the Funding, and an Englishman and an Italian equally share balance 20 percent. The Italian Robertio Mindo is a close relative of Sonia Gandhi.

    *Star TV: It is run by an Australian, Robert Murdoch, who is supported by St. Peters Pontificial Church Melbourne.

    *Hindustan Times: Owned by Birla Group, but hands have changed since Shobana Bhartiya took over. Presently it is working in Collaboration with Times Group.

    *The Hindu: English daily, started over 125 years has been recently taken over by Joshua Society, Berne, Switzerland. N.Ram’s wife is a Swiss national.

    *Indian Express: Divided into two groups. The Indian Express and new Indian Express (southern edition) .ACTS Christian Ministries have major stake in the Indian Express and latter is still with the Indian counterpart.

    *Eeenadu: Still to date controlled by an Indian named Ramoji Rao. Ramoji Rao is connected with film industry and owns a huge studio in Andhra Pradesh.

    *Andhra Jyothi: The Muslim party of Hyderabad known as MIM along with a
    Congress Minister has purchased this Telugu daily very recently.

    *The Statesman: It is controlled by Communist Party of India. Kairali TV: It
    is controlled by Communist party of India (Marxist)

    *Mathrubhoomi: Leaders of Muslim League and Communist leaders have major investment.

    *Asian Age and Deccan Chronicle: Is owned by a Saudi Arabian Company with its chief Editor M.J. Akbar.

    *The ownership explains the control of media in India by foreigners. The
    result is obvious.

    ऐसे में ”प्रवक्ता.कॉम” जैसे माध्यमों से प्राप्त सूचनाओं पर निर्भरता और अभिव्यक्ती ज़रूरी हो जाती है.

  3. कुछ लोग स्वयं हम सब से दो हाथ ऊपर समझते हैं. हाईहैडिनेस. बुधी का सारा ठेका इन्ही के पास होता है. ऐसे लोग जहां भी हों तानाशाही ही करने के कोशिश करते हैं, क्यूंकि बाकि सब तो इनकी नज़र में बौने होते हैं; वही हिन्दुस्तानियों को हेय समझने के काले अंग्रेजों वाली मानसिकता. इन्हें लगता है की सारी समझदारी भगवान् ने इन्ही को दी है, अतः इनके साथ संवाद नहीं हो सकता, बस इनका अनुसरण करते जाओ. ऐसी मानसिकता समाज के लिए किसी बदूकधारी आतंकवादी से कम खतरनाक नहीं.

  4. आज मेरे सामने दो प्रमुख समाचार हैं.पहला समाचार मैंने टाइम्स ऑफ़ इंडिया में देखा.वह बावा रामदेव से साक्षात्कार से संबंधित है.कुछ अंश मैं यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ.
    Q: There are some statements suggesting that Anna Hazare’s fast had caught you unawares and had coincided with your Deeksha Divas creating great inconvenience. Your comments.

    A: It is true that it did coincide with Deeksha Divas which is a programme we have been observing for the last 17-18 years. Yet, I made it a point to participate in the hunger strike, took a chopper to Delhi because Anna is like a relative. I stand by him in his demands to change the system.

    Q: There is a furore about your reservations about the inclusion of PM and CJI under the Lokpal ambit. What is your opinion?

    A: I had only said there should be a countrywide debate on the inclusion of the PM and CJI. I did not say that they should not be included. The statement was not reported correctly and the perception that my opinions are at variance with Anna’s is not correct.

    Q: Will Anna Hazare come for your satyagraha?

    A: He definitely will. We stand together in the fight against corruption.
    दूसरा समाचारRediffmail.कॉम पर उपलब्ध है वह यों है;
    Accusing the government of cheating civil right activists on the issue of Lokpal Bill, Anna Hazare on Thursday extended his support to yoga guru Ramdev’s fast against corruption.

    The Gandhian said that the government lacks the intention to root out corruption from the system.

    “I will join Baba Ramdev on June 5. The fight is against corruption. The government has tried to cheat us. The government had assured us that they would look into our demand,” he said, adding that he would hold discussions with the yoga guru on the way forward.

    He said the government has “cheated” civil right activists on the issue of Lokpal Bill and people have realised the betrayal by the government.
    I will support Baba Ramdev so that the government does not do what it did when we were fighting. We will fight together against corruption,” he said, adding that “henceforth, we will not be content with oral assurances on the issue of weeding out corruption”.

    His remarks came a day after Finance Minister Pranab Mukherjee, accompanied by senior ministers Kapil Sibal, Pawan Kumar Bansal and Subodh Kant Sahay, held talks with Ramdev on Wednesday to persuade him to give up his indefinite fast on corruption.

    The government’s efforts to prevent the repeat of a situation that evolved when Hazare-led civil society mounted a campaign in April appeared to have not yielded immediate fruits as Ramdev insisted on “action” rather than “assurances” on the issue of bringing back black money stashed abroad.
    मैं इन समाचारों को यहाँ उद्धृत करके यह दिखाना चाहता हूँ की यहाँ हम जो कुछ लिख रहें हैं वह सब हमारे कलुषित मष्तिष्क की उपज है,इससे अन्ना हजारे और बावा राम देव को कुछ लेना देना नहीं है.इस तरह के विचार सच पूछिए तो सरकार के Divide and rule वाली नीति के ही अंश लगते हैं. ये वे विचार हैं जो हमें यथास्थिति की सीमा से उपर उठने ही नही देते.अब मुझे यह कहना पड़ रहा है की सरकारी रवैया असल में वैसा हीं है,जैसा हममे से अधिकतर लोग चाहते हैं,क्योकिं हमसब भी इसी भ्रष्ट तन्त्र के पुर्जे हैं.भ्रष्टाचार खत्म होने से हममे से भी अधिकाँश को घाटा ही होगा,क्योकिं हम आम जनता तो हैं नही. हम तो नाली के कीड़े हैं.सुचिता ,सादगी और सफाई हमें क्यों रास आये?ऐसे मेरी एन बातें शायद हीं आप लोगों की समझ में आये ,क्योंकि इन बातों को समझने के लियी कम से कम हिपोक्रेसी यानि पाखंड से तो उपर उठना ही होगा. मैं जानता हूँ कीमेरे जैसों की टिप्पणी बहुत कम लोगों के गले उतरेगी,पर सचाई यही है.

  5. परदे के पीछे छुपे सच को पहचान लेने की क्षमता चंद लोगों में होती है जो की गौतम जी में नज़र आ रही है. * इसमें कोई शक नहीं कि कुटिल अंग्रेजों की तरह तरह बाबा रामदेव जी के विरुद्ध सरल चित अन्ना हजारे का इस्तेमाल बड़े शातिराना ढंग से किया गया है. * अन्ना को चारों ओर से घेर कर बैठी दुष्ट जुंडली ने अन्ना को भी अपने ढंग से ठिकाने लगा दिया और कांग्रेस व सोनिया को सुरक्षित कर दिया . आन्दोलन की दिशा को ही मोड़ कर रख दिया. भ्रष्टाचार के असली अपराधियों तक इस आन्दोलन की आंच नहीं पहुँचाने दी. काले धन का मुद्दा न उठे, सत्ता में बैठी कांग्रेस के काले कारनामें उजागर न हों, इसका पुख्ता प्रबंध कर दिया गया. वरना कोई कारण न था की अन्ना के मंच से काले धन को वापिस लाने जैसा महत्व का मुदा न उठता. * अन्ना के मंच से भारत माता की जय, वन्दे मातरम, भगवा ध्वज जैसे साम्प्रदायिक (?) चिन्ह और मुद्दे भी गायब कर दिए गए. यानी भारत व भारतीयता के चिन्ह मिटाने वाली चंडाल-चौकड़ी के हाथ में अन्ना खेल रहे हैं , यह सुनिश्चित हो गया.
    * स्मरणीय है की भारत के अँगरेज़ इसाई आक्रमणकारी भी इन्ही नीतियों का इस्तेमाल हम भारतीयों के विरुद्ध बड़ी कुटिलता से करते आये है. पहले एक भारत भक्त का इस्तेमाल दूसरे भारत भक्त के विरुद्ध किया और फिर दूसरे को समाप्त करने के लिए किसी तीसरे ऐसे का इस्तेमाल किया जो ईसाई आक्रमकों के अधिक अनुकूल हो. जैसे कि पटेल, सुभाष,तिलक के प्रभाव के विरुद्ध गांधी जी का इस्तेमाल. फिर गांधी जी को निरस्त करने के लिए नेहरू का इस्तेमाल. अब नेहरू से कहीं अधिक उपयोगी श्रीमती सोनिया गांधी जो के.जी.बी और सी.आई.ए. दोनों को अनुकूल बैठ रही है.
    * आकलन में किसी को शक हो तो देख लेना कि बाबा रामदेव जी को मीडिया की कवरेज अन्ना जैसी बिलकुल नहीं मिलने वाली. क्यूंकि अन्ना को कवरेज दिलवाने के लियी पूरी व्यवस्था स्वयं मुख्यमंत्री कार्यालय ने की थी. ( एक और प्रमाण सरकारी समर्थन का अन्ना के लिए.) अब देखना की बाबा रामदेव के शुद्ध राष्ट्रवादी आन्दोलन की कैसी उपेक्षा या दुर्दशा मीडिया करेगा. पूरा राष्ट्रीय मीडिया विदेशी चर्चों या कार्पोरेशनों द्वारा संचालित जो है. शक हो तो श्री राजा राम की रपट देखे की कौनसा अखबार और चैनल किस के हाथों बिका या संचालित है.

  6. आगे मैं यह कहना चाहता हूँ कि चूकि लोकपाल बिल का मसौदा भारत के भविष्य के लिए बहुत ही महत्व पूर्ण दस्तावेज है,अत: आपलोग उसे पढिये.समझिये और तब अपने विचार व्यक्त कीजिए.इसका कोई महत्व नही कि इसे किसने बनाया है या कौन इसके लिए लड़ रहा है,महत्व है तो इस बात का कि यह हम भारतीयों के लिए कितना लाभदायक है.कबीर दास ने बहुत पहले कहा था कि ,
    जाति न पूछो साधू की,पूछ लीजिये ज्ञान .
    मोल करो तलवार का पड़ा रहन दो म्यान..
    ऐसे कुछ लोगों को यह भी गलतफहमी है कि लोकपाल सर्व शक्तिमान हो जाएगा.मेरे ख्याल से ऐसे लोग सरकार या निहित स्वार्थ वाले लोगो द्वारा फैलाए गयी अफवाह के शिकार हैं.इस बिल में लोकपाल एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक संस्था है,जिसके चुनाव से लेकर पूर्ण कार्य विधि पारदर्शी होगी,ऐसा प्रावधान लोकपाल बिल के मसौदे के अनुसार इस बिल में समाहित होगा.आपलोग लकीर से हट कर सोचने की कोशिश कीजिए और नाली के कीड़ों की जिन्दगी से उपर उठने की कोशिश कीजिए.हाँ अगर आप लोग यथास्थिति बनाये रखना चाहते हैं और इसी दुर्गन्ध पूर्ण जीवन से संतुष्ट हैं तो मुझे कुछ नहीं कहना है.

  7. एक अन्य बात भी है.यह हमेशा से चलता आया है कि बादशाह फकीरों से डरते हैं न कि व्यवसाइयों से?बावा रामदेव का अपना उद्योग है.उनको भ्रष्टाचार के लिए सत्याग्रह के साथ उसको भी तो चलाना है.मेरे विचार से अन्ना के साथ ऎसी कोई मजबूरी नही है.

  8. आज की खबर है कि बावा रामदेव के लिए पूरी सरकार पलक पावड़े बिछाये हुए है.बावा रामदेव के स्वागत के लीए दिल्ली हवाई अड्डे पर कौन कौन पहुंचा है इसका तो पूर्ण विवरण उपलब्ध है.इससे क्या प्रमाणित होता है?कांग्रेस किसके समर्थन में खड़ी है? रह गयी बात एक दूसरे पर कीचड़ उछालने कि तो मैं आप सब लोगों को प्रवक्ता में हाल हीं में प्राकशित लेख नाली के कीड़े की और ध्यान दिलाना चाहूंगा ,क्योकि मेरे विचार से वह लेख हमारी पूर्ण मानसिकता का दर्पण है..

  9. आपके लेख मैं निश्चित रूप से बहुत बड़ी सच्चाई है, और मेरा शुरू से यही मानना है की अन्ना भले ही सीधे आदमी हो लेकिन वे बाबा रामदेव के विरुद्ध हथियार के रूप में इस्तेमाल हो रहे है.

  10. मुझे भी यही लग रहा था की अन्ना का कांग्रेस बाबा रामदेव के विरुद्ध उपयोग कर रही है क्योंकि कांग्रेस को अन्ना या बाबा में से एक को चुनना था नहीं तो आने वाला समय कांग्रेस के लिए …………..खतरों से खली नहीं है

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