राजनीति

गुजरात में कांग्रेस घिरी अपने ही चक्रव्यूह में

-डॉ कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

पिछले दिनों 10 अक्तूबर को गुजरात के छः नगर निगमों के चुनाव हुए थे। इन छः में से तीन नगर निगम सौराष्ट्र् क्षेत्र में आते हैं। 12 अक्तूबर को चनाव परिणामों की घोषणा हुई। चुनावों में कांग्रेस सहित अन्य सभी दलों की केवल पराजय ही नहीं हुई बल्कि उनका सुपड़ा ही साफ हो गया। अहमदाबाद की 189 सीटों में से भाजपा को 149 और कांग्रेस को केवल 37 सीटें प्राप्त हुई। सूरत नगर निगम में कांग्रेस की हालत इससे भी बुई सिद्व हुई। कुल 114 सीटों में से भाजपा को 98 और कांग्रेस को 14 मिली इसी प्रकार वड़ोदरा की 75 सीटों में से भाजपा को 61 और कांग्रेस को 11 सीटें मिली। सौराष्ट्र् क्षेत्र के नगर निगमों में भी कुल मिलाकर यही स्थिति रही। राजकोट निगम की 69 सीटों में से भाजपा 58 और कांग्रेस को 11 सीटें मिली। भाव नगर में भाजपा को 41 और कांग्रेस को 10 सीटें मिली। इसी प्रकार जामनगर में 57 सीटों में से भाजपा को 35 और कांग्रेस को 16 सीटें मिली। यह स्थिति तब है जब अंग्रेजी मीडिया यह हवा बनाने का प्रयास कर रहा था कि सौराष्ट्र् में भाजपा की स्थिति कमजोर है। इन छः नगर निगमों में भाजपा को कुल मिलाकर 80प्रतिशत सीटें प्राप्त हुई और कांग्रेस समेत अन्य सभी दलों को केवल 20 प्रतिशत सीटें ही मिल पाई। भाजपा और कांग्रेस को प्राप्त मतों का यदि विश्लेषण किया जाये तो भाजपा को कुल मिलाकर 53 प्रतिशत मत और कांग्रेस को केवल 33 प्रतिशत मत प्राप्त हुए। भाजपा के 53 प्रतिशत मत तभी सम्भव हैं यदि मुसलमानों ने भी अच्छी संख्या में इस दल को वोट दिये हों।

वड़ोदरा नगर निगम में तो भाजपा को 72.62 प्रतिशत मत प्राप्त हुए जबकि कांग्रेस को 21.21 प्रतिशत मतों से ही संतोष करना पड़ा। इसी प्रकार अहमदाबाद तथा सूरत नगर निगमों में भाजपा को क्रमशः 54.34 और 55.34 प्रतिशत मत प्राप्त हुए जबकि कांग्रेस 33.89 एवं 27.24 प्रतिशत मत ही मिले। सौराष्ट्र क्षेत्र में राजकोट, भावनगर एवं जामनगर नगर निगमों में भाजपा को क्रमशः 54.28, 48.89, 44.45 प्रतिशत मत प्राप्त हुए जबकि कांग्रेस को क्रमशः 36.56,37.36 और 31.81 प्रतिशत मत ही मिले। कांग्रेस ने इन चुनावों को जितने के लिए कुछ साल पहले हुई जाने माने आतंकवादी सोहराब्बुदीन की तथाकथित हत्या को मुख्य मुद्दा बनाया था। इतना ही नहीं केन्द्रीय जांच ब्यूरो अर्थात सी0बी0आई0 ने चुनावों से कुछ समयपहले प्रदेश के गृह राज्य मंत्री अमित शाह को इस कथित हत्या के मामले में गिरफतार ही नहीं किया था बल्कि न्यायलय में उनकी जमानत की अर्जी का भी डट कर विरोध किया था। अमित शाह अभी तक जेल में हैं। कांग्रेस को लगता था कि उसकी इस हरकत से कम से कम मुसलमान मतदाता तो प्रसन्न हो ही जायेंगे। यह शायद पहली बार था कि चुनावों को ध्यान में रखते हुए सी.बी.आई. का इस प्रकार से साम्प्रदायिक प्रयोग किया गया हो। चुनाव अभियान में भी कांग्रेस ने सोहराब्बुदीन के मुद्दे को खूब उछाला। सी.बी.आई. ने भी आतंकवादी सोहराबुदीन की तथाकथित हत्या को लेकर मीडिया में सनसनी फैलाने वाली खबरें लीक कीं और अंग्रेजी मीडिया ने इस अभियान में सोहराब्बुदीन का पक्ष लेकर गुजरात सरकार को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की। शायद इसी से दुःखी होकर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा भी कि बेहतर होता कांग्रेस इन चुनावों में अपने प्रत्याशियों के तौर पर सी0बी0आई0 के अधिकारियों को ही खड़ा कर देती। कांग्रेस की साम्प्र्रदायिक दृष्टि इतनी दूर तक गई कि गुजरात सरकार द्वारा नर्मदा के तट पर सरदार पटेल की भव्य मूर्ति लगाये जाने का भी उसने डट कर विरोध किया। बाकायदा चुनाव आयोग में अपना विरोध दर्ज भी करवाया। उद्देश्य शायद अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण का ही था। नरेन्द्र मोदी ने पूरे चुनाव में विकास की बात कही।विकास हिन्दु और मुसलमान में भेदभाव नहीं करता। यदि किसी क्षेत्र का विकास होता है तो उसका लाभ हिन्दु और मुसलमान दोनों को समान रूप से ही मिलता है। नरेन्द्र मोदी के धुर विरोधी भी यह मानते हैं कि गुजरात का विकास जमीन पर दिखाई देता है न कि उसकी चर्चा फायलों तक ही समिति होती है। अन्ततः नगर निगमों के चुनाव परिणामों ने सिद्व कर दिया कि गुजरात की जनता नरेन्द्र मोदी पर विश्वास करती है और नरेन्द्र मोदी प्रदेश की जनता की भावनाओं को सही ढंग से पहचानते हैं। कांग्रेस ने इन चुनावों को जितने के लिए साम्प्रदायिक तुष्टिकरण की तांत्रिक साधना का ‘शॉट कट रास्ता अपनाया था। गुजरात के हिन्दु और मुसलमान दोनों ने ही उसे नकार दिया। यदि ऐसा न होता तो कांग्रेस केवल अन्य दलों के साथ मिलकर भी 20 प्रतिशत सीटों तक ही सीमित न रह जाती।

परन्तु जैसा की कहा गया है जब कोई ऐसा दल सत्ता से पतित होता है जिसे जनता के बीच जाने का अनुभव दशकों पहले भूल गया हो, तो वह अपना संतुलन तो खोता ही है साथ ही ऐसे रास्ते पर चल पड़ता है जो अन्ततः आत्म हत्या का रास्ता ही सिद्व होता है। पराजय का तात्विक विश्लेषण करने की बजाये गुजरात काग्रेस के अध्यक्ष सिद्वार्थ पटेल, पूर्व अध्यक्ष ‘शंकर सिंह बघेला और विधानसभा में कांग्रेस विपक्षी दल के नेता ‘शंकर सिंह गोहिल ने कहा कि नगर निगमों कांगेस की पराजय का मुख्य कारण मतदान के लिए प्रयुक्त होने वाली इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में गड़बड़ी होना है। यदि कांग्रेस की इस दलील को स्वीकार कर लिया जाये तो इसका अर्थ यह हुआ कि इन मशीनों में गड़बड़ी के रास्ते विद्यामान हैं। जिसका सीधा सीधा अर्थ यह है कि केन्द्र में इन्हीं मशीनों के बल पर सत्ता में आई कांग्रेस भी इसी गड़बड़ी का परिणाम है। लगभग तीन साल पहले जब लोक सभा चुनावों में कांगे्रस जीती थी तो कुछ लोंगों ने आशंका जाहिर की थी कि यह जीत वोटिंग मशीनों में गड़बड़ी का परिणाम है। तब कांग्रेस ने इसका जोर दार खंडन किया था और यह कहा था कि इन मशीनों में गड़बड़ करना संभ्भव ही नहीं है। परन्तु आज तीन साल बाद कांग्रेस यह स्वीकार कर रही है कि इन मशीनों में गड़ बड़ हो सकती है। कांग्रेस ने मांग की ही कि नगर निगमों के चुनावों की जांच करवाई जानी चाहिए। यदि इस प्रकार की जांच होती है तो उसका दायरा तीन साल पहले लोकसभा में कांगे्रस की जीत और 2010 में नगर निगमों में भाजपा की जीत दोनों को ही अपने अधिकार क्षेत्र में लेगा। जाहिर है कि सोनिया गांधी इसके लिए तैयार नहीं हैं। इसलिए गुजरात के कांग्रेसी नेताओं की खिंचाई की जा रही है कि उन्होंने ऐसा ब्यान क्यों दिया। खुदा का शुक्र है कि गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष ने नगर निगमों के चुनावों की जांच तक ही अपने को सीमित रखा है। कहीं उन्होंने यह जांच भी सी0बी0आई0 से करवाने की मांग नहीं कर डाली। हो सकता है कल कांगे्रस ऐसा भी कर दे और सी.बी.आई. गुजरात के उन मतदाताओं को गिरफतार करने के लिए निकल पड़े जिन्होंने भाजपा को वोट दिये हैं। हो सकता है ये सभी भी सोहराब्बुदीन की तथाकथित हत्या के तथाकथित षड्यंत्र में शामिल हों। लगता है गुजरात में कांग्रेस अपने ही बनाये चक्रव्यूह में घिरती जा रही है।