राजनीति

कांग्रेस ने कभी इतना सम्‍मान नहीं दिया भाजपा और संघ को

सुशान्त सिंहल

भाजपा को मनमोहन सिंह सरकार का आभार व्यक्त करना चाहिये कि वह भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के दोनों शिखर पुरुषों – अन्ना हज़ारे और बाबा रामदेव को भाजपा और संघ का मुखौटा बता रही है। भाजपा और संघ को इतना अधिक सम्मान कांग्रेस ने इससे पहले शायद ही कभी दिया हो कि एक ऐसे आन्दोलन को जिसे देश की जनता आजादी की दूसरी लड़ाई मान कर चल रही है, देश के नागरिक स्वतःस्फूर्त भाव से जिस आंदोलन से जुड़ते चले जा रहे हैं, सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर हर समय मौजूद रहने वाले युवा जिस आंदोलन के प्रति अपना पूरा जुड़ाव अभिव्यक्त कर रहे हैं, उस आंदोलन को कांग्रेस भाजपा और संघ द्वारा आरंभ किया गया आंदोलन बता कर उसे इन संगठनों को पूरे श्रद्धा भाव से समर्पित कर रही है।

इस आंदोलन को भाजपा और संघ का आंदोलन बताने के पीछे कांग्रेस की सोच ये है कि इस आंदोलन के शिखर पुरुषों के आभामंडल को धूमिल किया जाये। कांग्रेस को लगता है कि इस आंदोलन को भाजपा और संघ का आंदोलन बताने से बहुत सारे लोग इससे टूट कर अलग हो जायेंगे। जो निष्कलंक छवि अन्ना हज़ारे की है, वह “पार्टी विद अ डिफरेंस” का नारा बुलंद करने वाली भाजपा की आज नहीं है। कुछ हद तक इसमें सच्चाई भी है पर इस आंदोलन की व्यापकता, जन मानस में इसके प्रभाव एवं स्वीकार्यता को लेकर कांग्रेस का आकलन बहुत भ्रामक है।

भाजपा थोड़ी सी कोशिश करे तो क्या अपना प्रभामंडल इतना बड़ा नहीं कर सकती कि देश के अधिकांश नागरिक और युवा उतने ही निस्संकोच भाव से भाजपा से जुड़ना चाहें जितनी सहजता से वह अन्ना के साथ जुड़ पाते हैं? यदि भाजपा ऐसा कर ले तो क्या वह पूरे देश में कांग्रेस व अन्य सभी पार्टियों का अत्यन्त लोकप्रिय विकल्प बनने में सफल नहीं हो जायेगी ? पर, इसके लिये भाजपा को क्या करना होगा?

सबसे पहली बात तो ये समझनी होगी कि अन्ना और बाबा रामदेव जो कुछ भी मांग रहे हैं वह देश के जन-जन की आवाज़ है। भाजपा यदि सार्वजनिक जीवन में शुचिता और जनता के प्रति जवाबदेही को अपना लक्ष्य मानने और इस दिशा में पूरी तेजी से आगे बढ़ने के लिये तैयार हो तो देश को एक ऐसी राजनीतिक पार्टी मिल जायेगी, जिसकी उसे तलाश है। क्या भाजपा अपने लिये, अपने नेताओं और कार्यकर्त्ताओं के लिये एक ऐसी आचार संहिता बना कर उस पर अमल आरंभ कर सकती है जिससे यह स्पष्ट हो कि वह राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ है और उच्च पदों पर व्याप्त हो रहे भ्रष्टाचार को समूल उखाड़ फेंकने के लिये कृत संकल्प है? क्या भाजपा अगले चुनावों के लिये देश की 121 करोड़ आबादी में से अपने प्रत्याशियों के रूप में 544 ऐसे हीरे छांट सकती है जो सांसद बन कर देश की संसद को एक नई गरिमा व उच्च स्तर दे सकें? क्या भाजपा आज से ही अपने दामन पर लगे हुए दागों को साफ करने की प्रक्रिया में जुट सकेगी?

मेरे विचार में भाजपा का नेतृत्व यदि देश की धड़कन को समझ सकेगा तो उसे अपने लिये रास्ता साफ दिखाई दे सकेगा। भाजपा को अपने दम पर केन्द्र सरकार बनाने का संकल्प लेकर आगे बढ़ना चाहिये और केन्द्रीय सत्ता पाने का उद्देश्य केवल और केवल देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाना होना चाहिये। भाजपा के घोषणा पत्र में जन-लोकपाल बिल के प्रावधानों से सहमति, चुनाव प्रक्रिया में व्यापक सुधार, सांसदों व विधायकों को वापस बुलाने का अधिकार, सभी प्रत्याशियों को रिजेक्ट करने की व्यवस्था, नकारात्मक वोट देने का अधिकार, अपराधियों, बाहुबलियों को चुनाव प्रक्रिया से बाहर रखने के प्रावधान, काले धन को विदेशों से वापिस लाकर राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने आदि के प्रति पूर्ण समर्पण व्यक्त होना चाहिये। साथ ही, उन सभी मुद्दों को छोड़ा जा सकता है, जिस पर व्यापक जन-सहमति नहीं है। केवल वे मुद्दे लिये जाने चाहियें जिन पर सभी वर्गों, सभी धर्मों, सभी संप्रदायों, सभी प्रांतों, जिलों में व्यापक सहमति बनी हुई है या बन सकती है। केवल वे ही मुद्दे सामने रखे जायें जिन पर बुद्धिजीवियों और आम जनमानस में पूर्ण एकता हो।

यदि भाजपा इस लक्ष्य को सामने रख कर “एक भरोसा, एक बल, एक आस – विश्वास …. “ लेकर आगे बढ़े तो कोई कारण नहीं है कि देश को दूसरी आज़ादी दिलाने में सफलता हासिल न हो। कांग्रेस ने भाजपा को आज एक ऐसा मौका दिया है कि वह देश की आजादी की दूसरी लड़ाई का नेतृत्व कर सकती है। अन्ना और रामदेव प्रभृति संतों का साहचर्य, सहयोग और नैतिक संबल भाजपा को उपलब्ध है। यदि भाजपा अपने सिद्धान्तों से समझौता किये बगैर आगे बढ़े तो संघ का भी पूरा समर्थन और सहयोग उसे प्राप्त हो सकता है। भाजपा को संघ और विहिप को भी समझाना होगा कि भ्रष्टाचार से लड़ाई आपद धर्म है, इससे बड़ा और कोई मुद्दा देश के सामने नहीं है। राममंदिर, धारा ३७०, समान नागरिक संहिता बाद में देखे जायेंगे – फिलहाल सिर्फ और सिर्फ भ्रष्टाचार से मुक्ति और सार्वजनिक जीवन में शुचिता और चुनाव सुधार का ही एकमात्र मुद्दा और संकल्प लेकर आगे बढ़ना है।

भाजपा के लिये सही और गलत की एकमात्र कसौटी यही होनी चाहिये कि क्या जनता भाजपा पर उतना ही विश्वास कर पा रही है जितना वह अन्ना हज़ारे पर करती है? क्या देश का युवा वर्ग निस्संकोच भाव से भाजपा के साथ ठीक वैसे ही जुड़ने को उत्सुक है जैसे वह अन्ना हज़ारे के आन्दोलन के साथ जुड़ा है? देश में इस समय केवल दो वर्ग दिखाई देने चाहियें – एक वो जो भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई छेड़े जाने से आतंकित हैं और दूसरा वह वर्ग जो इस लड़ाई को लेकर उत्साहित है और इसे देश की आजादी की दूसरी लड़ाई के रूप में देख रहा है। कांग्रेस पहले वर्ग का प्रतिनिधित्व करती दिखाई दे रही है और इस लड़ाई को आरंभ करने का श्रेय भाजपा और संघ को दे रही है। भाजपा का इससे बड़ा सौभाग्य और क्या हो सकता है ?