चुनाव के रण में अन्ना का आंदोलन नहीं कांग्रेस चित हो गयी!

इक़बाल हिंदुस्तानी

जो हार कर भी हार ना माने उनको फुटेला कहते हैं?

प्रवक्ता डॉटकाम पर लिखने वाले जगमोहन फुटेला जी वरिष्ठ पत्रकार हैं उनको काफी अच्छा ज्ञान भी डा. मनमोहन और नरसिम्हा राव जी की तरह है लेकिन वे पहले दिन से ही जिस तरह अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के पीछे हाथ धोकर पड़े हैं उससे लगता है कि जैसे वे कांग्रेस के पेडवर्कर यानी मीडिया प्रभारी हों। पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आने से पहले उन्होंने अपनी आदत और पूर्वाग्रह के मुताबिक लेख लिखा कि चुनाव के रण में चित होगा अन्ना का आंदोलन? जब ऐसा नहीं हुआ तो मैं प्रवक्ता पर आने वाले लेखों में उनका लेख तलाशता रहा कि वे शायद एक अच्छे और सच्चे पत्रकार की तरह अपनी भूल स्वीकार कर पाठकों से खेद व्यक्त करेंगे क्योंकि तमाम धमकियों और तिकड़मों के बावजूद यूपी में करारी हार के बाद उनकी प्रिय पार्टी कांग्रेस के तथाकथित युवराज या ‘‘राजनीति के नादान बालक’’ राहुल गांधी ने भी दिखावे के लिये ही सही अपनी हार, गल्ती और ‘नालायकी’ मजबूरन मानी है।

फुटेला जी राहुल से भी आगे निकल गये और लेख लिखा कि जो जीत को हार में बदल दे उसे कांग्रेस कहते हैं। इतना ही नहीं फुटेला जी ने खासतौर पर पंजाब में कांग्रेस की हार के इतने और ऐसे ऐसे बेतुके कारण गिनाये हैं जैसे वहां कांग्रेस जैसी भ्रष्ट और तानाशाह पार्टी को जिताने का ठेका उनके पास ही हो। अरे भाई वहां कांग्रेस हार चुकी है चाहे जितने कम अंतर से हारी हो। फुटेला जी को यह सच अभी तक मायावती की तरह यूपी की हार जैसा स्वीकार ही नहीं हो रहा है कि कांग्रेस पांच से चार राज्यों में चित हो चुकी है और इसका सबसे बड़ा कारण अन्ना का भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन ही था। उनके लेख से ऐसा लगता है मानो उनका वश चले तो वे किसी चमत्कार से दोबारा चुनाव या वोटों की गिनती फिर से कराकर कांग्रेस को विजेता घोषित कर दें।

इतना ही नहीं कांग्रेस की उत्तराखंड में जोड़तोड़ से बनी बहुगुणा सरकार भी अपना बहुमत सिध्द करदे तो करिश्मा ही होगा और इसके बाद वह पांच साल चलेगी इसके बारे में खुद कांग्रेसी भी आश्वस्त नहीं हो पा रहे हैं। बहरहाल वहां भी उसको स्पश्ट बहुमत ना मिलने से जीता नहीं माना जा सकता। फुटेला जी अगर अभी यह मानने को तैयार नहीं हैं कि कांग्रेस का बुरा हश्र अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से हुआ है तो वे दो साल और प्रतीक्षा करलें उनको जनता सीधे सीधे लोकसभा चुनाव में जवाब दे देगी। फुटेला जी जिस तरह से अन्ना और उनकी टीम की कमियां तलाश करते रहते हैं उनके हिसाब से तो देश को आज़ाद कराने वाले शहीदों ने भी अगर साफ नीयत और पाक इरादों से कहीं मजबूरी में हिंसा और सरकारी ख़ज़ाने की लूट का सहारा लिया तो उनके अनुसार तो अंग्रेजों को चाहिये था कि वे क्रांतिकारियों को फांसी पर लटका देते और फुटेला जी इस ‘नेककाम’ में कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिये अंग्रेजों का साथ देते और उनका खुलकर पक्ष भी लेते जैसे आज भ्रष्ट और कारपोरेट की दलाल कांग्रेस सरकार का पूरी बेहयायी और दुस्साहस से बिना जनता का मन जाने साथ दे रहे हैं।

यूपी विधानसभा के चुनाव सहित पांच राज्यों के चुनाव में जहां जहां जनता को विकल्प दिखाई दिया वहां वहां उसने भ्रष्टों और खासतौर पर कांग्रेस और भाजपा को अच्छा सबक सिखाया ही साथ ही अन्ना के आंदोलन के विरोधियों और कांग्रेस के ज़रखरीद गुलामों को यह भी दिखा दिया कि आंदोलन वक्ती तौर पर स्थगित होने के बावजूद जनता के दिमाग में आज भी सबसे बड़ा मुद्दा भ्रष्टाचार ही है। इसका जीता जागता नमूना यूपी में सपा की स्पश्ट जीत और बसपा का भ्रष्टाचार के कारण ही सूपड़ा साफ होना नहीं बल्कि अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगाकर युवराज कहे जाने वाले राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की बुरी तरह से हार से मुंह की खाना है। यह साफ है कि अगर कांग्रेस अन्ना और उनकी टीम से ना लड़कर भ्र्रष्टाचार से लड़ती दिखाई देती तो उसका यूपी में इतना बुरा हाल ना होता। ऐसे ही पंजाब में वह अन्ना के आंदोलन के चलते सत्ता में वापसी के तमाम दांवों के बावजूद बाहर हो गयी।

तना ही नहीं उत्तराखंड में भाजपा के एक निर्णय से कांग्रेस की सरकार स्पश्ट बहुमत से नहीं बनी। यह फैसला था भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरे निशंक को हटाकर उनकी जगह साफ छवि के खंडूरी को सीएम बनाना और उनका कुछ ही माह के राज में लोकपाल बिल पास करना। यह अलग बात है कि खंडूरी निशंक गुट के भीतरघात और अपने हाईप्रोफाइल के कारण ही अपने चुनाव क्षेत्र कोटद्वार में नेगी जैसे घाघ कांग्रेसी के क्षेत्रीय प्रत्याशी होने से मात खा गये लेकिन हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे की तरह खंडूरी ने कांग्रेस को सरकार बनाने के बावजूद लबे दम कर दिया है। गोवा में भी कांग्रेस हार गयी है, केवल मणिपुर जैसे छोटे राज्य में जीतने से वह संतोष नहीं कर सकती।

जहां तक जनता की समझ और सोच सवाल है तो यह माना जा सकता है कि जहां उसके पास कोई विकल्प नहीं होता वहां वह दागियों को भी अपना तारणहार मानकर चुन लेती है क्यांेकि वे किसी एक पार्टी या प्रदेश में नहीं बल्कि सभी जगह घुसपैठ कर चुके हैं। हम बात करना चाहते हैं उन दागियांे की जिनका रिकॉर्ड जनता के सामने था फिर भी यूपी में 753 दागी उम्मीदवारों में से शीर्ष 70 माफियाओं में से 14 और कुल 189 माननीय बनने में कामयाब रहे हैं। एसोसियेशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट के मुताबिक सपा, बसपा, भाजपा, कौमी एकता दल और पीस पार्टी के उम्मीदवार शामिल हैं जिनपर दो चार नहीं हत्या, अपहरण, लूट और बलात्कार सहित गंभीर अपराधों के तीन दर्जन तक मामले चल रहे हैं। 2007 में इनकी तादाद 140 थी। ऐसे ही 2007 में यूपी की विधानसभा में जहां 30 प्रतिशत यानी 124 करोड़पति थे वहीं इस बार ये बढ़कर दोगुने से भी अधिक 67 प्रतिशत यानी 271 तक हो गये हैं। यह भी सब जानते हैं कि आज के ज़माने में बिना बेईमानी किये कोई करोड़पति नहीं बन सकता लेकिन उनको भी अलग थलग करना भी नामुमकिन सा हो गया है।

दरअसल हमारी सोच बदलने की ज़रूरत है। सभी दल यह सफाई देते हैं कि दागी अभी आरोपी हैं उनपर अपराध साबित होकर सज़ा नहीं मिली है। इसीलिये जनलोकपाल बिल पास कराने की मांग हो रही है जिससे भ्रष्टाचारी को चुनाव लड़ने से पहले जेल का रास्ता दिखाया जा सके।सभी जानते हैं कि हमारी वर्तमान न्याय व्यवस्था में उनको सज़ा मिलना कितना मुश्किल है लेकिन यह सबको पता है कि वे दूध के धुले नहीं है लेकिन राजनीतिक दलों को किसी कीमत पर भी जीत हासिल करनी है तो उनको दागियांे से परहेज़ क्यों हो? जहां तक शिक्षित और सम्पन्न प्रत्याशियों का मामला है उनको लेकर भी भ्रम है। अन्ना की टीम के अरविंद केजरीवाल ने जब तीखे शब्दों में हमारे जनप्रतिनिधियों को कोसा तो उनपर माननीयों की अवमानना का मामला चलाने की मांग होने लगी लेकिन कोई इस सवाल का जवाब देने को तैयार नहीं कि केजरीवाल का इरादा कहां गलत है?

मिसाल के तौर पर बार बार यह मांग उठाई जाती है कि जनप्रतिनिधि की भी एक न्यूनतम योग्यता तय होनी चाहिये लेकिन यूपी में हुए ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन घोटाले को देखंे तो इसमें शामिल सभी अधिकारी उच्चशिक्षित पाये जा रहे हैं। वैसे भी डाक्टरी की पढ़ाई कितनी मुश्किल होती है सबको पता है। हमारी संसद और विधानसभाएं हमारे समाज के भ्रष्टाचार का भी प्रतिनिधित्व कर रही हैं जिससे पूर्व पीएम नरसिम्हा राव भ्रष्ट और वर्तमान पीएम मनमोहन सिंह इतने बड़े अर्थशास्त्री होकर भी नाकारा और अलीबाबा चालीस चोर साबित हो रहे हैं। दरअसल बाज़ार वादी नीतियां और पश्चिमी सभ्यता से संतुलन बनाये बिना हम संवेदनशील नहीं हो सकते और जब तक अन्ना जैसे कम पढ़े लिखे लेकिन ईमानदार, निष्ठावान और मानवता को समर्पित लोग देश सेवा के लिये आगे नहीं लाये जायेंगे तब तक केवल योग्यता और निरपराधता से व्यवस्था में आमूलचूल सुधार आने वाला नहीं है।

उसूलों  जो आंच आये तो टकराना ज़रूरी है,

जो ज़िंदा हो तो फिर ज़िंदा नज़र आना ज़रूरी है।

नई नस्लों की खुद मुख़्तारियों को कौन समझाये

कहां से बचके चलना है कहां जाना ज़रूरी है।।

पर

Previous articleविधानसभा चुनाव परिणामों के संकेत
Next articleहमे हिंदी को, आम आदमी के और करीब लाना होगा!
इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

2 COMMENTS

  1. उसूलों पर जो आंच आये तो टकराना ज़रूरी है,

    जो ज़िंदा हो तो फिर ज़िंदा नज़र आना ज़रूरी है।

    नई नस्लों की खुद मुख़्तारियों को कौन समझाये

    कहां से बचके चलना है कहां जाना ज़रूरी है।।

    — वाह वाह भाई ऐसी पंक्तियां जरुर दिया करो
    रहा फुटेला जी का तो उन्हें प्रणाम करिए जिससे कि वे ऐसे ही लिखते रहें और गांधी जी का सपना पूरा हो कि कांग्रेस को खत्म कर देना चाहिए. फुटेला जी आप लिखते रहिए आप जैसे महापुरुषों के कारण ही तो देश को इस कांग्रेस से मु्क्ति मिलेगी और विरासत में राज्य सौंपना खत्म होगा, बैसे आशा तो बंधी है न प्रियंका चली न राहुल और बाड्रा की तो जुबान बंद हो गई- कब तक देश को मूरख मानोगे-और राहुल अटल कीराह पर हैं तो भगवान से प्रार्थना है कि अब हमें और युवराजों से मुक्ति मिलेगी ।

    शुभकामनाओं सहित

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here