राजनीति

कांग्रेस का अराजक आचरण

अरविंद जयतिलक
कांग्रेस पार्टी नेशनल हेराल्ड मामले में कुछ इस तरह के आचरण का प्रदर्शन कर रही है मानों भारतीय जनता पार्टी और उसके नेतृत्ववाली सरकार के इशारे पर ही उच्च न्यायालय ने कांगे्रस अध्यक्ष सोनिया गांधी व उपाध्यक्ष राहुल गांधी को निचली अदालत में पेश होने का आदेश दिया हो। कांग्रेस का यह आचरण न सिर्फ न्यायालय की गरिमा घटाने वाला है बल्कि देश को गुमराह करने जैसा भी है। यह कहीं से भी उचित नहीं कि कांग्रेस अपना पक्ष न्यायालय में रखने के बजाए संसद में हंगामा खड़ाकर विधायी कार्यों में खलल डाले और अपने घपले-घोटाले को छिपाने के लिए मोदी सरकार पर तोहमत मढ़े। वह भी ऐसे समय में जब संसद पहले से ही अनावश्यक मसलों पर अखाड़ा बनी हुई है और विधायी कामकाज ठप्प हैं। जिस उग्र तेवर में कांग्रेस अपना अभिव्यक्ति जाहिर कर रही है उससे साफ है कि उसकी मंशा किसी भी सूरत में संसद न चलने देने की है। ऐसे में जीएसटी समेत उन सैकड़ों विधेयकों का लटकना तय है जिनका पारित होना अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक है। समझना कठिन है कि जब उच्च न्यायालय ने सोनिया व राहुल गांधी को निचली अदालत में पेश होने का समन जारी किया है तो बीच में भाजपा और केंद्र की सरकार कहां से आ गयी? ऐसा भी नहीं है कि यह मामला केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद दर्ज हुआ हो। यह प्रकारण 2013 में तब उठा था जब केंद्र में कांग्रेसनीत यूपीए की सरकार थी और डा0 मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री थे। जहां तक भाजपा नेता और याचिकाकर्ता सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा इस मामले को उठाने का सवाल है तो इससे यह प्रमाणित नहीं होता कि यह सब कुछ मोदी सरकार का किया धरा है। कांग्रेस को ज्ञात होना चाहिए कि जब सुब्रमण्यम स्वामी इस मामले को अदालत में ले गए उस समय वे भाजपा के सदस्य नहीं बल्कि जनता पार्टी के अध्यक्ष थे। रही बात उनके भाजपा सदस्य होने की तो इस आधार पर उन्हें भ्रष्टाचार का मामला उठाने या न्यायालय मे ले जाने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। राहुल गांधी का यह तर्क कि वे सरकार के विरुद्ध आवाज उठा रहे हैं इसलिए सरकार उनका मुंह बंद कराने की कोशिश कर रही है, इस पर सिर्फ हंसा ही जा सकता है। देश में हजारों लोग हैं जो हर दिन सरकार की आलोचना करते हैं। पिछले काफी दिनों से कुछ लेखक, साहित्यकार, फिल्मकार और वैज्ञानिक देश में बढ़ती असहिष्णुता को लेकर सरकार की फजीहत किए हुए हैं। लेकिन क्या इन आलोचकों में से किसी ने भी सरकार पर तोहमत लगाया है कि सरकार उन्हें फंसाने की कोशिश कर रही है? अगर नहीं तो फिर कांग्रेस किस मुंह से कह रही है कि मोदी सरकार बदले की भावना से काम कर रही है? कांगे्रस के रवैए को देखते हुए साफ जाहिर है कि या तो वह सोनिया व राहुल गांधी को अदालत में पेश होने की छुट चाहती है या उसमें न्यायालय का सामना करने का हिम्मत नहीं है। देश समझ नहीं पा रहा है कि सोनिया और राहुल गांधी किस तरह संविधान और न्याय व्यवस्था से उपर हैं और किस तरह उन्हें न्यायालय में पेश होने से छूट मिलनी चाहिए? अगर उच्च न्यायालय ने सोनिया-राहुल गांधी को मिले समन को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर निचली अदालत में पेश होने का आदेश दिया है तो निःसंदेह उसके ठोस कारण होंगे। बावजूद इसके कांग्रेस को लग रहा है कि सोनिया व राहुल गांधी पाक-साफ हैं तो बेहतर होगा कि वह सरकार को बदनाम करने के बजाए न्यायालय को दुध का दुध और पानी का पानी करने दे।

सोनिया गांधी का यह कहना भी उचित नहीं कि वह इंदिरा गांधी की बहू है इसलिए डरने वाली नहीं। इससे उनकी सामंती मानसिकता ही उजागर होती है। यह भी ठीक नहीं कि कांगे्रस पार्टी गांधी परिवार के प्रति असीम भक्ति जताने के लिए संसद को बंधक बनाए। वे इस अराजक कृत्य से भले ही गौरान्वित हों पर देश-दुनिया में यहीं संदेश प्रसारित हो रहा है कि कांग्रेस का न तो न्याय व्यवस्था में आस्था है और न ही वह विपक्ष की भूमिका निभाने के काबिल है। थोड़ी देर के लिए मान भी लिया जाए कि नेशनल हेराल्ड की कंपनी एसोसिएट जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) घाटे में थी तो उस समय की तत्कालीन मनमोहन सरकार उसके कर्ज को माफ कर सकती थी। लेकिन जिस तरह नेशनल हेराल्ड की हजारों करोड़ की संपत्ति को हथियाने के लिए नई कंपनी का गठन किया गया उससे कांग्रेस की नीयत पर सवाल उठना लाजिमी है। गौर करें तो इस तिकड़म में कांग्रेस का रवैया ठीक वैसी ही है जैसे कोई सुदखोर कर्जदार का ऋण माफकर उसकी पूरी संपत्ति को हड़प ले। कांग्रेस के इस खेल को समझने के लिए नेशनल हेराल्ड मामले को समझना जरुरी है। गौरतलब है कि पहले नेशनल हेराल्ड की कंपनी एसोसिएट जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) को कांग्रेस ने 26 फरवरी, 2011 को 90 करोड़ रुपए का लोन दिया। इसके बाद पांच लाख रुपए से यंग इंडिया कंपनी बनायी। इसके बाद 10-10 रुपए के नौ करोड़ शेयर यंग इंडिया को दिए गए। इसके बदले यंग इंडिया को कांग्रेस का लोन चुकाना था। लेकिन मजे की बात यह कि नौ करोड़ शेयर के साथ यंग इंडिया को एजेएल के 99 फीसदी शेयर तो हासिल हो गए लेकिन उसे कर्ज भी नहीं चुकाना पड़ा। यानी कांग्रेस ने उदारता दिखाते हुए 90 करोड़ रुपए का लोन माफ कर दिया। कांग्रेस का तर्क है कि इस प्रक्रिया में ऐसा कुछ भी गलत नहीं हुआ जिससे कानून का उलंघन हुआ हो। लेकिन यहां सवाल यह है कि बतौर एक राजनीतिक दल होते हुए कांग्रेस किसी कंपनी को लोन कैसे दे सकती है? कांग्रेस का यह तर्क कि पार्टी अपनी पूंजी को जैसे चाहे तैसे खर्च कर सकती है यह उसके तानाशाही को ही रेखांकित करता है। मजे की बात यह कि जिस यंग इंडिया लिमिटेड ने नेशनल हेराल्ड की कंपनी एसोसिएट जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) को खरीदा उसमें सोनिया व राहुल गांधी की 38-38 फीसदी की हिस्सेदारी है। क्या इससे यह प्रमाणित नहीं होता है कि कांगे्रस ने सोनिया व राहुल गांधी को परोक्ष रुप से लाभ पहुंचाया है? क्या कांग्रेस इस तरह की आर्थिक उदारता एक सामान्य कांग्रेसी कार्यकर्ता के प्रति दिखा सकती है? अगर नहीं तो फिर ऐसे में याचिकाकर्ता सुब्रमण्यम स्वामी आरोप में दम लगता है कि यह सब कुछ दिल्ली में बहादुर शाह जफर मार्ग पर स्थित हेराल्ड हाउस की 2000 करोड़ रुपए की संपत्ति को कब्जा करने के लिए किया गया। फिर इसकी जांच क्यों नहीं होनी चाहिए? कांग्रेस की यह दलील उचित नहीं कि हेराल्ड हाउस को पासपोर्ट आॅफिस के लिए किराए पर दिया गया है। सवाल यह कि जब केंद्र ने अखबार चलाने के लिए जमीन दी थी तो उसे व्यवसायिक इस्तेमाल के लिए क्यों दिया गया? सवाल यहीं तक सीमित नहीं है।

याचिकाकर्ता का आरोप यह भी है कि चूंकि इस खेल में हवाला का पैसा लगा है लिहाजा सोनिया व राहुल गांधी के विरुद्ध टैक्स चोरी और धोखाधड़ी का मामला बनता है। उल्लेखनीय तथ्य यह भी कि फेमा वाॅयलेशन की शिकायत सही पाए जाने पर ही सोनिया व राहुल के खिलाफ रेग्यूलर केस दर्ज हुआ है। चूंकि इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने कांग्रेस को राजनीतिक दल होने के बावजूद व्यवसायिक लेन-देने में शामिल होने को लेकर नोटिस दिया है इसलिए इस मामले की गंभीरता और बढ़ जाती है। कांग्रेस का यह तर्क बेमानी है कि उसने एजेएल में 90 करोड़ का ट्रांजेक्शन व्यवसायिक कार्य के लिए नहीं बल्कि विचारधारा के लिए किया। लेकिन कांग्रेस को यह भी बताना होगा कि फिर नेशनल हेराल्ड को जीवंतता क्यों नहीं दी? गौरतलब है कि पंडित जवाहर लाल नेहरु ने आजादी के दौरान 8 सितंबर, 1938 को लखनऊ में नेशनल हेराल्ड अखबार की स्थापना की। आजादी के उपरांत यह अखबार कांग्रेस का मुखपत्र बन गया और घाटे के चलते 2008 में छपना बंद हो गया। अगर कांग्रेस अपने अधिनायकवादी आचरण में सुधार नहीं लाती है तो निःसंदेह उसकी स्थिति भी नेशनल हेराल्ड जैसा होगा। बहरहाल न्यायालय का फैसला चाहे जो भी आए पर इस प्रसंग में कांगे्रस ने अपना अलोकतांत्रिक और अराजक चरित्र को ही उजागर किया है।